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Surah Al-Hujuraat in Hindi

Quran Hindi ⮕ Surah Hujurat

Translation of the Meanings of Surah Hujurat in Hindi - الهندية

The Quran in Hindi - Surah Hujurat translated into Hindi, Surah Al-Hujuraat in Hindi. We provide accurate translation of Surah Hujurat in Hindi - الهندية, Verses 18 - Surah Number 49 - Page 515.

بسم الله الرحمن الرحيم

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُقَدِّمُوا بَيْنَ يَدَيِ اللَّهِ وَرَسُولِهِ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ (1)
हे लोगो जो ईमान लाये हो! आगे न बढ़ो अल्लाह और उसके रसूल[1] से और डरो अल्लाह से। वास्तव में, अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَرْفَعُوا أَصْوَاتَكُمْ فَوْقَ صَوْتِ النَّبِيِّ وَلَا تَجْهَرُوا لَهُ بِالْقَوْلِ كَجَهْرِ بَعْضِكُمْ لِبَعْضٍ أَن تَحْبَطَ أَعْمَالُكُمْ وَأَنتُمْ لَا تَشْعُرُونَ (2)
हे लोगो जो ईमान लाये हो! अपनी आवाज़, नबी की आवाज़ से ऊँची न करो और न आपसे ऊँची आवाज़ में बात करो, जैसे एक-दूसरे से ऊँची आवाज़ में बात करते हो। ऐसा न हो कि तुम्हारे कर्म व्यर्थ हो जायें और तुम्हें पता (भी) न हो।
إِنَّ الَّذِينَ يَغُضُّونَ أَصْوَاتَهُمْ عِندَ رَسُولِ اللَّهِ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ امْتَحَنَ اللَّهُ قُلُوبَهُمْ لِلتَّقْوَىٰ ۚ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ عَظِيمٌ (3)
निःसंदेह, जो धीमी रखते हैं अपनी आवाज़, अल्लाह के रसूल के सामने, वही लोग हैं, जाँच लिया है अल्लाह ने जिनके दिलों को, सदाचार के लिए। उन्हीं के लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।
إِنَّ الَّذِينَ يُنَادُونَكَ مِن وَرَاءِ الْحُجُرَاتِ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ (4)
वास्तव में जो आपको पुकारते[1] हैं कमरों के पीछे से, उनमें से अधिक्तर निर्बोध हैं।
وَلَوْ أَنَّهُمْ صَبَرُوا حَتَّىٰ تَخْرُجَ إِلَيْهِمْ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ ۚ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ (5)
और यदि वे सहन[1] करते, यहाँ तक कि आप निकलकर आते उनकी ओर, तो ये उत्तम होता उनके लिए तथा अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, दयावान् है।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِن جَاءَكُمْ فَاسِقٌ بِنَبَإٍ فَتَبَيَّنُوا أَن تُصِيبُوا قَوْمًا بِجَهَالَةٍ فَتُصْبِحُوا عَلَىٰ مَا فَعَلْتُمْ نَادِمِينَ (6)
हे ईमान वालो! यदि तुम्हारे पास कोई दुराचारी[1] कोई सूचना लाये, तो भली-भाँति उसका अनुसंधान (छान-बीन) कर लिया करो। ऐसा न हो कि तुम हानि पहुँचा दो किसी समुदाय को, अज्ञानता के कारण, फिर अपने किये पर पछताओ।
وَاعْلَمُوا أَنَّ فِيكُمْ رَسُولَ اللَّهِ ۚ لَوْ يُطِيعُكُمْ فِي كَثِيرٍ مِّنَ الْأَمْرِ لَعَنِتُّمْ وَلَٰكِنَّ اللَّهَ حَبَّبَ إِلَيْكُمُ الْإِيمَانَ وَزَيَّنَهُ فِي قُلُوبِكُمْ وَكَرَّهَ إِلَيْكُمُ الْكُفْرَ وَالْفُسُوقَ وَالْعِصْيَانَ ۚ أُولَٰئِكَ هُمُ الرَّاشِدُونَ (7)
तथा जान लो कि तुम में अल्लाह के रसूल मौजूद हैं। यदि, वह तुम्हारी बात मानते रहे बहुत-से विषय में, तो तुम आपदा में पड़ जाओगे। परन्तु, अल्लाह ने प्रिय बना दिया है तुम्हारे लिए ईमान को तथा सुशोभित कर दिया है उसे तुम्हारे दिलों में और अप्रिय बना दिया है तुम्हारे लिए कुफ़्र तथा उल्लंघन और अवज्ञा को और यही लोग संमार्ग पर हैं।
