حم (1) ह़ा मीम। |
عسق (2) ऐन सीन क़ाफ़। |
كَذَٰلِكَ يُوحِي إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكَ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (3) इसी प्रकार, (अल्लाह) ने प्रकाशना[1] भेजी है आप तथा उन रसूलों की ओर, जो आपसे पूर्व हुए हैं। अल्लाह सबसे प्रबल और सब गुणों को जानने वाला है। |
لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۖ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ (4) उसी का है, जो आकाशों तथा धरती में है और वह बड़ा उच्च, महान है। |
تَكَادُ السَّمَاوَاتُ يَتَفَطَّرْنَ مِن فَوْقِهِنَّ ۚ وَالْمَلَائِكَةُ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَيَسْتَغْفِرُونَ لِمَن فِي الْأَرْضِ ۗ أَلَا إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ (5) समीप है कि आकाश फट[1] पड़ें अपने ऊपर से, जबकि फ़रिश्ते पवित्रता का गान करते हैं अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ तथा क्षमायाचना करते हैं उनके लिए, जो धरती में हैं। सुनो! वास्तव में, अल्लाह ही अत्यंत क्षमा करने तथा दया करने वाला है। |
وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَوْلِيَاءَ اللَّهُ حَفِيظٌ عَلَيْهِمْ وَمَا أَنتَ عَلَيْهِم بِوَكِيلٍ (6) तथा जिन लोगों ने बना लिए हैं अल्लाह के सिवा संरक्षक, अल्लाह ही उनपर निरीक्षक (निगराँ) है और आप उनके उत्तर दायी[1] नहीं हैं। |
وَكَذَٰلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لِّتُنذِرَ أُمَّ الْقُرَىٰ وَمَنْ حَوْلَهَا وَتُنذِرَ يَوْمَ الْجَمْعِ لَا رَيْبَ فِيهِ ۚ فَرِيقٌ فِي الْجَنَّةِ وَفَرِيقٌ فِي السَّعِيرِ (7) तथा इसी प्रकार, हमने वह़्यी (प्रकाशना) की है आपकी ओर अरबी क़ुर्आन की। ताकि आप सावधान कर दें मक्का[1] वासियों को और जो उसके आस-पास हैं तथा सावधान कर दें एकत्र होने के दिन[2] से, जिस दिन के होने में कोई संशय नहीं। एक पक्ष स्वर्ग में तथा एक पक्ष नरक में होगा। |
وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَجَعَلَهُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَٰكِن يُدْخِلُ مَن يَشَاءُ فِي رَحْمَتِهِ ۚ وَالظَّالِمُونَ مَا لَهُم مِّن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ (8) और यदि अल्लाह चाहता, तो सभी को एक समुदाय[1] बना देता। परन्तु, वह प्रवेश कराता है जिसे चाहे, अपनी दया में तथा अत्याचारियों का कोई संरक्षक तथा सहायक न होगा। |
أَمِ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَوْلِيَاءَ ۖ فَاللَّهُ هُوَ الْوَلِيُّ وَهُوَ يُحْيِي الْمَوْتَىٰ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (9) क्या उन्होंने बना लिए हैं उसके सिवा संरक्षक? तो अल्लाह ही संरक्षक है और जीवित करेगा मुर्दों को और वही जो चाहे, कर सकता है। |
وَمَا اخْتَلَفْتُمْ فِيهِ مِن شَيْءٍ فَحُكْمُهُ إِلَى اللَّهِ ۚ ذَٰلِكُمُ اللَّهُ رَبِّي عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ أُنِيبُ (10) और जिस बात में भी तुमने विभेद किया है, उसका निर्णय अल्लाह ही को करना है।[1] वही अल्लाह मेरा पालनहार है, उसीपर मैंने भरोसा किया है तथा उसी की ओर ध्यानमग्न होता हूँ। |
فَاطِرُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ جَعَلَ لَكُم مِّنْ أَنفُسِكُمْ أَزْوَاجًا وَمِنَ الْأَنْعَامِ أَزْوَاجًا ۖ يَذْرَؤُكُمْ فِيهِ ۚ لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ ۖ وَهُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ (11) वह आकाशों तथा धरती का रचयिता है। उसने बनाये हैं तुम्हारी जाति में से तुम्हारे जोड़े तथा पशुओं के जोड़े। वह फैला रहा है तुम्हें इस प्रकार। उसकी कोई प्रतिमा[1] नहीं और वह सब कुछ सुनने-जानने वाला है। |
لَهُ مَقَالِيدُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاءُ وَيَقْدِرُ ۚ إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ (12) उसी के[1] अधिकार में हैं आकाशों तथा धरती की कुंजियाँ। वह फैला देता है जीविका, जिसके लिए चाहे तथा नाप कर देता है। वास्तव में, वही प्रत्येक वस्तु का जानने वाला है। |
۞ شَرَعَ لَكُم مِّنَ الدِّينِ مَا وَصَّىٰ بِهِ نُوحًا وَالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ وَمَا وَصَّيْنَا بِهِ إِبْرَاهِيمَ وَمُوسَىٰ وَعِيسَىٰ ۖ أَنْ أَقِيمُوا الدِّينَ وَلَا تَتَفَرَّقُوا فِيهِ ۚ كَبُرَ عَلَى الْمُشْرِكِينَ مَا تَدْعُوهُمْ إِلَيْهِ ۚ اللَّهُ يَجْتَبِي إِلَيْهِ مَن يَشَاءُ وَيَهْدِي إِلَيْهِ مَن يُنِيبُ (13) उसने नियत[1] किया है तुम्हारे लिए वही धर्म, जिसका आदेश दिया था नूह़ को और जिसे वह़्यी किया है आपकी ओर तथा जिसका आदेश दिया था इब्राहीम तथा मूसा और ईसा को कि इस धर्म की स्थापना करो और इसमें भेद भाव न करो। यही बात अप्रिय लगी है मुश्रिकों को, जिसकी ओर आप बुला रहे हैं। अल्लाह ही चुनता है इसके लिए जिसे चाहे और सीधी राह उसी को दिखाता है, जो उसी की ओर ध्यानमग्न हो। |
وَمَا تَفَرَّقُوا إِلَّا مِن بَعْدِ مَا جَاءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ ۚ وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ إِلَىٰ أَجَلٍ مُّسَمًّى لَّقُضِيَ بَيْنَهُمْ ۚ وَإِنَّ الَّذِينَ أُورِثُوا الْكِتَابَ مِن بَعْدِهِمْ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ مُرِيبٍ (14) और उन्होंने[1] इसके पश्चात् ही विभेद किया, जब उनके पास ज्ञान आ गया, आपस के विरोध के कारण तथा यदि एक बात पहले से निश्चित[2] न होती आपके पालनहार की ओर से, तो अवश्य निर्णय कर दिया गया होता उनके बीच और जो पुस्तक के उत्तराधिकारी बनाये[3] गये उनके पश्चात्, उसकी ओर से संदेह में उलझे हुए हैं। |
