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سورة الحجر باللغة الهندية

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ترجمة معاني سورة الحجر باللغة الهندية - Hindi

القرآن باللغة الهندية - سورة الحجر مترجمة إلى اللغة الهندية، Surah Hijr in Hindi. نوفر ترجمة دقيقة سورة الحجر باللغة الهندية - Hindi, الآيات 99 - رقم السورة 15 - الصفحة 262.

بسم الله الرحمن الرحيم

الر ۚ تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ وَقُرْآنٍ مُّبِينٍ (1)
अलिफ़, लाम, रा। वो इस पुस्कत तथा खुले क़ुर्आन की आयतें हैं।
رُّبَمَا يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْ كَانُوا مُسْلِمِينَ (2)
(एक समय आयेगा) जब काफ़िर ये कामना करेंगे कि क्या ही अच्छा होता, यदि वे मुसलामन[1] होते
ذَرْهُمْ يَأْكُلُوا وَيَتَمَتَّعُوا وَيُلْهِهِمُ الْأَمَلُ ۖ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ (3)
(हे नबी!)आप उन्हें छोड़ दें, वे खाते तथा आनन्द लेते रहें और उन्हें आशा निश्चेत किये रहे, फिर शीघ्र ही वे जान लेंगे[1]।
وَمَا أَهْلَكْنَا مِن قَرْيَةٍ إِلَّا وَلَهَا كِتَابٌ مَّعْلُومٌ (4)
और हमने जिस बस्ती को भी ध्वस्त किया, उसके लिए एक निश्चित अवधि अंत थी।
مَّا تَسْبِقُ مِنْ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسْتَأْخِرُونَ (5)
कोई जाति न अपनी निश्चित अवधि से आगे जा सकती है और न पीछे रह सकती है।
وَقَالُوا يَا أَيُّهَا الَّذِي نُزِّلَ عَلَيْهِ الذِّكْرُ إِنَّكَ لَمَجْنُونٌ (6)
तथा उन (काफ़िरों) ने कहाः हे वह व्यक्ति जिसपर ये शिक्षा (क़ुर्आन) उतारी गयी है! वास्तव में, तू पागल है।
لَّوْ مَا تَأْتِينَا بِالْمَلَائِكَةِ إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ (7)
क्यों हमारे पास फ़रिश्तों को नहीं लाता, यदि तू सचों में से है
مَا نُنَزِّلُ الْمَلَائِكَةَ إِلَّا بِالْحَقِّ وَمَا كَانُوا إِذًا مُّنظَرِينَ (8)
जबकि हम फ़रिश्तों को सत्य निर्णय के साथ ही[1] उतारते हैं और उन्हें उस समय कोई अवसर नहीं दिया जाता।
إِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ (9)
वास्तव में, हमने ही ये शिक्षा (क़ुर्आन) उतारी है और हम ही इसके रक्षक[1] हैं।
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ فِي شِيَعِ الْأَوَّلِينَ (10)
और हमने आपसे पहले भी प्राचीन (विगत) जातियों में रसूल भेजे।
وَمَا يَأْتِيهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ (11)
और उनके पास जो भी रसूल आया, वे उसके साथ परिहास करते रहे।
كَذَٰلِكَ نَسْلُكُهُ فِي قُلُوبِ الْمُجْرِمِينَ (12)
इसी प्रकार, हम इसे[1] अपराधियों के दिलों में पिरो देते हैं।
لَا يُؤْمِنُونَ بِهِ ۖ وَقَدْ خَلَتْ سُنَّةُ الْأَوَّلِينَ (13)
वे उसपर ईमान नहीं लाते और प्रथम जातियों से यही रीति चली आ रही है।
وَلَوْ فَتَحْنَا عَلَيْهِم بَابًا مِّنَ السَّمَاءِ فَظَلُّوا فِيهِ يَعْرُجُونَ (14)
और यदि हम उनपर आकाश का कोई द्वार खोल देते, फिर वे उसमें चढ़ने लगते।
