إِنَّا فَتَحْنَا لَكَ فَتْحًا مُّبِينًا (1) हे नबी! हमने विजय[1] प्रदान कर दी आपको खुली विजय। |
لِّيَغْفِرَ لَكَ اللَّهُ مَا تَقَدَّمَ مِن ذَنبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ وَيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكَ وَيَهْدِيَكَ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا (2) ताकि क्षमा कर दे[1] अल्लाह आपके लिए, आपके अगले तथा पिछले दोषों को तथा पूरा करे अपना पुरस्कार, आपके ऊपर और दिखाये आपको सीधी राह। |
وَيَنصُرَكَ اللَّهُ نَصْرًا عَزِيزًا (3) तथा अल्लाह आपकी सहायता करे भरपूर सहायता। |
هُوَ الَّذِي أَنزَلَ السَّكِينَةَ فِي قُلُوبِ الْمُؤْمِنِينَ لِيَزْدَادُوا إِيمَانًا مَّعَ إِيمَانِهِمْ ۗ وَلِلَّهِ جُنُودُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا (4) वही है, जिसने उतारी शान्ति ईमान वालों के दिलों में, ताकि अधिक हो जाये उनका ईमान अपने ईमान के साथ तथा अल्लाह ही की हैं, आकाशों तथा धरती की सेनायें तथा अल्लाह सब कुछ और सब गुणों को जानने वाला है। |
لِّيُدْخِلَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَيُكَفِّرَ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عِندَ اللَّهِ فَوْزًا عَظِيمًا (5) ताकि वह प्रवेश कराये ईमान वाले पुरुषों तथा स्त्रियों को ऐसे स्वर्गों में, बह रही हैं जिनमें नहरें और वे सदैव रहेंगे उनमें और ताकि दूर कर दे उनसे, उनकी बुराईयों को और अल्लाह के यहाँ यही बहुत बड़ी सफलता है। |
وَيُعَذِّبَ الْمُنَافِقِينَ وَالْمُنَافِقَاتِ وَالْمُشْرِكِينَ وَالْمُشْرِكَاتِ الظَّانِّينَ بِاللَّهِ ظَنَّ السَّوْءِ ۚ عَلَيْهِمْ دَائِرَةُ السَّوْءِ ۖ وَغَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَلَعَنَهُمْ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَهَنَّمَ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا (6) तथा यातना दे मुनाफ़िक़ पुरुषों तथा स्त्रियों को, जो बुरा विचार रखने वाले हैं अल्लाह के संबंध में। उन्हीं पर बुरी आपदा आ पड़ी तथा अल्लाह का प्रकोप हुआ उनपर और उसने धिक्कार दिया उन्हें तथा तैयार कर दी उनके लिए नरक और वह बुरा जाने का स्थान है। |
وَلِلَّهِ جُنُودُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا (7) तथा अल्लाह ही की हैं आकाशों तथा धरती की सेनायें और अल्लाह प्रबल तथा सब गुणों को जानने वाला है। |
إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ شَاهِدًا وَمُبَشِّرًا وَنَذِيرًا (8) (हे नबी!) हमने भेजा है आपको गवाह बनाकर तथा शुभ सूचना देने एवं सावधान करने वाला बनाकर। |
لِّتُؤْمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَتُعَزِّرُوهُ وَتُوَقِّرُوهُ وَتُسَبِّحُوهُ بُكْرَةً وَأَصِيلًا (9) ताकि तुम ईमान लाओ अल्लाह एवं उसके रसूल पर और सहायता करो आपकी तथा आदर करो आपका और अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करते रहो, प्रातः तथा संध्या। |
