×

Surah Al-Ahqaaf in Hindi

Quran Hindi ⮕ Surah Ahqaf

Translation of the Meanings of Surah Ahqaf in Hindi - الهندية

The Quran in Hindi - Surah Ahqaf translated into Hindi, Surah Al-Ahqaaf in Hindi. We provide accurate translation of Surah Ahqaf in Hindi - الهندية, Verses 35 - Surah Number 46 - Page 502.

بسم الله الرحمن الرحيم

حم (1)
ह़ा मीम।
تَنزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ (2)
इस पुस्तक का उतरना अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी की ओर से है।
مَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَأَجَلٍ مُّسَمًّى ۚ وَالَّذِينَ كَفَرُوا عَمَّا أُنذِرُوا مُعْرِضُونَ (3)
हमने नहीं उत्पन्न किया है आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उनके बीच है, परन्तु सत्य के साथ, एक निश्चित अवधि तक के लिए तथा जो काफ़िर हैं, उन्हें जिस बात से सावधान किया जाता है, वे उससे मुँह मोड़े हुए हैं।
قُلْ أَرَأَيْتُم مَّا تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُوا مِنَ الْأَرْضِ أَمْ لَهُمْ شِرْكٌ فِي السَّمَاوَاتِ ۖ ائْتُونِي بِكِتَابٍ مِّن قَبْلِ هَٰذَا أَوْ أَثَارَةٍ مِّنْ عِلْمٍ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ (4)
आप कहें कि भला देखो कि जिसे तुम पुकारते हो अल्लाह के सिवा, तनिक मुझे दिखा दो कि उन्होंने क्या उत्पन्न किया है धरती में से? अथवा उनका कोई साझा है आकाशों में? मेरे पास कोई पुस्तक[1] प्रस्तुत करो इससे पूर्व की अथवा बचा हुआ कुछ[2] ज्ञान, यदि तुम सच्चे हो।
وَمَنْ أَضَلُّ مِمَّن يَدْعُو مِن دُونِ اللَّهِ مَن لَّا يَسْتَجِيبُ لَهُ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ وَهُمْ عَن دُعَائِهِمْ غَافِلُونَ (5)
तथा उससे अधिक बहका हुआ कौन हो सकता है, जो अल्लाह के सिवा उसे पुकारता हो, जो उसकी प्रार्थना स्वीकार न कर सके, प्रलय तक और वे उसकी प्रार्थना से निश्चेत (अनजान्) हों
وَإِذَا حُشِرَ النَّاسُ كَانُوا لَهُمْ أَعْدَاءً وَكَانُوا بِعِبَادَتِهِمْ كَافِرِينَ (6)
तथा जब लोग एकत्र किये जायेंगे, तो वे उनके शत्रु हो जायेंगे और उनकी इबादत का इन्हार कर[1] देंगे।
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ هَٰذَا سِحْرٌ مُّبِينٌ (7)
और जब पढ़कर सुनाई गईं उन्हें हमारी खुली आयतें, तो काफ़िरों ने उस सत्य को, जो उनके पास आ चुका है, कह दिया कि ये तो खुला जादू है।
أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ ۖ قُلْ إِنِ افْتَرَيْتُهُ فَلَا تَمْلِكُونَ لِي مِنَ اللَّهِ شَيْئًا ۖ هُوَ أَعْلَمُ بِمَا تُفِيضُونَ فِيهِ ۖ كَفَىٰ بِهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ ۖ وَهُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ (8)
क्या वे कहते हैं कि आपने इसे[1] स्वयं बना लिया है? आप कह दें कि यदि मैंने इसे स्वयं बना लिया है, तो तुम मुझे अल्लाह की पकड़ से बचाने का कोई अधिकार नहीं रखते।[2] वही अधिक ज्ञानि है उन बातों का, जो तुम बना रहे हो। वही पर्याप्त है गवाह के लिए मेरे तथा तुम्हारे बीच और वह बड़ा क्षमाशील, दयावान् है।
قُلْ مَا كُنتُ بِدْعًا مِّنَ الرُّسُلِ وَمَا أَدْرِي مَا يُفْعَلُ بِي وَلَا بِكُمْ ۖ إِنْ أَتَّبِعُ إِلَّا مَا يُوحَىٰ إِلَيَّ وَمَا أَنَا إِلَّا نَذِيرٌ مُّبِينٌ (9)
आप कह दें कि मैं कोई नया रसूल नहीं हूँ और न मैं जानता हूँ कि मेरे साथ क्या होगा[1] और न तुम्हारे साथ। मैं तो केवल अनुसरण कर रहा हूँ उसका, जो मेरी ओर वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है। मैं तो केवल खुला सावधान करने वाला हूँ।
