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Surah Adh-Dhariyat in Hindi

Quran Hindi ⮕ Surah zariyat

Translation of the Meanings of Surah zariyat in Hindi - الهندية

The Quran in Hindi - Surah zariyat translated into Hindi, Surah Adh-Dhariyat in Hindi. We provide accurate translation of Surah zariyat in Hindi - الهندية, Verses 60 - Surah Number 51 - Page 520.

بسم الله الرحمن الرحيم

وَالذَّارِيَاتِ ذَرْوًا (1)
शपथ है (बादलों को) बिखेरने वालियों की
فَالْحَامِلَاتِ وِقْرًا (2)
फिर (बादलों का) बोझ लादने वालियों की
فَالْجَارِيَاتِ يُسْرًا (3)
फिर धीमी गति से चलने वालियों की
فَالْمُقَسِّمَاتِ أَمْرًا (4)
फिर (अल्लाह का) आदेश बाँटने वाले (फ़रिश्तों की)
إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَصَادِقٌ (5)
निश्चय जिस (प्रलय) से तुम्हें डराया जा रहा है, वह सच्ची है।
وَإِنَّ الدِّينَ لَوَاقِعٌ (6)
तथा कर्मों का फल अवश्य मिलने वाला है।
وَالسَّمَاءِ ذَاتِ الْحُبُكِ (7)
शपथ है रास्तों वाले आकाश की
إِنَّكُمْ لَفِي قَوْلٍ مُّخْتَلِفٍ (8)
वास्तव में, तुम विभिन्न[1] बातों में हो।
يُؤْفَكُ عَنْهُ مَنْ أُفِكَ (9)
उससे वही फेर दिया जाता है, जो (सत्य से) फिरा हुआ हो।
قُتِلَ الْخَرَّاصُونَ (10)
नाश कर दिये गये अनुमान लगाने वाले।
الَّذِينَ هُمْ فِي غَمْرَةٍ سَاهُونَ (11)
जो अपनी अचेतना में भूले हुए हैं।
يَسْأَلُونَ أَيَّانَ يَوْمُ الدِّينِ (12)
वे प्रश्न[1] करते हैं कि प्रतिकार का दिन कब है
يَوْمَ هُمْ عَلَى النَّارِ يُفْتَنُونَ (13)
(उस दिन है) जिस दिन वह अग्नि पर तपाये जायेंगे।
ذُوقُوا فِتْنَتَكُمْ هَٰذَا الَّذِي كُنتُم بِهِ تَسْتَعْجِلُونَ (14)
(उनसे कहा जायेगाः) स्वाद चखो अपने उपद्रव का। यही वह है, जिसकी तुम शीघ्र माँग कर रहे थे।
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ (15)
वास्तव में, आज्ञाकारी स्वर्गों तथा जल स्रोतों में होंगे।
آخِذِينَ مَا آتَاهُمْ رَبُّهُمْ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَٰلِكَ مُحْسِنِينَ (16)
लेते हुए जो कुछ प्रदान किया है उनहें, उनके पालनहारन ने। वस्तुतः, वे इससे पहले (संसार में) सदाचारी थे।
كَانُوا قَلِيلًا مِّنَ اللَّيْلِ مَا يَهْجَعُونَ (17)
वे रात्रि में बहुत कम सोया करते थे।
وَبِالْأَسْحَارِ هُمْ يَسْتَغْفِرُونَ (18)
तथा भोरों[1] में क्षमा माँगते थे।
وَفِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ لِّلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ (19)
और उनके धनों में माँगने वाले[1] तथा न पाने वाले का ह़क़ था।
وَفِي الْأَرْضِ آيَاتٌ لِّلْمُوقِنِينَ (20)
तथा धरती में बहुत-सी निशानियाँ हैं विश्वास करने वालों के लिए।
وَفِي أَنفُسِكُمْ ۚ أَفَلَا تُبْصِرُونَ (21)
तथा स्वयं तुम्हारे भीतर (भी)। फिर क्यों तुम देखते नहीं
وَفِي السَّمَاءِ رِزْقُكُمْ وَمَا تُوعَدُونَ (22)
