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سورة السجدة باللغة الهندية

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ترجمة معاني سورة السجدة باللغة الهندية - Hindi

القرآن باللغة الهندية - سورة السجدة مترجمة إلى اللغة الهندية، Surah Sajdah in Hindi. نوفر ترجمة دقيقة سورة السجدة باللغة الهندية - Hindi, الآيات 30 - رقم السورة 32 - الصفحة 415.

بسم الله الرحمن الرحيم

الم (1)
अलिफ लाम मीम।
تَنزِيلُ الْكِتَابِ لَا رَيْبَ فِيهِ مِن رَّبِّ الْعَالَمِينَ (2)
इस पुस्तक का उतारना, जिसमें कोई संदेह नहीं पूरे संसार के पालनहार की ओर से है।
أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ ۚ بَلْ هُوَ الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ لِتُنذِرَ قَوْمًا مَّا أَتَاهُم مِّن نَّذِيرٍ مِّن قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ (3)
क्या वे कहते हैं कि इसे, इसने घड़ लिया है? बल्कि ये सत्य है आपके पालनहार की ओर से, ताकि आप सावधान करें उन लोगों को, जिन[1] के पास नहीं आया है कोई सावधान करने वाला आपसे पहले। संभव है वे सीधी राह पर आ जायें।
اللَّهُ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَىٰ عَلَى الْعَرْشِ ۖ مَا لَكُم مِّن دُونِهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا شَفِيعٍ ۚ أَفَلَا تَتَذَكَّرُونَ (4)
अल्लाह वही है, जिसने पैदा किया आकाशों तथा धरती को और जो दोनों के मध्य है, छः दिनों में। फिर स्थित हो गया अर्श पर। नहीं है उसके सिवा तुम्हारा कोई संरक्षक और न कोई अभिस्तावक (सिफ़ारिशी), तो क्या तुम शिक्षा नहीं लेते
يُدَبِّرُ الْأَمْرَ مِنَ السَّمَاءِ إِلَى الْأَرْضِ ثُمَّ يَعْرُجُ إِلَيْهِ فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ أَلْفَ سَنَةٍ مِّمَّا تَعُدُّونَ (5)
वह उपाय करता है प्रत्येक कार्य की आकाश से धरती तक, फिर प्रत्येक कार्य, ऊपर उसके पास जाता है, एक दिन में, जिसका माप एक हज़ार वर्ष है, तुम्हारी गणना से।
ذَٰلِكَ عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ (6)
वही है ज्ञानी छुपे तथा खुले का, अति प्रभुत्वशाली, दयावान्।
الَّذِي أَحْسَنَ كُلَّ شَيْءٍ خَلَقَهُ ۖ وَبَدَأَ خَلْقَ الْإِنسَانِ مِن طِينٍ (7)
जिनने सुन्दर बनाई प्रत्येक चीज़, जो उत्पन्न की और आरंभ की मनुष्य की उत्पत्ति मिट्टी से।
ثُمَّ جَعَلَ نَسْلَهُ مِن سُلَالَةٍ مِّن مَّاءٍ مَّهِينٍ (8)
फिर बनाया उसका वंश एक तुच्छ जल के निचोड़ (वीर्य) से।
ثُمَّ سَوَّاهُ وَنَفَخَ فِيهِ مِن رُّوحِهِ ۖ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۚ قَلِيلًا مَّا تَشْكُرُونَ (9)
फिर बराबर किया उसे और फूंक दिया उसमें अपनी आत्मा (प्राण) तथा बनाये तुम्हारे लिए कान और आँख तथा दिल। तुम कम ही कृतज्ञ होते हो।
وَقَالُوا أَإِذَا ضَلَلْنَا فِي الْأَرْضِ أَإِنَّا لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ ۚ بَلْ هُم بِلِقَاءِ رَبِّهِمْ كَافِرُونَ (10)
तथा उन्होंने कहाः क्या जब हम खो जायेंगे धरती में, तो क्या हम नई उत्पत्ति में होंगे? बल्कि वे अपने पालनहार से मिलने का इन्कार करने वाले हैं।
۞ قُلْ يَتَوَفَّاكُم مَّلَكُ الْمَوْتِ الَّذِي وُكِّلَ بِكُمْ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُمْ تُرْجَعُونَ (11)