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِن كَانَ مِنْ عِندِ اللَّهِ وَكَفَرْتُم بِهِ وَشَهِدَ شَاهِدٌ مِّن بَنِي إِسْرَائِيلَ عَلَىٰ مِثْلِهِ فَآمَنَ وَاسْتَكْبَرْتُمْ ۖ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ (10)
आप कह दें: तुम बताओ यदि ये (क़ुर्आन) अल्लाह की ओर से हो और तुम उसे न मानो, जबकि गवाही दे चुका है एक गवाह, इस्राईल की संतान में से इसी बात[1] पर, फिर वह ईमान लाया तथा तुम घमंड कर गये? तो वास्तव में अल्लाह सुपथ नहीं दिखाता अत्याचारी जाति को।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا لَوْ كَانَ خَيْرًا مَّا سَبَقُونَا إِلَيْهِ ۚ وَإِذْ لَمْ يَهْتَدُوا بِهِ فَسَيَقُولُونَ هَٰذَا إِفْكٌ قَدِيمٌ (11)
और काफ़िरों ने कहा, उनसे जो ईमान लाये, यदि ये (धर्म) उत्तम होता, तो वह पहले नहीं आते हमसे, उसकी ओर और जब नहीं पाया मार्गदर्शन उन्होंने इस (क़ुर्आन) से, तो अब यही कहेंगे कि ये तो पुराना झूठ है।
وَمِن قَبْلِهِ كِتَابُ مُوسَىٰ إِمَامًا وَرَحْمَةً ۚ وَهَٰذَا كِتَابٌ مُّصَدِّقٌ لِّسَانًا عَرَبِيًّا لِّيُنذِرَ الَّذِينَ ظَلَمُوا وَبُشْرَىٰ لِلْمُحْسِنِينَ (12)
जबकि इससे पूर्व मूसा की पुस्तक मार्गदर्शक तथा दया बनकर आ चुकी और ये पुस्तक (क़ुर्आन) सच[1] बताने वाली है अरबी भाषा में।[2] ताकि वह सावधान कर दे, अत्याचारियों को और शुभ सूचना हो, सदाचारियों के लिए।
إِنَّ الَّذِينَ قَالُوا رَبُّنَا اللَّهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوا فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ (13)
निश्चय जिन्होंने कहा कि हमारा पालनहार अल्लाह है। फिर उसपर स्थिर रह गये, तो कोई भय नहीं होगा उनपर और न वे[1] उदासीन होंगे।
أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَنَّةِ خَالِدِينَ فِيهَا جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (14)
यही स्वर्गीय हैं, जो सदावासी होंगे उसमें, उन कर्मों के प्रतिफल (बदले) में, जो वे करते रहे।
وَوَصَّيْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَيْهِ إِحْسَانًا ۖ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ كُرْهًا وَوَضَعَتْهُ كُرْهًا ۖ وَحَمْلُهُ وَفِصَالُهُ ثَلَاثُونَ شَهْرًا ۚ حَتَّىٰ إِذَا بَلَغَ أَشُدَّهُ وَبَلَغَ أَرْبَعِينَ سَنَةً قَالَ رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَصْلِحْ لِي فِي ذُرِّيَّتِي ۖ إِنِّي تُبْتُ إِلَيْكَ وَإِنِّي مِنَ الْمُسْلِمِينَ (15)
और हमने निर्देश दिया है मनुष्य को, अपने माता-पिता के साथ उपकार करने का। उसे गर्भ में रखा है उसकी माँ ने दुःख झेलकर तथा जन्म दिया उसे दुःख झेलकर तथा उसके गर्भ में रखने तथा दूध छुड़ाने की अवधि तीस महीने रही।[1] यहाँ तक कि जब वह अपनी पूरी शक्ति को पहुँचा और चालीस वर्ष का हुआ, तो कहने लागाः हे मेरे पालनहार! मुझे क्षमता दे कि कृतज्ञ रहूँ तेरे उस पुरस्कार का, जो तूने प्रदान किया है मुझे तथा मेरे माता-पिता को। तथा ऐसा सत्कर्म करूँ, जिससे तू प्रसन्न हो जाये तथा सुधार दे मेरे लिए मेरी संतान को, मैं ध्यानमग्न हो गया तेरी ओर तथा मैं निश्चय मुस्लिमों में से हूँ।
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ نَتَقَبَّلُ عَنْهُمْ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا وَنَتَجَاوَزُ عَن سَيِّئَاتِهِمْ فِي أَصْحَابِ الْجَنَّةِ ۖ وَعْدَ الصِّدْقِ الَّذِي كَانُوا يُوعَدُونَ (16)