और आकाश में तुम्हारी जीविका[1] है तथा जिसका तुम्हें वचन दिया जा रहा है।
فَوَرَبِّ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِنَّهُ لَحَقٌّ مِّثْلَ مَا أَنَّكُمْ تَنطِقُونَ (23)
तो शपथ है आकाश एवं धरती के पालनहार की! ये (बात) ऐसे ही सच है, जैसे तुम बोल रहे हो।
هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ ضَيْفِ إِبْرَاهِيمَ الْمُكْرَمِينَ (24)
(हे नबी!) क्या आयी आपके पास इब्राहीम के सम्मानित अतिथियों की सूचना
إِذْ دَخَلُوا عَلَيْهِ فَقَالُوا سَلَامًا ۖ قَالَ سَلَامٌ قَوْمٌ مُّنكَرُونَ (25)
जब वे आये उसके पास, तो सलाम किया। इब्राहीम ने (भी) सलाम किया (तथा कहाः) अपरिचित लोग हैं।
فَرَاغَ إِلَىٰ أَهْلِهِ فَجَاءَ بِعِجْلٍ سَمِينٍ (26)
फिर चुपके से अपने परिजनों की ओर गया और एक मोटा (भुना हुआ) बछड़ा लाया।
فَقَرَّبَهُ إِلَيْهِمْ قَالَ أَلَا تَأْكُلُونَ (27)
फिर रख दिया उनके पास, उसने कहाः तुम क्यों नहीं खाते हो
فَأَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيفَةً ۖ قَالُوا لَا تَخَفْ ۖ وَبَشَّرُوهُ بِغُلَامٍ عَلِيمٍ (28)
फिर अपने दिल में उनसे कुछ डरा, उन्होंने कहाः डरो नहीं और उसे शुभ सूचना दी एक ज्ञानी पुत्र की।
فَأَقْبَلَتِ امْرَأَتُهُ فِي صَرَّةٍ فَصَكَّتْ وَجْهَهَا وَقَالَتْ عَجُوزٌ عَقِيمٌ (29)
तो सामने आयी उसकी पत्नी और उसने मार लिया (आश्चर्य से) अपने मुँह पर हाथ तथा कहाः मैं बाँझ बुढ़िया हूँ।
قَالُوا كَذَٰلِكِ قَالَ رَبُّكِ ۖ إِنَّهُ هُوَ الْحَكِيمُ الْعَلِيمُ (30)
उन्होंने कहाः इसी प्रकार, तेरे पालनहार ने कहा है। वास्तव में, वह सब गुण और सब कुछ जानने वाला है।
۞ قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ أَيُّهَا الْمُرْسَلُونَ (31)
उस (इब्राहीम) ने कहाः तो तुम्हारा क्या अभियान है, हे भेजे हुए (फ़रिश्तो)
قَالُوا إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَىٰ قَوْمٍ مُّجْرِمِينَ (32)
उन्होंने कहाः वास्तव में, हम भेजे गये हैं एक अपरीधी जाति की ओर।
لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّن طِينٍ (33)
ताकि हम बरसायें उनपर पत्थर की कंकरी।
مُّسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ لِلْمُسْرِفِينَ (34)
नामांकित[1] तुम्हारे पालनहार की ओर से उल्लंघनकारियों के लिए।
فَأَخْرَجْنَا مَن كَانَ فِيهَا مِنَ الْمُؤْمِنِينَ (35)
फिर हमने निकाल दिया जो भी उस (बस्ती) में ईमान वाले थे।
فَمَا وَجَدْنَا فِيهَا غَيْرَ بَيْتٍ مِّنَ الْمُسْلِمِينَ (36)
और हमने उसमें मोमिनों का केवल एक ही घर[1] पाया।
وَتَرَكْنَا فِيهَا آيَةً لِّلَّذِينَ يَخَافُونَ الْعَذَابَ الْأَلِيمَ (37)
तथा छोड़ दी हमने उस (बस्ती) में एक निशानी उनके लिए, जो डरते हों दुःखदायी यातना से।
وَفِي مُوسَىٰ إِذْ أَرْسَلْنَاهُ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ (38)
तथा मूसा (की कथा) में, जब हमने भेजा उसे फ़िरऔन की ओर प्रत्यक्ष (खुले) प्रमाण के साथ।
