يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا عَدُوِّي وَعَدُوَّكُمْ أَوْلِيَاءَ تُلْقُونَ إِلَيْهِم بِالْمَوَدَّةِ وَقَدْ كَفَرُوا بِمَا جَاءَكُم مِّنَ الْحَقِّ يُخْرِجُونَ الرَّسُولَ وَإِيَّاكُمْ ۙ أَن تُؤْمِنُوا بِاللَّهِ رَبِّكُمْ إِن كُنتُمْ خَرَجْتُمْ جِهَادًا فِي سَبِيلِي وَابْتِغَاءَ مَرْضَاتِي ۚ تُسِرُّونَ إِلَيْهِم بِالْمَوَدَّةِ وَأَنَا أَعْلَمُ بِمَا أَخْفَيْتُمْ وَمَا أَعْلَنتُمْ ۚ وَمَن يَفْعَلْهُ مِنكُمْ فَقَدْ ضَلَّ سَوَاءَ السَّبِيلِ (1) हे लोगो जो ईमान लाये हो! मेरे शत्रुओं तथा अपने शत्रुओं को मित्र ने बनाओ। तुम संदेश भेजते हो उनकी ओर मैत्री[1] का, जबकि उन्होंने कुफ़्र किया है उसका, जो तुम्हारे पास सत्य आया है। वे देश निकाला देते हैं रसूल को तथा तुमको इस कारण कि तुम ईमान लाये हो अल्लाह, अपने पालनहार पर? यदि तुम निकले हो जिहाद के लिए मेरी राह में और मेरी प्रसन्नता की खोज के लिए, तो गुप्त रूप से उन्हें मैत्री का संदेश भेजते हो? जबकि मैं भली-भाँति जानता हूँ उसे, जो तुम छुपाते हो और जो खुलकर करते हो? तथा जो करेगा ऐसा, तो निश्चय वह कुपथ हो गया सीधी राह से। |
إِن يَثْقَفُوكُمْ يَكُونُوا لَكُمْ أَعْدَاءً وَيَبْسُطُوا إِلَيْكُمْ أَيْدِيَهُمْ وَأَلْسِنَتَهُم بِالسُّوءِ وَوَدُّوا لَوْ تَكْفُرُونَ (2) और यदि वश में पा जायें तुम्हें, तो तुम्हारे शत्रु बन जायें तथा तुम्हें अपने हाथों और ज़ुबानों से दुःख पहुँचायें और चाहने लगेंगे कि तुम (फिर) काफ़िर हो जाओ। |
لَن تَنفَعَكُمْ أَرْحَامُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُمْ ۚ يَوْمَ الْقِيَامَةِ يَفْصِلُ بَيْنَكُمْ ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ (3) तुम्हें लाभ नहीं देंगे तुम्हारे सम्बंधी और न तुम्हारी संतान प्रलय के दिन। वह (अल्लाह) अलगाव कर देगा तुम्हारे बीच और अल्लाह जो कुछ तुम कर रहे हो, उसे देख रहा है। |
قَدْ كَانَتْ لَكُمْ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ فِي إِبْرَاهِيمَ وَالَّذِينَ مَعَهُ إِذْ قَالُوا لِقَوْمِهِمْ إِنَّا بُرَآءُ مِنكُمْ وَمِمَّا تَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ كَفَرْنَا بِكُمْ وَبَدَا بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةُ وَالْبَغْضَاءُ أَبَدًا حَتَّىٰ تُؤْمِنُوا بِاللَّهِ وَحْدَهُ إِلَّا قَوْلَ إِبْرَاهِيمَ لِأَبِيهِ لَأَسْتَغْفِرَنَّ لَكَ وَمَا أَمْلِكُ لَكَ مِنَ اللَّهِ مِن شَيْءٍ ۖ رَّبَّنَا عَلَيْكَ تَوَكَّلْنَا وَإِلَيْكَ أَنَبْنَا وَإِلَيْكَ الْمَصِيرُ (4) तुम्हारे लिए इब्राहीम तथा उसके साथियों में एक अच्छा आदर्श है। जबकि उन्होंने अपनी जाति से कहाः निश्चय हम विरक्त हैं तुमसे तथा उनसे, जिनकी तुम इबादत (वंदना) करते हो अल्लाह के अतिरिक्त। हमने तुमसे कुफ़्र किया। खुल चुका है बैर हमारे तथा तुम्हारे बीच और क्रोध सदा के लिए। जब तक तुम ईमान न लाओ अकेले अल्लाह पर, परन्तु इब्राहीम का (ये) कथन अपने पिता से कि मैं अवश्य तेरे लिए क्षमा की प्रार्थना[1] करूँगा और मैं नहीं अधिकार रखता हूँ अल्लाह के समक्ष कुछ। हे हमारे पालनहार! हमने तेरे ही ऊपर भरोसा किया और तेरी ही ओर ध्यान किया है और तेरी ही ओर फिर आना है। |