إِنَّ الَّذِينَ يُبَايِعُونَكَ إِنَّمَا يُبَايِعُونَ اللَّهَ يَدُ اللَّهِ فَوْقَ أَيْدِيهِمْ ۚ فَمَن نَّكَثَ فَإِنَّمَا يَنكُثُ عَلَىٰ نَفْسِهِ ۖ وَمَنْ أَوْفَىٰ بِمَا عَاهَدَ عَلَيْهُ اللَّهَ فَسَيُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا (10) (हे नबी!) जो बैअत कर रहे हैं आपसे, वे वास्तव[1] में बैअत कर रहे हैं अल्लाह से। अल्लाह का हाथ उनके हाथों के ऊपर है। फिर जिसने वचन तोड़ा, तो वह अपने ऊपर ही वचन तोड़ेगा तथा जिसने पूरा किया जो वचन अल्लाह से किया है, तो वह उसे बड़ा प्रतिफल (बदला) प्रदान करेगा। |
سَيَقُولُ لَكَ الْمُخَلَّفُونَ مِنَ الْأَعْرَابِ شَغَلَتْنَا أَمْوَالُنَا وَأَهْلُونَا فَاسْتَغْفِرْ لَنَا ۚ يَقُولُونَ بِأَلْسِنَتِهِم مَّا لَيْسَ فِي قُلُوبِهِمْ ۚ قُلْ فَمَن يَمْلِكُ لَكُم مِّنَ اللَّهِ شَيْئًا إِنْ أَرَادَ بِكُمْ ضَرًّا أَوْ أَرَادَ بِكُمْ نَفْعًا ۚ بَلْ كَانَ اللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا (11) (हे नबी!) वे[1] शीघ्र ही आपसे कहेंगे, जो पीछे छोड़ दिये गये बद्दुओं में से कि हम लगे रह गये अपने धनों तथा परिवार में। अतः, आप क्षमा की प्रार्थना कर दें हमारे लिए। वे अपने मुखों से वो बात कहेंगे, जो उनके दिलों में नहीं है। आप उनसे कहिये कि कौन है, जो अधिकार रखता हो तुम्हारे लिए, अल्लाह के सामने किसी चीज़ का, यदि अल्लाह तुम्हें कोई हानि पहुँचाना चाहे या कोई लाभ पहुँचाना चाहे? बल्कि अल्लाह सूचित है उससे, जो तुम कर रहे हो। |
بَلْ ظَنَنتُمْ أَن لَّن يَنقَلِبَ الرَّسُولُ وَالْمُؤْمِنُونَ إِلَىٰ أَهْلِيهِمْ أَبَدًا وَزُيِّنَ ذَٰلِكَ فِي قُلُوبِكُمْ وَظَنَنتُمْ ظَنَّ السَّوْءِ وَكُنتُمْ قَوْمًا بُورًا (12) बल्कि, तुमने सोचा था कि कदापि वापस नहीं आयेंगे रसूल और न ईमान वाले, अपने परिजनों की ओर, कभी भी और भली लगी ये बात तुम्हारे दिलों को और तुमने बुरी सोच सोची और थे ही तुम विनाश होने वाले लोग। |
وَمَن لَّمْ يُؤْمِن بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ فَإِنَّا أَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ سَعِيرًا (13) और जो ईमान नहीं लाये अल्लाह तथा उसके रसूल पर, तो हमने तैयार कर रखी है काफ़िरों के लिए दहकती अग्नि। |
وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ يَغْفِرُ لِمَن يَشَاءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاءُ ۚ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا (14) अल्लाह के लिए है आकाशों तथा धरती का राज्य। वह क्षमा कर दे जिसे चाहे और यातना दे जिसे चाहे और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है। |