فَتَوَلَّىٰ بِرُكْنِهِ وَقَالَ سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ (39)
तो वह विमुख हो गया अपने बल-बूते के कारण और कह दिया कि जादूगर अथवा पागल है।
فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيمٌ (40)
अन्ततः, हमने पकड़ लिया उसको तथा उसकी सेनाओं को, फिर फेंक दिया उन्हें सागर में और वह निन्दित होकर रह गया।
وَفِي عَادٍ إِذْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ الرِّيحَ الْعَقِيمَ (41)
तथा आद में (शिक्षाप्रद निशानी है)। जब हमने भेज दी उनपर बाँझ[1] आँधी।
مَا تَذَرُ مِن شَيْءٍ أَتَتْ عَلَيْهِ إِلَّا جَعَلَتْهُ كَالرَّمِيمِ (42)
वह नहीं छोड़ती थी किसी वस्तु को जिसपर गुज़रती, परन्तु उसे बना देती थी जीर्ण चूर-चूर हड्डी के समान।
وَفِي ثَمُودَ إِذْ قِيلَ لَهُمْ تَمَتَّعُوا حَتَّىٰ حِينٍ (43)
तथा समूद में जब उनसे कहा गया कि लाभान्वित हो लो, एक निश्चित समय तक।
فَعَتَوْا عَنْ أَمْرِ رَبِّهِمْ فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ وَهُمْ يَنظُرُونَ (44)
तो उन्होंने अवज्ञा की अपने पालनहार के आदेश की, तो सहसा पकड़ लिया उन्हें कड़क ने और वे देखते रह गये।
فَمَا اسْتَطَاعُوا مِن قِيَامٍ وَمَا كَانُوا مُنتَصِرِينَ (45)
तो वे न खड़े हो सके और न (हमसे) बदला ले सके।
وَقَوْمَ نُوحٍ مِّن قَبْلُ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ (46)
तथा नूह़[1] की जाति को इससे पहले (याद करो)। वास्तव में, वे अवज्ञाकारी जाति थे।
وَالسَّمَاءَ بَنَيْنَاهَا بِأَيْدٍ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ (47)
तथा आकाश को हमने बनाया है हाथों[1] से और हम निश्चय विस्तार करने वाले हैं।
وَالْأَرْضَ فَرَشْنَاهَا فَنِعْمَ الْمَاهِدُونَ (48)
तथा धरती को हमने बिछाया है, तो हम क्या[1] ही अच्छे बिछाने वाले हैं।
وَمِن كُلِّ شَيْءٍ خَلَقْنَا زَوْجَيْنِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ (49)
तथा प्रत्येक वस्तु को हमने उत्पन्न किया है जोड़ा, ताकि तुम शिक्षा ग्रहण करो।
فَفِرُّوا إِلَى اللَّهِ ۖ إِنِّي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ مُّبِينٌ (50)
तो तुम दौड़ो अल्लाह की ओर, वास्तव में, मैं तुम्हें उसकी ओर से प्रत्यक्ष रूप से (खुला) सावधान कर ने वाला हूँ।
وَلَا تَجْعَلُوا مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ ۖ إِنِّي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ مُّبِينٌ (51)
और मत बनाओ अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य। वास्तव में, मैं तुम्हें इससे खुला सावधान करने वाला हूँ।
كَذَٰلِكَ مَا أَتَى الَّذِينَ مِن قَبْلِهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا قَالُوا سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ (52)
