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سورة الواقعة باللغة الهندية

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ترجمة معاني سورة الواقعة باللغة الهندية - Hindi

القرآن باللغة الهندية - سورة الواقعة مترجمة إلى اللغة الهندية، Surah Waqiah in Hindi. نوفر ترجمة دقيقة سورة الواقعة باللغة الهندية - Hindi, الآيات 96 - رقم السورة 56 - الصفحة 534.

بسم الله الرحمن الرحيم

إِذَا وَقَعَتِ الْوَاقِعَةُ (1)
जब होने वाली, हो जायेगी।
لَيْسَ لِوَقْعَتِهَا كَاذِبَةٌ (2)
उसका होना कोई झूठ नहीं है।
خَافِضَةٌ رَّافِعَةٌ (3)
नीचा-ऊँचा करने[1] वाली।
إِذَا رُجَّتِ الْأَرْضُ رَجًّا (4)
जब धरती तेज़ी से डोलने लगेगी।
وَبُسَّتِ الْجِبَالُ بَسًّا (5)
और चूर-चूर कर दिये जायेंगे पर्वत।
فَكَانَتْ هَبَاءً مُّنبَثًّا (6)
फिर हो जायेंगे बिखरी हुई धूल।
وَكُنتُمْ أَزْوَاجًا ثَلَاثَةً (7)
तथा तुम हो जाओगे तीन समूह।
فَأَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ مَا أَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ (8)
तो दायें वाले, तो क्या हैं दायें वाले
وَأَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ مَا أَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ (9)
और बायें वाले, तो क्या हैं बायें वाले
وَالسَّابِقُونَ السَّابِقُونَ (10)
और अग्रगामी तो अग्रगामी ही हैं।
أُولَٰئِكَ الْمُقَرَّبُونَ (11)
वही समीप किये[1] हुए हैं।
فِي جَنَّاتِ النَّعِيمِ (12)
वे सुखों के स्वर्गों में होंगे।
ثُلَّةٌ مِّنَ الْأَوَّلِينَ (13)
बहुत-से अगले लोगों में से।
وَقَلِيلٌ مِّنَ الْآخِرِينَ (14)
तथा कुछ पिछले लोगों में से होंगे।
عَلَىٰ سُرُرٍ مَّوْضُونَةٍ (15)
स्वर्ण से बुने हुए तख़्तों पर।
مُّتَّكِئِينَ عَلَيْهَا مُتَقَابِلِينَ (16)
तकिये लगाये उनपर, एक-दूसरे के सम्मुख (आसीन) होंगे।
يَطُوفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَانٌ مُّخَلَّدُونَ (17)
फिरते होंगे उनकी सेवा के लिए बालक, जो सदा (बालक) रहेंगे।
بِأَكْوَابٍ وَأَبَارِيقَ وَكَأْسٍ مِّن مَّعِينٍ (18)
प्याले तथा सुराह़ियाँ लेकर तथा मदिरा के छलकते प्याले।
لَّا يُصَدَّعُونَ عَنْهَا وَلَا يُنزِفُونَ (19)
न तो सिर चकरायेगा उनसे, न वे निर्बोध होंगे।
وَفَاكِهَةٍ مِّمَّا يَتَخَيَّرُونَ (20)
तथा जो फल वे चाहेंगे।
وَلَحْمِ طَيْرٍ مِّمَّا يَشْتَهُونَ (21)
तथा पक्षी का जो मांस वे चाहेंगे।
وَحُورٌ عِينٌ (22)
और गोरियाँ बड़े नैनों वाली।
كَأَمْثَالِ اللُّؤْلُؤِ الْمَكْنُونِ (23)
छुपाकर रखी हुईं मोतियों के समान।
جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (24)
उसके बदले, जो वे (संसार में) करते रहे।
لَا يَسْمَعُونَ فِيهَا لَغْوًا وَلَا تَأْثِيمًا (25)
नहीं सुनेंगे उनमें व्यर्थ बात और न पाप की बात।
إِلَّا قِيلًا سَلَامًا سَلَامًا (26)
केवल सलाम ही सलाम की ध्वनि होगी।
وَأَصْحَابُ الْيَمِينِ مَا أَصْحَابُ الْيَمِينِ (27)
और दायें वाले, क्या (ही भाग्यशाली) हैं दायें वाले
فِي سِدْرٍ مَّخْضُودٍ (28)
बिन काँटे की बैरी में होंगे।
وَطَلْحٍ مَّنضُودٍ (29)
तथा तह पर तह केलों में।
وَظِلٍّ مَّمْدُودٍ (30)
फैली हुई छाया[1] में।
وَمَاءٍ مَّسْكُوبٍ (31)
और प्रवाहित जल में।
وَفَاكِهَةٍ كَثِيرَةٍ (32)
तथा बहुत-से फलों में।
لَّا مَقْطُوعَةٍ وَلَا مَمْنُوعَةٍ (33)
जो न समाप्त होंगे, न रोके जायेंगे।
وَفُرُشٍ مَّرْفُوعَةٍ (34)
और ऊँचे बिस्तर पर।
إِنَّا أَنشَأْنَاهُنَّ إِنشَاءً (35)
हमने बनाया है (उनकी) पत्नियों को एक विशेष रूप से।
فَجَعَلْنَاهُنَّ أَبْكَارًا (36)
हमने बनाय है उन्हें कुमारियाँ।
عُرُبًا أَتْرَابًا (37)
प्रेमिकायें समायु।
لِّأَصْحَابِ الْيَمِينِ (38)
दाहिने वालों के लिए।
ثُلَّةٌ مِّنَ الْأَوَّلِينَ (39)
बहुत-से अगलों में से होंगे।
وَثُلَّةٌ مِّنَ الْآخِرِينَ (40)
तथा बहुत-से पिछलों में से।
وَأَصْحَابُ الشِّمَالِ مَا أَصْحَابُ الشِّمَالِ (41)
और बायें वाले, तो क्या हैं बायें वाले
فِي سَمُومٍ وَحَمِيمٍ (42)
वे गर्म वायु तथा खौलते जल में (होंगे)।
وَظِلٍّ مِّن يَحْمُومٍ (43)
तथा काले धुवें की छाया में।
لَّا بَارِدٍ وَلَا كَرِيمٍ (44)
जो न शीतल होगा और न सुखद।
إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَٰلِكَ مُتْرَفِينَ (45)
वास्तव में, वे इससे पहले (संसार में) सम्पन्न (सुखी) थे।
وَكَانُوا يُصِرُّونَ عَلَى الْحِنثِ الْعَظِيمِ (46)
तथा दुराग्रह करते थे महा पापों पर।
وَكَانُوا يَقُولُونَ أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ (47)
तथा कहा करते थे कि क्या जब हम मर जायेंगे तथा हो जायेंगे धूल और अस्थियाँ, तो क्या हम अवश्य पुनः जीवित होंगे
أَوَآبَاؤُنَا الْأَوَّلُونَ (48)
और क्या हमारे पूर्वज (भी)
قُلْ إِنَّ الْأَوَّلِينَ وَالْآخِرِينَ (49)
आप कह दें कि निःसंदेह सब अगले तथा पिछले।
لَمَجْمُوعُونَ إِلَىٰ مِيقَاتِ يَوْمٍ مَّعْلُومٍ (50)
अवश्य एकत्र किये जायेंगे एक निर्धारित दिन के समय।
ثُمَّ إِنَّكُمْ أَيُّهَا الضَّالُّونَ الْمُكَذِّبُونَ (51)
फिर तुम, हे कुपथो! झुठलाने वालो
لَآكِلُونَ مِن شَجَرٍ مِّن زَقُّومٍ (52)
अवश्य खाने वाले हो ज़क़्क़ूम (थोहड़) के वृक्ष से।
فَمَالِئُونَ مِنْهَا الْبُطُونَ (53)