فَلِذَٰلِكَ فَادْعُ ۖ وَاسْتَقِمْ كَمَا أُمِرْتَ ۖ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءَهُمْ ۖ وَقُلْ آمَنتُ بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ مِن كِتَابٍ ۖ وَأُمِرْتُ لِأَعْدِلَ بَيْنَكُمُ ۖ اللَّهُ رَبُّنَا وَرَبُّكُمْ ۖ لَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ ۖ لَا حُجَّةَ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمُ ۖ اللَّهُ يَجْمَعُ بَيْنَنَا ۖ وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ (15) तो आप लोगों को इसी धर्म की ओर बुलाते रहें तथा जैसे आपको आदेश दिया गया है उसपर स्थित रहें और उनकी इच्छाओं पर न चलें तथा कह दें कि मैं ईमान लाया उन सभी पुस्तकों पर, जो अल्लाह ने उतारी[1] हैं तथा मूझे आदेश दिया गया है कि तुम्हारे बीच न्याय करूँ। अल्लाह हमारा तथा तुम्हारा पालनहार है। हमारे लिए हमारे कर्म हैं तथा तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। हमारे और तुम्हारे बीच कोई झगड़ा नहीं। अल्लाह ही हमें एकत्र करेगा तथा उसी की ओर सब को जाना है। |
وَالَّذِينَ يُحَاجُّونَ فِي اللَّهِ مِن بَعْدِ مَا اسْتُجِيبَ لَهُ حُجَّتُهُمْ دَاحِضَةٌ عِندَ رَبِّهِمْ وَعَلَيْهِمْ غَضَبٌ وَلَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ (16) तथा जो लोग झगड़ते हैं अल्लाह (के धर्म के बारे) में, जबकि उसे[1] मान लिया गया है। उनका विवाद (कुतर्क) असत्य है अल्लाह के समीप तथा उन्हीं पर क्रोध है और उन्हीं के लिए कड़ी यातना है। |
اللَّهُ الَّذِي أَنزَلَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ وَالْمِيزَانَ ۗ وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّ السَّاعَةَ قَرِيبٌ (17) अल्लाह ही ने उतारी हैं सब पुस्तकें सत्य के साथ तथा तराजू[1] को और आपको क्या पता शायद प्रलय का समय समीप हो। |
يَسْتَعْجِلُ بِهَا الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِهَا ۖ وَالَّذِينَ آمَنُوا مُشْفِقُونَ مِنْهَا وَيَعْلَمُونَ أَنَّهَا الْحَقُّ ۗ أَلَا إِنَّ الَّذِينَ يُمَارُونَ فِي السَّاعَةِ لَفِي ضَلَالٍ بَعِيدٍ (18) शीघ्र माँग कर रहे हैं उस (प्रलय) की, जो ईमान नहीं रखते उसपर और जो ईमान लाये हैं, वे उससे डर रहे हैं तथा विश्वास रखते हैं कि वह सच है। सुनो! निश्चय जो विवाद कर रहे हैं, प्रलय के विषय में, वे कुपथ में बहुत दूर चले गये हैं। |
اللَّهُ لَطِيفٌ بِعِبَادِهِ يَرْزُقُ مَن يَشَاءُ ۖ وَهُوَ الْقَوِيُّ الْعَزِيزُ (19) अल्लाह बड़ा दयालु है अपने भक्तों पर। वह जीविका प्रदान करता है, जिसे चाहे तथा वह बड़ा प्रबल, प्रभावशाली है। |
مَن كَانَ يُرِيدُ حَرْثَ الْآخِرَةِ نَزِدْ لَهُ فِي حَرْثِهِ ۖ وَمَن كَانَ يُرِيدُ حَرْثَ الدُّنْيَا نُؤْتِهِ مِنْهَا وَمَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِن نَّصِيبٍ (20) जो आख़िरत (परलोक) की खेती[1] चाहता हो, तो हम उसके लिए उसकी खेती बढ़ा देते हैं और जो संसार की खेती चाहता हो, तो हम उसे उसमें से कुछ दे देते हैं और उसके लिए परलोक में कोई भाग नहीं। |
أَمْ لَهُمْ شُرَكَاءُ شَرَعُوا لَهُم مِّنَ الدِّينِ مَا لَمْ يَأْذَن بِهِ اللَّهُ ۚ وَلَوْلَا كَلِمَةُ الْفَصْلِ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ ۗ وَإِنَّ الظَّالِمِينَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ (21) क्या इन (मुश्रिकों) के कुछ ऐसे साझी[1] हैं, जिन्होंने उनके लिए कोई ऐसा धार्मिक नियम बना दिया है, जिसकी अनुमति अल्लाह ने नहीं दी है? और यदि निर्णय की बात निश्चित न होती, तो (अभी) इनके बीच निर्णय कर दिया जाता तथा निश्चय अत्याचारियों के लिए ही दुःखदायी यातना है। |
