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سورة هود باللغة الهندية

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ترجمة معاني سورة هود باللغة الهندية - Hindi

القرآن باللغة الهندية - سورة هود مترجمة إلى اللغة الهندية، Surah Hud in Hindi. نوفر ترجمة دقيقة سورة هود باللغة الهندية - Hindi, الآيات 123 - رقم السورة 11 - الصفحة 221.

بسم الله الرحمن الرحيم

الر ۚ كِتَابٌ أُحْكِمَتْ آيَاتُهُ ثُمَّ فُصِّلَتْ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ خَبِيرٍ (1)
अलिफ, लाम, रा। ये पुस्तक है, जिसकी आयतें सुदृढ़ की गयीं, फिर सविस्तार वर्णित की गयी हैं, उसकी ओर से, जो तत्वज्ञ, सर्वसूचित है।
أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ ۚ إِنَّنِي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ وَبَشِيرٌ (2)
कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करो। वास्तव में, मैं उसकी ओर से तुम्हें सचेत करने वाला तथा शुभ सूचना देने वाला हूँ।
وَأَنِ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُوا إِلَيْهِ يُمَتِّعْكُم مَّتَاعًا حَسَنًا إِلَىٰ أَجَلٍ مُّسَمًّى وَيُؤْتِ كُلَّ ذِي فَضْلٍ فَضْلَهُ ۖ وَإِن تَوَلَّوْا فَإِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ كَبِيرٍ (3)
और ये है कि अपने पालनहार से क्षमा याचना करो, फिर उसी की ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वह तुम्हें एक निर्धारित अवधि तक अच्छा लाभ पहुँचाएगा और प्रत्येक श्रेष्ठ को उसकी श्रेष्ठता प्रदान करेगा और यदि तुम मुँह फेरोगे, तो मैं तुमपर एक बड़े दिन की यातना से डरता हूँ।
إِلَى اللَّهِ مَرْجِعُكُمْ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (4)
अल्लाह ही की ओर तुमसब को पलटना है और वह जो चाहे, कर सकता है।
أَلَا إِنَّهُمْ يَثْنُونَ صُدُورَهُمْ لِيَسْتَخْفُوا مِنْهُ ۚ أَلَا حِينَ يَسْتَغْشُونَ ثِيَابَهُمْ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ ۚ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ (5)
सुनो! ये लोग अपने सीनों को मोड़ते हैं, ताकि उस[1] से छुप जायेँ, सुनो! जिस समय वे अपने कपड़ों से स्वयं को ढाँपते हैं, तबभी वह (अल्लाह) उनके छुपे को जानता है तथा उनके खुले को भी। वास्तव में, वह उसे भी भली-भाँति जानने वाला[2] है, जो सीनों में (भेद) है।
۞ وَمَا مِن دَابَّةٍ فِي الْأَرْضِ إِلَّا عَلَى اللَّهِ رِزْقُهَا وَيَعْلَمُ مُسْتَقَرَّهَا وَمُسْتَوْدَعَهَا ۚ كُلٌّ فِي كِتَابٍ مُّبِينٍ (6)
और धरती में कोई चलने वाला नहीं है, परन्तु उसकी जीविका अल्लाह के ऊपर है तथा वह उसके स्थायी स्थान तथा सौंपने के स्थान को जानता है। सबकुछ एक खुली पुस्तक में अंकित है[1]।
وَهُوَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ وَكَانَ عَرْشُهُ عَلَى الْمَاءِ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا ۗ وَلَئِن قُلْتَ إِنَّكُم مَّبْعُوثُونَ مِن بَعْدِ الْمَوْتِ لَيَقُولَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا إِنْ هَٰذَا إِلَّا سِحْرٌ مُّبِينٌ (7)
और वही है, जिसने आकाशों तथा धरती की उत्पत्ति छः दिनों में की। उस समय उसका सिंहासन जल पर था, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें किसका कर्म सबसे उत्तम है। और (हे नबी!) यदि आप, उनसे कहें कि वास्तव में तुम सभी मरण के पश्चात् पुनः जीवित किये जाओगे, तो जो काफ़िर हो गये, अवश्य कह देंगे कि ये तो केवल खुला जादू है।
وَلَئِنْ أَخَّرْنَا عَنْهُمُ الْعَذَابَ إِلَىٰ أُمَّةٍ مَّعْدُودَةٍ لَّيَقُولُنَّ مَا يَحْبِسُهُ ۗ أَلَا يَوْمَ يَأْتِيهِمْ لَيْسَ مَصْرُوفًا عَنْهُمْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ (8)
और यदि, हम उनसे यातना में किसी विशेष अवधि तक देर कर दें, तो अवश्य कहेंगे कि उसे क्या चीज़ रोक रही है? सुन लो! वह जिस दिन उनपर आ जायेगी, तो उनसे फिरेगी नहीं और उन्हें वह (यातना) घेर लेगी, जिसकी वे हँसी उड़ा रहे थे।
وَلَئِنْ أَذَقْنَا الْإِنسَانَ مِنَّا رَحْمَةً ثُمَّ نَزَعْنَاهَا مِنْهُ إِنَّهُ لَيَئُوسٌ كَفُورٌ (9)
और यदि, हम मनुष्य को अपनी कुछ दया चखा दें, फिर उसे उससे छीन लें, तो हताशा कृतघ्न हो जाता है।
وَلَئِنْ أَذَقْنَاهُ نَعْمَاءَ بَعْدَ ضَرَّاءَ مَسَّتْهُ لَيَقُولَنَّ ذَهَبَ السَّيِّئَاتُ عَنِّي ۚ إِنَّهُ لَفَرِحٌ فَخُورٌ (10)
और यदि, हम उसे सुख चखा दें, दुःख के पश्चात्, जो उसे पहुँचा हो, तो अवश्य कहेगा कि मेरा सब दुःख दूर हो गया। वास्तव में, वह प्रफुल्ल होकर अकड़ने लगता है[1]।
إِلَّا الَّذِينَ صَبَرُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَٰئِكَ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ (11)
परन्तु, जिन्होंने धैर्य धारण किया और सुकर्म किये, तो उनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिफल है।
فَلَعَلَّكَ تَارِكٌ بَعْضَ مَا يُوحَىٰ إِلَيْكَ وَضَائِقٌ بِهِ صَدْرُكَ أَن يَقُولُوا لَوْلَا أُنزِلَ عَلَيْهِ كَنزٌ أَوْ جَاءَ مَعَهُ مَلَكٌ ۚ إِنَّمَا أَنتَ نَذِيرٌ ۚ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ وَكِيلٌ (12)
तो (हे नबी!) संभवतः आप उसमें से कुछ को, जो आपकी ओर प्रकाशना की जा रही है, त्याग देने वाले हैं और इसके कारण आपका दिल सिकुड़ रहा है कि वे कहते हैं कि इसपर कोई कोष क्यों नहीं उतारा गया या इसके साथ कोई फरिश्ता क्यों (नहीं) आया? (तो सुनिए) आपकेवल सचेत करने वाले हैं और अल्लाह ही प्रत्येक चीज़ पर रक्षक है।
أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ ۖ قُلْ فَأْتُوا بِعَشْرِ سُوَرٍ مِّثْلِهِ مُفْتَرَيَاتٍ وَادْعُوا مَنِ اسْتَطَعْتُم مِّن دُونِ اللَّهِ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ (13)
क्या वह कहते हैं कि उसने इस (क़ुर्आन) को स्वयं बना लिया है? आप कह दें कि इसीके समान दस सूरतें बना लाओ[1] और अल्लाह के सिवा, जिसे हो सके, बुला हो, यदि तुम लोग सच्चे हो।
فَإِلَّمْ يَسْتَجِيبُوا لَكُمْ فَاعْلَمُوا أَنَّمَا أُنزِلَ بِعِلْمِ اللَّهِ وَأَن لَّا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ فَهَلْ أَنتُم مُّسْلِمُونَ (14)
