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Surah Al-Hadid in Hindi

Quran Hindi ⮕ Surah Hadid

Translation of the Meanings of Surah Hadid in Hindi - الهندية

The Quran in Hindi - Surah Hadid translated into Hindi, Surah Al-Hadid in Hindi. We provide accurate translation of Surah Hadid in Hindi - الهندية, Verses 29 - Surah Number 57 - Page 537.

بسم الله الرحمن الرحيم

سَبَّحَ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (1)
अल्लाह की पवित्रता का गान करता है, जो भी आकाशों तथा धरती में है और वह प्रबल, गुणी है।
لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ يُحْيِي وَيُمِيتُ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (2)
उसी का है आकाशों तथा धरती का राज्य। वह जीवन देता है तथा मारता है और वह जो चाहे, कर सकता है।
هُوَ الْأَوَّلُ وَالْآخِرُ وَالظَّاهِرُ وَالْبَاطِنُ ۖ وَهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ (3)
वही प्रथम, वही अन्तिम और प्रत्यक्ष तथा गुप्त है और वह प्रत्येक वस्तु का जानने वाला है।
هُوَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَىٰ عَلَى الْعَرْشِ ۚ يَعْلَمُ مَا يَلِجُ فِي الْأَرْضِ وَمَا يَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا يَنزِلُ مِنَ السَّمَاءِ وَمَا يَعْرُجُ فِيهَا ۖ وَهُوَ مَعَكُمْ أَيْنَ مَا كُنتُمْ ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ (4)
उसीने उत्पन्न किया है आकाशों तथा धरती को छः दिनों में, फिर स्थित हो गया अर्श (सिंहासन) पर। वह जानता है उसे, जो प्रवेश करता है धरती में, जो निकलता है उससे, जो उतरता है आकाश से तथा चढ़ता है उसमें और वह तुम्हारे साथ[1] है जहाँ भी तुम रहो और अल्लाह जो कुछ तुम कर रहे हो, उसे देख रहा है।
لَّهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ (5)
उसी का है आकाशों तथा धरती का राज्य और उसी की ओर फेरे जाते हैं सब मामले (निर्णय के लिए)।
يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ ۚ وَهُوَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ (6)
वह प्रवेश करता है रात्रि को दिन में और प्रवेश करता है दिन को रात्रि में तथा वह सीनों के भेदों से पूर्णतः अवगत है।
آمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَأَنفِقُوا مِمَّا جَعَلَكُم مُّسْتَخْلَفِينَ فِيهِ ۖ فَالَّذِينَ آمَنُوا مِنكُمْ وَأَنفَقُوا لَهُمْ أَجْرٌ كَبِيرٌ (7)
तुम सभी ईमान लाओ अल्लाह तथा उसके रसूल पर और व्यय करो उसमें से जिसमें उसने अधिकार दिया है तुम्हें। तो जो लोग ईमान लायेंगे तुममें से तथा दान करेंगे, तो उन्हीं के लिए बड़ा प्रतिफल है।
وَمَا لَكُمْ لَا تُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ ۙ وَالرَّسُولُ يَدْعُوكُمْ لِتُؤْمِنُوا بِرَبِّكُمْ وَقَدْ أَخَذَ مِيثَاقَكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ (8)
और तुम्हें क्या हो गया है कि ईमान नहीं लाते अल्लाह पर, जबकि रसूल[1] तुम्हें पुकार रहा है, ताकि तुम ईमान लाओ अपने पालनहार पर, जबकि अल्लाह ले चुका है तुमसे वचन,[2] यदि तुम ईमान वाले हो।
هُوَ الَّذِي يُنَزِّلُ عَلَىٰ عَبْدِهِ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ لِّيُخْرِجَكُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ ۚ وَإِنَّ اللَّهَ بِكُمْ لَرَءُوفٌ رَّحِيمٌ (9)
