×

سورة يس باللغة الهندية

ترجمات القرآنباللغة الهندية ⬅ سورة يس

ترجمة معاني سورة يس باللغة الهندية - Hindi

القرآن باللغة الهندية - سورة يس مترجمة إلى اللغة الهندية، Surah Yasin in Hindi. نوفر ترجمة دقيقة سورة يس باللغة الهندية - Hindi, الآيات 83 - رقم السورة 36 - الصفحة 440.

بسم الله الرحمن الرحيم

يس (1)
या सीन।
وَالْقُرْآنِ الْحَكِيمِ (2)
शपथ है सुदृढ़ क़ुर्आन की
إِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ (3)
वस्तुतः, आप रसूलों में से हैं।
عَلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ (4)
सुपथ पर हैं।
تَنزِيلَ الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ (5)
(ये क़ुर्आन) प्रभुत्वशाली, अति दयावान् का अवतरित किया हुआ है।
لِتُنذِرَ قَوْمًا مَّا أُنذِرَ آبَاؤُهُمْ فَهُمْ غَافِلُونَ (6)
ताकि आप सावधान करें उस जाति[1] को, नहीं सावधान किये गये हैं जिनके पूर्वज। इस लिए वे अचेत हैं।
لَقَدْ حَقَّ الْقَوْلُ عَلَىٰ أَكْثَرِهِمْ فَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ (7)
सिध्द हो चुका है वचन[1] उनमें से अधिक्तर लोगों पर। अतः, वे ईमान नहीं लायेंगे।
إِنَّا جَعَلْنَا فِي أَعْنَاقِهِمْ أَغْلَالًا فَهِيَ إِلَى الْأَذْقَانِ فَهُم مُّقْمَحُونَ (8)
तथा हमने डाल दिये हैं तौक़ उनके गलों में, जो हड्डियों तक[1] हैं। इसलिए वे सिर ऊपर किये हुए हैं।
وَجَعَلْنَا مِن بَيْنِ أَيْدِيهِمْ سَدًّا وَمِنْ خَلْفِهِمْ سَدًّا فَأَغْشَيْنَاهُمْ فَهُمْ لَا يُبْصِرُونَ (9)
तथा हमने बना दी है उनके आगे एक आड़ और उनके पीछे एक आड़। फिर ढाँक दिया है उनको, तो[1] वे देख नहीं रहे हैं।
وَسَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ (10)
तथा समान है उनपर कि आप उन्हें सावधान करें अथवा सावधान न करें, वे ईमान नहीं लायेंगे।
إِنَّمَا تُنذِرُ مَنِ اتَّبَعَ الذِّكْرَ وَخَشِيَ الرَّحْمَٰنَ بِالْغَيْبِ ۖ فَبَشِّرْهُ بِمَغْفِرَةٍ وَأَجْرٍ كَرِيمٍ (11)
आप तो बस उसे सचेत कर सकेंगे, जो माने इस शिक्षा (क़ुर्आन) को तथा डरे अत्यंत कृपाशील से, बिन देखे। तो आप शुभ सूचना सुना दें उसे, क्षमा की तथा सम्मानित प्रतिफल की।
إِنَّا نَحْنُ نُحْيِي الْمَوْتَىٰ وَنَكْتُبُ مَا قَدَّمُوا وَآثَارَهُمْ ۚ وَكُلَّ شَيْءٍ أَحْصَيْنَاهُ فِي إِمَامٍ مُّبِينٍ (12)
निश्चय हम ही जीवित करेंगे मुर्दों को तथा लिख रहे हैं, जो कर्म उन्होंने किया है और उनके पद् चिन्हों[1] को तथा प्रत्येक वस्तु को हमने गिन रखा है, खुली पुस्तक में।
وَاضْرِبْ لَهُم مَّثَلًا أَصْحَابَ الْقَرْيَةِ إِذْ جَاءَهَا الْمُرْسَلُونَ (13)
तथा आप उन्हें[1] एक उदाहरण दीजिये नगर वासियों का। जब आये उसमें कई रसूल।
إِذْ أَرْسَلْنَا إِلَيْهِمُ اثْنَيْنِ فَكَذَّبُوهُمَا فَعَزَّزْنَا بِثَالِثٍ فَقَالُوا إِنَّا إِلَيْكُم مُّرْسَلُونَ (14)