फिर यदि वे उत्तर न दें, तो विश्वास कर लो कि उसे (क़ुर्आन को) अल्लाह के ज्ञान के साथ ही उतारा गया है और ये कि कोई वंदनीय (पूज्य) नहीं है, परन्तु वही। तो क्या तुम मुस्लिम होते हो
مَن كَانَ يُرِيدُ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا وَزِينَتَهَا نُوَفِّ إِلَيْهِمْ أَعْمَالَهُمْ فِيهَا وَهُمْ فِيهَا لَا يُبْخَسُونَ (15)
जो व्यक्ति सांसारिक जीवन तथा उसकी शोभा चाहता हो, हम उनके कर्मों का (फल) उसीमें चुका देंगे और उनके लिए (संसार में) कोई कमी नहीं की जायेगी।
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَيْسَ لَهُمْ فِي الْآخِرَةِ إِلَّا النَّارُ ۖ وَحَبِطَ مَا صَنَعُوا فِيهَا وَبَاطِلٌ مَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ (16)
यही वो लोग हैं, जिनका परलोक में अग्नि के सिवा कोई भाग नहीं होगा और उन्होंने जो कुछ किया, वह व्यर्थ हो जायेगा और वे जो कुछ कर रहे हैं, असत्य सिध्द होने वाला है।
أَفَمَن كَانَ عَلَىٰ بَيِّنَةٍ مِّن رَّبِّهِ وَيَتْلُوهُ شَاهِدٌ مِّنْهُ وَمِن قَبْلِهِ كِتَابُ مُوسَىٰ إِمَامًا وَرَحْمَةً ۚ أُولَٰئِكَ يُؤْمِنُونَ بِهِ ۚ وَمَن يَكْفُرْ بِهِ مِنَ الْأَحْزَابِ فَالنَّارُ مَوْعِدُهُ ۚ فَلَا تَكُ فِي مِرْيَةٍ مِّنْهُ ۚ إِنَّهُ الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يُؤْمِنُونَ (17)
तो क्या जो अपने पालनहार की ओर से स्पष्ट प्रमाण[1] रखता हो और उसके साथ ही एक गवाह (साक्षी)[1] भी उसकी ओर से आ गया हो और इससे पहले मूसा की पुस्तक मार्गदर्शक तथा दया बनकर आ चुकी हो, ऐसे लोग तो इस (क़ुर्आन) पर ईमान रखते हैं और सम्प्रदायों मेंसे, जो इसे अस्वीकार करेगा, तो नरक ही उसका वचन-स्थान है। अतः आप, इसके बारे में किसी संदेह में न पड़ें। वास्तव में, ये आपके पालनहार की ओर से सत्य है। परन्तु अधिक्तर लोग ईमान (विश्वास) नहीं रखते।
وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَىٰ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا ۚ أُولَٰئِكَ يُعْرَضُونَ عَلَىٰ رَبِّهِمْ وَيَقُولُ الْأَشْهَادُ هَٰؤُلَاءِ الَّذِينَ كَذَبُوا عَلَىٰ رَبِّهِمْ ۚ أَلَا لَعْنَةُ اللَّهِ عَلَى الظَّالِمِينَ (18)
और उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर मिथ्यारोपण करे? वही लोग, अपने पालनहार के समक्ष लाये जायेंगे और साक्षी (फ़रिश्ते) कहेंगे कि इन्होंने अपने पालनहार पर झूठ बोले। सुनो! अत्याचारियों पर अल्लाह की धिक्कार है।
الَّذِينَ يَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ وَيَبْغُونَهَا عِوَجًا وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ كَافِرُونَ (19)
वही लोग, अल्लाह की राह से रोक रहे हैं और उसे टेढ़ा बनाना चाहते हैं। वही परलोक को न मानने वाले हैं।
أُولَٰئِكَ لَمْ يَكُونُوا مُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ وَمَا كَانَ لَهُم مِّن دُونِ اللَّهِ مِنْ أَوْلِيَاءَ ۘ يُضَاعَفُ لَهُمُ الْعَذَابُ ۚ مَا كَانُوا يَسْتَطِيعُونَ السَّمْعَ وَمَا كَانُوا يُبْصِرُونَ (20)
वे लोग धरती में विवश करने वाले नहीं थे और न उनका अल्लाह के सिवा कोई सहायक था। उनके लिए दुगनी यातना होगी। वे न सुन सकते थे, न देख सकते थे।
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنفُسَهُمْ وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَفْتَرُونَ (21)
उन्होंने ही स्वयं अपना विनाश कर लिया और उनसे वो बात खो गयी, जो वे बना रहे थे।
لَا جَرَمَ أَنَّهُمْ فِي الْآخِرَةِ هُمُ الْأَخْسَرُونَ (22)
ये आवश्यक है कि परलोक में यही सर्वाधिक विनाश में होंगे।
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَأَخْبَتُوا إِلَىٰ رَبِّهِمْ أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَنَّةِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ (23)
वास्तव में, जो ईमान लाये और सदाचार किये तथा अपने पालनहार की ओर आकर्शित हुए, वही स्वर्गीय हैं और वे उसमें सदैव रहेंगे।
۞ مَثَلُ الْفَرِيقَيْنِ كَالْأَعْمَىٰ وَالْأَصَمِّ وَالْبَصِيرِ وَالسَّمِيعِ ۚ هَلْ يَسْتَوِيَانِ مَثَلًا ۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ (24)
दोनों समुदाय की दशा ऐसी है, जैसे एक अन्धा और बहरा हो और दूसरा देखने और सुनने वाला हो। तो क्या दोनों की दशा समान हो सकती है? क्या तुम (इस अन्तर को) नहीं समझते
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوْمِهِ إِنِّي لَكُمْ نَذِيرٌ مُّبِينٌ (25)
और हमने नूह़ को उसकी जाति की ओर रसूल बनाकर भेजा। उन्होंने कहाः वास्तव में, मैं तुम्हारे लिए खुले रूप से सावधान करने वाला हूँ।
أَن لَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ ۖ إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ أَلِيمٍ (26)
कि इबादत (वंदना) केवल अल्लाह ही की करो। मैं तुम्हारे ऊपर दुःख दायी दिन की यातना से डरता हूँ।
فَقَالَ الْمَلَأُ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن قَوْمِهِ مَا نَرَاكَ إِلَّا بَشَرًا مِّثْلَنَا وَمَا نَرَاكَ اتَّبَعَكَ إِلَّا الَّذِينَ هُمْ أَرَاذِلُنَا بَادِيَ الرَّأْيِ وَمَا نَرَىٰ لَكُمْ عَلَيْنَا مِن فَضْلٍ بَلْ نَظُنُّكُمْ كَاذِبِينَ (27)
तो उन प्रमुखों ने, जो उनकी जाति में से काफ़िर हो गये, कहाः हमतो तुझे अपने ही जैसा मानव पुरुष देख रहे हैं और हम देख रहे हैं कि तुम्हारा अनुसरण केवन वही लोग कर रहे हैं, जो हममें नीच हैं। वो भी बिना सोचे-समझे और हम अपने ऊपर तुम्हारी कोई प्रधानता भी नहीं देखते, बल्कि हम तुम्हें झूठा समझते हैं।
قَالَ يَا قَوْمِ أَرَأَيْتُمْ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَيِّنَةٍ مِّن رَّبِّي وَآتَانِي رَحْمَةً مِّنْ عِندِهِ فَعُمِّيَتْ عَلَيْكُمْ أَنُلْزِمُكُمُوهَا وَأَنتُمْ لَهَا كَارِهُونَ (28)
उस (अर्थात् नूह़) ने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! तुमने इस बात पर विचार किया कि यदि मैं अपने पालनहार की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और मुझे उसने अपने पास से एक दया[1] प्रदान की हो, फिर वह तुम्हें सुझायी न दे, तो क्या हम उसे तुमसे चिपका[2] दें, जबकि तुम उसे नहीं चाहते