تَرَى الظَّالِمِينَ مُشْفِقِينَ مِمَّا كَسَبُوا وَهُوَ وَاقِعٌ بِهِمْ ۗ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فِي رَوْضَاتِ الْجَنَّاتِ ۖ لَهُم مَّا يَشَاءُونَ عِندَ رَبِّهِمْ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الْكَبِيرُ (22) तुम अत्याचारियों को डरते हुए देखोगो उन दुष्कर्मों के कारण, जो उन्होंने किये हैं और वह उनपर आकर रहेगा तथा जो ईमान लाये और सदाचार किये, वे स्वर्ग के बागों में होंगे। वे जिसकी इच्छा करेंगे उनके पालनहार के यहाँ मिलेगा। ये बड़ी दया है। |
ذَٰلِكَ الَّذِي يُبَشِّرُ اللَّهُ عِبَادَهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ ۗ قُل لَّا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْبَىٰ ۗ وَمَن يَقْتَرِفْ حَسَنَةً نَّزِدْ لَهُ فِيهَا حُسْنًا ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ شَكُورٌ (23) ये वह (दया) है, जिसकी शुभ सूचना देता है अल्लाह अपने भक्तों को, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये। आप कह दें कि मैं नहीं माँगता हूँ इसपर तुमसे कोई बदला, उस प्रेम के सिवा, जो संबन्धियों[1] में (होता) है। |
أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَىٰ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا ۖ فَإِن يَشَإِ اللَّهُ يَخْتِمْ عَلَىٰ قَلْبِكَ ۗ وَيَمْحُ اللَّهُ الْبَاطِلَ وَيُحِقُّ الْحَقَّ بِكَلِمَاتِهِ ۚ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ (24) क्या वे कहते हैं कि उसने अल्लाह पर झूठ घड़ लिया है? तो यदि अल्लाह चाहे, तो आपके दिल पर मुहर लगा दे।[1] और अल्लाह मिटा देता है झूठ को और सच को अपने आदेशों द्वारा सच कर दिखाता है। वह सीनों (दिलों) के भेदों का जानने वाला है। |
وَهُوَ الَّذِي يَقْبَلُ التَّوْبَةَ عَنْ عِبَادِهِ وَيَعْفُو عَنِ السَّيِّئَاتِ وَيَعْلَمُ مَا تَفْعَلُونَ (25) वही है, जो स्वीकार करता है अपने भक्तों की तौबा तथा क्षमा करता है दोषों[1] को और जानता है, जो कुछ तुम करते हो। |
وَيَسْتَجِيبُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَيَزِيدُهُم مِّن فَضْلِهِ ۚ وَالْكَافِرُونَ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ (26) और उनकी प्रार्थना स्वीकार करता है, जो ईमान लाये और सदाचार किये तथा उन्हें अधिक प्रदान करता है अपनी दया से और काफ़िरों ही के लिए कड़ी यातना है। |
۞ وَلَوْ بَسَطَ اللَّهُ الرِّزْقَ لِعِبَادِهِ لَبَغَوْا فِي الْأَرْضِ وَلَٰكِن يُنَزِّلُ بِقَدَرٍ مَّا يَشَاءُ ۚ إِنَّهُ بِعِبَادِهِ خَبِيرٌ بَصِيرٌ (27) और यदि फैला देता अल्लाह जीविका अपने भक्तों के लिए, तो वे विद्रोह[1] कर देते धरती में। परन्तु, वह उतारता है एक अनुमान से जैसे वह चाहता है। वास्तव में, वह अपने भक्तों से भली-भाँति सूचित है। (तथा) उन्हें देख रहा है। |