لَقَالُوا إِنَّمَا سُكِّرَتْ أَبْصَارُنَا بَلْ نَحْنُ قَوْمٌ مَّسْحُورُونَ (15)
तबभी वे यही कहते कि हमारी आँखें धोखा खा रही हैं, बल्कि हमपर जादू कर दिया गया है।
وَلَقَدْ جَعَلْنَا فِي السَّمَاءِ بُرُوجًا وَزَيَّنَّاهَا لِلنَّاظِرِينَ (16)
हमने आकाश में राशि-चक्र बनाये हैं और उसे देखने वालों के लिए सुसज्जित किया है।
وَحَفِظْنَاهَا مِن كُلِّ شَيْطَانٍ رَّجِيمٍ (17)
और उसे प्रत्येक धिक्कारे हुए शैतान से सुरक्षित किया है।
إِلَّا مَنِ اسْتَرَقَ السَّمْعَ فَأَتْبَعَهُ شِهَابٌ مُّبِينٌ (18)
परन्तु जो (शैतान) चोरी से सुनना चाहे, तो एक खुली ज्वाला उसका पीछा करती[1] है।
وَالْأَرْضَ مَدَدْنَاهَا وَأَلْقَيْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ شَيْءٍ مَّوْزُونٍ (19)
और हमने धरती को फैलाया और उसमें पर्वत बना दिये और उसमें हमने प्रत्येक उचित चीज़ें उगायीं।
وَجَعَلْنَا لَكُمْ فِيهَا مَعَايِشَ وَمَن لَّسْتُمْ لَهُ بِرَازِقِينَ (20)
और हमने उसमें तुम्हारे लिए जीवन के संसाधन बना दिये तथा उनके लिए जिनके जीविका दाता तुम नहीं हो।
وَإِن مِّن شَيْءٍ إِلَّا عِندَنَا خَزَائِنُهُ وَمَا نُنَزِّلُهُ إِلَّا بِقَدَرٍ مَّعْلُومٍ (21)
और कोई चीज़ ऐसी नहीं है, जिसके कोष हमारे पास न हों और हम उसे एक निश्चित मात्रा ही में उतारते हैं।
وَأَرْسَلْنَا الرِّيَاحَ لَوَاقِحَ فَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَسْقَيْنَاكُمُوهُ وَمَا أَنتُمْ لَهُ بِخَازِنِينَ (22)
और हमने जलभरी वायुओं को भेजा, फिर आकाश से जल बरसाया और उसे तुम्हें पिलाया तथा तुम उसके कोषाधिकारी नहीं हो।
وَإِنَّا لَنَحْنُ نُحْيِي وَنُمِيتُ وَنَحْنُ الْوَارِثُونَ (23)
तथा हम ही जीवन देते तथा मारते हैं और हम ही सबके उत्तराधिकारी हैं।
وَلَقَدْ عَلِمْنَا الْمُسْتَقْدِمِينَ مِنكُمْ وَلَقَدْ عَلِمْنَا الْمُسْتَأْخِرِينَ (24)
तथा तुममें से विगत लोगों को जानते हैं और भविष्य के लोगों को भी जानते हैं।
وَإِنَّ رَبَّكَ هُوَ يَحْشُرُهُمْ ۚ إِنَّهُ حَكِيمٌ عَلِيمٌ (25)
और वास्तव, में आपका पालनहार ही उन्हें एकत्र करेगा[1], निश्चय वह सब गुण और सब कुछ जानने वाला है।
وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنسَانَ مِن صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَإٍ مَّسْنُونٍ (26)
और हमने मनुष्य को सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे बनाया।
وَالْجَانَّ خَلَقْنَاهُ مِن قَبْلُ مِن نَّارِ السَّمُومِ (27)
और इससे पहले जिन्नों को हमने अग्नि की ज्वाला से पैदा किया।
وَإِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلَائِكَةِ إِنِّي خَالِقٌ بَشَرًا مِّن صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَإٍ مَّسْنُونٍ (28)
और (याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहाः मैं एक मनुष्य उत्पन्न करने वाला हूँ, सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे से।
فَإِذَا سَوَّيْتُهُ وَنَفَخْتُ فِيهِ مِن رُّوحِي فَقَعُوا لَهُ سَاجِدِينَ (29)
