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سورة فصلت باللغة الهندية

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ترجمة معاني سورة فصلت باللغة الهندية - Hindi

القرآن باللغة الهندية - سورة فصلت مترجمة إلى اللغة الهندية، Surah Fussilat in Hindi. نوفر ترجمة دقيقة سورة فصلت باللغة الهندية - Hindi, الآيات 54 - رقم السورة 41 - الصفحة 477.

بسم الله الرحمن الرحيم

حم (1)
ह़ा, मीम।
تَنزِيلٌ مِّنَ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ (2)
अवतरित है अत्यंत कृपाशील, दयावान् की ओर से।
كِتَابٌ فُصِّلَتْ آيَاتُهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لِّقَوْمٍ يَعْلَمُونَ (3)
(ये ऐसी) पुस्तक है, सविस्तार वर्णित की गई हैं जिसकी आयतें। क़ुर्आन अरबी (भाषा में) है उनके लिए, जो ज्ञान रखते हों।
بَشِيرًا وَنَذِيرًا فَأَعْرَضَ أَكْثَرُهُمْ فَهُمْ لَا يَسْمَعُونَ (4)
वह शुभ सूचना देने तथा सचेत करने वाला है फिर भी मुँह फेर लिया है उनमें से अधिक्तर ने और सुन नहीं रहे हैं।
وَقَالُوا قُلُوبُنَا فِي أَكِنَّةٍ مِّمَّا تَدْعُونَا إِلَيْهِ وَفِي آذَانِنَا وَقْرٌ وَمِن بَيْنِنَا وَبَيْنِكَ حِجَابٌ فَاعْمَلْ إِنَّنَا عَامِلُونَ (5)
तथा उन्होंने कहाः[1] हमारे दिल आवरण (पर्दे) में हैं उससे, आप हमें जिसकी ओर बुला रहे हैं तथा हमारे कानों में बोझ है तथा हमारे और आपके बीच एक आड़ है। तो आप अपना काम करें और हम अपना काम कर रहे हैं।
قُلْ إِنَّمَا أَنَا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يُوحَىٰ إِلَيَّ أَنَّمَا إِلَٰهُكُمْ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ فَاسْتَقِيمُوا إِلَيْهِ وَاسْتَغْفِرُوهُ ۗ وَوَيْلٌ لِّلْمُشْرِكِينَ (6)
आप कह दें कि मैं तो एक मनुष्य हूँ तुम्हारे जैसा। मेरी ओर वह़्यी की जा रही है कि तुम्हारा वंदनीय (पूज्य) केवल एक ही है। अतः, सीधे हो जाओ उसी की ओर तथा क्षमा माँगो उससे और विनाश है मुश्रिकों के लिए।
الَّذِينَ لَا يُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ كَافِرُونَ (7)
जो ज़कात नहीं देते तथा आख़िरत को (भी) नहीं मानते।
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ (8)
निःसंदेह, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उन्हीं के लिए अनन्त प्रतिफल है।
۞ قُلْ أَئِنَّكُمْ لَتَكْفُرُونَ بِالَّذِي خَلَقَ الْأَرْضَ فِي يَوْمَيْنِ وَتَجْعَلُونَ لَهُ أَندَادًا ۚ ذَٰلِكَ رَبُّ الْعَالَمِينَ (9)
आप कहें कि क्या तुम उसे नकारते हो, जिसने पैदा किया धरती को दो दिन में और बनाते हो उसके साझी? वही है, सर्वलोक का परलनहार।
وَجَعَلَ فِيهَا رَوَاسِيَ مِن فَوْقِهَا وَبَارَكَ فِيهَا وَقَدَّرَ فِيهَا أَقْوَاتَهَا فِي أَرْبَعَةِ أَيَّامٍ سَوَاءً لِّلسَّائِلِينَ (10)
तथा बनाये उस (धरती) में पर्वत उसके ऊपर तथा बरकत रख दी उसमें और अंकन किया उसमें उसके वासियों के आहारों का चार[1] दिनों में समान रूप[2] से, प्रश्न करने वालों के लिए।