जब हमने भेजा उनकी ओर दो को। तो उन्होंने झुठला दिया उन दोनों को। फिर हमने समर्थन दिया तीसरे के द्वारा। तो तीनों ने कहाः हम तुम्हारी ओर भेजे गये हैं।
قَالُوا مَا أَنتُمْ إِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُنَا وَمَا أَنزَلَ الرَّحْمَٰنُ مِن شَيْءٍ إِنْ أَنتُمْ إِلَّا تَكْذِبُونَ (15)
उन्होंने कहाः तुम सब तो मनुष्य ही हो, हमारे[1] समान और नहीं अवतरित किया है अत्यंत कृपाशील ने कुछ भी। तुम सब तो बस झूठ बोल रहे हो।
قَالُوا رَبُّنَا يَعْلَمُ إِنَّا إِلَيْكُمْ لَمُرْسَلُونَ (16)
उन रसूलों ने कहाः हमारा पालनहार जानता है कि वास्तव में हम तुम्हारी ओर रसूल बनाकर भेजे गये हैं।
وَمَا عَلَيْنَا إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ (17)
तथा हमारा दायित्व नहीं है खुला उपदेश पहुँचा देने के सिवा।
قَالُوا إِنَّا تَطَيَّرْنَا بِكُمْ ۖ لَئِن لَّمْ تَنتَهُوا لَنَرْجُمَنَّكُمْ وَلَيَمَسَّنَّكُم مِّنَّا عَذَابٌ أَلِيمٌ (18)
उन्होंने कहाः हम तुम्हें अशुभ समझ रहे हैं। यदि तुम रुके नहीं, तो हम तुम्हें अवश्य पथराव करके मार डालेंगे और तुम्हें अवश्य हमारी ओर से पहुँचेगी दुःखदायी यातना।
قَالُوا طَائِرُكُم مَّعَكُمْ ۚ أَئِن ذُكِّرْتُم ۚ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ مُّسْرِفُونَ (19)
उन्होंने कहाः तुम्हारा अशुभ तुम्हारे साथ है। क्या यदि तुम्हें शिक्षा दी जाये (तो अशुभ समझते हो)? बल्कि तुम उल्लंघनकारी जाति हो।
وَجَاءَ مِنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ رَجُلٌ يَسْعَىٰ قَالَ يَا قَوْمِ اتَّبِعُوا الْمُرْسَلِينَ (20)
तथा आया नगर के अन्ति किनारे से, एक पुरुष दौड़ता हुआ। उसने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! अनुसरण करो रसूलों का।
اتَّبِعُوا مَن لَّا يَسْأَلُكُمْ أَجْرًا وَهُم مُّهْتَدُونَ (21)
अनुसरण करो उनका, जो तुमसे नहीं माँगते कोई पारिश्रमिक (बदला) तथा वे सुपथ पर हैं।
وَمَا لِيَ لَا أَعْبُدُ الَّذِي فَطَرَنِي وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (22)
तथा मुझे क्या हुआ है कि मैं उसकी इबादत (वंदना) न करूँ, जिसने मुझे पैदा किया है? और तुमसब उसी की ओर फेरे जाओगे।
أَأَتَّخِذُ مِن دُونِهِ آلِهَةً إِن يُرِدْنِ الرَّحْمَٰنُ بِضُرٍّ لَّا تُغْنِ عَنِّي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا وَلَا يُنقِذُونِ (23)
क्या मैं बना लूँ उसे छोड़कर बहुत-से पूज्य? यदि अत्यंत कृपाशील मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे, तो नहीं लाभ पहूँचायेगी मुझे उनकी अनुशंसा (सिफ़ारिश) कुछ और न वे मुझे बचा सकेंगे।
إِنِّي إِذًا لَّفِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ (24)
वास्तव में, तब तो मैं खुले कुपथ में हूँ।
إِنِّي آمَنتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُونِ (25)
निश्चय, मैं ईमान लाया तुम्हारे पालनहार पर, अतः, मेरी सुनो।
قِيلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَ ۖ قَالَ يَا لَيْتَ قَوْمِي يَعْلَمُونَ (26)
(उससे) कहा गयाः तुम प्रवेश कर जाओ स्वर्ग में। उसने कहाः काश मेरी जाति जानती
بِمَا غَفَرَ لِي رَبِّي وَجَعَلَنِي مِنَ الْمُكْرَمِينَ (27)
जिसकारण क्षमा[1] कर दिया मुझे मेरे पालनहार ने और मुझे सम्मिलित कर दिया सम्मानितों में।
۞ وَمَا أَنزَلْنَا عَلَىٰ قَوْمِهِ مِن بَعْدِهِ مِن جُندٍ مِّنَ السَّمَاءِ وَمَا كُنَّا مُنزِلِينَ (28)
तथा हमने नहीं उतारी उसकी जाति पर उसके पश्चात् कोई सेना[1] आकाश से और न हमें उतारने की आवश्यक्ता थी।
إِن كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ خَامِدُونَ (29)
वह तो बस एक कड़ी ध्वनि थी। फिर सहसा सबके सब बुझ गये।
يَا حَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِ ۚ مَا يَأْتِيهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ (30)
हाय संताप है[1] भक्तों पर! नहीं आया उनके पास रसूल, परन्तु वे उसका उपहास करते रहे।
أَلَمْ يَرَوْا كَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُم مِّنَ الْقُرُونِ أَنَّهُمْ إِلَيْهِمْ لَا يَرْجِعُونَ (31)
क्या उन्होंने नहीं देखा कि उनसे पहले विनाश कर दिया बहुत-से समुदायों का। वे उनकी ओर दोबारा फिरकर नहीं आयेंगे।
وَإِن كُلٌّ لَّمَّا جَمِيعٌ لَّدَيْنَا مُحْضَرُونَ (32)
तथा सबके सब हमारे समक्ष उपस्थित किये[1] जायेंगे।
وَآيَةٌ لَّهُمُ الْأَرْضُ الْمَيْتَةُ أَحْيَيْنَاهَا وَأَخْرَجْنَا مِنْهَا حَبًّا فَمِنْهُ يَأْكُلُونَ (33)
तथा उन[1] के लिए एक निशानी है निर्जीव (सूखी) धरती। जिसे हमने जीवित कर दिया और हमने निकाले उससे अन्न, तो तुम उसीमें से खाते हो।
وَجَعَلْنَا فِيهَا جَنَّاتٍ مِّن نَّخِيلٍ وَأَعْنَابٍ وَفَجَّرْنَا فِيهَا مِنَ الْعُيُونِ (34)
तथा पैदा कर दिये उसमें बाग़ खजूरों तथा अंगूरों के और फाड़ दिये उसमें जल स्रोत।
لِيَأْكُلُوا مِن ثَمَرِهِ وَمَا عَمِلَتْهُ أَيْدِيهِمْ ۖ أَفَلَا يَشْكُرُونَ (35)
ताकि वे खायें उसके फल और नहीं बनाया है उसे उनके हाथों ने। तो क्या वे कृतज्ञ नहीं होते
سُبْحَانَ الَّذِي خَلَقَ الْأَزْوَاجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنبِتُ الْأَرْضُ وَمِنْ أَنفُسِهِمْ وَمِمَّا لَا يَعْلَمُونَ (36)
पवित्र है वह, जिसने पैदा किये प्रत्येक जोड़े, उसके जिसे उगाती है धरती तथा स्वयं उनकी अपनी जाति के और उसके, जिसे तुम नहीं जानते हो।
وَآيَةٌ لَّهُمُ اللَّيْلُ نَسْلَخُ مِنْهُ النَّهَارَ فَإِذَا هُم مُّظْلِمُونَ (37)
तथा एक निशानी (चिन्ह) है उनके लिए रात्रि। खींच लेते हैं हम जिससे दिन को, तो सहसा वह अंधेरों में हो जाते हैं।
وَالشَّمْسُ تَجْرِي لِمُسْتَقَرٍّ لَّهَا ۚ ذَٰلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ (38)
तथा सूर्य चला जा रहा है अपने निर्धारित स्थान की ओर। ये प्रभुत्वशाली सर्वज्ञ का निर्धारित किया हुआ है।