तथा भरने वाले हो उससे (अपने) उदर।
فَشَارِبُونَ عَلَيْهِ مِنَ الْحَمِيمِ (54)
तथा पीने वाले हो उसपर से खौलता जल।
فَشَارِبُونَ شُرْبَ الْهِيمِ (55)
फिर पीने वाले हो प्यासे[1] ऊँट के समान।
هَٰذَا نُزُلُهُمْ يَوْمَ الدِّينِ (56)
यही उनका अतिथि सत्कार है, प्रतिकार (प्रलय) के दिन।
نَحْنُ خَلَقْنَاكُمْ فَلَوْلَا تُصَدِّقُونَ (57)
हमने ही उत्पन्न किया है तुम्हें, फिर तुम विश्वास क्यों नहीं करते
أَفَرَأَيْتُم مَّا تُمْنُونَ (58)
क्या तुमने ये विचार किया कि जो वीर्य तुम (गर्भाशयों में) गिराते हो।
أَأَنتُمْ تَخْلُقُونَهُ أَمْ نَحْنُ الْخَالِقُونَ (59)
क्या तुम उसे शिशु बनाते हो या हम बनाने वाले हैं
نَحْنُ قَدَّرْنَا بَيْنَكُمُ الْمَوْتَ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ (60)
हमने निर्धारित किया है तुम्हारे बीच मरण को तथा हम विवश होने वाले नहीं हैं।
عَلَىٰ أَن نُّبَدِّلَ أَمْثَالَكُمْ وَنُنشِئَكُمْ فِي مَا لَا تَعْلَمُونَ (61)
कि बदल दें तुम्हारे रूप और तुम्हें बना दें उस रूप में, जिसे तुम नहीं जानते।
وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ النَّشْأَةَ الْأُولَىٰ فَلَوْلَا تَذَكَّرُونَ (62)
तथा तुमने तो जान लिया है प्रथम उत्पत्ति को फिर तुम शिक्षा ग्रहण क्यों नहीं करते
أَفَرَأَيْتُم مَّا تَحْرُثُونَ (63)
फिर क्या तुमने विचार किया कि उसमें जो तुम बोते हो
أَأَنتُمْ تَزْرَعُونَهُ أَمْ نَحْنُ الزَّارِعُونَ (64)
क्या तुम उसे उगाते हो या हम उसे उगाने वाले हैं
لَوْ نَشَاءُ لَجَعَلْنَاهُ حُطَامًا فَظَلْتُمْ تَفَكَّهُونَ (65)
यदि हम चाहें, तो उसे भुस बना दें, फिर तुम बातें बनाते रह जाओ।
إِنَّا لَمُغْرَمُونَ (66)
वस्तुतः, हम दण्डित कर दिये गये।
بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ (67)
बल्कि हम (जीविका से) वंचित कर दिये गये।
أَفَرَأَيْتُمُ الْمَاءَ الَّذِي تَشْرَبُونَ (68)
फिर तुमने विचार किया उस पानी में, जो तुम पीते हो
أَأَنتُمْ أَنزَلْتُمُوهُ مِنَ الْمُزْنِ أَمْ نَحْنُ الْمُنزِلُونَ (69)
क्या तुमने उसे बरसाया है बादल से अथवा हम उसे बरसाने वाले हैं।
لَوْ نَشَاءُ جَعَلْنَاهُ أُجَاجًا فَلَوْلَا تَشْكُرُونَ (70)
यदि हम चाहें, तो उसे खारी कर दें, फिर तुम आभारी (कृतज्ञ) क्यों नहीं होते
أَفَرَأَيْتُمُ النَّارَ الَّتِي تُورُونَ (71)
क्या तुमने उस अग्नि को देखा, जिसे तुम सुलगाते हो।
أَأَنتُمْ أَنشَأْتُمْ شَجَرَتَهَا أَمْ نَحْنُ الْمُنشِئُونَ (72)
क्या तुमने उत्पन्न किया है उसके वृक्ष को या हम उत्पन्न करने वाले हैं
نَحْنُ جَعَلْنَاهَا تَذْكِرَةً وَمَتَاعًا لِّلْمُقْوِينَ (73)
