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سورة ص باللغة الهندية

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ترجمة معاني سورة ص باللغة الهندية - Hindi

القرآن باللغة الهندية - سورة ص مترجمة إلى اللغة الهندية، Surah Sad in Hindi. نوفر ترجمة دقيقة سورة ص باللغة الهندية - Hindi, الآيات 88 - رقم السورة 38 - الصفحة 453.

بسم الله الرحمن الرحيم

ص ۚ وَالْقُرْآنِ ذِي الذِّكْرِ (1)
साद। शपथ है शिक्षाप्रद क़ुर्आन की
بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي عِزَّةٍ وَشِقَاقٍ (2)
बल्कि, जो काफ़िर हो गये, वे एक गर्व तथा विरोध में ग्रस्त हैं।
كَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَبْلِهِم مِّن قَرْنٍ فَنَادَوا وَّلَاتَ حِينَ مَنَاصٍ (3)
हमने विनाश किया है इनसे पूर्व, बहुत-से समुदायों का। तो वे पुकारने लगे और नहीं होता वह बचने का समय।
وَعَجِبُوا أَن جَاءَهُم مُّنذِرٌ مِّنْهُمْ ۖ وَقَالَ الْكَافِرُونَ هَٰذَا سَاحِرٌ كَذَّابٌ (4)
तथा उन्हें आश्चर्य हुआ कि आ गया उनके पास, उन्हीं मेंसे एक सचेत करने[1] वाला! और कह दिया काफ़िरों ने कि ये तो बड़ा झूठा जादूगर है।
أَجَعَلَ الْآلِهَةَ إِلَٰهًا وَاحِدًا ۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيْءٌ عُجَابٌ (5)
क्या उसने बना दिया है सब पूज्यों को एक पूज्य? ये तो बड़े आश्चर्य का विषय है।
وَانطَلَقَ الْمَلَأُ مِنْهُمْ أَنِ امْشُوا وَاصْبِرُوا عَلَىٰ آلِهَتِكُمْ ۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيْءٌ يُرَادُ (6)
तथा चल दिये उनके प्रमुख, (ये) कहते हुए कि चलो, दृढ़ रहो अपने पूज्यों पर। इस बात का कुछ और ही लक्ष्य[1] है।
مَا سَمِعْنَا بِهَٰذَا فِي الْمِلَّةِ الْآخِرَةِ إِنْ هَٰذَا إِلَّا اخْتِلَاقٌ (7)
हमने नहीं सुनी ये बात प्राचीन धर्मों में, ये तो बस मनघड़त बात है।
أَأُنزِلَ عَلَيْهِ الذِّكْرُ مِن بَيْنِنَا ۚ بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِّن ذِكْرِي ۖ بَل لَّمَّا يَذُوقُوا عَذَابِ (8)
क्या उसीपर उतारी गई है ये शिक्षा हमारे बीच में से? बल्कि वे संदेह में हैं मेरी शिक्षा से। बल्कि उन्होंने अभी यातना नहीं चखी है।
أَمْ عِندَهُمْ خَزَائِنُ رَحْمَةِ رَبِّكَ الْعَزِيزِ الْوَهَّابِ (9)
अथवा उनके पास हैं, आपके अत्यंत प्रभुत्वशाली प्रदाता पालनहार की दया के कोष
أَمْ لَهُم مُّلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ فَلْيَرْتَقُوا فِي الْأَسْبَابِ (10)
अथवा उन्हीं का है राज्य, आकाशों तथा धरती का और जो कुछ उन दोनों के मध्य है? तो उन्हें चाहिये कि चढ़ जायें (आकाशों में) रस्सियाँ तान[1] कर।
جُندٌ مَّا هُنَالِكَ مَهْزُومٌ مِّنَ الْأَحْزَابِ (11)
ये एक तुच्छ सेना है, यहाँ प्राजित सेनाओं[1] में से।
كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَعَادٌ وَفِرْعَوْنُ ذُو الْأَوْتَادِ (12)
