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Surah At-Taghabun in Hindi

Quran Hindi ⮕ Surah Taghabun

Translation of the Meanings of Surah Taghabun in Hindi - الهندية

The Quran in Hindi - Surah Taghabun translated into Hindi, Surah At-Taghabun in Hindi. We provide accurate translation of Surah Taghabun in Hindi - الهندية, Verses 18 - Surah Number 64 - Page 556.

بسم الله الرحمن الرحيم

يُسَبِّحُ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۖ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (1)
अल्लाह की पवित्रता वर्णन करती है प्रत्येक चीज़, जो आकाशों में है तथा जो धरती में है। उसी का राज्य है और उसी के लिए प्रशंसा है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।
هُوَ الَّذِي خَلَقَكُمْ فَمِنكُمْ كَافِرٌ وَمِنكُم مُّؤْمِنٌ ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ (2)
वही है, जिसने उत्पन्न किया है तुम्हें, तो तुममें से कुछ काफ़िर हैं और तुममें से कोई ईमान वाला है तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उसे देख रहा है।
خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ وَصَوَّرَكُمْ فَأَحْسَنَ صُوَرَكُمْ ۖ وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ (3)
उसने उत्पन्न किया आकाशों तथा धरती को सत्य के साथ तथा रूप बनाया तुम्हारा तो सुन्दर बनाया तुम्हारा रूप और उसी की ओर फिरकर जाना है।
يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُسِرُّونَ وَمَا تُعْلِنُونَ ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ (4)
वह जानता है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और जानता है, जो तुम मन में रखते हो और जो बोलते हो तथा अल्लाह भली-भाँति अवगत है दिलों के भेदों से।
أَلَمْ يَأْتِكُمْ نَبَأُ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن قَبْلُ فَذَاقُوا وَبَالَ أَمْرِهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ (5)
क्या नहीं आई तुम्हारे पास उनकी सूचना, जिन्होंने कुफ़्र किया इससे पूर्व? तो उन्होंने चख लिया अपने कर्म का दुष्परिणाम और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُ كَانَت تَّأْتِيهِمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَقَالُوا أَبَشَرٌ يَهْدُونَنَا فَكَفَرُوا وَتَوَلَّوا ۚ وَّاسْتَغْنَى اللَّهُ ۚ وَاللَّهُ غَنِيٌّ حَمِيدٌ (6)
ये इसलिए कि आते रहे उनके पास उनके रसूल खुली निशानियाँ लेकर। तो उन्होंने कहाः क्या कोई मनुष्य हमें मार्गदर्शन[1] देगा? अतः उन्होंने कुफ़्र किया तथा मुँह फेर लिया और अल्लाह (भी उनसे) निश्चिन्त हो गया तथा अल्लाह निस्पृह, प्रशंसित है।
زَعَمَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَن لَّن يُبْعَثُوا ۚ قُلْ بَلَىٰ وَرَبِّي لَتُبْعَثُنَّ ثُمَّ لَتُنَبَّؤُنَّ بِمَا عَمِلْتُمْ ۚ وَذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ (7)
समझ रखा है काफ़िरों ने कि वे कदापि फिर जीवित नहीं किये जायेंगे। आप कह दें कि क्यों नहीं? मेरे पालनहार की शपथ! तुम अवश्य जीवित किये जाओगे। फिर तुम्हें बताया जायेगा कि तुमने (संसार में) क्या किया है तथा ये अल्लाह पर अति सरल है।
فَآمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَالنُّورِ الَّذِي أَنزَلْنَا ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ (8)
अतः तुम ईमान लाओ अल्लाह तथा उसके रसूल[1] पर तथा उस नूर (ज्योति)[2] पर, जिसे हमने उतारा है तथा अल्लाह उससे, जो तुम करते हो भली-भाँति सूचित है।
يَوْمَ يَجْمَعُكُمْ لِيَوْمِ الْجَمْعِ ۖ ذَٰلِكَ يَوْمُ التَّغَابُنِ ۗ وَمَن يُؤْمِن بِاللَّهِ وَيَعْمَلْ صَالِحًا يُكَفِّرْ عَنْهُ سَيِّئَاتِهِ وَيُدْخِلْهُ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۚ ذَٰلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ (9)
जिस दिन वह तुम्हें एकत्र करेगा, एकत्र किये जाने वाले दिन। तो वह क्षति (हानि) के खुल जाने[1] का दिन होगा और जो ईमान लाया अल्लाह पर तथा सदाचार करता है, तो वह क्षमा कर देगा उसके दोषों को और प्रवेश देगा उसे ऐसे स्वर्गों में, बहती होंगी जिनमें नहरें, वे सदावासी होंगे उनमें। यही बड़ी सफलता है।
وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ خَالِدِينَ فِيهَا ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ (10)
और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और झुठलाया हमारी आयतों (निशानियों) को, तो वही नारकी हैं, जो सदावासी होंगे उस (नरक) में तथा वह बुरा ठिकाना है।
مَا أَصَابَ مِن مُّصِيبَةٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ ۗ وَمَن يُؤْمِن بِاللَّهِ يَهْدِ قَلْبَهُ ۚ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ (11)
जो आपदा आती है, वह अल्लाह ही की अनुमति से आती है तथा जो अल्लाह पर ईमान[1] लाये, तो वह मार्गदर्शन देता[2] है उसके दिल को तथा अल्लाह प्रत्येक चीज़ को जानता है।
وَأَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ ۚ فَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَإِنَّمَا عَلَىٰ رَسُولِنَا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ (12)
तथा आज्ञा का पालन करो अल्लाह की तथा आज्ञा का पालन करो उसके रसूल की। फिर यदि तुम विमुख हुए, तो हमारे रसूल का दायित्व केवल खुले रूप से (उपदेश) पहुँचा देना है।
اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ (13)
अल्लाह वह है, जिसके सिवा कोई वंदनीय ( सच्चा पूज्य) नहीं है। अतः, अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिये ईमान वालों को।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ مِنْ أَزْوَاجِكُمْ وَأَوْلَادِكُمْ عَدُوًّا لَّكُمْ فَاحْذَرُوهُمْ ۚ وَإِن تَعْفُوا وَتَصْفَحُوا وَتَغْفِرُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ (14)
हे लोगो जो ईमान लाये हो! वास्तव में, तुम्हारी कुछ पत्नियाँ तथा संतान तुम्हारी शत्रु[1] हैं। अतः, उनसे सावधान रहो और यदि तुम क्षमा से काम लो तथा सुधार करो और क्षमा कर दो, तो वास्तव में अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
إِنَّمَا أَمْوَالُكُمْ وَأَوْلَادُكُمْ فِتْنَةٌ ۚ وَاللَّهُ عِندَهُ أَجْرٌ عَظِيمٌ (15)
तुम्हारे धन तथा तुम्हारी संतान तो तुम्हारे लिए एक परीक्षा हैं तथा अल्लाह के पास बड़ा प्रतिफल[1] (बदला) है।
فَاتَّقُوا اللَّهَ مَا اسْتَطَعْتُمْ وَاسْمَعُوا وَأَطِيعُوا وَأَنفِقُوا خَيْرًا لِّأَنفُسِكُمْ ۗ وَمَن يُوقَ شُحَّ نَفْسِهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ (16)
तो अल्लाह से डरते रहो, जितना तुमसे हो सके तथा सुनो, आज्ञा पालन करो और दान करो। ये उत्तम है तुम्हारे लिए और जो बचा लिया गया अपने मन की कंजूसी से, तो वही सफल होने वाले हैं।
إِن تُقْرِضُوا اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا يُضَاعِفْهُ لَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ۚ وَاللَّهُ شَكُورٌ حَلِيمٌ (17)
यदि तुम अल्लाह को उत्तम ऋण[1] दोगो, तो वह तुम्हें कई गुना बढ़ाकर देगा और क्षमा कर देगा तुम्हें और अल्लाह बड़ा गुणग्राही, सहनशील है।
عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (18)
वह परोक्ष और ह़ाज़िर का ज्ञान रखने वाला है। वह अति प्रभावी तथा गुणी है।
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Surahs from Quran :