ثُمَّ اسْتَوَىٰ إِلَى السَّمَاءِ وَهِيَ دُخَانٌ فَقَالَ لَهَا وَلِلْأَرْضِ ائْتِيَا طَوْعًا أَوْ كَرْهًا قَالَتَا أَتَيْنَا طَائِعِينَ (11)
फिर आकर्षित हुआ आकाश की ओर तथा वह धुआँ था। तो उसे तथा धरती को आदेश दिया कि तुम दोनों आ जाओ प्रसन्न होकर अथवा दबाव से। तो दोनों ने कहाः हम प्रसन्न होकर आ गये।
فَقَضَاهُنَّ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ فِي يَوْمَيْنِ وَأَوْحَىٰ فِي كُلِّ سَمَاءٍ أَمْرَهَا ۚ وَزَيَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْيَا بِمَصَابِيحَ وَحِفْظًا ۚ ذَٰلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ (12)
तथा बना दिया उनको सात आकाश, दो दिनों में, वह़्यी कर दिया प्रत्येक आकाश में उसका आदेश तथा हमने सुसज्जित किया समीप (संसार) के आकाश को, दीपों (तारों) से तथा सुरक्षा के[1] लिए। ये अति प्रभालशाली सर्वज्ञ की योजना है।
فَإِنْ أَعْرَضُوا فَقُلْ أَنذَرْتُكُمْ صَاعِقَةً مِّثْلَ صَاعِقَةِ عَادٍ وَثَمُودَ (13)
फिर भी यदि वह विमुख हों, तो आप कह दें कि मैंने तुम्हें सावधान कर दिया कड़ी यातना से, जो आद तथा समूद की कड़ी यातना जैसी होगी।
إِذْ جَاءَتْهُمُ الرُّسُلُ مِن بَيْنِ أَيْدِيهِمْ وَمِنْ خَلْفِهِمْ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ ۖ قَالُوا لَوْ شَاءَ رَبُّنَا لَأَنزَلَ مَلَائِكَةً فَإِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُم بِهِ كَافِرُونَ (14)
जब आये उनके पास, उनके रसूल, उनके आगे तथा उनके पीछे[1] से कि न इबादत (वंदना) करो अल्लाह के सिवा की। तो उन्होंने कहाः यदि हमारा पालनहार चाहता, तो किसी फ़रिश्ते को उतार देता।[2] अतः, तुम जिस बात के साथ भेजे गये हो, हम उसे नहीं मानते।
فَأَمَّا عَادٌ فَاسْتَكْبَرُوا فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَقَالُوا مَنْ أَشَدُّ مِنَّا قُوَّةً ۖ أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَهُمْ هُوَ أَشَدُّ مِنْهُمْ قُوَّةً ۖ وَكَانُوا بِآيَاتِنَا يَجْحَدُونَ (15)
रहे आद, तो उन्होंने अभिमान किया धरती में अवैध तथा कहा कि कौन हमसे अधिक है बल में? क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह, जिसने उनको पैदा किया उनसे अधिक है बल में तथा हमारी आयतों को नकारते रहे।
فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي أَيَّامٍ نَّحِسَاتٍ لِّنُذِيقَهُمْ عَذَابَ الْخِزْيِ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَخْزَىٰ ۖ وَهُمْ لَا يُنصَرُونَ (16)
अन्ततः, हमने भेज दी उनपर प्रचण्ड वायु, कुछ अशुभ दिनों में। ताकि चखायें उन्हें अपमानकारी यातना सांसारिक जीवन में और आख़िरत (प्रलोक) की यातना अधिक अपमानकारी है तथा उन्हें कोई सहायता नहीं दी जायेगी।
وَأَمَّا ثَمُودُ فَهَدَيْنَاهُمْ فَاسْتَحَبُّوا الْعَمَىٰ عَلَى الْهُدَىٰ فَأَخَذَتْهُمْ صَاعِقَةُ الْعَذَابِ الْهُونِ بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ (17)