आप कह दें कि तुम्हारा प्राण निकाल लेगा मौत का फ़रिश्ता, जो तुमपर नियुक्त किया गया है, फिर अपने पालनहार की ओर फेर दिये जाओगे।
وَلَوْ تَرَىٰ إِذِ الْمُجْرِمُونَ نَاكِسُو رُءُوسِهِمْ عِندَ رَبِّهِمْ رَبَّنَا أَبْصَرْنَا وَسَمِعْنَا فَارْجِعْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا إِنَّا مُوقِنُونَ (12)
और यदि आप देखते, जब अपराधी अपने सिर झुकाये होंगे अपने पालनहार के समक्ष, (वे कह रहे होंगेः) हे हमारे पालनहार! हमने देख लिया और सुन लिया, अतः, हमें फेर दे (संसार में) हम सदाचार करेंगे। हमें पूरा विश्वास हो गया।
وَلَوْ شِئْنَا لَآتَيْنَا كُلَّ نَفْسٍ هُدَاهَا وَلَٰكِنْ حَقَّ الْقَوْلُ مِنِّي لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ (13)
और यदि हम चाहते, तो प्रदान कर देते प्रत्येक प्राणी को उसका मार्गदर्शन। परन्तु, मेरी ये बात सत्य होकर रही कि मैं अवश्य भरूँगा नरक को जिन्नों तथा मानव से।
فَذُوقُوا بِمَا نَسِيتُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَٰذَا إِنَّا نَسِينَاكُمْ ۖ وَذُوقُوا عَذَابَ الْخُلْدِ بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ (14)
तो चखो, अपने भूल जाने के कारण अपने इस दिन के मिलने को, हमने (भी) तुम्हें भुला दिया[1] है। चखो, सदा की यातना उसके बदले, जो तुम कर रहे थे।
إِنَّمَا يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا الَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا بِهَا خَرُّوا سُجَّدًا وَسَبَّحُوا بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُونَ ۩ (15)
हमारी आयतों पर बस वही ईमान लाते हैं, जिनको जब समझाया जाये उनसे, तो गिर जाते हैं सज्दा करते हुए और पवित्रता का गान करते हैं, अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ और अभिमान नहीं करते।
تَتَجَافَىٰ جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَطَمَعًا وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ (16)
अलग रहते हैं उनके पार्शव (पहलू) बिस्तर से, वह प्रार्थना करते रहते हैं अपने पालनहार से भय तथा आशा रखते हुए तथा उसमें से, जो हमने उन्हें प्रदान किया है, दान करते रहते हैं।
فَلَا تَعْلَمُ نَفْسٌ مَّا أُخْفِيَ لَهُم مِّن قُرَّةِ أَعْيُنٍ جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (17)
तो नहीं जानता कोई प्राणी उसे, जो हमने छुपा रखा है उनके लिए आँखों की ठण्डक[1] उसके प्रतिफल में, जो वह कर रहे थे।
أَفَمَن كَانَ مُؤْمِنًا كَمَن كَانَ فَاسِقًا ۚ لَّا يَسْتَوُونَ (18)
फिर क्या, जो ईमान वाला हो, उसके समान है, जो अवज्ञाकारी हो? वे सब समान नहीं हो सकेंगे।
أَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَلَهُمْ جَنَّاتُ الْمَأْوَىٰ نُزُلًا بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (19)
जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, तो उन्हीं के लिए स्थायी स्वर्ग हैं, अतिथि सत्कार के लिए, उसके बदले, जो वे करते रहे।
وَأَمَّا الَّذِينَ فَسَقُوا فَمَأْوَاهُمُ النَّارُ ۖ كُلَّمَا أَرَادُوا أَن يَخْرُجُوا مِنْهَا أُعِيدُوا فِيهَا وَقِيلَ لَهُمْ ذُوقُوا عَذَابَ النَّارِ الَّذِي كُنتُم بِهِ تُكَذِّبُونَ (20)