وَيَا قَوْمِ لَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مَالًا ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى اللَّهِ ۚ وَمَا أَنَا بِطَارِدِ الَّذِينَ آمَنُوا ۚ إِنَّهُم مُّلَاقُو رَبِّهِمْ وَلَٰكِنِّي أَرَاكُمْ قَوْمًا تَجْهَلُونَ (29)
और हे मेरी जाति के लोगो! मैं इस (सत्य के प्रचार) पर तुमसे कोई धन नहीं माँगता। मेरा बदला तो अल्लाह के ऊपर है और मैं उन्हें (अपने यहाँ से) धुतकार नहीं सकता, जो ईमान लाये हैं, निश्चय वे अपने पालनहार से मिलने वाले हैं, परन्तु मैं देख रहा हूँ कि तुम जाहिलों जैसी बातें कर रहे हो।
وَيَا قَوْمِ مَن يَنصُرُنِي مِنَ اللَّهِ إِن طَرَدتُّهُمْ ۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ (30)
और हे मेरी जाति के लोगो! कौन अल्लाह की पकड़ से[1] मुझे बचायेगा, यदि मैं उन्हें अपने पास से धुतकार दूँ? क्या तुम सोचते नहीं हो
وَلَا أَقُولُ لَكُمْ عِندِي خَزَائِنُ اللَّهِ وَلَا أَعْلَمُ الْغَيْبَ وَلَا أَقُولُ إِنِّي مَلَكٌ وَلَا أَقُولُ لِلَّذِينَ تَزْدَرِي أَعْيُنُكُمْ لَن يُؤْتِيَهُمُ اللَّهُ خَيْرًا ۖ اللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا فِي أَنفُسِهِمْ ۖ إِنِّي إِذًا لَّمِنَ الظَّالِمِينَ (31)
और मैं तुमसे ये नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के कोषागार (ख़ज़ाने) हैं और न मैं गुप्त बातों का ज्ञान रखता हूँ और ये भी नहीं कहता कि मैं फ़रिश्ता हूँ और ये भी नहीं कहता कि जिन्हें तुम्हारी आँखें घृणा से देखती हैं, अल्लाह उन्हें कोई भलाई नहीं देगा। अल्लाह अधिक जानता है, जो कुछ उनके दिलों में है। यदि मैं ऐसा कहूँ, तो निश्चय अत्याचारियों में हो जाऊँगा।
قَالُوا يَا نُوحُ قَدْ جَادَلْتَنَا فَأَكْثَرْتَ جِدَالَنَا فَأْتِنَا بِمَا تَعِدُنَا إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ (32)
उन्होंने कहाः हे नूह़! तूने हमसे झगड़ा किया और बहुत झगड़ लिया, अब वो (यातना) ला दो, जिसकी धमकी हमें देते हो, यदि तुम सच बोलने वालों में हो।
قَالَ إِنَّمَا يَأْتِيكُم بِهِ اللَّهُ إِن شَاءَ وَمَا أَنتُم بِمُعْجِزِينَ (33)
उसने कहाः उसे तो तुम्हारे पास अल्लाह ही लायेगा, यदि वह चाहेगा और तुम (उसे) विवश करने वाले नहीं हो।
وَلَا يَنفَعُكُمْ نُصْحِي إِنْ أَرَدتُّ أَنْ أَنصَحَ لَكُمْ إِن كَانَ اللَّهُ يُرِيدُ أَن يُغْوِيَكُمْ ۚ هُوَ رَبُّكُمْ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (34)
और मेरी शुभ-चिन्ता तुम्हें कोई लाभ नहीं पहुँचा सकती, यदि मैं तुम्हारा हित चाहूँ, जबकि अल्लाह तुम्हें कुपथ करना चाहता हो और तुम उसी की ओर लौटाये जाओगे।
أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ ۖ قُلْ إِنِ افْتَرَيْتُهُ فَعَلَيَّ إِجْرَامِي وَأَنَا بَرِيءٌ مِّمَّا تُجْرِمُونَ (35)
क्या वे कहते हैं कि उसने ये बात स्वयं बना ली है? तुम कहो कि यदि मैंने इसे स्वयं बना लिया है, तो मेरा अपराध मुझी पर है और मैं निर्दोष हूँ, उस अपराध से, जो तुम कर रहे हो।
وَأُوحِيَ إِلَىٰ نُوحٍ أَنَّهُ لَن يُؤْمِنَ مِن قَوْمِكَ إِلَّا مَن قَدْ آمَنَ فَلَا تَبْتَئِسْ بِمَا كَانُوا يَفْعَلُونَ (36)
और नूह़ की ओर वह़्यी (प्रकाशना) की गयी कि तुम्हारी जाति मेंसे ईमान नहीं लायेंगे, उनके सिवा, जो ईमान ला चुके हैं। अतः उससे दुःखी न बनो, जो वे कर रहे हैं।
وَاصْنَعِ الْفُلْكَ بِأَعْيُنِنَا وَوَحْيِنَا وَلَا تُخَاطِبْنِي فِي الَّذِينَ ظَلَمُوا ۚ إِنَّهُم مُّغْرَقُونَ (37)
और हमारी आँखों के सामने हमारी वह़्यी के अनुसार एक नाव बनाओ और मुझसे उनके बारे में कुछ[1] न कहना, जिन्होंने अत्याचार किया है। वास्तव में, वे डूबने वाले हैं।
وَيَصْنَعُ الْفُلْكَ وَكُلَّمَا مَرَّ عَلَيْهِ مَلَأٌ مِّن قَوْمِهِ سَخِرُوا مِنْهُ ۚ قَالَ إِن تَسْخَرُوا مِنَّا فَإِنَّا نَسْخَرُ مِنكُمْ كَمَا تَسْخَرُونَ (38)
और वह नाव बनाने लगा और जबभी उसकी जाति के प्रमुख उसके पास से गुज़रते, तो उसकी हँसी उड़ाते। नूह़ ने कहाः यदि तुम हमारी हँसी उड़ाते हो, तो हमभी ऐसे ही (एक दिन) तुम्हारी हँसी उड़येंगे।
فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ مَن يَأْتِيهِ عَذَابٌ يُخْزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيْهِ عَذَابٌ مُّقِيمٌ (39)
फिर तुम्हें शीघ्र ही ज्ञान हो जायेगा कि किसपर अपमानकारी यातना आयेगी और स्थायी दुःख किसपर उतरेगा
حَتَّىٰ إِذَا جَاءَ أَمْرُنَا وَفَارَ التَّنُّورُ قُلْنَا احْمِلْ فِيهَا مِن كُلٍّ زَوْجَيْنِ اثْنَيْنِ وَأَهْلَكَ إِلَّا مَن سَبَقَ عَلَيْهِ الْقَوْلُ وَمَنْ آمَنَ ۚ وَمَا آمَنَ مَعَهُ إِلَّا قَلِيلٌ (40)
यहाँ तक कि जब हमारा आदेश आ गया और तन्नूर उबलने लगा, तो हमने (नूह़ से) कहाः उसमें प्रत्येक प्रकार के जीवों के दो जोड़े रख लो और अपने परिजनों को, उनके सिवा, जिनके बारे में पहले बता दिया गाय है और जो ईमान लाये हैं और उसके साथ थोड़े ही ईमान लाये थे।
۞ وَقَالَ ارْكَبُوا فِيهَا بِسْمِ اللَّهِ مَجْرَاهَا وَمُرْسَاهَا ۚ إِنَّ رَبِّي لَغَفُورٌ رَّحِيمٌ (41)
और उस (नूह़) ने कहाः इसमें सवार हो जाओ, अल्लाह के नाम ही से इसका चलना तथा इसे रुकना है। वास्तव में, मेरा पालनहार बड़ा क्षमाशील दयावान् है।
وَهِيَ تَجْرِي بِهِمْ فِي مَوْجٍ كَالْجِبَالِ وَنَادَىٰ نُوحٌ ابْنَهُ وَكَانَ فِي مَعْزِلٍ يَا بُنَيَّ ارْكَب مَّعَنَا وَلَا تَكُن مَّعَ الْكَافِرِينَ (42)
और वह उन्हें लिए पर्वत जैसी ऊँची लहरों में चलती रही और नूह़ ने अपने पुत्र को पुकारा, जबकि वह उनसे अलग थाः हे मेरे पुत्र! मेरे साथ सवार हो जा और काफ़िरों के साथ न रह।
قَالَ سَآوِي إِلَىٰ جَبَلٍ يَعْصِمُنِي مِنَ الْمَاءِ ۚ قَالَ لَا عَاصِمَ الْيَوْمَ مِنْ أَمْرِ اللَّهِ إِلَّا مَن رَّحِمَ ۚ وَحَالَ بَيْنَهُمَا الْمَوْجُ فَكَانَ مِنَ الْمُغْرَقِينَ (43)
उसने कहाः मैं किसी पर्वत की ओर शरण ले लूँगा, जो मुझे जल से बचा लेगा। नूह़ ने कहाः आज अल्लाह के आदेश (यातना) से कोई बचाने वाला नहीं, परनु जिसपर वह (अल्लाह) दया करे और दोनों के बीच एक लहर आड़े आ गयी और वह डूबने वालों में हो गया।