झुठलाया इनसे पहले नूह़ तथा आद और शक्तिवान फ़िरऔन की जाति ने।
وَثَمُودُ وَقَوْمُ لُوطٍ وَأَصْحَابُ الْأَيْكَةِ ۚ أُولَٰئِكَ الْأَحْزَابُ (13)
तथा समूद और लूत की जाति एवं वन के वासियों[1] ने। यही सेनायें हैं।
إِن كُلٌّ إِلَّا كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ عِقَابِ (14)
इन सभी ने झुठलाया रसूलों को, तो मेरी यातना सिध्द हो गयी।
وَمَا يَنظُرُ هَٰؤُلَاءِ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً مَّا لَهَا مِن فَوَاقٍ (15)
और ये नहीं प्रतीक्षा कर रहे हैं, परन्तु एक कर्कश ध्वनि की जिसके लिए कुछ भी देर नहीं होगी।
وَقَالُوا رَبَّنَا عَجِّل لَّنَا قِطَّنَا قَبْلَ يَوْمِ الْحِسَابِ (16)
तथा उन्होंने कहा कि हे हमारे पालनहार! शीघ्र प्रदान कर दे हमारे लिए हमारी (यातना का) भाग ह़िसाब के दिन से पहले।
اصْبِرْ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَاذْكُرْ عَبْدَنَا دَاوُودَ ذَا الْأَيْدِ ۖ إِنَّهُ أَوَّابٌ (17)
आप सहन करें उसपर, जो वे कह रहे हैं तथा याद करें हमारे भक्त दावूद को, जो अत्यंत शक्तिशाली था। निश्चय वह ध्यानमग्न था।
إِنَّا سَخَّرْنَا الْجِبَالَ مَعَهُ يُسَبِّحْنَ بِالْعَشِيِّ وَالْإِشْرَاقِ (18)
हमने वश्वर्ती कर दिया था पर्वतों को, जो उसके साथ पवित्रता गान करते थे, संध्या तथा प्रातः।
وَالطَّيْرَ مَحْشُورَةً ۖ كُلٌّ لَّهُ أَوَّابٌ (19)
तथा पक्षियों को एकत्रित किये हुए, प्रत्येक उसके अधीन ध्यानमग्न रहते थे।
وَشَدَدْنَا مُلْكَهُ وَآتَيْنَاهُ الْحِكْمَةَ وَفَصْلَ الْخِطَابِ (20)
और हमने दृढ़ किया उसके राज्य को और हमने प्रदान की उसे नबूवत तथा निर्णय शक्ति।
۞ وَهَلْ أَتَاكَ نَبَأُ الْخَصْمِ إِذْ تَسَوَّرُوا الْمِحْرَابَ (21)
तथा क्या आया आपके पास दो पक्षों का समाचार, जब वे दीवार फाँदकर मेह़राब (वंदना स्थल) में आ गये
إِذْ دَخَلُوا عَلَىٰ دَاوُودَ فَفَزِعَ مِنْهُمْ ۖ قَالُوا لَا تَخَفْ ۖ خَصْمَانِ بَغَىٰ بَعْضُنَا عَلَىٰ بَعْضٍ فَاحْكُم بَيْنَنَا بِالْحَقِّ وَلَا تُشْطِطْ وَاهْدِنَا إِلَىٰ سَوَاءِ الصِّرَاطِ (22)
जब उन्होंने प्रवेश किया दावूद पर, तो वह घबरा गया उनसे। उन्होंने कहाः डरिये नहीं। हम दो पक्ष हैं, अत्याचार किया है, हममें से एक ने, दूसरे पर। तो आप निर्णय कर दें हमारे बीच सत्य (न्याय) के साथ तथा अन्याय न करें तथा हमें दर्शा दें सीधी राह।
إِنَّ هَٰذَا أَخِي لَهُ تِسْعٌ وَتِسْعُونَ نَعْجَةً وَلِيَ نَعْجَةٌ وَاحِدَةٌ فَقَالَ أَكْفِلْنِيهَا وَعَزَّنِي فِي الْخِطَابِ (23)
ये मेरा भाई है, इसके पास निन्नान्वे भेड़ हैं और मेरे पास भेड़ है। ये कहता है कि वह (भी) मुझे दे दो और ये प्रभावशाली हो गया मुझपर बात करने में।