فَضْلًا مِّنَ اللَّهِ وَنِعْمَةً ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ (8)
अल्लाह की दया तथा उपकार से और अल्लाह सब कुछ तथा सब गुणों को जानने वाला है।
وَإِن طَائِفَتَانِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ اقْتَتَلُوا فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا ۖ فَإِن بَغَتْ إِحْدَاهُمَا عَلَى الْأُخْرَىٰ فَقَاتِلُوا الَّتِي تَبْغِي حَتَّىٰ تَفِيءَ إِلَىٰ أَمْرِ اللَّهِ ۚ فَإِن فَاءَتْ فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا بِالْعَدْلِ وَأَقْسِطُوا ۖ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ (9)
और यदि ईमान वालों के दो गिरोह लड़[1] पड़ें, तो संधि करा दो उनके बीच। फिर दोनों में से एक, दूसरे पर अत्याचार करे, तो उससे लड़ो जो अत्याचार कर रहा है, यहाँ तक कि फिर जाये अल्लाह के आदेश की ओर। फिर, यदि वह फिर[1] आये, तो उनके बीच संधि करा दो न्याय के साथ तथा न्याय करो, वास्तव में अल्लाह प्रेम करता है, न्याय करने वालों से।
إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ فَأَصْلِحُوا بَيْنَ أَخَوَيْكُمْ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ (10)
वास्तव में, सब ईमान वाले भाई-भाई हैं। अतः संधि (मेल) करा दो अपने दो भाईयों के बीच तथा अल्लाह से डरो, ताकि तुम पर दया की जाये।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا يَسْخَرْ قَوْمٌ مِّن قَوْمٍ عَسَىٰ أَن يَكُونُوا خَيْرًا مِّنْهُمْ وَلَا نِسَاءٌ مِّن نِّسَاءٍ عَسَىٰ أَن يَكُنَّ خَيْرًا مِّنْهُنَّ ۖ وَلَا تَلْمِزُوا أَنفُسَكُمْ وَلَا تَنَابَزُوا بِالْأَلْقَابِ ۖ بِئْسَ الِاسْمُ الْفُسُوقُ بَعْدَ الْإِيمَانِ ۚ وَمَن لَّمْ يَتُبْ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ (11)
हे लोगो जो ईमान लाये हो![1] हँसी न उड़ाये कोई जाति किसी अन्य जाति की। हो सकता है कि वह उनसे अच्छी हो और न नारी अन्य नारियों की। हो सकता है कि वो उनसे अच्छी हों तथा आक्षेप न लगाओ एक-दूसरे को और न किसी को बुरी उपाधि दो। बुरा नाम है अपशब्द ईमान के पश्चात् और जो क्षमा न माँगें, तो वही लोग अत्याचारी हैं।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اجْتَنِبُوا كَثِيرًا مِّنَ الظَّنِّ إِنَّ بَعْضَ الظَّنِّ إِثْمٌ ۖ وَلَا تَجَسَّسُوا وَلَا يَغْتَب بَّعْضُكُم بَعْضًا ۚ أَيُحِبُّ أَحَدُكُمْ أَن يَأْكُلَ لَحْمَ أَخِيهِ مَيْتًا فَكَرِهْتُمُوهُ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ رَّحِيمٌ (12)
हे लोगो जो ईमान लाये हो! बचो अधिकांश गुमानों से। वास्व में, कुछ गुमान पाप हैं और किसी का भेद न लो और न एक-दूसरे की ग़ीबत[1] करो। क्या चाहेगा तुममें से कोई अपने मरे भाई का मांश खाना? अतः, तुम्हें इससे घृणा होगी तथा अल्लाह से डरते रहो। वास्तव में, अल्लाह अति दयावान्, क्षमावान् है।
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُم مِّن ذَكَرٍ وَأُنثَىٰ وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوا ۚ إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِندَ اللَّهِ أَتْقَاكُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ (13)
