The Quran in Hindi - Surah Mutaffifin translated into Hindi, Surah Al-Mutaffifin in Hindi. We provide accurate translation of Surah Mutaffifin in Hindi - الهندية, Verses 36 - Surah Number 83 - Page 587.
وَيْلٌ لِّلْمُطَفِّفِينَ (1) विनाश है डंडी मारने वालों का। |
الَّذِينَ إِذَا اكْتَالُوا عَلَى النَّاسِ يَسْتَوْفُونَ (2) जो लोगों से नाप कर लें,, तो पूरा लेते हैं। |
وَإِذَا كَالُوهُمْ أَو وَّزَنُوهُمْ يُخْسِرُونَ (3) और जब उन्हें नाप या तोल कर देते हैं, तो कम देते हैं। |
أَلَا يَظُنُّ أُولَٰئِكَ أَنَّهُم مَّبْعُوثُونَ (4) क्या वे नहीं सोचते कि फिर जीवित किये जायेंगे |
لِيَوْمٍ عَظِيمٍ (5) एक भीषण दिन के लिए। |
يَوْمَ يَقُومُ النَّاسُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ (6) जिस दिन सभी, विश्व के पालनहार के सामने खड़े होंगे। |
كَلَّا إِنَّ كِتَابَ الْفُجَّارِ لَفِي سِجِّينٍ (7) कदापि ऐसा न करो, निश्चय बुरों का कर्म पत्र "सिज्जीन" में है। |
وَمَا أَدْرَاكَ مَا سِجِّينٌ (8) और तुम क्या जानो कि "सिज्जीन" क्या है |
كِتَابٌ مَّرْقُومٌ (9) वह लिखित महान पुस्तक है। |
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ (10) उस दिन झुठलाने वालों के लिए विनाश है। |
الَّذِينَ يُكَذِّبُونَ بِيَوْمِ الدِّينِ (11) जो प्रतिकार (बदले) के दिन को झुठलाते हैं। |
وَمَا يُكَذِّبُ بِهِ إِلَّا كُلُّ مُعْتَدٍ أَثِيمٍ (12) तथा उसे वही झुठलाता है, जो महा अत्याचारी और पापी है। |
إِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِ آيَاتُنَا قَالَ أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ (13) जब उनके सामने हमारी आयतों का अध्ययन किया जाता है, तो कहते हैं: पूर्वजों की कल्पित कथायें हैं। |
كَلَّا ۖ بَلْ ۜ رَانَ عَلَىٰ قُلُوبِهِم مَّا كَانُوا يَكْسِبُونَ (14) सुनो! उनके दिलों पर कुकर्मों के कारण लोहमल लग गया है। |
كَلَّا إِنَّهُمْ عَن رَّبِّهِمْ يَوْمَئِذٍ لَّمَحْجُوبُونَ (15) निश्चय वे उस दिन अपने पालनहार (के दर्शन) से रोक दिये जायेंगे। |
ثُمَّ إِنَّهُمْ لَصَالُو الْجَحِيمِ (16) फिर वे नरक में जायेंगे। |
ثُمَّ يُقَالُ هَٰذَا الَّذِي كُنتُم بِهِ تُكَذِّبُونَ (17) फिर कहा जायेगा कि यही है, जिसे तुम मिथ्या मानते थे। |
كَلَّا إِنَّ كِتَابَ الْأَبْرَارِ لَفِي عِلِّيِّينَ (18) सच ये है कि सदाचारियों के कर्म पत्र "इल्लिय्यीन" में हैं। |
وَمَا أَدْرَاكَ مَا عِلِّيُّونَ (19) और तुम क्या जानो कि "इल्लिय्यीन" क्या है |
كِتَابٌ مَّرْقُومٌ (20) एक अंकित पुस्तक है। |
يَشْهَدُهُ الْمُقَرَّبُونَ (21) जिसके पास समीपवर्ती (फरिश्ते) उपस्थित रहते हैं। |
إِنَّ الْأَبْرَارَ لَفِي نَعِيمٍ (22) निशचय, सदाचारी आनन्द में होंगे। |
عَلَى الْأَرَائِكِ يَنظُرُونَ (23) सिंहासनों के ऊपर बैठकर सब कुछ देख रहे होंगे। |
تَعْرِفُ فِي وُجُوهِهِمْ نَضْرَةَ النَّعِيمِ (24) तुम उनके मुखों से आनंद के चिन्ह अनुभव करोगे। |
يُسْقَوْنَ مِن رَّحِيقٍ مَّخْتُومٍ (25) उन्हें मुहर लगी शुध्द मदिरा पिलाई जायेगी। |
خِتَامُهُ مِسْكٌ ۚ وَفِي ذَٰلِكَ فَلْيَتَنَافَسِ الْمُتَنَافِسُونَ (26) ये मुहर कस्तूरी की होगी। तो इसकी अभिलाषा करने वालों को इसकी अभिलाषा करनी चाहिये। |
وَمِزَاجُهُ مِن تَسْنِيمٍ (27) उसमें तसनीम मिली होगी। |
عَيْنًا يَشْرَبُ بِهَا الْمُقَرَّبُونَ (28) वह एक स्रोत है, जिससे अल्लाह के समीपवर्ती पियेंगे। |
إِنَّ الَّذِينَ أَجْرَمُوا كَانُوا مِنَ الَّذِينَ آمَنُوا يَضْحَكُونَ (29) पापी (संसार में) ईमान लाने वालों पर हंसते थे। |
وَإِذَا مَرُّوا بِهِمْ يَتَغَامَزُونَ (30) और जब उनके पास से गुज़रते, तो आँखें मिचकाते थे। |
وَإِذَا انقَلَبُوا إِلَىٰ أَهْلِهِمُ انقَلَبُوا فَكِهِينَ (31) और जब अपने परिवार में वापस जाते, तो आनंद लेते हुए वापस होते थे। |
وَإِذَا رَأَوْهُمْ قَالُوا إِنَّ هَٰؤُلَاءِ لَضَالُّونَ (32) और जब उन्हें (मोमिनों को) देखते, तो कहते थेः यही भटके हुए लोग हैं। |
وَمَا أُرْسِلُوا عَلَيْهِمْ حَافِظِينَ (33) जबकि वे उनके निरीक्षक बनाकर नहीं भेजे गये थे। |
فَالْيَوْمَ الَّذِينَ آمَنُوا مِنَ الْكُفَّارِ يَضْحَكُونَ (34) तो जो ईमान लाये, आज काफ़िरों पर हंस रहे हैं। |
عَلَى الْأَرَائِكِ يَنظُرُونَ (35) सिंहासनों के ऊपर से उन्हें देख रहे हैं। |
هَلْ ثُوِّبَ الْكُفَّارُ مَا كَانُوا يَفْعَلُونَ (36) क्या काफ़िरों (विश्वास हीनों) को उनका बदला दे दिया गया |