قَالَ لَقَدْ ظَلَمَكَ بِسُؤَالِ نَعْجَتِكَ إِلَىٰ نِعَاجِهِ ۖ وَإِنَّ كَثِيرًا مِّنَ الْخُلَطَاءِ لَيَبْغِي بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَقَلِيلٌ مَّا هُمْ ۗ وَظَنَّ دَاوُودُ أَنَّمَا فَتَنَّاهُ فَاسْتَغْفَرَ رَبَّهُ وَخَرَّ رَاكِعًا وَأَنَابَ ۩ (24)
दावूद ने कहाः उसने तुमपर अवश्य अत्याचार किया, तुम्हारी भेड़ को (मिलाने की) माँग करके अपनी भेड़ों में तथा बहुत-से साझी एक-दूसरे पर एत्याचार करते हैं, उनके सिवा, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये और बहुत थोड़े हैं ऐसे लोग और दावूद ने भाँप ली कि हमने उसकी परीक्षा ली है, तो सहसा उसने क्षमा याचना कर ली और गिर गया सज्दे में तथा ध्यानमग्न हो गया।
فَغَفَرْنَا لَهُ ذَٰلِكَ ۖ وَإِنَّ لَهُ عِندَنَا لَزُلْفَىٰ وَحُسْنَ مَآبٍ (25)
तो हमने क्षमा कर दिया उसके लिए वह तथा उसके लिए हमारे पास निश्चय सामिप्य है तथा अच्छा स्थान।
يَا دَاوُودُ إِنَّا جَعَلْنَاكَ خَلِيفَةً فِي الْأَرْضِ فَاحْكُم بَيْنَ النَّاسِ بِالْحَقِّ وَلَا تَتَّبِعِ الْهَوَىٰ فَيُضِلَّكَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ ۚ إِنَّ الَّذِينَ يَضِلُّونَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ بِمَا نَسُوا يَوْمَ الْحِسَابِ (26)
हे दाऊद! हमने तुझे राज्य दिया है धरती में। अतः, निर्णय कर, लोगों के बीच सत्य (न्याय) के साथ तथा अनुसरण न कर आकांक्षा का। अन्यथा, वह कुपथ कर देगी तुझे अल्लाह की राह से। निःसंदेह, जो कुपथ हो जायेंगे अल्लाह की राह[1] से, तो उन्हीं के लिए घोर यातना है, इस कारण कि वे भूल गये ह़िसाब का दिन।
وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاءَ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا بَاطِلًا ۚ ذَٰلِكَ ظَنُّ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ كَفَرُوا مِنَ النَّارِ (27)
तथा नहीं पैदा किया है हमने आकाश और धरती को तथा जो कुछ उनके बीच है, व्यर्थ। ये तो उनका विचार है, जो काफ़िर हो गये। तो विनाश है उनके लिए, जो काफ़िर हो गये अग्नि से।
أَمْ نَجْعَلُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ كَالْمُفْسِدِينَ فِي الْأَرْضِ أَمْ نَجْعَلُ الْمُتَّقِينَ كَالْفُجَّارِ (28)
क्या हम कर देंगे उन्हें, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उनके समान, जो उपद्रवी हैं धरती में? या कर देंगे आज्ञाकारियों को उल्लंघनकारियों के समान
كِتَابٌ أَنزَلْنَاهُ إِلَيْكَ مُبَارَكٌ لِّيَدَّبَّرُوا آيَاتِهِ وَلِيَتَذَكَّرَ أُولُو الْأَلْبَابِ (29)
ये (क़ुर्आन) एक शूभ पुस्तक है, जिसे हमने अवतरित किया है आपकी ओर, ताकि लोग विचार करें उसकी आयतों पर और ताकि शिक्षा ग्रहण करें मतिमान।
وَوَهَبْنَا لِدَاوُودَ سُلَيْمَانَ ۚ نِعْمَ الْعَبْدُ ۖ إِنَّهُ أَوَّابٌ (30)
तथा हमने प्रदान किया दावूद को सुलैमान (नामक पुत्र)। वह अति ध्यानमग्न था।
إِذْ عُرِضَ عَلَيْهِ بِالْعَشِيِّ الصَّافِنَاتُ الْجِيَادُ (31)