और रहे समूद, तो हमने उन्हें मार्ग दिखाया, फिर भी उन्होंने अन्धे बने रहने को मार्गदर्शन से प्रिय समझा। अन्ततः, पकड़ लिया उन्हें अपमानकारी यातना की कड़क ने, उसके कारण जो वे कर रहे थे।
وَنَجَّيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ (18)
तथा हमने बचा लिया उन्हें, जो ईमान लाये तथा (अवज्ञा से) डरते रहे।
وَيَوْمَ يُحْشَرُ أَعْدَاءُ اللَّهِ إِلَى النَّارِ فَهُمْ يُوزَعُونَ (19)
और जिस दिन अल्लाह के शत्रु एकत्र किये जायेंगे, तो वे रोक लिए जायेंगे।
حَتَّىٰ إِذَا مَا جَاءُوهَا شَهِدَ عَلَيْهِمْ سَمْعُهُمْ وَأَبْصَارُهُمْ وَجُلُودُهُم بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (20)
यहाँतक कि जब आ जायेंगे उस (नरक) के पास, तो साक्ष्य देंगे उनपर उनके कान तथा उनकी आँखें और उनकी खालें उस कर्म का, जो वे किया करते थे।
وَقَالُوا لِجُلُودِهِمْ لِمَ شَهِدتُّمْ عَلَيْنَا ۖ قَالُوا أَنطَقَنَا اللَّهُ الَّذِي أَنطَقَ كُلَّ شَيْءٍ وَهُوَ خَلَقَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (21)
और वे कहेंगे अपनी खालों सेः क्यों साक्ष्य दिया तुमने हमारे विरुध्द? वे उत्तर देंगी कि हमें बोलने की शक्ति प्रदान की है उसने, जिसने प्रत्येक वस्तु को बोलने की शक्ति दी है तथा उसीने तुम्हें पैदा किया प्रथम बार और उसी की ओर तुमसब फेरे जा रहे हो।
وَمَا كُنتُمْ تَسْتَتِرُونَ أَن يَشْهَدَ عَلَيْكُمْ سَمْعُكُمْ وَلَا أَبْصَارُكُمْ وَلَا جُلُودُكُمْ وَلَٰكِن ظَنَنتُمْ أَنَّ اللَّهَ لَا يَعْلَمُ كَثِيرًا مِّمَّا تَعْمَلُونَ (22)
तथा तुम (पाप करते समय)[1] छुपाते नहीं थे कि कहीं साक्ष्य न दें, तुमपर, तुम्हारे कान, तुम्हारी आँख एवं तुम्हारी खालें। परन्तु, तुम समझते रहे कि अल्लाह नहीं जानता उसमें से अधिक्तर बातों को, जो तुम करते हो।
وَذَٰلِكُمْ ظَنُّكُمُ الَّذِي ظَنَنتُم بِرَبِّكُمْ أَرْدَاكُمْ فَأَصْبَحْتُم مِّنَ الْخَاسِرِينَ (23)
इसी कुविचार ने, जो तुमने किया अपने पालनहार के विषय में, तुम्हें नाश कर दिया और तुम विनाशों में हो गये।
فَإِن يَصْبِرُوا فَالنَّارُ مَثْوًى لَّهُمْ ۖ وَإِن يَسْتَعْتِبُوا فَمَا هُم مِّنَ الْمُعْتَبِينَ (24)
तो यदि वे धैर्य रखें, तबभी नरक ही उनका आवास है और यदि वे क्षमा माँगें, तबभी वे क्षमा नहीं किये जायेंगे।
۞ وَقَيَّضْنَا لَهُمْ قُرَنَاءَ فَزَيَّنُوا لَهُم مَّا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَحَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ فِي أُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِم مِّنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا خَاسِرِينَ (25)