तो जब मैं उसे पूरा बना लूँ और उसमें अपनी आत्मा फूँक दूँ, तो उसके लिए सज्दे में गिर जाना[1]।
فَسَجَدَ الْمَلَائِكَةُ كُلُّهُمْ أَجْمَعُونَ (30)
अतः उनसब फ़रिश्तों ने सज्दा किया।
إِلَّا إِبْلِيسَ أَبَىٰ أَن يَكُونَ مَعَ السَّاجِدِينَ (31)
इब्लीस के सिवा। उसने सज्दा करने वालों का साथ देने से इन्कार कर दिया।
قَالَ يَا إِبْلِيسُ مَا لَكَ أَلَّا تَكُونَ مَعَ السَّاجِدِينَ (32)
अल्लाह ने पूछाः हे इब्लीस! तुझे क्या हुआ कि सज्दा करने वालों का साथ नहीं दिया
قَالَ لَمْ أَكُن لِّأَسْجُدَ لِبَشَرٍ خَلَقْتَهُ مِن صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَإٍ مَّسْنُونٍ (33)
उसने कहाः मैं ऐसा नहीं हूँ कि एक मनुष्य को सज्दा करूँ, जिसे तूने सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे से पैदा किया है।
قَالَ فَاخْرُجْ مِنْهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٌ (34)
अल्लाह ने कहाः यहाँ से निकल जा, वास्तव में, तू धिक्कारा हुआ है।
وَإِنَّ عَلَيْكَ اللَّعْنَةَ إِلَىٰ يَوْمِ الدِّينِ (35)
और तुझपर धिक्कार है, प्रतिकार (प्रलय) के दिन तक।
قَالَ رَبِّ فَأَنظِرْنِي إِلَىٰ يَوْمِ يُبْعَثُونَ (36)
(इब्लीस) ने कहाः[1] मेरे पालनहार! तू फिर मुझे उस दिन तक अवसर दे, जब सभी पुनः जीवित किये जायेंगे।
قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ الْمُنظَرِينَ (37)
अल्लाह ने कहाः तुझे अवसर दे दिया गया है।
إِلَىٰ يَوْمِ الْوَقْتِ الْمَعْلُومِ (38)
विध्दित समय के दिन तक के लिए।
قَالَ رَبِّ بِمَا أَغْوَيْتَنِي لَأُزَيِّنَنَّ لَهُمْ فِي الْأَرْضِ وَلَأُغْوِيَنَّهُمْ أَجْمَعِينَ (39)
वह बोलाः मेरे पालनहार! तेरे, मुझको कुपथ कर देने के कारण, मैं अवश्य उनके लिए धरती में (तेरी अवज्ञा को) मनोरम बना दूँगा और उनसभी को कुपथ कर दूँगा।
إِلَّا عِبَادَكَ مِنْهُمُ الْمُخْلَصِينَ (40)
उनमें से तेरे शुध्द भक्तों के सिवा।
قَالَ هَٰذَا صِرَاطٌ عَلَيَّ مُسْتَقِيمٌ (41)
अल्लाह ने कहाः यही मुझतक (पहुँचने की) सीधी राह है।
إِنَّ عِبَادِي لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطَانٌ إِلَّا مَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْغَاوِينَ (42)
वस्तुतः, मेरे भक्तों पर तेरा कोई अधिकार नहीं[1] चलेगा, सिवाय उसके जो कुपथों में से तेरा अनुसरण करे।
وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمَوْعِدُهُمْ أَجْمَعِينَ (43)
और वास्तव में, उनसबके लिए नरक का वचन है।
لَهَا سَبْعَةُ أَبْوَابٍ لِّكُلِّ بَابٍ مِّنْهُمْ جُزْءٌ مَّقْسُومٌ (44)
उस (नरक) के सात द्वार हैं और उनमें से प्रत्येक द्वार के लिए एक विभाजित भाग[1] है।
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ (45)
वास्तव में, आज्ञाकारी लोग स्वर्गों तथा स्रोतों में होंगे।
ادْخُلُوهَا بِسَلَامٍ آمِنِينَ (46)
(उनसे कहा जायेगा) इसमें प्रवेश कर जाओ, शान्ति के साथ निर्भय होकर।
وَنَزَعْنَا مَا فِي صُدُورِهِم مِّنْ غِلٍّ إِخْوَانًا عَلَىٰ سُرُرٍ مُّتَقَابِلِينَ (47)