जब प्रस्तुत किये गये उसके समक्ष संध्या के समय सधे हुए वेगगामी घोड़े।
فَقَالَ إِنِّي أَحْبَبْتُ حُبَّ الْخَيْرِ عَن ذِكْرِ رَبِّي حَتَّىٰ تَوَارَتْ بِالْحِجَابِ (32)
तो कहाः मैंने प्राथमिक्ता दी इन घोड़ों के प्रेम को अपने पालनहार के स्मरण पर। यहाँ तक कि वे ओझल हो गये।
رُدُّوهَا عَلَيَّ ۖ فَطَفِقَ مَسْحًا بِالسُّوقِ وَالْأَعْنَاقِ (33)
उन्हें वापिस लाओ मेरे पास। फिर हाथ फेरने लगे उनकी पिंडलियों तथा गर्दनों पर।
وَلَقَدْ فَتَنَّا سُلَيْمَانَ وَأَلْقَيْنَا عَلَىٰ كُرْسِيِّهِ جَسَدًا ثُمَّ أَنَابَ (34)
और हमने परीक्षा[1] ली सुलैमान की तथा डाल दिया उसके सिंहासन पर एक धड़। फिर वह ध्यानमग्न हो गया।
قَالَ رَبِّ اغْفِرْ لِي وَهَبْ لِي مُلْكًا لَّا يَنبَغِي لِأَحَدٍ مِّن بَعْدِي ۖ إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ (35)
उसने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! मुझे क्षमा कर दे तथा मुझे प्रदान कर ऐसा राज्य, जो उचित न हो किसी के लिए मेरे पश्चात्। वास्तव में, तू ही अति प्रदाता है।
فَسَخَّرْنَا لَهُ الرِّيحَ تَجْرِي بِأَمْرِهِ رُخَاءً حَيْثُ أَصَابَ (36)
तो हमने वश में कर दिया उसके लिए वायु को, जो चल रही थी धीमी गति से उसके आदेश से, वह जहाँ चाहता।
وَالشَّيَاطِينَ كُلَّ بَنَّاءٍ وَغَوَّاصٍ (37)
तथा शैतानों को प्रत्येक प्रकार के निर्माता तथा ग़ोता ख़ोर को।
وَآخَرِينَ مُقَرَّنِينَ فِي الْأَصْفَادِ (38)
तथा दूसरों को बंधे हुए बेड़ियों में।
هَٰذَا عَطَاؤُنَا فَامْنُنْ أَوْ أَمْسِكْ بِغَيْرِ حِسَابٍ (39)
ये हमारा प्रदान है। तो उपकार करो अथवा रोक लो, कोई ह़िसाब नहीं।
وَإِنَّ لَهُ عِندَنَا لَزُلْفَىٰ وَحُسْنَ مَآبٍ (40)
और वास्तव में, उसके लिए हमारे पास सामिप्य तथा उत्तम स्थान है।
وَاذْكُرْ عَبْدَنَا أَيُّوبَ إِذْ نَادَىٰ رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الشَّيْطَانُ بِنُصْبٍ وَعَذَابٍ (41)
तथा याद करो हमारे भक्त अय्यूब को। जब उसने पुकारा अपने पालनहार को कि शैतान ने मुझे पहुँचाया[1] है दुःख तथा यातना।
ارْكُضْ بِرِجْلِكَ ۖ هَٰذَا مُغْتَسَلٌ بَارِدٌ وَشَرَابٌ (42)
अपना पाँव (धरती पर) मार। ये है शीतल स्नान तथा पीने का जल।
وَوَهَبْنَا لَهُ أَهْلَهُ وَمِثْلَهُم مَّعَهُمْ رَحْمَةً مِّنَّا وَذِكْرَىٰ لِأُولِي الْأَلْبَابِ (43)
और हमने प्रदान किया उसे उसका परिवार तथा उनके साथ और उनके समान, अपनी दया से और मतिमानों की शिक्षा के लिए।
وَخُذْ بِيَدِكَ ضِغْثًا فَاضْرِب بِّهِ وَلَا تَحْنَثْ ۗ إِنَّا وَجَدْنَاهُ صَابِرًا ۚ نِّعْمَ الْعَبْدُ ۖ إِنَّهُ أَوَّابٌ (44)
तथा ले अपने हाथ में तीलियों की एक झाड़ तथा उससे मार और अपनी शपथ भंग न कर। वास्तव[1] में, हमने उसे पाया धैर्यवान। निश्चय, वह बड़ा ध्यानमग्न था।
وَاذْكُرْ عِبَادَنَا إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ أُولِي الْأَيْدِي وَالْأَبْصَارِ (45)