وَهُوَ الَّذِي يُنَزِّلُ الْغَيْثَ مِن بَعْدِ مَا قَنَطُوا وَيَنشُرُ رَحْمَتَهُ ۚ وَهُوَ الْوَلِيُّ الْحَمِيدُ (28) तथा वही है, जो वर्षा करता है इसके पश्चात् कि लोग निराश हो जायें तथा फैला[1] देता है अपनी दया और वही संरक्षक, सराहनीय है। |
وَمِنْ آيَاتِهِ خَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَثَّ فِيهِمَا مِن دَابَّةٍ ۚ وَهُوَ عَلَىٰ جَمْعِهِمْ إِذَا يَشَاءُ قَدِيرٌ (29) तथा उसकी निशानियों में से है, आकाशों और धरती की उत्पत्ति तथा जो फैलायें हैं उन दोनों में जीव और वह उन्हें एकत्र करने पर जब चाहे,[1] सामर्थ्य रखने वाला है। |
وَمَا أَصَابَكُم مِّن مُّصِيبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ (30) और जो भी दुःख तुम्हें पहुँचता है, वह तुम्हारे अपने करतूत से पहुचता है तथा वह क्षमा कर देता है तुम्हारे बहुत-से पापों को। |
وَمَا أَنتُم بِمُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ ۖ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ اللَّهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ (31) और तुम विवश करने वाले नहीं हो धरती में और न तुम्हारा अल्लाह के सिवा कोई संरक्षक और न सहायक है। |
وَمِنْ آيَاتِهِ الْجَوَارِ فِي الْبَحْرِ كَالْأَعْلَامِ (32) तथा उसके (सामर्थ्य) की निशानियों में से हैं चलती हुई नाव सागरों में, पर्वतों के समान। |
إِن يَشَأْ يُسْكِنِ الرِّيحَ فَيَظْلَلْنَ رَوَاكِدَ عَلَىٰ ظَهْرِهِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ (33) यदि वह चाहे, तो रोक दे वायु को और वह खड़ी रह जायें उसके ऊपर। निश्चय इसमें बड़ी निशानियाँ हैं प्रत्येक बड़े धैर्यवान[1] कृतज्ञ के लिए। |
أَوْ يُوبِقْهُنَّ بِمَا كَسَبُوا وَيَعْفُ عَن كَثِيرٍ (34) अथवा विनाश[1] कर दे उन (नावों) का, उनके करतूतों के बदले और वह क्षमा करता है बहुत कुछ। |
وَيَعْلَمَ الَّذِينَ يُجَادِلُونَ فِي آيَاتِنَا مَا لَهُم مِّن مَّحِيصٍ (35) तथा वह जानता है उन्हें, जो झगड़ते हैं हमारी आयतों में। उन्हीं के लिए कोई भागने का स्थान नहीं है। |
فَمَا أُوتِيتُم مِّن شَيْءٍ فَمَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَمَا عِندَ اللَّهِ خَيْرٌ وَأَبْقَىٰ لِلَّذِينَ آمَنُوا وَعَلَىٰ رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ (36) तुम्हें जो कुछ दिया गया है, वह सांसारिक जीवन का संसाधन है तथा जो कुछ अल्लाह के पास है, वह उत्तम और स्थायी[1] है उनके लिए, जो अल्लाह पर ईमान लाये तथा अपने पालनहार ही पर भरोसा रखते हैं। |
وَالَّذِينَ يَجْتَنِبُونَ كَبَائِرَ الْإِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ وَإِذَا مَا غَضِبُوا هُمْ يَغْفِرُونَ (37) तथा जो बचते हैं बड़े पापों तथा निर्लज्जा के कर्मों से और जब क्रोध आ जाये तो क्षमा कर देते हैं। |