हमने ही बनाया उसे शिक्षाप्रद तथा यात्रियों के लाभदायक।
فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ (74)
अतः, (हे नबी!) आप पवित्रता का वर्णन करें अपने महा पालनहार के नाम की।
۞ فَلَا أُقْسِمُ بِمَوَاقِعِ النُّجُومِ (75)
मैं शपथ लेता हूँ सितारों के स्थानों की
وَإِنَّهُ لَقَسَمٌ لَّوْ تَعْلَمُونَ عَظِيمٌ (76)
और ये निश्चय एक बड़ी शपथ है, यदि तुम समझो।
إِنَّهُ لَقُرْآنٌ كَرِيمٌ (77)
वास्तव में, ये आदरणीय[1] क़ुर्आन है।
فِي كِتَابٍ مَّكْنُونٍ (78)
सुरक्षित[1] पुस्तक में।
لَّا يَمَسُّهُ إِلَّا الْمُطَهَّرُونَ (79)
इसे पवित्र लोग ही छूते हैं।
تَنزِيلٌ مِّن رَّبِّ الْعَالَمِينَ (80)
अवतरित किया गया है सर्वलोक के पालनहार की ओर से।
أَفَبِهَٰذَا الْحَدِيثِ أَنتُم مُّدْهِنُونَ (81)
फिर क्या तुम इस वाणि (क़ुर्आन) की अपेक्षा करते हो
وَتَجْعَلُونَ رِزْقَكُمْ أَنَّكُمْ تُكَذِّبُونَ (82)
तथा बनाते हो अपना भाग कि इसे तुम झुठलाते हो
فَلَوْلَا إِذَا بَلَغَتِ الْحُلْقُومَ (83)
फिर क्यों नहीं जब प्राण गले को पहुँचते हैं।
وَأَنتُمْ حِينَئِذٍ تَنظُرُونَ (84)
और तुम उस समय देखते रहते हो।
وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنكُمْ وَلَٰكِن لَّا تُبْصِرُونَ (85)
तथा हम अधिक समीप होते हैं उसके तुमसे, परन्तु तुम नहीं देख सकते।
فَلَوْلَا إِن كُنتُمْ غَيْرَ مَدِينِينَ (86)
तो यदि तुम किसी के आधीन न हो।
تَرْجِعُونَهَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ (87)
तो उस (प्राण) को फेर क्यों नहीं लाते, यदि तुम सच्चे हो
فَأَمَّا إِن كَانَ مِنَ الْمُقَرَّبِينَ (88)
फिर यदि वह (प्राणी) समीपवर्तियों में है।
فَرَوْحٌ وَرَيْحَانٌ وَجَنَّتُ نَعِيمٍ (89)
तो उसके लिए सुख तथा उत्तम जीविका तथा सुख भरा स्वर्ग है।
وَأَمَّا إِن كَانَ مِنْ أَصْحَابِ الْيَمِينِ (90)
और यदि वह दायें वालों में से है।
فَسَلَامٌ لَّكَ مِنْ أَصْحَابِ الْيَمِينِ (91)
तो सलाम है तेरे लिए दायें वालों में होने के कारण।
وَأَمَّا إِن كَانَ مِنَ الْمُكَذِّبِينَ الضَّالِّينَ (92)
और यदि वह है झुठलाने वाले कुपथों में से।
فَنُزُلٌ مِّنْ حَمِيمٍ (93)
तो अतिथि सत्कार है खौलते पानी से।
وَتَصْلِيَةُ جَحِيمٍ (94)
तथा नरक में प्रवेश।
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ حَقُّ الْيَقِينِ (95)
वास्तव में, यही निश्चय सत्य है।
فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ (96)
अतः, (हे नबी!) आप पवित्रता का वर्णन करें अपने महा पालनहार के नाम की।
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