وَقِيلَ يَا أَرْضُ ابْلَعِي مَاءَكِ وَيَا سَمَاءُ أَقْلِعِي وَغِيضَ الْمَاءُ وَقُضِيَ الْأَمْرُ وَاسْتَوَتْ عَلَى الْجُودِيِّ ۖ وَقِيلَ بُعْدًا لِّلْقَوْمِ الظَّالِمِينَ (44)
और कहा गयाः हे धरती! अपना जल निगल जा और हे आकाश! तू थम जा औ जल उतर गया और आदेश पूरा कर दिया गया और नाव "जूदी[1]" पर ठहर गयी और कहा गया कि अत्याचारियों के लिए (अल्लाह की दया से) दूरी है।
وَنَادَىٰ نُوحٌ رَّبَّهُ فَقَالَ رَبِّ إِنَّ ابْنِي مِنْ أَهْلِي وَإِنَّ وَعْدَكَ الْحَقُّ وَأَنتَ أَحْكَمُ الْحَاكِمِينَ (45)
तथा नूह़ ने अपने पालनहार से प्रार्थना की और कहाः मेरे पालनहार! मेरा पुत्र मेरे परिजनों में से है। निश्चय तेरा वचन सत्य है तथा तू ही सबसे अच्छा निर्णय करने वाला है।
قَالَ يَا نُوحُ إِنَّهُ لَيْسَ مِنْ أَهْلِكَ ۖ إِنَّهُ عَمَلٌ غَيْرُ صَالِحٍ ۖ فَلَا تَسْأَلْنِ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ ۖ إِنِّي أَعِظُكَ أَن تَكُونَ مِنَ الْجَاهِلِينَ (46)
उस (अल्लाह) ने उत्तर दियाः वह तेरा परिजन नहीं। (क्योंकि) वह कुकर्मी है। अतः मुझसे उस चीज़ का प्रश्न न कर, जिसका तुझे कोई ज्ञान नहीं। मैं तुझे बताता हूँ कि अज्ञानों में न हो जा।
قَالَ رَبِّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ أَنْ أَسْأَلَكَ مَا لَيْسَ لِي بِهِ عِلْمٌ ۖ وَإِلَّا تَغْفِرْ لِي وَتَرْحَمْنِي أَكُن مِّنَ الْخَاسِرِينَ (47)
नूह़ ने कहाः मेरे पालनहार! मैं तेरी शरण चाहता हूँ कि मैं तुझसे ऐसी चीज़ की माँग करूँ, जिस (की वास्तविक्ता) का मुझे कोई ज्ञान नहीं है[1] और यदि तूने मुझे क्षमा नहीं किया और मुझपर दया न की, तो मैं क्षतिग्रस्तों में हो जाऊँगा।
قِيلَ يَا نُوحُ اهْبِطْ بِسَلَامٍ مِّنَّا وَبَرَكَاتٍ عَلَيْكَ وَعَلَىٰ أُمَمٍ مِّمَّن مَّعَكَ ۚ وَأُمَمٌ سَنُمَتِّعُهُمْ ثُمَّ يَمَسُّهُم مِّنَّا عَذَابٌ أَلِيمٌ (48)
कहा गया कि हे नूह़! उतर जा, हमारी ओर से रक्षा ओर सम्पन्नता के साथ, अपने ऊपर तथा तेरे साथ के समुदायों के ऊपर और कुछ समुदाय ऐसे हैं, जिन्हें हम सांसारिक जीवन सामग्री प्रदान करेंगें, फिर उन्हें हमारी दुःखदायी यातना पहुँचेगी।
تِلْكَ مِنْ أَنبَاءِ الْغَيْبِ نُوحِيهَا إِلَيْكَ ۖ مَا كُنتَ تَعْلَمُهَا أَنتَ وَلَا قَوْمُكَ مِن قَبْلِ هَٰذَا ۖ فَاصْبِرْ ۖ إِنَّ الْعَاقِبَةَ لِلْمُتَّقِينَ (49)
यही ग़ैब की बातें हैं, जिन्हें (हे नबी!) हम आपकी ओर प्रकाशना (वह़्यी) कर रहे हैं। इससे पूर्व न तो आप इन्हें जानते थे और न आपकी जाति। अतः आप सहन करें। वास्तव में, अच्छा परिणाम आज्ञाकारियों के लिए है।
وَإِلَىٰ عَادٍ أَخَاهُمْ هُودًا ۚ قَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللَّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَٰهٍ غَيْرُهُ ۖ إِنْ أَنتُمْ إِلَّا مُفْتَرُونَ (50)
और "आद" (जाति) की ओर उनके भाई हूद को भेजा, उसने कहाः हे मेरी जाति को लोगो! अल्लाह की इबादत (वंदना) करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं है। तुम इसके सिवा कुछ नहीं हो कि झूठी बातें घड़ने वाले हो[1]।
يَا قَوْمِ لَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى الَّذِي فَطَرَنِي ۚ أَفَلَا تَعْقِلُونَ (51)
हे मेरी जाति के लोगो! मैं तुमसे इसपर कोई बदला नहीं चाहता; मेरा पारिश्रमिक (बदला) उसी (अल्लाह) पर है, जिसने मुझे पैदा किया है। तो क्या तुम (इतनी) बात भी नहीं समझते
وَيَا قَوْمِ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُوا إِلَيْهِ يُرْسِلِ السَّمَاءَ عَلَيْكُم مِّدْرَارًا وَيَزِدْكُمْ قُوَّةً إِلَىٰ قُوَّتِكُمْ وَلَا تَتَوَلَّوْا مُجْرِمِينَ (52)
हे मेरी जाति के लोगो! अपने पालनहार से क्षमा माँगो। फिर उसकी ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वह आकाश से तुमपर धारा प्रवाह वर्षा करेगा और तुम्हारी शक्ति में अधिक शक्ति प्रदान करेगा और अपराधी होकर मुँह न फेरो।
قَالُوا يَا هُودُ مَا جِئْتَنَا بِبَيِّنَةٍ وَمَا نَحْنُ بِتَارِكِي آلِهَتِنَا عَن قَوْلِكَ وَمَا نَحْنُ لَكَ بِمُؤْمِنِينَ (53)
उन्होंने कहाः हे हूद! तुम हमारे पास कोई स्पष्ट (खुला) प्रमाण नहीं लाये तथा हम तुम्हारी बात के कारण अपने पूज्यों को त्यागने वाले नहीं हैं और न हम तुम्हारा विश्वास करने वाले हैं।
إِن نَّقُولُ إِلَّا اعْتَرَاكَ بَعْضُ آلِهَتِنَا بِسُوءٍ ۗ قَالَ إِنِّي أُشْهِدُ اللَّهَ وَاشْهَدُوا أَنِّي بَرِيءٌ مِّمَّا تُشْرِكُونَ (54)
हम तो यही कहेंगे कि तुझे हमारे किसी देवता ने बुराई के साथ पकड़ लिया है। हूद ने कहाः मैं अल्लाह को (गवाह) बनाता हूँ और तुम भी साक्षी रहो कि मैं उस शिर्क (मिश्रणवाद) से विरक्त हूँ, जो तुम कर रहे हो।
مِن دُونِهِ ۖ فَكِيدُونِي جَمِيعًا ثُمَّ لَا تُنظِرُونِ (55)
उस (अल्लाह) के सिवा। तुम सब मिलकर मेरे विरुध्द षड्यंत्र रच लो, फिर मुझे कुछ भी अवसर न दो[1]।
إِنِّي تَوَكَّلْتُ عَلَى اللَّهِ رَبِّي وَرَبِّكُم ۚ مَّا مِن دَابَّةٍ إِلَّا هُوَ آخِذٌ بِنَاصِيَتِهَا ۚ إِنَّ رَبِّي عَلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ (56)
वास्तव में, मैंने अल्लाह पर, जो मेरा पालनहार और तुम्हारा पालनहार है, भरोसा किया है। कोई चलने वाला जीव ऐसा नहीं, जो उसके अधिकार में न हो, वास्तव में, मेरा पालनहार सीधी राह[1] पर है।
فَإِن تَوَلَّوْا فَقَدْ أَبْلَغْتُكُم مَّا أُرْسِلْتُ بِهِ إِلَيْكُمْ ۚ وَيَسْتَخْلِفُ رَبِّي قَوْمًا غَيْرَكُمْ وَلَا تَضُرُّونَهُ شَيْئًا ۚ إِنَّ رَبِّي عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ حَفِيظٌ (57)
फिर यदि तुम विमुख रह गये, तो मैंने तुम्हें वह उपदेश पहुँचा दिया है, जिसके साथ मुझे भेजा गया है और मेरा पालनहार तुम्हारा स्थान तुम्हारे सिवा किसी[1] और जाति को दे देगा और तुम उसे कुछ हानि नहीं पहुँचा सकोगे, वास्तव में, मेरा पालनहार प्रत्येक चीज़ का रक्षक है।
وَلَمَّا جَاءَ أَمْرُنَا نَجَّيْنَا هُودًا وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ بِرَحْمَةٍ مِّنَّا وَنَجَّيْنَاهُم مِّنْ عَذَابٍ غَلِيظٍ (58)