وَالَّذِينَ اسْتَجَابُوا لِرَبِّهِمْ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَأَمْرُهُمْ شُورَىٰ بَيْنَهُمْ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ (38) तथा जिन्होंने अपने पालनहार के आदेश को मान लिया, स्थापना की नमाज़ की और उनके प्रत्येक कार्य आपस के विचार-विमर्श से होते हैं[1] और जो कुछ हमने उन्हें प्रदान किया है उसमें से दान करते हैं। |
وَالَّذِينَ إِذَا أَصَابَهُمُ الْبَغْيُ هُمْ يَنتَصِرُونَ (39) और यदि उनपर अत्याचार किया जाये, तो वे बराबरी का बदला लेते हैं। |
وَجَزَاءُ سَيِّئَةٍ سَيِّئَةٌ مِّثْلُهَا ۖ فَمَنْ عَفَا وَأَصْلَحَ فَأَجْرُهُ عَلَى اللَّهِ ۚ إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الظَّالِمِينَ (40) और बुराई का प्रतिकार (बदला) बुराई है, उसी जैसी।[1] फिर जो क्षमा कर दे तथा सुधार करले, तो उसका प्रतिफल अल्लाह के ऊपर है। वास्तव में, वह प्रेम नहीं करता है अत्याचारियों से। |
وَلَمَنِ انتَصَرَ بَعْدَ ظُلْمِهِ فَأُولَٰئِكَ مَا عَلَيْهِم مِّن سَبِيلٍ (41) तथा जो बदला लें अपने ऊपर अत्याचार होने के पश्चात्, तो उनपर कोई दोष नहीं है। |
إِنَّمَا السَّبِيلُ عَلَى الَّذِينَ يَظْلِمُونَ النَّاسَ وَيَبْغُونَ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ ۚ أُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ (42) दोष केवल उनपर है, जो लोगों पर अत्याचार करते हैं और नाह़क़ ज़मीन में उपद्रव करते हैं। उन्हीं के लिए दर्दनाक यातना है। |
وَلَمَن صَبَرَ وَغَفَرَ إِنَّ ذَٰلِكَ لَمِنْ عَزْمِ الْأُمُورِ (43) और जो सहन करे तथा क्षमा कर दे, तो ये निश्चय बड़े साहस[1] का कार्य है। |
وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن وَلِيٍّ مِّن بَعْدِهِ ۗ وَتَرَى الظَّالِمِينَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذَابَ يَقُولُونَ هَلْ إِلَىٰ مَرَدٍّ مِّن سَبِيلٍ (44) तथा जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो उसका कोई रक्षक नहीं है, उसके पश्चात तथा आप देखेंगे अत्याचारियों को जब वे देखेंगे यातना को, वे कह रहे होंगेः क्या वापसी की कोई राह है |
وَتَرَاهُمْ يُعْرَضُونَ عَلَيْهَا خَاشِعِينَ مِنَ الذُّلِّ يَنظُرُونَ مِن طَرْفٍ خَفِيٍّ ۗ وَقَالَ الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۗ أَلَا إِنَّ الظَّالِمِينَ فِي عَذَابٍ مُّقِيمٍ (45) तथा आप उन्हें देखेंगे कि वे प्रस्तुत किये जा रहे हैं नरक पर, सिर झुकाये, अपमान के कारण। वे देख रहे होंगे कन्खियों से तथा कहेंगे जो ईमान लाये कि वास्तव में घाटे में वही हैं, जिन्होंने घाटे में डाल दिया स्वयं को तथा अपने परिवार को, प्रलय के दिन। सुनो! अत्याचारी ही स्थायी यातना में होंगे। |
وَمَا كَانَ لَهُم مِّنْ أَوْلِيَاءَ يَنصُرُونَهُم مِّن دُونِ اللَّهِ ۗ وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن سَبِيلٍ (46) तथा नहीं होंगे उनके कोई सहायक, जो अल्लाह के मुक़ाबले में उनकी सहायता करें और जिसे कुपथ कर दे अल्लाह, तो उसके लिए कोई मार्ग नहीं। |