और हमने बना दिये उनके लिए ऐसे साथी, जो शोभनीय बना रहे थे उनके लिए, उनके अगले तथा पिछले दुष्कर्मों को तथा सिध्द हो गया उनपर, अल्लाह (की यातना) का वचन, उन समुदायों में, जो गुज़र गये इनसे पूर्व, जिन्नों तथा मनुष्यों में से। वास्तव में, वही क्षतिग्रस्त थे।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَا تَسْمَعُوا لِهَٰذَا الْقُرْآنِ وَالْغَوْا فِيهِ لَعَلَّكُمْ تَغْلِبُونَ (26)
तथा काफ़िरों ने कहा[1] कि इस क़ुर्आन को न सुनो और कोलाहल (शोर) करो इस (के सुनाने) के समय। सम्भवतः, तुम प्रभुत्वशाली हो जाओ।
فَلَنُذِيقَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا عَذَابًا شَدِيدًا وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَسْوَأَ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ (27)
तो हम अवश्य चखायेंगे उन्हें, जो काफ़िर हो गये, कड़ी यातना और अवश्य उन्हें कुफ़ल देंगे, उस दुष्कर्म का, जो वे करते रहे।
ذَٰلِكَ جَزَاءُ أَعْدَاءِ اللَّهِ النَّارُ ۖ لَهُمْ فِيهَا دَارُ الْخُلْدِ ۖ جَزَاءً بِمَا كَانُوا بِآيَاتِنَا يَجْحَدُونَ (28)
ये अल्लाह के शत्रुओं का प्रतिकार नरक है। उनके लिए उसमें स्थायी घर होंगे, उसके बदले, जो हमारी अयतों को नकार रहे हैं।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا رَبَّنَا أَرِنَا اللَّذَيْنِ أَضَلَّانَا مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ نَجْعَلْهُمَا تَحْتَ أَقْدَامِنَا لِيَكُونَا مِنَ الْأَسْفَلِينَ (29)
तथा वो कहेंगे जो काफ़िर हो गये कि हमारे पालनहर! हमें दिखा दे उन्हें, जिन्हों ने हमें कुपथ किया है, जिन्नों तथा मनुष्यों में से। ताकी हम रौंद दें उन दोनों को, अपने पैरों से। ताकि वे दोनों अधिक नीचे हो जायें।
إِنَّ الَّذِينَ قَالُوا رَبُّنَا اللَّهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوا تَتَنَزَّلُ عَلَيْهِمُ الْمَلَائِكَةُ أَلَّا تَخَافُوا وَلَا تَحْزَنُوا وَأَبْشِرُوا بِالْجَنَّةِ الَّتِي كُنتُمْ تُوعَدُونَ (30)
निश्चय जिन्होंने कहा कि हमारा पालनहार अल्लाह है, फिर इसीपर स्थिर रह[1] गये, तो उनपर फ़रिश्ते उतरते हैं[2] कि भय न करो और न उदासीन रहो तथा उस स्वर्ग से प्रसन्न हो जाओ, जिसका वचन तुम्हें दिया जा रहा है।
نَحْنُ أَوْلِيَاؤُكُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الْآخِرَةِ ۖ وَلَكُمْ فِيهَا مَا تَشْتَهِي أَنفُسُكُمْ وَلَكُمْ فِيهَا مَا تَدَّعُونَ (31)
हम तुम्हारे सहायक हैं, सांसारिक जीवन में तथा परलोक में और तुम्हारे लिए उस (स्वर्ग) में वह चीज़ है, जो तुम्हारा मन चाहे तथा उसमें तुम्हारे लिए वह है, जिसकी तुम माँग करोगे।
نُزُلًا مِّنْ غَفُورٍ رَّحِيمٍ (32)
अतिथि-सत्कार स्वरूप, अति क्षमी, दयावान् की ओर से।
وَمَنْ أَحْسَنُ قَوْلًا مِّمَّن دَعَا إِلَى اللَّهِ وَعَمِلَ صَالِحًا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ الْمُسْلِمِينَ (33)
और किसकी बात उससे अच्छी होगी, जो अल्लाह की ओर बुलाये तथा सदाचार करे और कहे कि मैं मुसलमानों में से हूँ।