और जब हमारा आदेश आ पहुँचा, तो हमने हूद को और उनको, जो उसके साथ ईमान लाये, अपनी दया से बचा लिया और हमने उन्हें घोर यातना से बचा लिया।
وَتِلْكَ عَادٌ ۖ جَحَدُوا بِآيَاتِ رَبِّهِمْ وَعَصَوْا رُسُلَهُ وَاتَّبَعُوا أَمْرَ كُلِّ جَبَّارٍ عَنِيدٍ (59)
वही (जाति) "आद" है, जिसने अपने पालनहार की आयतों (निशानियों) का इन्कार किया और उसके रसूलों की बात नहीं मानी और प्रत्येक सच के विरोधी के पीछे चलते रहे।
وَأُتْبِعُوا فِي هَٰذِهِ الدُّنْيَا لَعْنَةً وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ ۗ أَلَا إِنَّ عَادًا كَفَرُوا رَبَّهُمْ ۗ أَلَا بُعْدًا لِّعَادٍ قَوْمِ هُودٍ (60)
और इस संसार में धिक्कार उनके साथ लगा दी गयी तथा प्रलय के दिन भी लगी रहेगी। सुनो! आद ने अपने पालनहार को अस्वीकार किया। सुनो! हूद की जाति आद के लिए दूरी हो
۞ وَإِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا ۚ قَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللَّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَٰهٍ غَيْرُهُ ۖ هُوَ أَنشَأَكُم مِّنَ الْأَرْضِ وَاسْتَعْمَرَكُمْ فِيهَا فَاسْتَغْفِرُوهُ ثُمَّ تُوبُوا إِلَيْهِ ۚ إِنَّ رَبِّي قَرِيبٌ مُّجِيبٌ (61)
और समूद[1] की ओर उनके भाई सालेह़ को भेजा। उसने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं है। उसीने तुम्हें धरती से उत्पन्न किया और तुम्हें उसमें बसा दिया, अतः उससे क्षमा माँगो और उसी की ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वास्तव में, मेरा पालनहार समीप है ( और दुआयें) स्वीकार करने वाला है[2]।
قَالُوا يَا صَالِحُ قَدْ كُنتَ فِينَا مَرْجُوًّا قَبْلَ هَٰذَا ۖ أَتَنْهَانَا أَن نَّعْبُدَ مَا يَعْبُدُ آبَاؤُنَا وَإِنَّنَا لَفِي شَكٍّ مِّمَّا تَدْعُونَا إِلَيْهِ مُرِيبٍ (62)
उन्होंने कहाः हे सालेह! हमारे बीच इससे पहले तुझसे बड़ी आशा थी, क्या तू हमें इस बात से रोक रहा है कि हम उसकी पूजा करें, जिसकी पूजा हमारे बाप-दादा करते रहे? तू जिस चीज़ (एकेश्वरवाद) की ओर बुला रहा है, वास्तव में, उसके बारे में हमें संदेह है, जिसमें हमें द्विधा है।
قَالَ يَا قَوْمِ أَرَأَيْتُمْ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَيِّنَةٍ مِّن رَّبِّي وَآتَانِي مِنْهُ رَحْمَةً فَمَن يَنصُرُنِي مِنَ اللَّهِ إِنْ عَصَيْتُهُ ۖ فَمَا تَزِيدُونَنِي غَيْرَ تَخْسِيرٍ (63)
उस (सालेह़) ने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! तुमने विचार किया कि यदि मैं अपने पालनहार की ओर से एक स्पष्ट खुले प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपनी दया प्रदान की हो, तो कौन है, जो अल्लाह के मुक़ाबले में मेरी सहायता करेगा, यदि मैं उसकी अवज्ञा करूँ? तुम मुझे घाटे में डालने के सिवा कुछ नहीं दे सकते।
وَيَا قَوْمِ هَٰذِهِ نَاقَةُ اللَّهِ لَكُمْ آيَةً فَذَرُوهَا تَأْكُلْ فِي أَرْضِ اللَّهِ وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوءٍ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابٌ قَرِيبٌ (64)
और हे मेरी जाति के लोगो! ये अल्लाह[1] की ऊँटनी तुम्हारे लिए एक निशानी है, इसे छोड़ दो, अल्लाह की धरती में चरती फिरे और इसे कोई दुःख न पहुँचाओ, अन्यथा तुम्हें तुरन्त यातना पकड़ लेगी।
فَعَقَرُوهَا فَقَالَ تَمَتَّعُوا فِي دَارِكُمْ ثَلَاثَةَ أَيَّامٍ ۖ ذَٰلِكَ وَعْدٌ غَيْرُ مَكْذُوبٍ (65)
तो उन्होंने उसे मार डाला। तब सालेह़ ने कहाः तुम अपने नगर में तीन दिन और आनन्द ले लो! ये वचन झूठ नहीं है।
فَلَمَّا جَاءَ أَمْرُنَا نَجَّيْنَا صَالِحًا وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ بِرَحْمَةٍ مِّنَّا وَمِنْ خِزْيِ يَوْمِئِذٍ ۗ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ الْقَوِيُّ الْعَزِيزُ (66)
फिर जब हमारा आदेश आ गया, तो हमने सालेह़ को और जो लोग उसके साथ ईमान लाये, अपनी दया से, उस दिन के अपमान से बचा लिया। वास्तव में, आपका पालनहार ही शक्तिशाली प्रभुत्वशाली है।
وَأَخَذَ الَّذِينَ ظَلَمُوا الصَّيْحَةُ فَأَصْبَحُوا فِي دِيَارِهِمْ جَاثِمِينَ (67)
और अत्याचारियों को कड़ी ध्वनि ने पकड़ लिया और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गये।
كَأَن لَّمْ يَغْنَوْا فِيهَا ۗ أَلَا إِنَّ ثَمُودَ كَفَرُوا رَبَّهُمْ ۗ أَلَا بُعْدًا لِّثَمُودَ (68)
जैसै वे वहाँ कभी बसे ही नहीं थे। सावधान! समूद ने अपने पालनहार को अस्वीकार कर दिया। सुन लो! समूद के लिए दूरी हो।
وَلَقَدْ جَاءَتْ رُسُلُنَا إِبْرَاهِيمَ بِالْبُشْرَىٰ قَالُوا سَلَامًا ۖ قَالَ سَلَامٌ ۖ فَمَا لَبِثَ أَن جَاءَ بِعِجْلٍ حَنِيذٍ (69)
और हमारे फ़रिश्ते इब्राहीम के पास शुभ सूचना लेकर आये। उन्होंने सलाम किया, तो उसने उत्तर में सलाम किया। फिर देर न हुई कि वह एक भुना हुआ वछड़ा[1] ले आये।
فَلَمَّا رَأَىٰ أَيْدِيَهُمْ لَا تَصِلُ إِلَيْهِ نَكِرَهُمْ وَأَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيفَةً ۚ قَالُوا لَا تَخَفْ إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَىٰ قَوْمِ لُوطٍ (70)
फिर जब देखा कि उनके हाथ उसकी ओर नहीं बढ़ते, तो उनकी ओर से संशय में पड़ गया और उनसे दिल में भय का अनुभव किया। उन्होंने कहाः भय न करो। हम लूत[1] की जाति की ओर भेजे गये हैं।
وَامْرَأَتُهُ قَائِمَةٌ فَضَحِكَتْ فَبَشَّرْنَاهَا بِإِسْحَاقَ وَمِن وَرَاءِ إِسْحَاقَ يَعْقُوبَ (71)
और उस (इब्राहीम) की पत्नी खड़ी होकर सुन रही थी। वह हँस पड़ी[1], तो उसे हमने इस्ह़ाक़ (के जन्म) की शुभ सूचना[2] दी और इस्ह़ाक़ के पश्चात् याक़ुब की।
قَالَتْ يَا وَيْلَتَىٰ أَأَلِدُ وَأَنَا عَجُوزٌ وَهَٰذَا بَعْلِي شَيْخًا ۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيْءٌ عَجِيبٌ (72)
वह बोलीः हाय मेरा दुर्भाग्य! क्या मेरी संतान होगी, जबकि मैं बुढ़िया हूँ और मेरा ये पति भी बूढ़ा है? वास्तव में, ये बड़े आश्चर्य की बात है।
قَالُوا أَتَعْجَبِينَ مِنْ أَمْرِ اللَّهِ ۖ رَحْمَتُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ عَلَيْكُمْ أَهْلَ الْبَيْتِ ۚ إِنَّهُ حَمِيدٌ مَّجِيدٌ (73)