और जो अवज्ञा कर गये, उनका आवास नरक है। जब-जब वे निकलना चाहेंगे उसमें से, तो फेर दिये जायेंगे उसमें तथा कहा जायेगा उनसे कि चखो उस अग्नि की यातना, जिसे तुम झुठला रहे थे।
وَلَنُذِيقَنَّهُم مِّنَ الْعَذَابِ الْأَدْنَىٰ دُونَ الْعَذَابِ الْأَكْبَرِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ (21)
और हम अवश्य चखायेंगे उन्हें सांसारिक यातना, बड़ी यातना से पूर्व ताकि वे फिर[1] आयें।
وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِآيَاتِ رَبِّهِ ثُمَّ أَعْرَضَ عَنْهَا ۚ إِنَّا مِنَ الْمُجْرِمِينَ مُنتَقِمُونَ (22)
और उससे अधिक अत्याचारी कौन है, जिसे शिक्षा दी जाये उसके पालनहार की आयतों द्वारा, फिर विमुख हो जाये उनसे? वास्तव में, हम अपराधियों से बदला लेने वाले हैं।
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَلَا تَكُن فِي مِرْيَةٍ مِّن لِّقَائِهِ ۖ وَجَعَلْنَاهُ هُدًى لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ (23)
तथा हमने मूसा को प्रदान की (तौरात) तो आप न हों किसी संदेह में, उस[1] से मिलने में तथा बनाया हमने उसे (तौरात को) मार्गदर्शन इस्राईल की संतान के लिए।
وَجَعَلْنَا مِنْهُمْ أَئِمَّةً يَهْدُونَ بِأَمْرِنَا لَمَّا صَبَرُوا ۖ وَكَانُوا بِآيَاتِنَا يُوقِنُونَ (24)
तो हमने उनमें से अग्रणी बनाये, जो मार्गदर्शन देते रहे हमारे आदेश द्वारा, जब उन्होंने सहन किया तथा हमारी आयतों पर विश्वास[1] करते रहे।
إِنَّ رَبَّكَ هُوَ يَفْصِلُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ (25)
वस्तुतः, आपका पालनहार ही निर्णय करेगा, उनके बीच प्रलय के दिन जिसमें वे विभेद करते रहे।
أَوَلَمْ يَهْدِ لَهُمْ كَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَبْلِهِم مِّنَ الْقُرُونِ يَمْشُونَ فِي مَسَاكِنِهِمْ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ ۖ أَفَلَا يَسْمَعُونَ (26)
तो क्या मार्गदर्शन नहीं कराया उन्हें कि हमने ध्वस्त कर दिया इससे पूर्व बहुत-से युग के लोगों को, जो चल-फिर रहे थे अपने घरों में। वास्तव में, इसमें बहुत-सी निशानियाँ (शिक्षायें) हैं, तो क्या वे सुनते नहीं हैं
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا نَسُوقُ الْمَاءَ إِلَى الْأَرْضِ الْجُرُزِ فَنُخْرِجُ بِهِ زَرْعًا تَأْكُلُ مِنْهُ أَنْعَامُهُمْ وَأَنفُسُهُمْ ۖ أَفَلَا يُبْصِرُونَ (27)
क्या उन्होंने नहीं देखा कि हम बहा ले जाते हैं, जल को, सूखी भूमि की ओर, फिर उपजाते हैं उसके द्वारा खेतियाँ, खाते हैं जिनमें से उनके चौपाये तथा वे स्वयं। तो क्या वे ग़ौर नहीं करते
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْفَتْحُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ (28)
तथा कहते हैं कि कब होगा वह निर्णय यदि तुम सच्चे हो
قُلْ يَوْمَ الْفَتْحِ لَا يَنفَعُ الَّذِينَ كَفَرُوا إِيمَانُهُمْ وَلَا هُمْ يُنظَرُونَ (29)
आप कह दें: निर्णय के दिन लाभ नहीं देगा काफ़िरों को, उनका ईमान लाना[1] और न उन्हें अवसर दिया जायेगा।
فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَانتَظِرْ إِنَّهُم مُّنتَظِرُونَ (30)
अतः, आप विमुख हो जायें उनसे तथा प्रतीक्षा करें। ये भी प्रतीक्षा करने वाले हैं।
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