और हम निकाल देंगे उनके दिलों में जो कुछ बैर होगा। वे भाई-भाई होकर एक-दूसरे के सम्मुख तख़्तों के ऊपर रहेंगे।
لَا يَمَسُّهُمْ فِيهَا نَصَبٌ وَمَا هُم مِّنْهَا بِمُخْرَجِينَ (48)
न उसमें उन्हें कोई थकान होगी और न वहाँ से निकाले जायेंगे।
۞ نَبِّئْ عِبَادِي أَنِّي أَنَا الْغَفُورُ الرَّحِيمُ (49)
(हे नबी!) आप मेरे भक्तों को सूचित कर दें कि वास्तव में, मैं बड़ा क्षमाशील दयावान्[1] हूँ।
وَأَنَّ عَذَابِي هُوَ الْعَذَابُ الْأَلِيمُ (50)
और मेरी यातना ही दुःखदायी यातना है।
وَنَبِّئْهُمْ عَن ضَيْفِ إِبْرَاهِيمَ (51)
और आप उन्हें इब्राहीम के अतिथियों के बारे में सूचित कर दें।
إِذْ دَخَلُوا عَلَيْهِ فَقَالُوا سَلَامًا قَالَ إِنَّا مِنكُمْ وَجِلُونَ (52)
जब वे इब्राहीम के पास आये, तो सलाम किया। उसने कहाः वास्तव में, हम तुमसे डर रहे हैं।
قَالُوا لَا تَوْجَلْ إِنَّا نُبَشِّرُكَ بِغُلَامٍ عَلِيمٍ (53)
उन्होंने कहाः डरो नहीं, हम तुम्हें एक ज्ञानी बालक की शुभ सूचना दे रहे हैं।
قَالَ أَبَشَّرْتُمُونِي عَلَىٰ أَن مَّسَّنِيَ الْكِبَرُ فَبِمَ تُبَشِّرُونَ (54)
उसने कहाः क्या तुमने मुझे इस बुढ़ापे में शुभ सूचना दी है, तुम मुझे ये शुभ सूचना कैसे दे रहे हो
قَالُوا بَشَّرْنَاكَ بِالْحَقِّ فَلَا تَكُن مِّنَ الْقَانِطِينَ (55)
उन्होंने कहाः हमने तुम्हें सत्य शुभ सूचना दी है, अतः तुम निराश न हो।
قَالَ وَمَن يَقْنَطُ مِن رَّحْمَةِ رَبِّهِ إِلَّا الضَّالُّونَ (56)
(इब्राहीम) ने कहाः अपने पालनहार की दया से निराश, केवल कुपथ लोग ही हुआ करते हैं।
قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ أَيُّهَا الْمُرْسَلُونَ (57)
उसने कहाः हे अल्लाह के भेजे हुए फ़रिश्तो! तुम्हारा अभियान क्या है
قَالُوا إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَىٰ قَوْمٍ مُّجْرِمِينَ (58)
उन्होंने उत्तर दिया कि हम एक अपराधी जाति के पास भेजे गये हैं।
إِلَّا آلَ لُوطٍ إِنَّا لَمُنَجُّوهُمْ أَجْمَعِينَ (59)
लूत के घराने के सिवा, उनसभी को हम बचाने वाले हैं।
إِلَّا امْرَأَتَهُ قَدَّرْنَا ۙ إِنَّهَا لَمِنَ الْغَابِرِينَ (60)
परन्तु लूत की पत्नि के लिए हमने निर्णय किया है कि वह पीछे रह जाने वालों में होगी।
فَلَمَّا جَاءَ آلَ لُوطٍ الْمُرْسَلُونَ (61)
फिर जब लूत के घर भेजे हुए (फ़रिश्ते) आये।
قَالَ إِنَّكُمْ قَوْمٌ مُّنكَرُونَ (62)
तो लूत ने कहाः तुम (मेरे लिए) अपरिचित हो।
قَالُوا بَلْ جِئْنَاكَ بِمَا كَانُوا فِيهِ يَمْتَرُونَ (63)
उन्होंने कहाः डरो नहीं, बल्कि हम तुम्हारे पास वो (यातना) लाये हैं, जिसके बारे में वे संदेह कर रहे थे।
وَأَتَيْنَاكَ بِالْحَقِّ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ (64)
हम तुम्हारे पास सत्य लाये हैं और वास्तव में, हम सत्यवादी हैं।
فَأَسْرِ بِأَهْلِكَ بِقِطْعٍ مِّنَ اللَّيْلِ وَاتَّبِعْ أَدْبَارَهُمْ وَلَا يَلْتَفِتْ مِنكُمْ أَحَدٌ وَامْضُوا حَيْثُ تُؤْمَرُونَ (65)
अतः कुछ रात रह जाये, तो अपने घराने को लेकर निकल जाओ और तुम उनके पीछे रहो और तुममें से कोई फिरकर न देखे तथा चले जाओ, जहाँ आदेश दिया जा रहा है।