वही है, जो उतार रहा है अपने भक्त पर खुली आयतें, ताकि वह तुम्हें निकाले अंधेरों से प्रकाश की ओर तथा वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे लिए अवश्य करुणामय, दयावान् है।
وَمَا لَكُمْ أَلَّا تُنفِقُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلِلَّهِ مِيرَاثُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ لَا يَسْتَوِي مِنكُم مَّنْ أَنفَقَ مِن قَبْلِ الْفَتْحِ وَقَاتَلَ ۚ أُولَٰئِكَ أَعْظَمُ دَرَجَةً مِّنَ الَّذِينَ أَنفَقُوا مِن بَعْدُ وَقَاتَلُوا ۚ وَكُلًّا وَعَدَ اللَّهُ الْحُسْنَىٰ ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ (10)
और क्या कारण है कि तुम व्यय नहीं करते अल्लाह की राह में, जबकि अल्लाह ही के लिए है आकाशों और धरती का उत्तराधिकार। नहीं बराबर हो सकते तुममें से वे जिन्होंने दान किया (मक्का) की विजय से पहले तथा धर्मयुध्द किया। वही लोग पद में अधिक ऊँचे हैं उनसे, जिन्होंने दान किया उसके पश्चात्[1] तथा धर्मयुध्द किया तथा प्रत्येक को अल्लाह ने वचन दिया है भलाई का तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उससे पूर्णतः सूचित है।
مَّن ذَا الَّذِي يُقْرِضُ اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا فَيُضَاعِفَهُ لَهُ وَلَهُ أَجْرٌ كَرِيمٌ (11)
कौन है, जो ऋण दे अल्लाह को अच्छा ऋण? जिसे वह दुगुना कर दे उसके लिए और उसी के लिए अच्छा प्रतिदान है।
يَوْمَ تَرَى الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ يَسْعَىٰ نُورُهُم بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَبِأَيْمَانِهِم بُشْرَاكُمُ الْيَوْمَ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ (12)
जिस दिन तुम देखोगे ईमान वालों तथा ईमान वालियों को कि दौड़ रहा[1] होगा उनका प्रकाश उनके आगे तथा उनके दायें। तुम्हें शुभ सूचना है ऐसे स्वर्गों की, बहती हैं जिनमें नहरें, जिनमें तुम सदावासी होगे, वही बड़ी सफलता है।
يَوْمَ يَقُولُ الْمُنَافِقُونَ وَالْمُنَافِقَاتُ لِلَّذِينَ آمَنُوا انظُرُونَا نَقْتَبِسْ مِن نُّورِكُمْ قِيلَ ارْجِعُوا وَرَاءَكُمْ فَالْتَمِسُوا نُورًا فَضُرِبَ بَيْنَهُم بِسُورٍ لَّهُ بَابٌ بَاطِنُهُ فِيهِ الرَّحْمَةُ وَظَاهِرُهُ مِن قِبَلِهِ الْعَذَابُ (13)
जिस दिन कहेंगे मुनाफ़िक़ पुरुष तथा मुनाफ़िक़ स्त्रियाँ उनसे, जो ईमान लाये कि हमारी प्रतीक्षा करो, हम प्राप्त कर लें तुम्हारे प्रकाश में से कुछ। उनसे कहा जायेगाः तुम पीछे वापस जाओ और प्रकाश की खोज करो।[1] फिर बना दी जायेगी उनके बीच एक दीवार, जिसमें एक द्वार होगा। उसके भीतर दया होगी तथा उसके बाहर यातना होगी।
يُنَادُونَهُمْ أَلَمْ نَكُن مَّعَكُمْ ۖ قَالُوا بَلَىٰ وَلَٰكِنَّكُمْ فَتَنتُمْ أَنفُسَكُمْ وَتَرَبَّصْتُمْ وَارْتَبْتُمْ وَغَرَّتْكُمُ الْأَمَانِيُّ حَتَّىٰ جَاءَ أَمْرُ اللَّهِ وَغَرَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ (14)
वे उन्हें पुकारेंगेः क्या हम (संसार में) तुम्हारे साथ नहीं थे? (वे कहेंगेः) परन्तु तुमने उपद्रव में डाल दिया अपने आपको और प्रतीक्षा[1] में रहे तथा संदेह किया और धोखे में रखा तुम्हें तुम्हारी कामनाओं ने। यहाँ तक कि आ पहुँचा अल्लाह का आदेश और धोखे ही में रखा तुम्हें बड़े वंचक (शैतान) ने।