سَيَقُولُ الْمُخَلَّفُونَ إِذَا انطَلَقْتُمْ إِلَىٰ مَغَانِمَ لِتَأْخُذُوهَا ذَرُونَا نَتَّبِعْكُمْ ۖ يُرِيدُونَ أَن يُبَدِّلُوا كَلَامَ اللَّهِ ۚ قُل لَّن تَتَّبِعُونَا كَذَٰلِكُمْ قَالَ اللَّهُ مِن قَبْلُ ۖ فَسَيَقُولُونَ بَلْ تَحْسُدُونَنَا ۚ بَلْ كَانُوا لَا يَفْقَهُونَ إِلَّا قَلِيلًا (15) वो लोग जो पीछे छोड़ दिये गये, कहेंगे, जब तुम चलोगे ग़नीमतों की ओर ताकि उन्हें प्राप्त करो कि हमें (भी) अपने साथ[1] चलने दो। वे चाहते हैं कि बदल दें अल्लाह के आदेश को। आप कह दें कि कदापि हमारे साथ न चल। इसी प्रकार, कहा है अल्लाह ने इससे पहले। फिर वह कहेंगे कि बल्कि तुम द्वेष (जलन) रखते हो, हम से। बल्कि, वे कम ही बात समझते हैं। |
قُل لِّلْمُخَلَّفِينَ مِنَ الْأَعْرَابِ سَتُدْعَوْنَ إِلَىٰ قَوْمٍ أُولِي بَأْسٍ شَدِيدٍ تُقَاتِلُونَهُمْ أَوْ يُسْلِمُونَ ۖ فَإِن تُطِيعُوا يُؤْتِكُمُ اللَّهُ أَجْرًا حَسَنًا ۖ وَإِن تَتَوَلَّوْا كَمَا تَوَلَّيْتُم مِّن قَبْلُ يُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا أَلِيمًا (16) आप कह दें, पीछे छोड़ दिये गये बद्दुओं से कि शीघ्र तुम बुलाये जाओगे, एक अति योध्दा जाति (से युध्द) की ओर।[1] जिनसे तुम युध्द करोगे अथवा वह इस्लाम ले आयें। तो यदि तुम आज्ञा का पालन करोगे, तो प्रदान करेगा अल्लाह तुम्हें उत्तम बदला तथा यदि तुम विमुख हो गये, जैसे इससे पूर्व (मक्का जाने से) विमुख हो गये, तो तुम्हें यातना देगा दुःखदायी यातना। |
لَّيْسَ عَلَى الْأَعْمَىٰ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْأَعْرَجِ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْمَرِيضِ حَرَجٌ ۗ وَمَن يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ يُدْخِلْهُ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ وَمَن يَتَوَلَّ يُعَذِّبْهُ عَذَابًا أَلِيمًا (17) नहीं है अंधे पर कोई दोष,[1] न लंगड़े पर कोई दोष और न रोगी पर कोई दोष तथा जो आज्ञा का पालन करेगा अल्लाह एवं उसके रसूल की, तो वह प्रवेश देगा ऐसे स्वर्गों में, बहती हैं जिनमें नहरें तथा जो मुख फेरेगा, तो वह यातना देगा उसे, दुःखदायी यातना। |
۞ لَّقَدْ رَضِيَ اللَّهُ عَنِ الْمُؤْمِنِينَ إِذْ يُبَايِعُونَكَ تَحْتَ الشَّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِي قُلُوبِهِمْ فَأَنزَلَ السَّكِينَةَ عَلَيْهِمْ وَأَثَابَهُمْ فَتْحًا قَرِيبًا (18) अल्लाह प्रसन्न हो गया ईमान वालों से, जब वे आप (नबी) से बैअत कर रहे थे, वृक्ष के नीचे। उसने जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था, इसलिए उतार दी शान्ति उनपर तथा उन्हें बदले में दी समीप की विजय। |
وَمَغَانِمَ كَثِيرَةً يَأْخُذُونَهَا ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا (19) तथा बहुत-से ग़नीमत के धन (परिहार), जो वह प्राप्त करेंगे और अल्लाह प्रभुत्वशाली, गुणी है। |
وَعَدَكُمُ اللَّهُ مَغَانِمَ كَثِيرَةً تَأْخُذُونَهَا فَعَجَّلَ لَكُمْ هَٰذِهِ وَكَفَّ أَيْدِيَ النَّاسِ عَنكُمْ وَلِتَكُونَ آيَةً لِّلْمُؤْمِنِينَ وَيَهْدِيَكُمْ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا (20) अल्लाह ने वचन दिया है तुम्हें बहुत-से परिहार (ग़नीमतों) का, जिसे तुम प्राप्त करोगे। तो शीघ्र प्रदान कर दी तुम्हें ये (ख़ैबर की ग़नीमत) तथा रोक दिया लोगों के हाथों को तुमसे, ताकि[1] वह एक निशानी बन जाये ईमान वालों के लिए और तुम्हें सीधी राह चलाये। |