وَالْقَمَرَ قَدَّرْنَاهُ مَنَازِلَ حَتَّىٰ عَادَ كَالْعُرْجُونِ الْقَدِيمِ (39)
तथा चन्द्रमा के हमने निर्धारित कर दिये हैं गंतव्य स्थान। यहाँतक कि फिर वह हो जाता है पुरानी खजूर की सूखी शाखा के समान।
لَا الشَّمْسُ يَنبَغِي لَهَا أَن تُدْرِكَ الْقَمَرَ وَلَا اللَّيْلُ سَابِقُ النَّهَارِ ۚ وَكُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ (40)
न तो सूर्य के लिए ही उचित है कि चन्द्रमा को पा जाये और न रात अग्रगामी हो सकती है दिन से। सब एक मण्डल में तैर रहे हैं।
وَآيَةٌ لَّهُمْ أَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّيَّتَهُمْ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ (41)
तथा उनके लिए एक निशानी (लक्षण) (ये भी) है कि हमने सवार किया उनकी संतान को भरी हुई नाव में।
وَخَلَقْنَا لَهُم مِّن مِّثْلِهِ مَا يَرْكَبُونَ (42)
तथा हमने पैदा किया उनके लिए उसके समान वह चीज़, जिसपर वे सवार होते हैं।
وَإِن نَّشَأْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِيخَ لَهُمْ وَلَا هُمْ يُنقَذُونَ (43)
और यदि हम चाहें, तो उन्हें जलमगन कर दें। तो न कोई सहायक होगा उनका और न वे निकाले (बचाये) जायेंगे।
إِلَّا رَحْمَةً مِّنَّا وَمَتَاعًا إِلَىٰ حِينٍ (44)
परन्तु, हमारी दया से तथ लाभ देने के लिए एक समय तक।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّقُوا مَا بَيْنَ أَيْدِيكُمْ وَمَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ (45)
और[1] जब उनसे कहा जाता है कि डरो उस (यातना) से, जो तुम्हारे आगे तथा तुम्हारे पीछे है, ताकि तुमपर दया की जाये।
وَمَا تَأْتِيهِم مِّنْ آيَةٍ مِّنْ آيَاتِ رَبِّهِمْ إِلَّا كَانُوا عَنْهَا مُعْرِضِينَ (46)
तथा नहीं आती उनके पास कोई निशानी उनके पालनहार की निशानियों में से, परन्तु वे उससे मुँह फेर लेते हैं।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ أَنفِقُوا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّهُ قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا أَنُطْعِمُ مَن لَّوْ يَشَاءُ اللَّهُ أَطْعَمَهُ إِنْ أَنتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ (47)
तथा जब उनसे कहा जाता है कि दान करो उसमें से, जो प्रदान किया है अल्लाह ने तुम्हें, तो कहते हैं जो काफ़िर हो गये उनसे, जो ईमान लाये हैं: क्या हम उसे खाना खिलायें, जिसे यदि अल्लाह चाहे, तो खिला सकता है? तुमतो खुले कुपथ में हो।
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ (48)
और वे कहते हैं कि कब ये (प्रलय) का वचन पूरा होगा, यदि तुम सत्यवादी हो
مَا يَنظُرُونَ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً تَأْخُذُهُمْ وَهُمْ يَخِصِّمُونَ (49)
वह नहीं प्रतीक्षा कर रहे हैं, परन्तु एक कड़ी ध्वनि[1] की, जो उन्हें पकड़ लेगी और वह झगड़ रहे होंगे।
فَلَا يَسْتَطِيعُونَ تَوْصِيَةً وَلَا إِلَىٰ أَهْلِهِمْ يَرْجِعُونَ (50)