فَالْيَوْمَ لَا يُؤْخَذُ مِنكُمْ فِدْيَةٌ وَلَا مِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ مَأْوَاكُمُ النَّارُ ۖ هِيَ مَوْلَاكُمْ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ (15)
तो आज तुमसे कोई अर्थदण्ड नहीं लिया जायेगा और न काफ़िरों से। तुम्हारा आवास नरक है, वही तुम्हारे योग्य है और वह बुरा निवास है।
۞ أَلَمْ يَأْنِ لِلَّذِينَ آمَنُوا أَن تَخْشَعَ قُلُوبُهُمْ لِذِكْرِ اللَّهِ وَمَا نَزَلَ مِنَ الْحَقِّ وَلَا يَكُونُوا كَالَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلُ فَطَالَ عَلَيْهِمُ الْأَمَدُ فَقَسَتْ قُلُوبُهُمْ ۖ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ (16)
क्या समय नहीं आया ईमान वालों के लिए कि झुक जायें उनके दिल अल्लाह के स्मरण (याद) के लिए तथा जो उतरा है सत्य और न हो जायें उनके समान, जिन्हें प्रदान की गयीं पुस्तकें इससे पूर्व, फिर लम्बी अवधि व्यतीत हो गयी उनपर, तो कठोर हो गये उनके दिल[1] तथा उनमें अधिक्तर अवज्ञाकारी हैं।
اعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يُحْيِي الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ قَدْ بَيَّنَّا لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ (17)
जान लो कि अल्लाह ही जीवित करता है धरती को, उसके मरण के पश्चात्, हमने उजागर कर दी हैं तुम्हारे लिए निशानियाँ, ताकि तुम समझो।
إِنَّ الْمُصَّدِّقِينَ وَالْمُصَّدِّقَاتِ وَأَقْرَضُوا اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا يُضَاعَفُ لَهُمْ وَلَهُمْ أَجْرٌ كَرِيمٌ (18)
वस्तुतः, दान करने वाले पुरुष तथा दान करने वाली स्त्रियाँ तथा जिन्होंने ऋण दिया है अल्लाह को अच्छा ऋण,[1] उसे बढ़ाया जायेगा उनके लिए और उन्हीं के लिए अच्छा प्रतिदान है।
وَالَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ أُولَٰئِكَ هُمُ الصِّدِّيقُونَ ۖ وَالشُّهَدَاءُ عِندَ رَبِّهِمْ لَهُمْ أَجْرُهُمْ وَنُورُهُمْ ۖ وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ (19)
तथा जो ईमान लाये अल्लाह और उसके रसूलों[1] पर, वही सिद्दीक़ तथा शहीद[2] हैं अपने पालनहार के समीप। उन्हीं के लिए उनका प्रतिफल तथा उनकी दिव्या ज्योति है और जो काफ़िर हो गये और झ़ठलाया हमारी आयतों को, तो वही नारकीय हैं।
اعْلَمُوا أَنَّمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا لَعِبٌ وَلَهْوٌ وَزِينَةٌ وَتَفَاخُرٌ بَيْنَكُمْ وَتَكَاثُرٌ فِي الْأَمْوَالِ وَالْأَوْلَادِ ۖ كَمَثَلِ غَيْثٍ أَعْجَبَ الْكُفَّارَ نَبَاتُهُ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَاهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَكُونُ حُطَامًا ۖ وَفِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ شَدِيدٌ وَمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللَّهِ وَرِضْوَانٌ ۚ وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلَّا مَتَاعُ الْغُرُورِ (20)
जान लो कि सांसारिक जीवन एक खेल, मनोरंजन, शोभा,[1] आपस में गर्व तथा एक-दूसरे से बढ़ जाने का प्रयास है, धनों तथा संतान में। उस वर्षा के समान भा गयी किसानों को जिसकी उपज, फिर वह पक गयी, तो तुम उसे देखने लगे पीली, फिर वह हो जाती है चूर-चूर और परलोक में कड़ी यातना है तथा अल्लाह की क्षमा और प्रसन्नता है और सांसारिक जीवन तो बस धोखे का संसाधन है।