फ़रिश्तों ने कहाः क्या तू अल्लाह के आदेश से आश्चर्य करती है? हे घर वालो! तुम सब पर अल्लाह की दया तथा सम्पन्नता है, निसंदेह वह अति प्रशंसित, श्रेष्ठ है।
فَلَمَّا ذَهَبَ عَنْ إِبْرَاهِيمَ الرَّوْعُ وَجَاءَتْهُ الْبُشْرَىٰ يُجَادِلُنَا فِي قَوْمِ لُوطٍ (74)
फिर जब इब्राहीम से भय दूर हो गया और उसे शुभ सूचना मिल गयी, तो वह लूत की जाति के बारे में हमसे आग्रह करने लगा[1]।
إِنَّ إِبْرَاهِيمَ لَحَلِيمٌ أَوَّاهٌ مُّنِيبٌ (75)
वास्तव में, इब्राहीम बड़ा सहनशील, कोमल हृदय तथा अल्लाह की ओर ध्यानमग्न रहने वाला था।
يَا إِبْرَاهِيمُ أَعْرِضْ عَنْ هَٰذَا ۖ إِنَّهُ قَدْ جَاءَ أَمْرُ رَبِّكَ ۖ وَإِنَّهُمْ آتِيهِمْ عَذَابٌ غَيْرُ مَرْدُودٍ (76)
(फ़रिश्तों ने कहाः) हे इब्राहीम! इस बात को छोड़ो, वास्तव में, तेरे पालनहार का आदेश[1] आ गया है तथा उनपर ऐसी यातना आने वाली, है जो टलने वाली नहीं है।
وَلَمَّا جَاءَتْ رُسُلُنَا لُوطًا سِيءَ بِهِمْ وَضَاقَ بِهِمْ ذَرْعًا وَقَالَ هَٰذَا يَوْمٌ عَصِيبٌ (77)
और जब हमारे फ़रिश्ते लूत के पास आये, तो उनका आना उसे बुरा लगा और उनके कारण व्याकूल हो गया और कहाः ये तो बड़ी विपता का[1] दिन है।
وَجَاءَهُ قَوْمُهُ يُهْرَعُونَ إِلَيْهِ وَمِن قَبْلُ كَانُوا يَعْمَلُونَ السَّيِّئَاتِ ۚ قَالَ يَا قَوْمِ هَٰؤُلَاءِ بَنَاتِي هُنَّ أَطْهَرُ لَكُمْ ۖ فَاتَّقُوا اللَّهَ وَلَا تُخْزُونِ فِي ضَيْفِي ۖ أَلَيْسَ مِنكُمْ رَجُلٌ رَّشِيدٌ (78)
और उसकी जाति के लोग दौड़ते हुए उसके पास आ गये और इससे पूर्व वह कुकर्म[1] किया करते थे। लूत ने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! ये मेरी[2] पुत्रियाँ हैं, वे तुम्हारे लिए अधिक पवित्र हैं, अतः अल्लाह से डरो और मेरे अतिथियों के बारे में मुझे अपमानित न करो। क्या तुममें कोई भला मनुष्य नहीं है
قَالُوا لَقَدْ عَلِمْتَ مَا لَنَا فِي بَنَاتِكَ مِنْ حَقٍّ وَإِنَّكَ لَتَعْلَمُ مَا نُرِيدُ (79)
उन लोगों ने कहाः तुमतो जानते ही हो कि हमारा तुम्हारी पुत्रियों में कोई अधिकार नहीं[1]। तथा वास्तव में, तुम जानते ही हो कि हम क्या चाहते हैं।
قَالَ لَوْ أَنَّ لِي بِكُمْ قُوَّةً أَوْ آوِي إِلَىٰ رُكْنٍ شَدِيدٍ (80)
उस (लूत) ने कहाः काश मेरे पास बल होता! या कोई दृढ़ सहारा होता, जिसकी शरण लेता
قَالُوا يَا لُوطُ إِنَّا رُسُلُ رَبِّكَ لَن يَصِلُوا إِلَيْكَ ۖ فَأَسْرِ بِأَهْلِكَ بِقِطْعٍ مِّنَ اللَّيْلِ وَلَا يَلْتَفِتْ مِنكُمْ أَحَدٌ إِلَّا امْرَأَتَكَ ۖ إِنَّهُ مُصِيبُهَا مَا أَصَابَهُمْ ۚ إِنَّ مَوْعِدَهُمُ الصُّبْحُ ۚ أَلَيْسَ الصُّبْحُ بِقَرِيبٍ (81)
फ़रिश्तों ने कहाः हे लूत! हम तेरे पालनहार के भेजे हुए (फ़रिश्ते) हैं। वे कदापि तुझतक नहीं पहुँच सकेंगे। जब कुछ रात रह जाये, तो अपने परिवार के साथ निकल जा और तुममें से कोई फिरकर न देखे। परन्तु तेरी पत्नी (साथ नहीं जायेगी)। उसपर भी वही बीतने वाला है, जो उनपर बीतेगा। उनकी यातना का निर्धारित समय प्रातः काल है। क्या प्रातः काल समीप नहीं है
فَلَمَّا جَاءَ أَمْرُنَا جَعَلْنَا عَالِيَهَا سَافِلَهَا وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهَا حِجَارَةً مِّن سِجِّيلٍ مَّنضُودٍ (82)
फिर जब हमारा आदेश आ गया, तो हमने उस बस्ती को तहस-नहस कर दिया और उनपर पकी हुई कंकरियों की बारिश कर दी।
مُّسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ ۖ وَمَا هِيَ مِنَ الظَّالِمِينَ بِبَعِيدٍ (83)
जो तेरे पालनहार के यहाँ चिन्ह लगायी हुयी थी और वह[1] (बस्ती) अत्याचारियों[2] से कोई दूर नहीं है।
۞ وَإِلَىٰ مَدْيَنَ أَخَاهُمْ شُعَيْبًا ۚ قَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللَّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَٰهٍ غَيْرُهُ ۖ وَلَا تَنقُصُوا الْمِكْيَالَ وَالْمِيزَانَ ۚ إِنِّي أَرَاكُم بِخَيْرٍ وَإِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ مُّحِيطٍ (84)
और मद्यन की ओर उनके भाई शोऐब को भेजा। उसने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत (वंदना) करो। उसके सिवा कोई तुम्हारा पूज्य नहीं है और नाप-तोल में कमी न करो[1]। मैं तुम्हें सम्पन्न देख रहा हूँ। इसलिए मुझे डर है कि तुम्हें कहीं यातना न घेर ले।
وَيَا قَوْمِ أَوْفُوا الْمِكْيَالَ وَالْمِيزَانَ بِالْقِسْطِ ۖ وَلَا تَبْخَسُوا النَّاسَ أَشْيَاءَهُمْ وَلَا تَعْثَوْا فِي الْأَرْضِ مُفْسِدِينَ (85)
हे मेरी जाति के लोगो! नाप-तोल न्यायपुर्वक पूरा करो और लोगों को उनकी चीज़ कम न दो तथा धरती में उपद्रव फैलाते न फिरो।
بَقِيَّتُ اللَّهِ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ ۚ وَمَا أَنَا عَلَيْكُم بِحَفِيظٍ (86)
अल्लाह की दी हुई बचत, तुम्हारे लिए अच्छी है, यदि तुम ईमान वाले हो और मैं तुमपर कोई रक्षक नहीं हूँ।
قَالُوا يَا شُعَيْبُ أَصَلَاتُكَ تَأْمُرُكَ أَن نَّتْرُكَ مَا يَعْبُدُ آبَاؤُنَا أَوْ أَن نَّفْعَلَ فِي أَمْوَالِنَا مَا نَشَاءُ ۖ إِنَّكَ لَأَنتَ الْحَلِيمُ الرَّشِيدُ (87)
उन्होंने कहाः हे शोऐब! क्या तेरी नमाज़ (इबादत) तुझे आदेश दे रही है कि हम उसे त्याग दें, जिसकी पूजा हमारे बाप-दादा करते रहे? अथवा अपने धनों में जो चाहें करें? वास्तव में, तू बड़ा ही सहनशील तथा भला व्यक्ति है
قَالَ يَا قَوْمِ أَرَأَيْتُمْ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَيِّنَةٍ مِّن رَّبِّي وَرَزَقَنِي مِنْهُ رِزْقًا حَسَنًا ۚ وَمَا أُرِيدُ أَنْ أُخَالِفَكُمْ إِلَىٰ مَا أَنْهَاكُمْ عَنْهُ ۚ إِنْ أُرِيدُ إِلَّا الْإِصْلَاحَ مَا اسْتَطَعْتُ ۚ وَمَا تَوْفِيقِي إِلَّا بِاللَّهِ ۚ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ أُنِيبُ (88)
शोऐब ने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! तुम बताओ, यदि मैं अपने पालनहार की ओर से प्रत्यक्ष प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अच्छी जीविका प्रदान की हो, (तो कैसे तुम्हारा साथ दूँ?) मैं नहीं चाहता कि उसके विरुध्द करूँ, जिससे तुम्हें रोक रहा हूँ। मैं जहाँ तक हो सके, सुधार ही चाहता हूँ और ये जो कुछ करना चाहता हूँ, अल्लाह के योगदान पर निर्भर करता है। मैंने उसीपर भरोसा किया है और उसी की ओर ध्यानमग्न रहता हूँ।