وَقَضَيْنَا إِلَيْهِ ذَٰلِكَ الْأَمْرَ أَنَّ دَابِرَ هَٰؤُلَاءِ مَقْطُوعٌ مُّصْبِحِينَ (66)
और हमने लूत को निर्णय सुना दिया कि भोर होते ही इनका उन्मूलन कर दिया जायेगा।
وَجَاءَ أَهْلُ الْمَدِينَةِ يَسْتَبْشِرُونَ (67)
और नगर वासी प्रसन्न होकर आ गये[1]।
قَالَ إِنَّ هَٰؤُلَاءِ ضَيْفِي فَلَا تَفْضَحُونِ (68)
लूत ने कहाः ये मेरे अतिथि हैं, अतः मेरा अपमान न करो।
وَاتَّقُوا اللَّهَ وَلَا تُخْزُونِ (69)
तथा अल्लाह से डरो और मेरा अनादर न करो।
قَالُوا أَوَلَمْ نَنْهَكَ عَنِ الْعَالَمِينَ (70)
उन्होंने कहाः क्या हमने तुम्हें विश्व वासियों से नहीं रोका[1] था
قَالَ هَٰؤُلَاءِ بَنَاتِي إِن كُنتُمْ فَاعِلِينَ (71)
लूत ने कहाः ये मेरी पुत्रियाँ हैं, यदि तुम कुछ करने वाले[1] हो।
لَعَمْرُكَ إِنَّهُمْ لَفِي سَكْرَتِهِمْ يَعْمَهُونَ (72)
हे नबी! आपकी आयु की शपथ[1]! वास्तव में, वे अपने उन्माद में बहक रहे थे।
فَأَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ مُشْرِقِينَ (73)
अंततः, सूर्योदय के समय उन्हें एक कड़ी ध्वनि ने पकड़ लिया।
فَجَعَلْنَا عَالِيَهَا سَافِلَهَا وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّن سِجِّيلٍ (74)
फिर हमने उस बस्ती के ऊपरी भाग को नीचे कर दिया और उनपर कंकरीले पत्थर बरसा दिये।
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّلْمُتَوَسِّمِينَ (75)
वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ हैं, प्रतिभाशालियों[1] के लिए।
وَإِنَّهَا لَبِسَبِيلٍ مُّقِيمٍ (76)
और वह (बस्ती) साधारण[1] मार्ग पर स्थित है।
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِّلْمُؤْمِنِينَ (77)
निःसंदेह इसमें बड़ी निशानी है, ईमान वलों के लिए।
وَإِن كَانَ أَصْحَابُ الْأَيْكَةِ لَظَالِمِينَ (78)
और वास्तव में, (ऐय्का) के[1] वासी अत्याचारी थे।
فَانتَقَمْنَا مِنْهُمْ وَإِنَّهُمَا لَبِإِمَامٍ مُّبِينٍ (79)
तो हमने उनसे बदला ले लिया और वे दोनों[1] ही साधारण मार्ग पर हैं।
وَلَقَدْ كَذَّبَ أَصْحَابُ الْحِجْرِ الْمُرْسَلِينَ (80)
और ह़िज्र के[1] लोगों ने रसूलों को झुठलाया।
وَآتَيْنَاهُمْ آيَاتِنَا فَكَانُوا عَنْهَا مُعْرِضِينَ (81)
और उन्हें हमने अपनी आयतें (निशानियाँ) दीं, तो वे उनसे विमुख ही रहे।
وَكَانُوا يَنْحِتُونَ مِنَ الْجِبَالِ بُيُوتًا آمِنِينَ (82)
वे शिलाकारी करके पर्वतों से घर बनाते और निर्भय होकर रहते थे।
فَأَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ مُصْبِحِينَ (83)
अन्ततः, उन्हें कड़ी ध्वनि ने भोर के समय पकड़ लिया।
فَمَا أَغْنَىٰ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَكْسِبُونَ (84)
और उनकी कमाई उनके कुछ काम न आयी।
وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ ۗ وَإِنَّ السَّاعَةَ لَآتِيَةٌ ۖ فَاصْفَحِ الصَّفْحَ الْجَمِيلَ (85)
और हमने आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है, सत्य के आधार पर ही उत्पन्न किया है और निश्चय प्रलय आनी है। अतः (हे नबी!) आप (उन्हें) भले तौर पर क्षमा कर दें।