وَأُخْرَىٰ لَمْ تَقْدِرُوا عَلَيْهَا قَدْ أَحَاطَ اللَّهُ بِهَا ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرًا (21) और दूसरी ग़नीमतें भी, जो तुम प्राप्त नहीं कर सके हो, अल्लाह ने उन्हें नियंत्रण में कर रखा है तथा अल्लाह जो कुछ चाहे, कर सकता है। |
وَلَوْ قَاتَلَكُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوَلَّوُا الْأَدْبَارَ ثُمَّ لَا يَجِدُونَ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا (22) और यदि तुमसे युध्द करते जो काफ़िर[1] हैं, तो अवश्य पीछा दिखा देते, फिर नहीं पाते कोई संरक्षक और न कोई सहायक। |
سُنَّةَ اللَّهِ الَّتِي قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلُ ۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّةِ اللَّهِ تَبْدِيلًا (23) ये अल्लाह का नियम है उनमें, जो चला आ रहा है पहले से और तुम कदापि नहीं पाओगे अल्लाह के नियम में परिवर्तन। |
وَهُوَ الَّذِي كَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ عَنْهُم بِبَطْنِ مَكَّةَ مِن بَعْدِ أَنْ أَظْفَرَكُمْ عَلَيْهِمْ ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرًا (24) तथा वही है, जिसने रोक दिया उनके हाथों को तुमसे तथा तुम्हारे हाथों को उनसे मक्का की वादी[1] में, इसके पश्चात् कि तुम्हें विजय प्रदान कर दी, उनपर तथा अल्लाह देख रहा था, जो कुछ तुम कर रहे थे। |
هُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا وَصَدُّوكُمْ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَالْهَدْيَ مَعْكُوفًا أَن يَبْلُغَ مَحِلَّهُ ۚ وَلَوْلَا رِجَالٌ مُّؤْمِنُونَ وَنِسَاءٌ مُّؤْمِنَاتٌ لَّمْ تَعْلَمُوهُمْ أَن تَطَئُوهُمْ فَتُصِيبَكُم مِّنْهُم مَّعَرَّةٌ بِغَيْرِ عِلْمٍ ۖ لِّيُدْخِلَ اللَّهُ فِي رَحْمَتِهِ مَن يَشَاءُ ۚ لَوْ تَزَيَّلُوا لَعَذَّبْنَا الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا (25) ये वे लोग हैं, जिन्होंने कुफ़्र किया और रोक दिया तुम्हें मस्जिदे ह़राम से तथा बलि के पशु को, उनके स्थान तक पुहुँचने से रोक दिया और यदि ये भय न होता कि तुम कुछ मुसलमान पुरुषों तथा कुछ मुसलमान स्त्रियों को, जिन्हें तुम नहीं जानते थे, रौंद दोगे जिससे तुमपर दोष आ जायेगा[1] (तो युध्द से न रोका जाता)। ताकि प्रवेश कराये अल्लाह, जिसे चाहे, अपनी दया में। यदि वे (मुसलमान) अलग होते, तो हम अवश्य यातना देते उन्हें, जो काफ़िर हो गये उनमें से, दुःखदायी यातना। |