हे मनुष्यो![1] हमने तुम्हें पैदा किया एक नर तथा नारी से तथा बना दी हैं तुम्हारी जातियाँ तथा प्रजातियाँ, ताकि एक-दूसरे को पहचानो। वास्तव में, तुममें अल्लाह के समीप सबसे अधिक आदरणीय वही है, जो तुममें अल्लाह से सबसे अधिक डरता हो। वास्तव में अल्लाह सब जानने वाला है, सबसे सूचित है।
۞ قَالَتِ الْأَعْرَابُ آمَنَّا ۖ قُل لَّمْ تُؤْمِنُوا وَلَٰكِن قُولُوا أَسْلَمْنَا وَلَمَّا يَدْخُلِ الْإِيمَانُ فِي قُلُوبِكُمْ ۖ وَإِن تُطِيعُوا اللَّهَ وَرَسُولَهُ لَا يَلِتْكُم مِّنْ أَعْمَالِكُمْ شَيْئًا ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ (14)
कहा कुछ बद्दुओं (देहातियों) ने कि हम ईमान लाये। आप कह दें कि तुम ईमान नहीं लाये। परन्तु कहो कि हम इस्लाम लाये और ईमान अभी तक तुम्हारे दिलों में प्रवेश नहीं किया है तथा यदि तुम आज्ञा का पालन करते रहे अल्लाह तथा उसके रसूल की, तो नहीं कम करेगा वह (अल्लाह) तुम्हारे कर्मों में से कुछ। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान्[1] है।
إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ ثُمَّ لَمْ يَرْتَابُوا وَجَاهَدُوا بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۚ أُولَٰئِكَ هُمُ الصَّادِقُونَ (15)
वास्तव में, ईमान वाले वही हैं, जो ईमान लाये अल्लाह तथा उसके रसूल पर, फिर संदेह नहीं किया और जिहाद किया अपने प्राणों तथा धनों से, अल्लाह की राह में, यही सच्चे हैं।
قُلْ أَتُعَلِّمُونَ اللَّهَ بِدِينِكُمْ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۚ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ (16)
आप कह दें कि क्या तुम अवगत करा रहे हो अल्लाह को अपने धर्म से? जबकि अल्लाह जानता है जो कुछ (भी) आकाशों तथा धरती में है तथा वह प्रत्येक वस्तु का अति ज्ञानी है।
يَمُنُّونَ عَلَيْكَ أَنْ أَسْلَمُوا ۖ قُل لَّا تَمُنُّوا عَلَيَّ إِسْلَامَكُم ۖ بَلِ اللَّهُ يَمُنُّ عَلَيْكُمْ أَنْ هَدَاكُمْ لِلْإِيمَانِ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ (17)
वे उपकार जता रहे हैं आपके ऊपर कि वे इस्वलाम लाये हैं। आप कह दें के उपकार न जताओ मुझपर अपने इस्लाम का। बल्कि अल्लाह का उपकार है तुमपर कि उसने राह दिखायी है तुम्हें ईमान की, यदि तुम सच्चे हो।
إِنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ غَيْبَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَاللَّهُ بَصِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ (18)
निःसंदेह, अल्लाह ही जानता है आकाशों तथा धरती के ग़ैब (छुपी बात) को तथा अल्लाह देख रहा है जो कुछ तुम कर रहे हो।
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Surahs from Quran :

1- Fatiha2- Baqarah
3- Al Imran4- Nisa
5- Maidah6- Anam
7- Araf8- Anfal
9- Tawbah10- Yunus
11- Hud12- Yusuf
13- Raad14- Ibrahim
15- Hijr16- Nahl
17- Al Isra18- Kahf
19- Maryam20- TaHa
21- Anbiya22- Hajj
23- Muminun24- An Nur
25- Furqan26- Shuara
27- Naml28- Qasas
29- Ankabut30- Rum
31- Luqman32- Sajdah
33- Ahzab34- Saba
35- Fatir36- Yasin
37- Assaaffat38- Sad
39- Zumar40- Ghafir
41- Fussilat42- shura
43- Zukhruf44- Ad Dukhaan
45- Jathiyah46- Ahqaf
47- Muhammad48- Al Fath
49- Hujurat50- Qaf
51- zariyat52- Tur
53- Najm54- Al Qamar
55- Rahman56- Waqiah
57- Hadid58- Mujadilah
59- Al Hashr60- Mumtahina
61- Saff62- Jumuah
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