رَبَّنَا لَا تَجْعَلْنَا فِتْنَةً لِّلَّذِينَ كَفَرُوا وَاغْفِرْ لَنَا رَبَّنَا ۖ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (5) हे हमारे पालनहार! हमें न बना परीक्षा[1] (का साधन) काफ़िरों के लिए और हमें क्षमा कर दे, हे हमारे पालनहार! वास्तव में, तू ही प्रभुत्वशाली, गुणी है। |
لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِيهِمْ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَن كَانَ يَرْجُو اللَّهَ وَالْيَوْمَ الْآخِرَ ۚ وَمَن يَتَوَلَّ فَإِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ (6) निःसंदेह, तुम्हारे लिए उनमें एक अच्छा आदर्श है, उसके लिए, जो आशा रखता हो अल्लाह तथा अन्तिम दिवस (प्रलय) की और जो विमुख हो, तो निश्चय अल्लाह निस्पृह प्रशंसित है। |
۞ عَسَى اللَّهُ أَن يَجْعَلَ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَ الَّذِينَ عَادَيْتُم مِّنْهُم مَّوَدَّةً ۚ وَاللَّهُ قَدِيرٌ ۚ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ (7) कुछ दूर नहीं कि अल्लाह बना दे तुम्हारे बीच तथा उनके बीच, जिनसे तुम बैर रखते हो प्रेम[1] और अल्लाह बड़ा सामर्थ्यवान है और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान है। |
لَّا يَنْهَاكُمُ اللَّهُ عَنِ الَّذِينَ لَمْ يُقَاتِلُوكُمْ فِي الدِّينِ وَلَمْ يُخْرِجُوكُم مِّن دِيَارِكُمْ أَن تَبَرُّوهُمْ وَتُقْسِطُوا إِلَيْهِمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ (8) अल्लाह तुम्हें नहीं रोकता उनसे, जिन्होंने तुमसे युध्द न किया हो धर्म के विषय में और न बहिष्कार किया हो तुम्हारा, तम्हारे देश से, इससे कि तुम उनसे अच्छा व्यवहार करो और न्याय करो उनसे। वास्तव में अल्लाह प्रेम करता है न्यायकारियों[1] से। |
إِنَّمَا يَنْهَاكُمُ اللَّهُ عَنِ الَّذِينَ قَاتَلُوكُمْ فِي الدِّينِ وَأَخْرَجُوكُم مِّن دِيَارِكُمْ وَظَاهَرُوا عَلَىٰ إِخْرَاجِكُمْ أَن تَوَلَّوْهُمْ ۚ وَمَن يَتَوَلَّهُمْ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ (9) तुम्हें अल्लाह बस उनसे रोकता है, जिन्होंने युध्द किया हो तुमसे धर्म के विषय में तथा बहिष्कार किया हो तुम्हारा तुम्हारे घरों से और सहायता की हो, तुम्हारा बहिष्कार कराने में कि तुम मैत्री रखो उनसे और जो मैत्री करेंगे उनसे, तो वही अत्याचारी हैं। |
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا جَاءَكُمُ الْمُؤْمِنَاتُ مُهَاجِرَاتٍ فَامْتَحِنُوهُنَّ ۖ اللَّهُ أَعْلَمُ بِإِيمَانِهِنَّ ۖ فَإِنْ عَلِمْتُمُوهُنَّ مُؤْمِنَاتٍ فَلَا تَرْجِعُوهُنَّ إِلَى الْكُفَّارِ ۖ لَا هُنَّ حِلٌّ لَّهُمْ وَلَا هُمْ يَحِلُّونَ لَهُنَّ ۖ وَآتُوهُم مَّا أَنفَقُوا ۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ أَن تَنكِحُوهُنَّ إِذَا آتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ ۚ وَلَا تُمْسِكُوا بِعِصَمِ الْكَوَافِرِ وَاسْأَلُوا مَا أَنفَقْتُمْ وَلْيَسْأَلُوا مَا أَنفَقُوا ۚ ذَٰلِكُمْ حُكْمُ اللَّهِ ۖ يَحْكُمُ بَيْنَكُمْ ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ (10) हे ईमान वालो! जब तुम्हारे पास मुसलमान स्त्रियाँ हिजरत करके आयें, तो उनकी परीक्षा ले लिया करो। अल्लाह अधिक जानता है उनके ईमान को, फिर यदि तुम्हें ये ज्ञान हो जाये कि वे ईमान वालियाँ हैं, तो उन्हें वापस न करो[1] काफ़िरों की ओर। न वे औरतें ह़लाल (वैध) हैं उनके लिए और न वे (काफ़िर) ह़लाल (वैध) हैं उन औरतों के लिए।[2] और चुका दो उन (काफ़िरों) को, जो उन्होंने ख़र्च किया हो तथा तुमपर कोई दोष नहीं है कि विवाह कर लो उनसे, जब दे दो उन्हें उनका महर (स्त्री उपहार) तथा न रखो काफ़िर स्त्रियों को अपने विवाह में तथा माँग लो जो तुमने ख़र्च किया हो और चाहिये कि वे (काफ़िर) माँग लें, जो उन्होंने ख़र्च किया हो। ये अल्लाह का आदेश है, वह निर्णय कर रहा है तुम्हारे बीच तथा अल्लाह सब जानने वाला, गुणी है। |
وَإِن فَاتَكُمْ شَيْءٌ مِّنْ أَزْوَاجِكُمْ إِلَى الْكُفَّارِ فَعَاقَبْتُمْ فَآتُوا الَّذِينَ ذَهَبَتْ أَزْوَاجُهُم مِّثْلَ مَا أَنفَقُوا ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي أَنتُم بِهِ مُؤْمِنُونَ (11) और यदि तुम्हारे हाथ से निकल जाये तुम्हारी कोई पत्नी काफ़िरों की ओर और तुम्हें बदले[1] का अवसर मिल जाये, तो चुका दो उन्हें, जिनकी पत्नियाँ चली गई हैं, उसके बराबर, जो उन्होंने ख़र्च किया है तथा डरते रहो उस अल्लाह से जिस पर तुम ईमान रखते हो। |
يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ إِذَا جَاءَكَ الْمُؤْمِنَاتُ يُبَايِعْنَكَ عَلَىٰ أَن لَّا يُشْرِكْنَ بِاللَّهِ شَيْئًا وَلَا يَسْرِقْنَ وَلَا يَزْنِينَ وَلَا يَقْتُلْنَ أَوْلَادَهُنَّ وَلَا يَأْتِينَ بِبُهْتَانٍ يَفْتَرِينَهُ بَيْنَ أَيْدِيهِنَّ وَأَرْجُلِهِنَّ وَلَا يَعْصِينَكَ فِي مَعْرُوفٍ ۙ فَبَايِعْهُنَّ وَاسْتَغْفِرْ لَهُنَّ اللَّهَ ۖ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ (12) हे नबी! जब आयें आपके पास ईमान वालियाँ, ताकि[1] वचन दें आपको इस बात पर कि वे साझी नहीं बनायेंगी अल्लाह का किसी को, न चोरी करेंगी, न व्यभिचार करेंगी, न वध करेंगी अपनी संतान को, न कोई ऐसा आरोप (कलंक) लगायेंगी जिसे उन्होंने घड़ लिया हो अपने हाथों तथा पैरों के आगे और न अवज्ञा करेंगी आपकी किसी भले काम में, तो आप वचन ले लिया करें उनसे तथा क्षमा की प्रार्थना करें उनके लिए अल्लाह से। वास्तव में अल्लाह अति क्षमाशील तथा दयावान् है। |
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَوَلَّوْا قَوْمًا غَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ قَدْ يَئِسُوا مِنَ الْآخِرَةِ كَمَا يَئِسَ الْكُفَّارُ مِنْ أَصْحَابِ الْقُبُورِ (13) हे ईमान वालो! तुम उन लोगों को मित्र न बनाओ, क्रोधित हो गया है अल्लाह, जिनपर। वे निराश हो चुके हैं आख़िरत[1] (परलोक) से, उसी प्रकार, जैसे काफ़िर समाधियों में पड़े हुए लोगों (के जीवित होने) से निराश हैं। |