وَلَا تَسْتَوِي الْحَسَنَةُ وَلَا السَّيِّئَةُ ۚ ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ فَإِذَا الَّذِي بَيْنَكَ وَبَيْنَهُ عَدَاوَةٌ كَأَنَّهُ وَلِيٌّ حَمِيمٌ (34)
और समान नहीं होते पुण्य तथा पाप, आप दूर करें (बुराई को) उसके द्वारा, जो सर्वोत्तम हो। तो सहसा आपके तथा जिसके बीच बैर हो, मानो वह हार्दिक मित्र हो गया।
وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا الَّذِينَ صَبَرُوا وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِيمٍ (35)
और ये गुण उन्हीं को प्राप्त होता है, जो सहन करें तथा उन्हीं को होता है, जो बड़े भाग्यशाली हों।
وَإِمَّا يَنزَغَنَّكَ مِنَ الشَّيْطَانِ نَزْغٌ فَاسْتَعِذْ بِاللَّهِ ۖ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ (36)
और यदि आपको शैतान की ओर से कोई संशय हो, तो अल्लाह की शरण लें। वास्तव में, वही सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
وَمِنْ آيَاتِهِ اللَّيْلُ وَالنَّهَارُ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ ۚ لَا تَسْجُدُوا لِلشَّمْسِ وَلَا لِلْقَمَرِ وَاسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ (37)
तथा उसकी निशानियों में से है रात्रि, दिवस, सूर्य तथा चन्द्रमा, तुम सज्दा न करो सूर्य तथा चन्द्रमा को और सज्दा करो उस अल्लाह को, जिसने पैदा किया है उनको, यदि तुम उसी (अल्लाह) की इबादत (वंदना) करते हो।
فَإِنِ اسْتَكْبَرُوا فَالَّذِينَ عِندَ رَبِّكَ يُسَبِّحُونَ لَهُ بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَهُمْ لَا يَسْأَمُونَ ۩ (38)
तथा यदि वे अभिमान करें, तो जो (फ़रिश्ते) आपके पालनहार के पास हैं, वे उसकी पवित्रता का वर्णन करते रहते हैं, रात्रि तथा दिवस में और वे थकते नहीं हैं।
وَمِنْ آيَاتِهِ أَنَّكَ تَرَى الْأَرْضَ خَاشِعَةً فَإِذَا أَنزَلْنَا عَلَيْهَا الْمَاءَ اهْتَزَّتْ وَرَبَتْ ۚ إِنَّ الَّذِي أَحْيَاهَا لَمُحْيِي الْمَوْتَىٰ ۚ إِنَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (39)
तथा उसी की निशानियों में से है कि आप देखते हैं धरती को सहमी हुई। फिर जैसे ही हमने उसपर जल बरसाया, तो वह लहलहाने लगी तथा उभर गयी। निश्चय जिसने जीवित किया है उसे, अवश्य वही जीवित करने वाला है मुर्दों को। वास्तव में, वह जो चाहे, कर सकता है।
إِنَّ الَّذِينَ يُلْحِدُونَ فِي آيَاتِنَا لَا يَخْفَوْنَ عَلَيْنَا ۗ أَفَمَن يُلْقَىٰ فِي النَّارِ خَيْرٌ أَم مَّن يَأْتِي آمِنًا يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ اعْمَلُوا مَا شِئْتُمْ ۖ إِنَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ (40)
जो टेढ़ निकालते हैं हमारी आयतों में, वे हमपर छुपे नहीं रहते। तो क्या जो फेंक दिया जायेगा अग्नि में, उत्तम है अथवा जो निर्भय होकर आयेगा प्रलय के दिन? करो जो चाहो, वास्तव में, वह जो तुम करते हो, उसे देख रहा है।
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِالذِّكْرِ لَمَّا جَاءَهُمْ ۖ وَإِنَّهُ لَكِتَابٌ عَزِيزٌ (41)