तथा याद करो हमारे भक्त इब्राहीम, इस्ह़ाक़ एवं याक़ूब को, जो कर्म शक्ति तथा ज्ञानचक्षू[1] वाले थे।
إِنَّا أَخْلَصْنَاهُم بِخَالِصَةٍ ذِكْرَى الدَّارِ (46)
हमने उसे विशेष कर लिया बड़ी विशेषता, परलोक (आख़िरत) की याद के साथ।
وَإِنَّهُمْ عِندَنَا لَمِنَ الْمُصْطَفَيْنَ الْأَخْيَارِ (47)
वास्तव में, वह हमारे यहाँ उत्तम निर्वाचितों में से थे।
وَاذْكُرْ إِسْمَاعِيلَ وَالْيَسَعَ وَذَا الْكِفْلِ ۖ وَكُلٌّ مِّنَ الْأَخْيَارِ (48)
तथा आप चर्चा करें इस्माईल, यसअ एवं ज़ुल्किफ़्ल की और ये सभी निर्वाचितों में से थे।
هَٰذَا ذِكْرٌ ۚ وَإِنَّ لِلْمُتَّقِينَ لَحُسْنَ مَآبٍ (49)
ये (क़ुर्आन) एक शिक्षा है तथा निश्चय आज्ञाकारियों के लिए उत्तम स्थान है।
جَنَّاتِ عَدْنٍ مُّفَتَّحَةً لَّهُمُ الْأَبْوَابُ (50)
स्थायी स्वर्ग, खुले हुए हैं उनके लिए (उनके) द्वार।
مُتَّكِئِينَ فِيهَا يَدْعُونَ فِيهَا بِفَاكِهَةٍ كَثِيرَةٍ وَشَرَابٍ (51)
वे तकिये लगाये होंगे उनमें। माँगेंगे उनमें बहुत-से फल तथा पेय पदार्थ।
۞ وَعِندَهُمْ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ أَتْرَابٌ (52)
तथा उनके पास आँखे सीमित रखनी वाली समायु पत्नियाँ होंगी।
هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِيَوْمِ الْحِسَابِ (53)
ये है जिसका वचन दिया जा रहा था तुम्हें, ह़िसाब के दिन।
إِنَّ هَٰذَا لَرِزْقُنَا مَا لَهُ مِن نَّفَادٍ (54)
ये है हमारी जीविका, जिसका कोई अन्त नहीं है।
هَٰذَا ۚ وَإِنَّ لِلطَّاغِينَ لَشَرَّ مَآبٍ (55)
ये है और अवज्ञाकारियों के लिए निश्चय बुरा स्थान है।
جَهَنَّمَ يَصْلَوْنَهَا فَبِئْسَ الْمِهَادُ (56)
नरक है, जिसमें वे जायेंगे, क्या ही बुरा आवास है।
هَٰذَا فَلْيَذُوقُوهُ حَمِيمٌ وَغَسَّاقٌ (57)
ये है। तो तुम चखो, खौलता पानी तथा पीप।
وَآخَرُ مِن شَكْلِهِ أَزْوَاجٌ (58)
तथा कुछ अन्य इसी प्रकार की विभिन्न यातनायें।
هَٰذَا فَوْجٌ مُّقْتَحِمٌ مَّعَكُمْ ۖ لَا مَرْحَبًا بِهِمْ ۚ إِنَّهُمْ صَالُو النَّارِ (59)
ये[1] एक और जत्था है, जो घुसा आ रहा है तुम्हारे साथ। कोई स्वागत नहीं है उनका। वास्तव में, वे नरक में प्रवेश करने वाले हैं।
قَالُوا بَلْ أَنتُمْ لَا مَرْحَبًا بِكُمْ ۖ أَنتُمْ قَدَّمْتُمُوهُ لَنَا ۖ فَبِئْسَ الْقَرَارُ (60)
वे उत्तर देंगेः बल्कि तुम। तुम्हारा कोई स्वागत नहीं। तुम ही आगे लाये हो इस (यातना) को हमारे। तो ये बुरा निवास है।
قَالُوا رَبَّنَا مَن قَدَّمَ لَنَا هَٰذَا فَزِدْهُ عَذَابًا ضِعْفًا فِي النَّارِ (61)
(फिर) वे कहेंगेः हमारे पालनहार! जो हमारे आगे लाया है इसे, उसे दुगनी यातना दे नरक में।
وَقَالُوا مَا لَنَا لَا نَرَىٰ رِجَالًا كُنَّا نَعُدُّهُم مِّنَ الْأَشْرَارِ (62)
तथा (नारकी) कहेंगेः हमें क्या हुआ है कि हम कुछ लोगों को नहीं देख रहे हैं, जिनकी गणना हम बुरे लोगों में कर[1] रहे थे