1- Fatiha2- Baqarah
3- Al Imran4- Nisa
5- Maidah6- Anam
7- Araf8- Anfal
9- Tawbah10- Yunus
11- Hud12- Yusuf
13- Raad14- Ibrahim
15- Hijr16- Nahl
17- Al Isra18- Kahf
19- Maryam20- TaHa
21- Anbiya22- Hajj
23- Muminun24- An Nur
25- Furqan26- Shuara
27- Naml28- Qasas
29- Ankabut30- Rum
31- Luqman32- Sajdah
33- Ahzab34- Saba
35- Fatir36- Yasin
37- Assaaffat38- Sad
39- Zumar40- Ghafir
41- Fussilat42- shura
43- Zukhruf44- Ad Dukhaan
45- Jathiyah46- Ahqaf
47- Muhammad48- Al Fath
49- Hujurat50- Qaf
51- zariyat52- Tur
53- Najm54- Al Qamar
55- Rahman56- Waqiah
57- Hadid58- Mujadilah
59- Al Hashr60- Mumtahina
61- Saff62- Jumuah
63- Munafiqun64- Taghabun
65- Talaq66- Tahrim
67- Mulk68- Qalam
69- Al-Haqqah70- Maarij
71- Nuh72- Jinn
73- Muzammil74- Muddathir
75- Qiyamah76- Insan
77- Mursalat78- An Naba
79- Naziat80- Abasa
81- Takwir82- Infitar
83- Mutaffifin84- Inshiqaq
85- Buruj86- Tariq
87- Al Ala88- Ghashiya
89- Fajr90- Al Balad
91- Shams92- Lail
93- Duha94- Sharh
95- Tin96- Al Alaq
97- Qadr98- Bayyinah
99- Zalzalah100- Adiyat
101- Qariah102- Takathur
103- Al Asr104- Humazah
105- Al Fil106- Quraysh
107- Maun108- Kawthar
109- Kafirun110- Nasr
111- Masad112- Ikhlas
113- Falaq114- An Nas