इसी प्रकार नहीं आया उनके पास जो इन (मक्का वासियों) से पूर्व रहे कोई रसूल, परन्तु उन्होंने कहा कि जादूगर या पागल है।
أَتَوَاصَوْا بِهِ ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ (53)
क्या वे एक-दूसरे को वसिय्यत[1] कर चुके हैं इसकी? बल्कि वे उल्लंघनकारी लोग हैं।
فَتَوَلَّ عَنْهُمْ فَمَا أَنتَ بِمَلُومٍ (54)
तो आप मुख फेर लें उनसे। आपकी कोई निन्दा नहीं है।
وَذَكِّرْ فَإِنَّ الذِّكْرَىٰ تَنفَعُ الْمُؤْمِنِينَ (55)
और आप शिक्षा देते रहें। इसलिए कि शिक्षा लाभप्रद है इमान वालों के लिए।
وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ (56)
और नहीं उत्पन्न किया है मैंने जिन्न तथा मनुष्य को, परन्तु ताकि मेरी ही इबादत करें।
مَا أُرِيدُ مِنْهُم مِّن رِّزْقٍ وَمَا أُرِيدُ أَن يُطْعِمُونِ (57)
मैं नहीं चाहता हूँ उनसे कोई जीविका और न चाहता हूँ कि वे मुझे खिलायें।
إِنَّ اللَّهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ (58)
अवश्य अल्लाह ही जीविका दाता, शक्तिशाली, बलवान् है।
فَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذَنُوبًا مِّثْلَ ذَنُوبِ أَصْحَابِهِمْ فَلَا يَسْتَعْجِلُونِ (59)
तो इन अत्याचारियों के पाप हैं इनके साथियों के पापों के समान, अतः उतावले न बनें।
فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ كَفَرُوا مِن يَوْمِهِمُ الَّذِي يُوعَدُونَ (60)
अन्ततः, विनाश है काफ़िरों के लिए उनके उस दिन[1] से, जिससे हे डराये जा रहे हैं।
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Surahs from Quran :

1- Fatiha2- Baqarah
3- Al Imran4- Nisa
5- Maidah6- Anam
7- Araf8- Anfal
9- Tawbah10- Yunus
11- Hud12- Yusuf
13- Raad14- Ibrahim
15- Hijr16- Nahl
17- Al Isra18- Kahf
19- Maryam20- TaHa
21- Anbiya22- Hajj
23- Muminun24- An Nur
25- Furqan26- Shuara
27- Naml28- Qasas
29- Ankabut30- Rum
31- Luqman32- Sajdah
33- Ahzab34- Saba
35- Fatir36- Yasin
37- Assaaffat38- Sad
39- Zumar40- Ghafir
41- Fussilat42- shura
43- Zukhruf44- Ad Dukhaan
45- Jathiyah46- Ahqaf
47- Muhammad48- Al Fath
49- Hujurat50- Qaf
51- zariyat52- Tur
53- Najm54- Al Qamar
55- Rahman56- Waqiah
57- Hadid58- Mujadilah
59- Al Hashr60- Mumtahina
61- Saff62- Jumuah
63- Munafiqun64- Taghabun
65- Talaq66- Tahrim
67- Mulk68- Qalam
69- Al-Haqqah70- Maarij
71- Nuh72- Jinn
73- Muzammil74- Muddathir
75- Qiyamah76- Insan
77- Mursalat78- An Naba
79- Naziat80- Abasa
81- Takwir82- Infitar
83- Mutaffifin84- Inshiqaq
85- Buruj86- Tariq
87- Al Ala88- Ghashiya
89- Fajr90- Al Balad
91- Shams92- Lail
93- Duha94- Sharh
95- Tin96- Al Alaq
97- Qadr98- Bayyinah
99- Zalzalah100- Adiyat
101- Qariah102- Takathur
103- Al Asr104- Humazah
105- Al Fil106- Quraysh
107- Maun108- Kawthar
109- Kafirun110- Nasr
111- Masad112- Ikhlas
113- Falaq114- An Nas