तो न वह कोई वसिय्यत कर सकेंगे और न अपने परिजनों में वापस आ सकेंगे।
وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَإِذَا هُم مِّنَ الْأَجْدَاثِ إِلَىٰ رَبِّهِمْ يَنسِلُونَ (51)
तथा फूँका[1] जायेगा सूर (नरसिंघा) में, तो वह सहसा समाधियों से अपने पालनहार की ओर भागते हुए चलने लगेंगे।
قَالُوا يَا وَيْلَنَا مَن بَعَثَنَا مِن مَّرْقَدِنَا ۜ ۗ هَٰذَا مَا وَعَدَ الرَّحْمَٰنُ وَصَدَقَ الْمُرْسَلُونَ (52)
वे कहेंगेः हाय हमारा विनाश! किसने हमें जगा दिया हमारे विश्राम गृह से? ये वो है, जिसका वचन दिया था अत्यंत कृपाशील ने तथा सच कहा था रसूलों ने।
إِن كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ جَمِيعٌ لَّدَيْنَا مُحْضَرُونَ (53)
नहीं होगी वह, परन्तु एक कड़ी ध्वनि। फिर सहसा वे सबके सब, हमारे समक्ष उपस्थित कर दिये जायेंगे।
فَالْيَوْمَ لَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَلَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ (54)
तो आज नहीं अत्याचार किया जायेगा किसी प्राणी पर कुछ और तुम्हें उसी का प्रतिफल (बदला) दिया जायेगा, जो तुम कर रहे थे।
إِنَّ أَصْحَابَ الْجَنَّةِ الْيَوْمَ فِي شُغُلٍ فَاكِهُونَ (55)
वास्तव में, स्वर्गीय आज अपने आनन्द में लगे हुए हैं।
هُمْ وَأَزْوَاجُهُمْ فِي ظِلَالٍ عَلَى الْأَرَائِكِ مُتَّكِئُونَ (56)
वे तथा उनकी पत्नियाँ सायों में हैं, मस्नदों पर तकिये लगाये हुए।
لَهُمْ فِيهَا فَاكِهَةٌ وَلَهُم مَّا يَدَّعُونَ (57)
उनके लिए उसमें प्रत्येक प्रकार के फल हैं तथा उनके लिए वो है, जिसकी वे माँग करें।
سَلَامٌ قَوْلًا مِّن رَّبٍّ رَّحِيمٍ (58)
(उन्हें) सलाम कहा गया है अति दयावान् पालनहार की ओर से।
وَامْتَازُوا الْيَوْمَ أَيُّهَا الْمُجْرِمُونَ (59)
तथा तुम अलग[1] हो जाओ आज, हे अपराधियो
۞ أَلَمْ أَعْهَدْ إِلَيْكُمْ يَا بَنِي آدَمَ أَن لَّا تَعْبُدُوا الشَّيْطَانَ ۖ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ (60)
हे आदम की संतान! क्या मैंने तुमसे बल देकर नहीं कहा था कि इबादत (वंदना) न करना शैतान की? वास्तव में, वह तुम्हारा खुला शत्रु है।
وَأَنِ اعْبُدُونِي ۚ هَٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ (61)
तथा इबादत (वंदना) करना मेरी ही, यही सीधी डगर है।
وَلَقَدْ أَضَلَّ مِنكُمْ جِبِلًّا كَثِيرًا ۖ أَفَلَمْ تَكُونُوا تَعْقِلُونَ (62)
तथा वह कुपथ कर चुका है, तुममें से बहुत-से समुदायों को, तो क्या तुम समझते नही हो
هَٰذِهِ جَهَنَّمُ الَّتِي كُنتُمْ تُوعَدُونَ (63)
यही नरक है, जिसका वचन तुम्हें दिया जा रहा था।
اصْلَوْهَا الْيَوْمَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ (64)
आज, प्रवेश कर जाओ उसमें, उस कुफ़्र के बदले, जो तुम कर रहे थे।
الْيَوْمَ نَخْتِمُ عَلَىٰ أَفْوَاهِهِمْ وَتُكَلِّمُنَا أَيْدِيهِمْ وَتَشْهَدُ أَرْجُلُهُم بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ (65)