निश्चय उन्होंने कुफ़्र कर दिया इस शिक्षा (क़ुर्आन) के साथ, जब आ गयी उनके पास और सच ये है कि ये एक अति सम्मानित पुस्तक है।
لَّا يَأْتِيهِ الْبَاطِلُ مِن بَيْنِ يَدَيْهِ وَلَا مِنْ خَلْفِهِ ۖ تَنزِيلٌ مِّنْ حَكِيمٍ حَمِيدٍ (42)
नहीं आ सकता झुठ इसके आगे से और न इसके पीछे से। उतरा है तत्वज्ञ, प्रशंसित (अल्लाह) की ओर से।
مَّا يُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدْ قِيلَ لِلرُّسُلِ مِن قَبْلِكَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغْفِرَةٍ وَذُو عِقَابٍ أَلِيمٍ (43)
आपसे वही कहा जा रहा है, जो आपसे पूर्व रसूलों से कहा गया।[1] वास्तव में, आपका पालनहार क्षमा करने (तथा) दुःखदायी य़ातना देने वाला है।
وَلَوْ جَعَلْنَاهُ قُرْآنًا أَعْجَمِيًّا لَّقَالُوا لَوْلَا فُصِّلَتْ آيَاتُهُ ۖ أَأَعْجَمِيٌّ وَعَرَبِيٌّ ۗ قُلْ هُوَ لِلَّذِينَ آمَنُوا هُدًى وَشِفَاءٌ ۖ وَالَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ فِي آذَانِهِمْ وَقْرٌ وَهُوَ عَلَيْهِمْ عَمًى ۚ أُولَٰئِكَ يُنَادَوْنَ مِن مَّكَانٍ بَعِيدٍ (44)
और यदि हम इसे बनाते अरबी (के अतिरिक्त किसी) अन्य भाषा में, तो वे अवश्य कहते कि क्यों नहीं खोल दी गयीं उसकी आयतें? ये क्या कि (पुस्तक) ग़ैर अरबी और (नबी) अरबी? आप कह दें कि वह उनके लिए, जो ईमान लाये, मार्गदर्शन तथा आरोग्यकर है और जो ईमान न लायें, उनके कानों में बोझ है और वह उनपर अंधापन है और वही पुकारे जा रहे हैं दूर स्थानों से।
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَاخْتُلِفَ فِيهِ ۗ وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ ۚ وَإِنَّهُمْ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ مُرِيبٍ (45)
तथा हम प्रदान कर चुके हैं मूसा को पुस्तक (तौरात)। तो उसमें भी विभेद किया गया और यदि एक बात पहले ही से निर्धारित न होती[1] आपके पालनहार की ओर से, तो निर्णय कर दिया जाता उनके बीच। निःसंदेह, वह उनके विषय में संदेह में डाँवाडोल हैं।
مَّنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِنَفْسِهِ ۖ وَمَنْ أَسَاءَ فَعَلَيْهَا ۗ وَمَا رَبُّكَ بِظَلَّامٍ لِّلْعَبِيدِ (46)
जो सदाचार करेगा, तो वह अपने ही लाभ के लिए करेगा और जो दुराचार करेगा, तो उसका दुष्परिणाम उसीपर होगा और आपका पालनहार तनिक भी अत्याचार करने वाला नहीं है भक्तों पर।
۞ إِلَيْهِ يُرَدُّ عِلْمُ السَّاعَةِ ۚ وَمَا تَخْرُجُ مِن ثَمَرَاتٍ مِّنْ أَكْمَامِهَا وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ ۚ وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ أَيْنَ شُرَكَائِي قَالُوا آذَنَّاكَ مَا مِنَّا مِن شَهِيدٍ (47)
उसी की ओर फेरा जाता है प्रलय का ज्ञान तथा नहीं निकलते कोई फल अपने गाभों से और नहीं गर्भ धारण करती कोई मादा और न जन्म देती है, परन्तु उसके ज्ञान से और जिस दिन वह पूकारेगा उन्हें कि कहाँ हैं मेरे साझी? तो वे कहेंगे कि हमने तुझे बता दिया था कि हममें से कोई उसका गवाह नहीं है।
وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَدْعُونَ مِن قَبْلُ ۖ وَظَنُّوا مَا لَهُم مِّن مَّحِيصٍ (48)
और खो जायेंगे[1] उनसे वे, जिन्हें पुकारते थे इससे पूर्व तथा वे विश्वास कर लेंगे कि नहीं है उनके लिए कोई शरण का स्थान।
لَّا يَسْأَمُ الْإِنسَانُ مِن دُعَاءِ الْخَيْرِ وَإِن مَّسَّهُ الشَّرُّ فَيَئُوسٌ قَنُوطٌ (49)
नहीं थकता मनुष्य भलाई (सुख) की प्रार्थना से और यदि उसे पहुँच जाये बुराई (दुःख), तो (हताश) निराश[1] हो जाता है।
وَلَئِنْ أَذَقْنَاهُ رَحْمَةً مِّنَّا مِن بَعْدِ ضَرَّاءَ مَسَّتْهُ لَيَقُولَنَّ هَٰذَا لِي وَمَا أَظُنُّ السَّاعَةَ قَائِمَةً وَلَئِن رُّجِعْتُ إِلَىٰ رَبِّي إِنَّ لِي عِندَهُ لَلْحُسْنَىٰ ۚ فَلَنُنَبِّئَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِمَا عَمِلُوا وَلَنُذِيقَنَّهُم مِّنْ عَذَابٍ غَلِيظٍ (50)
और यदि हम उसे[1] चखा दें अपनी दया, दुःख के पश्चात्, जो उसे पहुँचा हो, तो अवश्य कह देता है कि मैं तो इसके योग्य ही था और मैं नहीं समझता कि प्रलय होनी है और यदि मैं पुनः अपने पालनहार की ओर गया, तो निश्चय ही मेरे लिए उसके पास भलाई होगी। तो हम अवश्य अवगत कर देंगे काफ़िरों को उनके कर्मों से तथा उन्हें अवश्य घोर यातना चखायेंगे।
وَإِذَا أَنْعَمْنَا عَلَى الْإِنسَانِ أَعْرَضَ وَنَأَىٰ بِجَانِبِهِ وَإِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ فَذُو دُعَاءٍ عَرِيضٍ (51)
तथा जब हम उपकार करते हैं मनुष्य पर, तो वह विमुख हो जाता है तथा अकड़ जाता है और जब उसे दुःख पहुँचे, तो लम्बी-चौड़ी प्रार्थना करने लगता है।
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِن كَانَ مِنْ عِندِ اللَّهِ ثُمَّ كَفَرْتُم بِهِ مَنْ أَضَلُّ مِمَّنْ هُوَ فِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ (52)
आप कह दें: भला तुम ये तो बताओ, यदि ये क़ुर्आन अल्लाह की ओर से हो, फ़िर तुम कुफ़्र कर जाओ उसके साथ, तो कौन उससे अधिक कुपथ होगा, जो उसके विरोध में दूर तक चला जाये
سَنُرِيهِمْ آيَاتِنَا فِي الْآفَاقِ وَفِي أَنفُسِهِمْ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُ الْحَقُّ ۗ أَوَلَمْ يَكْفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ (53)
हम शीघ्र ही दिखा देंगे उन्हें अपनी निशानियाँ संसार के किनारों में तथा स्वयं उनके भीतर। यहाँतक कि खुल जायेगी उनके लिए ये बात कि यही सच है[1] और क्या ये बात प्रयाप्त नहीं कि आपका पालनहार ही प्रत्येक वस्तु का साक्षी (गवाह) है
أَلَا إِنَّهُمْ فِي مِرْيَةٍ مِّن لِّقَاءِ رَبِّهِمْ ۗ أَلَا إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ مُّحِيطٌ (54)
सावधान! वही संदेह में हैं, अपने पालनहार से मिलने के विषय में। सावधान! वही (अल्लाह), प्रत्येक वस्तु को घेरे हुए है।
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