اسْتَجِيبُوا لِرَبِّكُم مِّن قَبْلِ أَن يَأْتِيَ يَوْمٌ لَّا مَرَدَّ لَهُ مِنَ اللَّهِ ۚ مَا لَكُم مِّن مَّلْجَإٍ يَوْمَئِذٍ وَمَا لَكُم مِّن نَّكِيرٍ (47) मान लो अपने पालनहार की बात, इससे पूर्व कि आ जाये वह दिन, जिसे टलना नहीं है अल्लाह की ओर से। नहीं होगा तुम्हारे लिए कोई शरण का स्थान, उस दिन और न छिपकर अनजान बन जाने का। |
فَإِنْ أَعْرَضُوا فَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا ۖ إِنْ عَلَيْكَ إِلَّا الْبَلَاغُ ۗ وَإِنَّا إِذَا أَذَقْنَا الْإِنسَانَ مِنَّا رَحْمَةً فَرِحَ بِهَا ۖ وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ فَإِنَّ الْإِنسَانَ كَفُورٌ (48) फिर भी यदि वे विमुख हों, तो (हे नबी!) हमने नहीं भेजा है आपको उनपर रक्षक बनाकर। आपका दायित्व केवल संदेश पहुँचा देना है और वास्तव में, जब हम चखा देते हैं मनुष्य को अपनी दया, तो वह इतराने लगता है, उसपर और यदि पहुँचता है उन्हें कोई दुःख, उनके करतूत के कारण, तो मनुष्य बड़ा कृतघ्न बन जाता है। |
لِّلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۚ يَهَبُ لِمَن يَشَاءُ إِنَاثًا وَيَهَبُ لِمَن يَشَاءُ الذُّكُورَ (49) अल्लाह ही का है आकाशों तथा धरती का राज्य। वह पैदा करता है, जो चाहता है। जिसे चाहे, पुत्रियाँ प्रदान करता है तथा जिसे चाहे, पुत्र प्रदान करता है। |
أَوْ يُزَوِّجُهُمْ ذُكْرَانًا وَإِنَاثًا ۖ وَيَجْعَلُ مَن يَشَاءُ عَقِيمًا ۚ إِنَّهُ عَلِيمٌ قَدِيرٌ (50) अथवा उन्हें पुत्र और[1] पुत्रियाँ मिलाकर देता है और जिसे चाहे, बाँझ बना देता है। वास्तव में, वह सब कुछ जानने वाला (तथा) सामर्थ्य रखने वाला है। |
۞ وَمَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن يُكَلِّمَهُ اللَّهُ إِلَّا وَحْيًا أَوْ مِن وَرَاءِ حِجَابٍ أَوْ يُرْسِلَ رَسُولًا فَيُوحِيَ بِإِذْنِهِ مَا يَشَاءُ ۚ إِنَّهُ عَلِيٌّ حَكِيمٌ (51) और नहीं संभव है किसी मनुष्य के लिए कि बात करे अल्लाह उससे, परन्तु वह़्यी[1] द्वारा, अथवा पर्दे के पीछे से अथवा भेज दे कोई रसूल (फ़रिश्ता), जो वह़्यी करे उसकी अनुमति से, जो कुछ वह चाहता हो। वास्तव में, वह सबसे ऊँचा (तथा) सभी गुण जानने वाला है। |
وَكَذَٰلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ رُوحًا مِّنْ أَمْرِنَا ۚ مَا كُنتَ تَدْرِي مَا الْكِتَابُ وَلَا الْإِيمَانُ وَلَٰكِن جَعَلْنَاهُ نُورًا نَّهْدِي بِهِ مَن نَّشَاءُ مِنْ عِبَادِنَا ۚ وَإِنَّكَ لَتَهْدِي إِلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ (52) और इसी प्रकार, हमने वह़्यी (प्रकाशना) की है, आपकी ओर, अपने आदेश की रूह़ (क़ुर्आन)। आप नहीं जानते थे कि पुस्तक क्या है और ईमान[1] क्या है। परन्तु, हमने इसे बना दिया एक ज्योति। हम मार्ग दिखाते हैं इसके द्वारा, जिसे चाहते हैं अपने भक्तों में से और वस्तुतः, आप सीधी राह[1] दिखा रहे हैं। |
صِرَاطِ اللَّهِ الَّذِي لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ أَلَا إِلَى اللَّهِ تَصِيرُ الْأُمُورُ (53) अल्लाह की राह, जिसके अधिकार में है, जो कुछ आकाशों में तथा जो कुछ धरती में है। सावधान! अल्लाह ही की ओर फिरते हैं, सभी कार्य। |