आज, हम मुहर (मुद्रा) लगा देंगे उनके मुखों पर और हमसे बात करेंगे उनके हाथ तथा साक्ष्य (गवाही) देंगे उनके पैर, उनके कर्मों की, जो वे कर रहे थे।
وَلَوْ نَشَاءُ لَطَمَسْنَا عَلَىٰ أَعْيُنِهِمْ فَاسْتَبَقُوا الصِّرَاطَ فَأَنَّىٰ يُبْصِرُونَ (66)
और यदि हम चाहते, तो उनकी आँखें अंधी कर देते। फिर वे दौड़ते संगार्ग की ओर, परन्तु कहाँ से देखते
وَلَوْ نَشَاءُ لَمَسَخْنَاهُمْ عَلَىٰ مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوا مُضِيًّا وَلَا يَرْجِعُونَ (67)
और यदि हम चाहते, तो विकृत कर देते उन्हें, उनके स्थान पर, तो न वे आगे जा सकते थे, न पीछे फिर सकते थे।
وَمَن نُّعَمِّرْهُ نُنَكِّسْهُ فِي الْخَلْقِ ۖ أَفَلَا يَعْقِلُونَ (68)
तथा जिसे हम अधिक आयु देते हैं, उसे उत्पत्ति में, प्रथम दशा[1] की ओर फेर देते हैं। तो क्या वे समझते नहीं हैं
وَمَا عَلَّمْنَاهُ الشِّعْرَ وَمَا يَنبَغِي لَهُ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ وَقُرْآنٌ مُّبِينٌ (69)
और हमने नहीं सिखाया नबी को काव्य[1] और न ये उनके लिए योग्य है। ये तो मात्र, एक शिक्षा तथा खुला क़ुर्आन है।
لِّيُنذِرَ مَن كَانَ حَيًّا وَيَحِقَّ الْقَوْلُ عَلَى الْكَافِرِينَ (70)
ताकि वो सचेत करें, उसे जो जीवित हो[1] तथा सिध्द हो जाये यातना की बात, काफ़िरों पर।
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا خَلَقْنَا لَهُم مِّمَّا عَمِلَتْ أَيْدِينَا أَنْعَامًا فَهُمْ لَهَا مَالِكُونَ (71)
क्या मनुष्य ने नहीं देखा कि हमने पैदा किये हैं उनके लिए उसमें से, जिसे बनाया है हमारे हाथों ने चौपाये। तो वे उनके स्वामी हैं
وَذَلَّلْنَاهَا لَهُمْ فَمِنْهَا رَكُوبُهُمْ وَمِنْهَا يَأْكُلُونَ (72)
तथा हमने वश में कर दिया उन्हें, उनके, तो उनमें से कुछ उनकी सवारी हैं तथा उनमें से कुछ को वे खाते हैं।
وَلَهُمْ فِيهَا مَنَافِعُ وَمَشَارِبُ ۖ أَفَلَا يَشْكُرُونَ (73)
तथा उनके लिए उनमें बहुत-से लाभ तथा पेय हैं। तो क्या (फिर भी) वे कृतज्ञ नहीं होते
وَاتَّخَذُوا مِن دُونِ اللَّهِ آلِهَةً لَّعَلَّهُمْ يُنصَرُونَ (74)
और उन्होंने बना लिया अल्लाह के सिवा बहुत-से पूज्य कि संभवतः, वे उनकी सहायता करेंगे।
لَا يَسْتَطِيعُونَ نَصْرَهُمْ وَهُمْ لَهُمْ جُندٌ مُّحْضَرُونَ (75)
वे स्वयं अपनी सहायता नहीं कर सकेंगे तथा वे उनकी सेना हैं, (यातना) में[1] उपस्थित।
فَلَا يَحْزُنكَ قَوْلُهُمْ ۘ إِنَّا نَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ (76)
अतः, आपको उदासीन न करे उनकी बात। वस्तुतः, हम जानते हैं, जो वे मन में रखते हैं तथा जो बोलते हैं।
أَوَلَمْ يَرَ الْإِنسَانُ أَنَّا خَلَقْنَاهُ مِن نُّطْفَةٍ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌ مُّبِينٌ (77)
और क्या नहीं देखा मनुष्य ने कि पैदा किया हमने उसे वीर्य से? फिर भी वह खुला झगड़ालू है।