سَابِقُوا إِلَىٰ مَغْفِرَةٍ مِّن رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا كَعَرْضِ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ أُعِدَّتْ لِلَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ ۚ ذَٰلِكَ فَضْلُ اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ (21)
एक-दूसरे से आगे बढ़ो अपने पालनहार की क्षमा तथा उस स्वर्ग की ओर, जिसका विस्तार आकाश तथा धरती के विस्तार के[1] समान है। जो तैयार की गयी है उनके लिए, जो ईमान लायें अल्लाह और उसके रसूलों पर। ये अल्लाह का अनुग्रह है, वह प्रदान करता है उसे, जिसे चाहता है और अल्लाह बड़ा उदार (दयाशील) है।
مَا أَصَابَ مِن مُّصِيبَةٍ فِي الْأَرْضِ وَلَا فِي أَنفُسِكُمْ إِلَّا فِي كِتَابٍ مِّن قَبْلِ أَن نَّبْرَأَهَا ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ (22)
नहीं पहुँचती कोई आपदा धरती में और न तुम्हारे प्राणों में, परन्तु वह एक पुस्तक में लिखी है, इससे पूर्व की हम उसे उत्पन्न करें[1] और ये अल्लाह के लिए अति सरल है।
لِّكَيْلَا تَأْسَوْا عَلَىٰ مَا فَاتَكُمْ وَلَا تَفْرَحُوا بِمَا آتَاكُمْ ۗ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُورٍ (23)
ताकि तुम शोक न करो उसपर, जो तुमसे खो जाये और न इतराओ उसपर, जो तुम्हें प्रदान किया है और अल्लाह प्रेम नहीं करता किसी इतरान, गर्व करने वाले से।
الَّذِينَ يَبْخَلُونَ وَيَأْمُرُونَ النَّاسَ بِالْبُخْلِ ۗ وَمَن يَتَوَلَّ فَإِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ (24)
जो कंजूसी करते हैं और आदेश देते हैं लोगों को कंजूसी करने का तथा जो विमुख होगा, तो निश्चय अल्लाह निस्पृह, सराहनीय है।
لَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلَنَا بِالْبَيِّنَاتِ وَأَنزَلْنَا مَعَهُمُ الْكِتَابَ وَالْمِيزَانَ لِيَقُومَ النَّاسُ بِالْقِسْطِ ۖ وَأَنزَلْنَا الْحَدِيدَ فِيهِ بَأْسٌ شَدِيدٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَلِيَعْلَمَ اللَّهُ مَن يَنصُرُهُ وَرُسُلَهُ بِالْغَيْبِ ۚ إِنَّ اللَّهَ قَوِيٌّ عَزِيزٌ (25)
निःसंदेह, हमने भेजा है अपने रसूलों को खुले प्रमाणों के साथ तथा उतारी है उनके साथ पुस्तक तथा तुला (न्याय का नियम), ताकि लोग स्थित रहें न्याय पर तथा हमने उतारा लोहा जिसमें बड़ा बल[1] है तथा लोगों के लिए बहुत-से लाभ और ताकि अल्लाह जान ले कि कौन उसकी सहायता करता है तथा उसके रसूलों की, बिना देखे। वस्तुतः, अल्लाह अति शक्तिशाली, प्रभावशाली है।
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا وَإِبْرَاهِيمَ وَجَعَلْنَا فِي ذُرِّيَّتِهِمَا النُّبُوَّةَ وَالْكِتَابَ ۖ فَمِنْهُم مُّهْتَدٍ ۖ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ (26)
हमने (रसूल बनाकर) भेजा नूह़ को तथा इब्राहीम को और रख दी उनकी संतति में नबुवत (दुतत्व) तथा पुस्तक। तो उनमें से कुछ ने मार्गदर्शन अपनाया और उनमें से बहुत-से अवज्ञाकारी हैं।
ثُمَّ قَفَّيْنَا عَلَىٰ آثَارِهِم بِرُسُلِنَا وَقَفَّيْنَا بِعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ وَآتَيْنَاهُ الْإِنجِيلَ وَجَعَلْنَا فِي قُلُوبِ الَّذِينَ اتَّبَعُوهُ رَأْفَةً وَرَحْمَةً وَرَهْبَانِيَّةً ابْتَدَعُوهَا مَا كَتَبْنَاهَا عَلَيْهِمْ إِلَّا ابْتِغَاءَ رِضْوَانِ اللَّهِ فَمَا رَعَوْهَا حَقَّ رِعَايَتِهَا ۖ فَآتَيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا مِنْهُمْ أَجْرَهُمْ ۖ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ (27)