وَيَا قَوْمِ لَا يَجْرِمَنَّكُمْ شِقَاقِي أَن يُصِيبَكُم مِّثْلُ مَا أَصَابَ قَوْمَ نُوحٍ أَوْ قَوْمَ هُودٍ أَوْ قَوْمَ صَالِحٍ ۚ وَمَا قَوْمُ لُوطٍ مِّنكُم بِبَعِيدٍ (89)
हे मेरी जाति के लोगो! तुम्हें मेरा विरोध इस बात पर न उभार दे कि तुमपर वही यातना आ पड़े, जो नूह़ की जाति, हूद की जाति अथवा सालेह़ की जाति पर आई और लूत की जाति तुमसे कुछ दूर नहीं है।
وَاسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُوا إِلَيْهِ ۚ إِنَّ رَبِّي رَحِيمٌ وَدُودٌ (90)
और अपने पालनहार से क्षमा माँगो, फिर उसी की ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वास्तव में, मेरा पालनहार अति क्षमाशील तथा प्रेम करने वाला है।
قَالُوا يَا شُعَيْبُ مَا نَفْقَهُ كَثِيرًا مِّمَّا تَقُولُ وَإِنَّا لَنَرَاكَ فِينَا ضَعِيفًا ۖ وَلَوْلَا رَهْطُكَ لَرَجَمْنَاكَ ۖ وَمَا أَنتَ عَلَيْنَا بِعَزِيزٍ (91)
उन्होंने कहाः हे शोऐब! तुम्हारी बहुत-सी बात हम नहीं समझते और हम, तुम्हें अपने बीच निर्बल देख रहे हैं और यदि, भाई बन्धु न होते, तो हम तुम्हें पथराव करके मार डालते और तुम, हमपर कोई भारी तो नहीं हो।
قَالَ يَا قَوْمِ أَرَهْطِي أَعَزُّ عَلَيْكُم مِّنَ اللَّهِ وَاتَّخَذْتُمُوهُ وَرَاءَكُمْ ظِهْرِيًّا ۖ إِنَّ رَبِّي بِمَا تَعْمَلُونَ مُحِيطٌ (92)
शोऐब ने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! क्या मेरे भाई बन्धु तुमपर अल्लाह से अधिक भारी हैं कि तुमने उसे पीठ पीछे डाल दिया है[1]? निश्चय मेरा पालनहार उसे (अपने ज्ञान के) घेरे में लिए हुए है, जो तुम कर रहे हो।
وَيَا قَوْمِ اعْمَلُوا عَلَىٰ مَكَانَتِكُمْ إِنِّي عَامِلٌ ۖ سَوْفَ تَعْلَمُونَ مَن يَأْتِيهِ عَذَابٌ يُخْزِيهِ وَمَنْ هُوَ كَاذِبٌ ۖ وَارْتَقِبُوا إِنِّي مَعَكُمْ رَقِيبٌ (93)
और हे मेरी जाति के लोगो! तुम अपने स्थान पर काम करो, मैं (अपने स्थान पर) काम कर रहा हूँ। तुम्हें शीघ्र ही ज्ञान हो जायेगा कि किसपर ऐसी यातना आयेगी, जो उसे अपमानित कर दे तथा कौन झूठा है? तुम प्रतीक्षा करो, मैं (भी) तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करने वाला हूँ।
وَلَمَّا جَاءَ أَمْرُنَا نَجَّيْنَا شُعَيْبًا وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ بِرَحْمَةٍ مِّنَّا وَأَخَذَتِ الَّذِينَ ظَلَمُوا الصَّيْحَةُ فَأَصْبَحُوا فِي دِيَارِهِمْ جَاثِمِينَ (94)
और जब हमारा आदेश आ गया, तो हमने शोऐब को और जो उसके साथ ईमान लाये थे, अपनी दया से बचा लिया और अत्याचारियों को बड़ी ध्वनि ने पकड़ लिया। फिर वे अपने घरों में औंधे मुँह पड़े रह गये।
كَأَن لَّمْ يَغْنَوْا فِيهَا ۗ أَلَا بُعْدًا لِّمَدْيَنَ كَمَا بَعِدَتْ ثَمُودُ (95)
जैसे वे कभी उनमें बसे ही न रहे हों। सुन लो! मद्यन वाले भी वैसे ही दूर फेंक दिये गये, जैसे समूद दूर फेंक दिये गये।
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مُوسَىٰ بِآيَاتِنَا وَسُلْطَانٍ مُّبِينٍ (96)
और हमने मूसा को अपनी निशानियों (चमत्कार) तथा खुले तर्क के साथ भेजा।
إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ فَاتَّبَعُوا أَمْرَ فِرْعَوْنَ ۖ وَمَا أَمْرُ فِرْعَوْنَ بِرَشِيدٍ (97)
फ़िरऔन और उसके प्रमुखों की ओर। तो उन्होंने फ़िरऔन की आज्ञा का अनुसरण (पालन) किया। जबकि फ़िरऔन की आज्ञा सुधरी हुई न थी।
يَقْدُمُ قَوْمَهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فَأَوْرَدَهُمُ النَّارَ ۖ وَبِئْسَ الْوِرْدُ الْمَوْرُودُ (98)
वह प्रलय के दिन अपनी जाति के आगे चलेगा और उनको नरक में उतारेगा और वह क्या ही बुरा उतरने का स्थान है
وَأُتْبِعُوا فِي هَٰذِهِ لَعْنَةً وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ بِئْسَ الرِّفْدُ الْمَرْفُودُ (99)
और वे धिक्कार के पीछे लगा दिये गये, इस संसार में भी और प्रलय के दिन भी। कैसा बुरा पुरस्कार है, जो उन्हें दिया जायेगा
ذَٰلِكَ مِنْ أَنبَاءِ الْقُرَىٰ نَقُصُّهُ عَلَيْكَ ۖ مِنْهَا قَائِمٌ وَحَصِيدٌ (100)
हे नबी! ये उन बस्तियों के समाचार हैं, जिनका वर्णन हम आपसे कर रहे हैं। उनमें से कुछ निर्जन खड़ी और कुछ उजड़ चुकी हैं।
وَمَا ظَلَمْنَاهُمْ وَلَٰكِن ظَلَمُوا أَنفُسَهُمْ ۖ فَمَا أَغْنَتْ عَنْهُمْ آلِهَتُهُمُ الَّتِي يَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ مِن شَيْءٍ لَّمَّا جَاءَ أَمْرُ رَبِّكَ ۖ وَمَا زَادُوهُمْ غَيْرَ تَتْبِيبٍ (101)
और हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, परन्तु उन्होंने स्वयं अपने ऊपर अत्याचार किया। तो उनके वे पूज्य, जिन्हें व अल्लाह के सिवा पुकार रहे थे, उनके कुछ काम नहीं आये, जब आपके पालनहार का आदेश आ गया और उन्होंने उन्हें हानि पहुँचाने के सिवा और कुछ नहीं किया[1]।
وَكَذَٰلِكَ أَخْذُ رَبِّكَ إِذَا أَخَذَ الْقُرَىٰ وَهِيَ ظَالِمَةٌ ۚ إِنَّ أَخْذَهُ أَلِيمٌ شَدِيدٌ (102)
और इसी प्रकार, तेरे पालनहार की पकड़ होती है, जब वह किसी अत्याचार करने वालों की बस्ती को पकड़ता है। निश्चय उसकी पकड़ दुःखदायी और कड़ी होती[1] है।
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِّمَنْ خَافَ عَذَابَ الْآخِرَةِ ۚ ذَٰلِكَ يَوْمٌ مَّجْمُوعٌ لَّهُ النَّاسُ وَذَٰلِكَ يَوْمٌ مَّشْهُودٌ (103)
निश्चय इसमें एक निशानी है, उसके लिए जो परलोक की यातना से डरे। वह ऐसा दिन होगा, जिसके लिए सभी लोग एकत्र होंगे तथा उस दिन सब उपस्थित होंगे।
وَمَا نُؤَخِّرُهُ إِلَّا لِأَجَلٍ مَّعْدُودٍ (104)
और उसे हम केवल एक निर्धारित अवधि के लिए देर कर रहे हैं।
يَوْمَ يَأْتِ لَا تَكَلَّمُ نَفْسٌ إِلَّا بِإِذْنِهِ ۚ فَمِنْهُمْ شَقِيٌّ وَسَعِيدٌ (105)
जब वह दिन आ जायेगा, तो अल्लाह की अनुमति बिना कोई प्राणी बात नहीं करेगा, फिर उनमें से कुछ अभागे होंगे और कुछ भाग्यवान होंगे।
فَأَمَّا الَّذِينَ شَقُوا فَفِي النَّارِ لَهُمْ فِيهَا زَفِيرٌ وَشَهِيقٌ (106)
फिर जो भाग्यहीन होंगे, वही नरक में होंगे, उन्हीं की उसमें चीख और पुकार होगी।
خَالِدِينَ فِيهَا مَا دَامَتِ السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ إِلَّا مَا شَاءَ رَبُّكَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ فَعَّالٌ لِّمَا يُرِيدُ (107)