أَتَّخَذْنَاهُمْ سِخْرِيًّا أَمْ زَاغَتْ عَنْهُمُ الْأَبْصَارُ (63)
क्या हमने उन्हें उपहास बना रखा था अथवा चूक रही हैं उनसे हमारी आँखें
إِنَّ ذَٰلِكَ لَحَقٌّ تَخَاصُمُ أَهْلِ النَّارِ (64)
निश्चय सत्य है नारकियों का आपस में झगड़ना।
قُلْ إِنَّمَا أَنَا مُنذِرٌ ۖ وَمَا مِنْ إِلَٰهٍ إِلَّا اللَّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ (65)
हे नबी! आप कह दें: मैं तो मात्र सचेत करने वाला[1] हूँ तथा कोई ( सच्चा) पूज्य नहीं है, अकेले प्रभावशाली अल्लाह के सिवा।
رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا الْعَزِيزُ الْغَفَّارُ (66)
वह आकाशों तथा धरती का और जो कुछ उन दोनों के मध्य है, सबका पालनहार, अति प्रभावशाली, क्षमी है।
قُلْ هُوَ نَبَأٌ عَظِيمٌ (67)
आप कह दें कि ये[1] बहुत बड़ी सूचना है।
أَنتُمْ عَنْهُ مُعْرِضُونَ (68)
और तुम हो कि उससे मुँह फेर रहे हो।
مَا كَانَ لِيَ مِنْ عِلْمٍ بِالْمَلَإِ الْأَعْلَىٰ إِذْ يَخْتَصِمُونَ (69)
मुझे कोई ज्ञान नहीं है, उच्च सभा वाले (फ़रिश्ते) जब वाद-विवाद कर रहे थे।
إِن يُوحَىٰ إِلَيَّ إِلَّا أَنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُّبِينٌ (70)
मेरी ओर तो मात्र इसलिए वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है कि मैं खुला सचेत करने वाला हूँ।
إِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلَائِكَةِ إِنِّي خَالِقٌ بَشَرًا مِّن طِينٍ (71)
जबकि कहा आपके पालनहार ने फ़रिश्तों सेः मैं पैदा करने वाला हूँ एक मनुष्य, मिट्टी से।
فَإِذَا سَوَّيْتُهُ وَنَفَخْتُ فِيهِ مِن رُّوحِي فَقَعُوا لَهُ سَاجِدِينَ (72)
तो जब मैं उसे बराबर कर दूँ तथा फूँक दूँ उसमें, अपनी ओर से रूह़ (प्राण), तो गिर जाओ उसके लिए सज्दा करते हुए।
فَسَجَدَ الْمَلَائِكَةُ كُلُّهُمْ أَجْمَعُونَ (73)
तो सज्दा किया सभी फ़रिश्तों ने एक साथ।
إِلَّا إِبْلِيسَ اسْتَكْبَرَ وَكَانَ مِنَ الْكَافِرِينَ (74)
इब्लीस के सिवा, उसने अभिमान किया और हो गया काफ़िरों में से।
قَالَ يَا إِبْلِيسُ مَا مَنَعَكَ أَن تَسْجُدَ لِمَا خَلَقْتُ بِيَدَيَّ ۖ أَسْتَكْبَرْتَ أَمْ كُنتَ مِنَ الْعَالِينَ (75)
अल्लाह ने कहाः हे इब्लीस! किस चीज़ ने तुझे रोक दिया सज्दा करने से उसके लिए, जिसे मैंने पैदा किया अपने हाथ से? क्या तू अभिमान कर गया अथवा वास्तव में तू ऊँचे लोगों में से है
قَالَ أَنَا خَيْرٌ مِّنْهُ ۖ خَلَقْتَنِي مِن نَّارٍ وَخَلَقْتَهُ مِن طِينٍ (76)
उसने कहाः मैं उससे उत्तम हूँ। तूने मुझे पैदा किया है अग्नि से तथा उसे पैदा किया मिट्टी से।
قَالَ فَاخْرُجْ مِنْهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٌ (77)
अल्लाह ने कहाः तू निकल जा यहाँ से, तू वास्तव में धिक्कृत है।
وَإِنَّ عَلَيْكَ لَعْنَتِي إِلَىٰ يَوْمِ الدِّينِ (78)
तथा तुझपर मेरी दया से दूरी है, प्रलय के दिन तक।