إِنَّ رَبَّكَ هُوَ الْخَلَّاقُ الْعَلِيمُ (86)
वास्तव में, आपका पालनहार ही सबका स्रेष्टा, सर्वज्ञ है।
وَلَقَدْ آتَيْنَاكَ سَبْعًا مِّنَ الْمَثَانِي وَالْقُرْآنَ الْعَظِيمَ (87)
तथा (हे नबी!) हमने आपको सात ऐसी आयतें, जो बार-बार दुहराई जाती हैं और महा क़ुर्आन[1] प्रदान किया है।
لَا تَمُدَّنَّ عَيْنَيْكَ إِلَىٰ مَا مَتَّعْنَا بِهِ أَزْوَاجًا مِّنْهُمْ وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَاخْفِضْ جَنَاحَكَ لِلْمُؤْمِنِينَ (88)
और आप, उसकी ओर न देखें, जो सांसारिक लाभ का संसाधन हमने उनमें से विभिन्न प्रकार के लोगों को दे रखा है और न उनपर शोक करें और ईमान वालों के लिए सुशील रहें।
وَقُلْ إِنِّي أَنَا النَّذِيرُ الْمُبِينُ (89)
और कह दें कि मैं प्रत्यक्ष (खुली) चेतावनी[1] देने वाला हूँ।
كَمَا أَنزَلْنَا عَلَى الْمُقْتَسِمِينَ (90)
जैसे हमने खण्डन कारियों[1] पर (यातना) उतारी।
الَّذِينَ جَعَلُوا الْقُرْآنَ عِضِينَ (91)
जिन्होंने क़ुर्आन को खण्ड-खण्ड कर दिया[1]।
فَوَرَبِّكَ لَنَسْأَلَنَّهُمْ أَجْمَعِينَ (92)
तो शपथ है आपके पालनहार की। हम उनसे अवश्य पूछेंगे।
عَمَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ (93)
तुम क्या करते रहे
فَاصْدَعْ بِمَا تُؤْمَرُ وَأَعْرِضْ عَنِ الْمُشْرِكِينَ (94)
अतः आपको, जो आदेश दिया जा रहा है, उसे खोलकर सुना दें और मुश्रिकों (मिश्रमवादियों) की चिन्ता न करें।
إِنَّا كَفَيْنَاكَ الْمُسْتَهْزِئِينَ (95)
हम आपके लिए परिहास करने वालों को काफ़ी हैं।
الَّذِينَ يَجْعَلُونَ مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ ۚ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ (96)
जो अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य बना लेते हैं, तो उन्हें शीघ्र ज्ञान हो जायेगा।
وَلَقَدْ نَعْلَمُ أَنَّكَ يَضِيقُ صَدْرُكَ بِمَا يَقُولُونَ (97)
और हम जानते हैं कि उनकी बातों से आपका दिल संकुचित हो रहा है।
فَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ وَكُن مِّنَ السَّاجِدِينَ (98)
अतः आप अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करें तथा सज्दा करने वालों में रहें।
وَاعْبُدْ رَبَّكَ حَتَّىٰ يَأْتِيَكَ الْيَقِينُ (99)
और अपने पालनहार की इबादत (वंदना) करते रहें, यहाँ तक कि आपके पास विश्वास आ जाये[1]।
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70- المعارج71- نوح72- الجن
73- المزمل74- المدثر75- القيامة
76- الإنسان77- المرسلات78- النبأ
79- النازعات80- عبس81- التكوير
82- الإنفطار83- المطففين84- الانشقاق
85- البروج86- الطارق87- الأعلى
88- الغاشية89- الفجر90- البلد
91- الشمس92- الليل93- الضحى
94- الشرح95- التين96- العلق
97- القدر98- البينة99- الزلزلة
100- العاديات101- القارعة102- التكاثر
103- العصر104- الهمزة105- الفيل
106- قريش107- الماعون108- الكوثر
109- الكافرون110- النصر111- المسد
112- الإخلاص113- الفلق114- الناس