फिर हमने, निरन्तर उनके पश्चात् अपने रसूल भेजे और उनके पश्चात् भेजा मर्यम के पुत्र ईसा को तथा प्रदान की उसे इन्जील और कर दिया उसका अनुसरण करने वालों के दिलों में करुणा तथा दया और संसार[1] त्याग को उन्होंने स्वयं बना लिया, हमने नहीं अनिवार्य किया उसे उनके ऊपर। परन्तु अल्लाह की प्रसन्नता के लिए (उन्होंने ऐसा किया), तो उन्होंने नहीं किया उसका पूर्ण पालन। फिर (भी) हमने प्रदान किया उन्हें जो ईमान लाये उनमें से उनका बदला और उनमें से अधिक्तर अवज्ञाकारी हैं।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَآمِنُوا بِرَسُولِهِ يُؤْتِكُمْ كِفْلَيْنِ مِن رَّحْمَتِهِ وَيَجْعَل لَّكُمْ نُورًا تَمْشُونَ بِهِ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ۚ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ (28)
हे लोगो जो ईमान लाये हो! अल्लाह से डरो और ईमान लाओ उसके रसूल पर, वह तुम्हें प्रदान करेगा दोहारा[1] प्रतिफल अपनी दया से तथा प्रदान करेगा तुम्हें ऐसा प्रकाश, जिसके साथ तुम चलोगे तथा क्षमा कर देगा तुम्हें और अल्लाह अति क्षमी, दयावान् है।
لِّئَلَّا يَعْلَمَ أَهْلُ الْكِتَابِ أَلَّا يَقْدِرُونَ عَلَىٰ شَيْءٍ مِّن فَضْلِ اللَّهِ ۙ وَأَنَّ الْفَضْلَ بِيَدِ اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ (29)
ताकि ज्ञान हो जाये इन बातों से अह्ले[1] किताब को कि वह कुछ शक्ति नहीं रखते अल्लाह के अनुग्रह पर और ये कि अनुग्रह अल्लाह ही के हाथ में है। वह प्रदान करता है, जिसे चाहे और अल्लाह बड़े अनुग्रह वाला है।
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Surahs from Quran :

1- Fatiha2- Baqarah
3- Al Imran4- Nisa
5- Maidah6- Anam
7- Araf8- Anfal
9- Tawbah10- Yunus
11- Hud12- Yusuf
13- Raad14- Ibrahim
15- Hijr16- Nahl
17- Al Isra18- Kahf
19- Maryam20- TaHa
21- Anbiya22- Hajj
23- Muminun24- An Nur
25- Furqan26- Shuara
27- Naml28- Qasas
29- Ankabut30- Rum
31- Luqman32- Sajdah
33- Ahzab34- Saba
35- Fatir36- Yasin
37- Assaaffat38- Sad
39- Zumar40- Ghafir
41- Fussilat42- shura
43- Zukhruf44- Ad Dukhaan
45- Jathiyah46- Ahqaf
47- Muhammad48- Al Fath
49- Hujurat50- Qaf
51- zariyat52- Tur
53- Najm54- Al Qamar
55- Rahman56- Waqiah
57- Hadid58- Mujadilah
59- Al Hashr60- Mumtahina
61- Saff62- Jumuah
63- Munafiqun64- Taghabun
65- Talaq66- Tahrim
67- Mulk68- Qalam
69- Al-Haqqah70- Maarij
71- Nuh72- Jinn
73- Muzammil74- Muddathir
75- Qiyamah76- Insan
77- Mursalat78- An Naba
79- Naziat80- Abasa
81- Takwir82- Infitar
83- Mutaffifin84- Inshiqaq
85- Buruj86- Tariq
87- Al Ala88- Ghashiya
89- Fajr90- Al Balad
91- Shams92- Lail
93- Duha94- Sharh
95- Tin96- Al Alaq
97- Qadr98- Bayyinah
99- Zalzalah100- Adiyat
101- Qariah102- Takathur
103- Al Asr104- Humazah
105- Al Fil106- Quraysh
107- Maun108- Kawthar
109- Kafirun110- Nasr
111- Masad112- Ikhlas
113- Falaq114- An Nas