قَالَ رَبِّ فَأَنظِرْنِي إِلَىٰ يَوْمِ يُبْعَثُونَ (79)
उसने कहाः मेरे पालनहार! मुझे अवसर दे उस दिन तक, जब लोग पुनः जीवित किये जायेंगे।
قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ الْمُنظَرِينَ (80)
अल्लाह ने कहाः तुझे अवसर दे दिया गया।
إِلَىٰ يَوْمِ الْوَقْتِ الْمَعْلُومِ (81)
निर्धारित समय के दिन तक।
قَالَ فَبِعِزَّتِكَ لَأُغْوِيَنَّهُمْ أَجْمَعِينَ (82)
उसने कहाः तो तेरे प्रताप की शपथ! मैं अवश्य कुपथ करके रहूँगा सबको।
إِلَّا عِبَادَكَ مِنْهُمُ الْمُخْلَصِينَ (83)
तेरे शुध्द भक्तों के सिवा उनमें से।
قَالَ فَالْحَقُّ وَالْحَقَّ أَقُولُ (84)
अल्लाह ने कहाः तो ये सत्य है और मैं सत्य ही कहा करता हूँ
لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنكَ وَمِمَّن تَبِعَكَ مِنْهُمْ أَجْمَعِينَ (85)
कि अवश्य भर दूँगा नरक को तुझसे तथा जो तेरा अनुसरण करेंगे उनसबसे।
قُلْ مَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ وَمَا أَنَا مِنَ الْمُتَكَلِّفِينَ (86)
(हे नबी!) कह दें कि मैं नहीं माँग करता हूँ तुमसे इसपर किसी पारिश्रमिक की तथा मैं नहीं हूँ अपनी ओर से कुछ बनाने वाला।
إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِّلْعَالَمِينَ (87)
नहीं है ये (क़ुर्आन), परन्तु एक शिक्षा, सर्वलोक वासियों के लिए।
وَلَتَعْلَمُنَّ نَبَأَهُ بَعْدَ حِينٍ (88)
तथा तुम्हें अवश्य ज्ञान हो जायेगा उसके समाचार (तथ्य) का, एक समय के पश्चात्।
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1- الفاتحة2- البقرة3- آل عمران
4- النساء5- المائدة6- الأنعام
7- الأعراف8- الأنفال9- التوبة
10- يونس11- هود12- يوسف
13- الرعد14- إبراهيم15- الحجر
16- النحل17- الإسراء18- الكهف
19- مريم20- طه21- الأنبياء
22- الحج23- المؤمنون24- النور
25- الفرقان26- الشعراء27- النمل
28- القصص29- العنكبوت30- الروم
31- لقمان32- السجدة33- الأحزاب
34- سبأ35- فاطر36- يس
37- الصافات38- ص39- الزمر
40- غافر41- فصلت42- الشورى
43- الزخرف44- الدخان45- الجاثية
46- الأحقاف47- محمد48- الفتح
49- الحجرات50- ق51- الذاريات
52- الطور53- النجم54- القمر
55- الرحمن56- الواقعة57- الحديد
58- المجادلة59- الحشر60- الممتحنة
61- الصف62- الجمعة63- المنافقون
64- التغابن65- الطلاق66- التحريم
67- الملك68- القلم69- الحاقة
70- المعارج71- نوح72- الجن
73- المزمل74- المدثر75- القيامة
76- الإنسان77- المرسلات78- النبأ
79- النازعات80- عبس81- التكوير
82- الإنفطار83- المطففين84- الانشقاق
85- البروج86- الطارق87- الأعلى
88- الغاشية89- الفجر90- البلد
91- الشمس92- الليل93- الضحى
94- الشرح95- التين96- العلق
97- القدر98- البينة99- الزلزلة
100- العاديات101- القارعة102- التكاثر
103- العصر104- الهمزة105- الفيل
106- قريش107- الماعون108- الكوثر
109- الكافرون110- النصر111- المسد
112- الإخلاص113- الفلق114- الناس