وَضَرَبَ لَنَا مَثَلًا وَنَسِيَ خَلْقَهُ ۖ قَالَ مَن يُحْيِي الْعِظَامَ وَهِيَ رَمِيمٌ (78)
और उसने वर्णन किया हमारे लिए एक उदाहरण, और अपनी उत्पत्ति को भूल गया। उसने कहाः कौन जीवित करेगा इन अस्थियों को, जबकि वे जीर्न हो चुकी होंगी
قُلْ يُحْيِيهَا الَّذِي أَنشَأَهَا أَوَّلَ مَرَّةٍ ۖ وَهُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِيمٌ (79)
आप कह दें: वही, जिसने पैदा किया है प्रथम बार और वह प्रत्येक उत्पत्ति को भली-भाँति जानने वाला है।
الَّذِي جَعَلَ لَكُم مِّنَ الشَّجَرِ الْأَخْضَرِ نَارًا فَإِذَا أَنتُم مِّنْهُ تُوقِدُونَ (80)
जिसने बना दी तुम्हारे लिए हरे वृक्ष से अग्नि, तो तुम उससे आग[1] सुलगाते हो।
أَوَلَيْسَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِقَادِرٍ عَلَىٰ أَن يَخْلُقَ مِثْلَهُم ۚ بَلَىٰ وَهُوَ الْخَلَّاقُ الْعَلِيمُ (81)
तथा क्या जिसने आकाशों तथा धरती को पैदा किया है वह सामर्थ्य नहीं रखता इसपर कि पैदा करे उसके समान? क्यों नहीं जबकि वह रचयिता, अति ज्ञाता है
إِنَّمَا أَمْرُهُ إِذَا أَرَادَ شَيْئًا أَن يَقُولَ لَهُ كُن فَيَكُونُ (82)
उसका आदेश, जब वह किसी चीज़ को अस्तित्व प्रदान करना चाहे, तो बस ये कह देना हैः हो जा। तत्क्षण वह हो जाती है।
فَسُبْحَانَ الَّذِي بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (83)
तो पवित्र है वह, जिसके हाथ में प्रत्येक वस्तु का राज्य है और तुमसब उसी की ओर फेरे[1] जाओगे।
❮ السورة السابقة السورة التـالية ❯

قراءة المزيد من سور القرآن الكريم :

1- الفاتحة2- البقرة3- آل عمران
4- النساء5- المائدة6- الأنعام
7- الأعراف8- الأنفال9- التوبة
10- يونس11- هود12- يوسف
13- الرعد14- إبراهيم15- الحجر
16- النحل17- الإسراء18- الكهف
19- مريم20- طه21- الأنبياء
22- الحج23- المؤمنون24- النور
25- الفرقان26- الشعراء27- النمل
28- القصص29- العنكبوت30- الروم
31- لقمان32- السجدة33- الأحزاب
34- سبأ35- فاطر36- يس
37- الصافات38- ص39- الزمر
40- غافر41- فصلت42- الشورى
43- الزخرف44- الدخان45- الجاثية
46- الأحقاف47- محمد48- الفتح
49- الحجرات50- ق51- الذاريات
52- الطور53- النجم54- القمر
55- الرحمن56- الواقعة57- الحديد
58- المجادلة59- الحشر60- الممتحنة
61- الصف62- الجمعة63- المنافقون
64- التغابن65- الطلاق66- التحريم
67- الملك68- القلم69- الحاقة
70- المعارج71- نوح72- الجن
73- المزمل74- المدثر75- القيامة
76- الإنسان77- المرسلات78- النبأ
79- النازعات80- عبس81- التكوير
82- الإنفطار83- المطففين84- الانشقاق
85- البروج86- الطارق87- الأعلى
88- الغاشية89- الفجر90- البلد
91- الشمس92- الليل93- الضحى
94- الشرح95- التين96- العلق
97- القدر98- البينة99- الزلزلة
100- العاديات101- القارعة102- التكاثر
103- العصر104- الهمزة105- الفيل
106- قريش107- الماعون108- الكوثر
109- الكافرون110- النصر111- المسد
112- الإخلاص113- الفلق114- الناس