إِذْ جَعَلَ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي قُلُوبِهِمُ الْحَمِيَّةَ حَمِيَّةَ الْجَاهِلِيَّةِ فَأَنزَلَ اللَّهُ سَكِينَتَهُ عَلَىٰ رَسُولِهِ وَعَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَأَلْزَمَهُمْ كَلِمَةَ التَّقْوَىٰ وَكَانُوا أَحَقَّ بِهَا وَأَهْلَهَا ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا (26) जब काफ़िरों ने अपने दिलों में पक्षपात को स्थान दे दिया, जो वास्तव में जाहिलाना पक्षपात है, तो अल्लाह ने अपने रसूल पर तथा ईमान वालों पर शान्ति उतार दी तथा उन्हें पाबन्द रखा सदाचार की बात का तथा वे[1] उसके अधिक योग्य और पात्र थे तथा अल्लाह प्रत्येक वस्तु को भली-भाँति जानने वाला है। |
لَّقَدْ صَدَقَ اللَّهُ رَسُولَهُ الرُّؤْيَا بِالْحَقِّ ۖ لَتَدْخُلُنَّ الْمَسْجِدَ الْحَرَامَ إِن شَاءَ اللَّهُ آمِنِينَ مُحَلِّقِينَ رُءُوسَكُمْ وَمُقَصِّرِينَ لَا تَخَافُونَ ۖ فَعَلِمَ مَا لَمْ تَعْلَمُوا فَجَعَلَ مِن دُونِ ذَٰلِكَ فَتْحًا قَرِيبًا (27) निश्चय अल्लाह ने अपने रसूल को सच्चा सपना दिखाया, सच के अनुसार। तुम अवश्य प्रवेश करोगे मस्जिदे ह़राम में, यदि अल्लाह ने चाहा, निर्भय होकर, अपने सिर मुंडाते तथा बाल कतरवाते हुए, तुम्हें किसी प्रकार का भय नहीं होगा,[1] वह जानता है जिसे तुम नहीं जानते। इसिलए प्रदान कर दी तुम्हें इस (मस्जिदे ह़राम में प्रवेश) से पहले, एक समीप (जल्दी) की[2] विजय। |
هُوَ الَّذِي أَرْسَلَ رَسُولَهُ بِالْهُدَىٰ وَدِينِ الْحَقِّ لِيُظْهِرَهُ عَلَى الدِّينِ كُلِّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ شَهِيدًا (28) वही है, जिसने भेजा अपने रसूल को मार्गदर्शन एवं सत्धर्म के साथ, ताकि उसे प्रभुत्व प्रदान कर दे प्रत्येक धर्म पर तथा प्रयाप्त है (इसपर) अल्लाह का गवाह होना। |
مُّحَمَّدٌ رَّسُولُ اللَّهِ ۚ وَالَّذِينَ مَعَهُ أَشِدَّاءُ عَلَى الْكُفَّارِ رُحَمَاءُ بَيْنَهُمْ ۖ تَرَاهُمْ رُكَّعًا سُجَّدًا يَبْتَغُونَ فَضْلًا مِّنَ اللَّهِ وَرِضْوَانًا ۖ سِيمَاهُمْ فِي وُجُوهِهِم مِّنْ أَثَرِ السُّجُودِ ۚ ذَٰلِكَ مَثَلُهُمْ فِي التَّوْرَاةِ ۚ وَمَثَلُهُمْ فِي الْإِنجِيلِ كَزَرْعٍ أَخْرَجَ شَطْأَهُ فَآزَرَهُ فَاسْتَغْلَظَ فَاسْتَوَىٰ عَلَىٰ سُوقِهِ يُعْجِبُ الزُّرَّاعَ لِيَغِيظَ بِهِمُ الْكُفَّارَ ۗ وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ مِنْهُم مَّغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا (29) मुह़म्मद[1] अल्लाह के रसूल हैं तथा जो लोग आपके साथ हैं, वे काफ़िरों के लिए कड़े और आपस में दयालु हैं। तुम देखोगे उन्हें, रुकूअ-सज्दा करते हुए, वे खोज कर रहे होंगे अल्लाह की दया तथा प्रसन्नता की। उनके लक्षण, उनके चेहरों पर सज्दों के चिन्ह होंगे। ये उनकी विशेषता, तौरात में है तथा उनके गुण, इंजील में उस खेती के समान बताये गये हैं, जिसने निकाला अपना अंकुर, फिर उसे बल दिया, फिर वह कड़ा हो गया, फिर वह (खेती) खड़ी हो गयी अपने तने पर। प्रसन्न करने लगी किसानों को, ताकि काफ़िर उनसे जलें। वचन दे रखा है अल्लाह ने उन लोगों को, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उनमें से क्षमा तथा बड़े प्रतिफल का। |