वे उसमें सदावासी होंगे, जब तक आकाश तथा धरती अवस्थित हैं। परन्तु ये कि आपका पालनहार कुछ और चाहे। वास्तव में, आपका पालनहार जो चाहे, करने वाला है।
۞ وَأَمَّا الَّذِينَ سُعِدُوا فَفِي الْجَنَّةِ خَالِدِينَ فِيهَا مَا دَامَتِ السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ إِلَّا مَا شَاءَ رَبُّكَ ۖ عَطَاءً غَيْرَ مَجْذُوذٍ (108)
और जो भाग्यवान हैं, वे स्वर्ग ही में सदैव रहेंगे, जब तक आकाश तथा धरती स्थित हैं। परन्तु आपका पालनहर कुछ और चाहे, ये प्रदान है अनवरत (निरन्तर)।
فَلَا تَكُ فِي مِرْيَةٍ مِّمَّا يَعْبُدُ هَٰؤُلَاءِ ۚ مَا يَعْبُدُونَ إِلَّا كَمَا يَعْبُدُ آبَاؤُهُم مِّن قَبْلُ ۚ وَإِنَّا لَمُوَفُّوهُمْ نَصِيبَهُمْ غَيْرَ مَنقُوصٍ (109)
अतः (हे नबी!) आप उसके बारे में किसी संदेह में न हों, जिसे वे पूजते हैं। वे उसी प्रकार पूजते हैं, जैसे इससे पहले इनके बाप-दादा पूजते[1] रहे हैं। वस्तुतः, हम उन्हें उनका बिना किसी कमी के पूरा भाग देने वाले हैं।
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَاخْتُلِفَ فِيهِ ۚ وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ ۚ وَإِنَّهُمْ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ مُرِيبٍ (110)
और हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की। तो उसमें विभेद किया गया और यदि आपके पालनहार ने पहले से एक बात[1] निश्चित न की होती, तो उनके बीच निर्णय कर दिया गया होता और वास्तव में, वे[2] उसके बारे में संदेह और शंका में हैं।
وَإِنَّ كُلًّا لَّمَّا لَيُوَفِّيَنَّهُمْ رَبُّكَ أَعْمَالَهُمْ ۚ إِنَّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ خَبِيرٌ (111)
और प्रत्येक को आपका पालनहार अवश्य उनके कर्मों का पूरा बदला देगा। क्योंकि वह उनके कर्मों से सूचित है।
فَاسْتَقِمْ كَمَا أُمِرْتَ وَمَن تَابَ مَعَكَ وَلَا تَطْغَوْا ۚ إِنَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ (112)
अतः (हे नबी!) जैसे आपको आदेश दिया गया है, उसपर सुदृढ़ रहिये और वे भी जो आपके साथ तौबा (क्षमा याचना) करके हो लिए हैं और सीमा का उल्लंघन न[1] करो, क्योंकि वह (अल्लाह) तुम्हारे कर्मों को देख रहा है।
وَلَا تَرْكَنُوا إِلَى الَّذِينَ ظَلَمُوا فَتَمَسَّكُمُ النَّارُ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ اللَّهِ مِنْ أَوْلِيَاءَ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ (113)
और अत्याचारियों की ओर न झुक पड़ो। अन्यथा तुम्हें भी अग्नि स्पर्श कर लेगी और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई सहायक नहीं, फिर तुम्हारी सहायता नहीं की जायेगी।
وَأَقِمِ الصَّلَاةَ طَرَفَيِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مِّنَ اللَّيْلِ ۚ إِنَّ الْحَسَنَاتِ يُذْهِبْنَ السَّيِّئَاتِ ۚ ذَٰلِكَ ذِكْرَىٰ لِلذَّاكِرِينَ (114)
तथा आप नमाज़ की स्थापना करें, दिन के सिरों पर और कुछ रात बीतने[1] पर। वास्तव में, सदाचार दुराचारों को दूर कर देते[2] हैं। ये एक शिक्षा है, शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिए।
وَاصْبِرْ فَإِنَّ اللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجْرَ الْمُحْسِنِينَ (115)
तथा आप धैर्य से काम लें, क्योंकि अल्लाह सदाचारियों का प्रतिफल व्यर्थ नहीं करता।
فَلَوْلَا كَانَ مِنَ الْقُرُونِ مِن قَبْلِكُمْ أُولُو بَقِيَّةٍ يَنْهَوْنَ عَنِ الْفَسَادِ فِي الْأَرْضِ إِلَّا قَلِيلًا مِّمَّنْ أَنجَيْنَا مِنْهُمْ ۗ وَاتَّبَعَ الَّذِينَ ظَلَمُوا مَا أُتْرِفُوا فِيهِ وَكَانُوا مُجْرِمِينَ (116)
तो तुमसे पहले युगों में ऐसे सदाचारी क्यों नहीं हुए, जो धरती में उपद्रव करने से रोकते? परन्तु ऐसा बहुत थोड़े युगों में हुआ, जिन्हें हमने बचा लिया और अत्याचारी उस स्वाद के पीछे पड़े रहे, जो धन-धान्य दिये गये थे और वे अपराधि बन कर रहे।
وَمَا كَانَ رَبُّكَ لِيُهْلِكَ الْقُرَىٰ بِظُلْمٍ وَأَهْلُهَا مُصْلِحُونَ (117)
और आपका पालनहार ऐसा नहीं है कि बस्तियों को अत्याचार से ध्वस्त कर दे, जबकि उनके वासी सुधारक हूँ।
وَلَوْ شَاءَ رَبُّكَ لَجَعَلَ النَّاسَ أُمَّةً وَاحِدَةً ۖ وَلَا يَزَالُونَ مُخْتَلِفِينَ (118)
और यदि आपका पालनहार चाहता, तो सब लोगों को एक समुदाय बना देता और वे सदा विचार विरोधी रहेंगे।
إِلَّا مَن رَّحِمَ رَبُّكَ ۚ وَلِذَٰلِكَ خَلَقَهُمْ ۗ وَتَمَّتْ كَلِمَةُ رَبِّكَ لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ (119)
परन्तु जिसपर आपका पालनहार दया करे और इसीके लिए उन्हें पैदा किया है[1] और आपके पालनहार की बात पूरी हो गयी कि मैं नरक को सब जिन्नों तथा मानवों से अवश्य भर दूँगा[2]।
وَكُلًّا نَّقُصُّ عَلَيْكَ مِنْ أَنبَاءِ الرُّسُلِ مَا نُثَبِّتُ بِهِ فُؤَادَكَ ۚ وَجَاءَكَ فِي هَٰذِهِ الْحَقُّ وَمَوْعِظَةٌ وَذِكْرَىٰ لِلْمُؤْمِنِينَ (120)
और (हे नबी!) ये नबियों की सब कथाएं हम आपको सुना रहे हैं, जिनके द्वारा आपके दिल को सुदृढ़ कर दें और इस विषय में आपके पास सत्य आ गया है और ईमान वालों के लिए एक शिक्षा और चेतावनी है।
وَقُل لِّلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ اعْمَلُوا عَلَىٰ مَكَانَتِكُمْ إِنَّا عَامِلُونَ (121)
और (हे नबी!) आप उनसे कह दें, जो ईमान नहीं लाते कि तुम अपने स्थान पर काम करते रहो। हम अपने स्थान पर काम करते हैं।
وَانتَظِرُوا إِنَّا مُنتَظِرُونَ (122)
तथा तुम प्रतीक्षा[1] करो, हमभी प्रतीक्षा करने वाले हैं।
وَلِلَّهِ غَيْبُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَإِلَيْهِ يُرْجَعُ الْأَمْرُ كُلُّهُ فَاعْبُدْهُ وَتَوَكَّلْ عَلَيْهِ ۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ (123)
अल्लाह ही के अधिकार में आकाशों तथा धरती की छिपी हुई चीज़ों का ज्ञान है और प्रत्येक विषय उसी की ओर लोटाये जाते हैं। अतः आप उसी की इबादत (वंदना) करें और उसीपर निर्भर रहें। आपका पालनहार उससे अचेत नहीं है, जो तुम कर रहे हो।
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