वही हैं, स्वीकार कर लेंगे हम जिनसे, उनके सर्वोत्तम कर्मों को तथा क्षमा कर देंगे, उनके दुष्कर्मों को। (वे) स्वर्ग वासियों में से हैं, उस सत्य वचन के अनुसार, जो उनसे किया जाता था।
وَالَّذِي قَالَ لِوَالِدَيْهِ أُفٍّ لَّكُمَا أَتَعِدَانِنِي أَنْ أُخْرَجَ وَقَدْ خَلَتِ الْقُرُونُ مِن قَبْلِي وَهُمَا يَسْتَغِيثَانِ اللَّهَ وَيْلَكَ آمِنْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ فَيَقُولُ مَا هَٰذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ (17)
तथा जिसने कहा अपने माता पिता सेः धिक है तुम दोनों पर! क्या मुझे डरा रहे हो कि मैं धरती से निकाला[1] जाऊँगा, जबकि बहुत-से युग बीत गये[2] इससे पूर्व? और वो दोनों दुहाई दे रहे थे अल्लाह कीः तेरा विनाश हो! तू ईमान ला! निश्चय अल्लाह का वचन सच है। तो वह कह रहा था कि ये अगलों की कहानियाँ हैं।
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ حَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ فِي أُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِم مِّنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا خَاسِرِينَ (18)
यही वो लोग हैं, जिनपर अल्लाह की यातना का वचन सिध्द हो गया, उन समुदायों में, जो गुज़र चुके इनसे पूर्व, जिन्न तथा मनुष्यों में से। वास्तव में, वही क्षति में हैं।
وَلِكُلٍّ دَرَجَاتٌ مِّمَّا عَمِلُوا ۖ وَلِيُوَفِّيَهُمْ أَعْمَالَهُمْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ (19)
तथा प्रत्येक के लिए श्रेणियाँ हैं, उनके कर्मानुसार और उन्हें भरपूर बदला दिया जायेगा उनके कर्मों का तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
وَيَوْمَ يُعْرَضُ الَّذِينَ كَفَرُوا عَلَى النَّارِ أَذْهَبْتُمْ طَيِّبَاتِكُمْ فِي حَيَاتِكُمُ الدُّنْيَا وَاسْتَمْتَعْتُم بِهَا فَالْيَوْمَ تُجْزَوْنَ عَذَابَ الْهُونِ بِمَا كُنتُمْ تَسْتَكْبِرُونَ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَبِمَا كُنتُمْ تَفْسُقُونَ (20)
और जिस दिन सामने लाये जायेंगे, जो काफ़िर हो गये, अग्नि के। (उनसे कहा जायेगाः) तुम ले चुके अपना आन्नद अपने सांसारिक जीवन में और लाभान्वित हो चुके उनसे। तो आज तुम्हें अपमान की यातना दी जायेगी उसके बदले, जो तुम घमंड करते रहे धरती में अनुचित तथा उसके बदले, जो उल्लंघन करते रहे।
۞ وَاذْكُرْ أَخَا عَادٍ إِذْ أَنذَرَ قَوْمَهُ بِالْأَحْقَافِ وَقَدْ خَلَتِ النُّذُرُ مِن بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ (21)
तथा याद करो आद के भाई (हूद[1]) को। जब उसने अपनी जाति को सावधान किया, अह़्क़ाफ़[2] में, जबकि गुज़र चुके सावधान करने वाले (रसूल) उसके पहले और उसके पश्चात् कि इबादत (वंदना) न करो अल्लाह के अतिरिक्त की। मैं डरता हूँ तुमपर, एक बड़े दिन की यातना से।
قَالُوا أَجِئْتَنَا لِتَأْفِكَنَا عَنْ آلِهَتِنَا فَأْتِنَا بِمَا تَعِدُنَا إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ (22)
तो उन्होंने कहा कि क्या तुम हमें फेरने आये हो हमारे पूज्यों से? तो ले आओ हमारे पास, जिसकी हमें धमकी दे रहे हो, यदि तुम सच्चे हो।
قَالَ إِنَّمَا الْعِلْمُ عِندَ اللَّهِ وَأُبَلِّغُكُم مَّا أُرْسِلْتُ بِهِ وَلَٰكِنِّي أَرَاكُمْ قَوْمًا تَجْهَلُونَ (23)
हूद ने कहाः उसका ज्ञान तो अल्लाह ही को है और मैं तुम्हें वही उपदेश पहुँचा रहा हूँ, जिसके साथ मैं भेजा गया हूँ। परन्तु, मैं देख रहा हूँ तुम्हें कि तुम अज्ञानता की बातें कर रहे हो।
فَلَمَّا رَأَوْهُ عَارِضًا مُّسْتَقْبِلَ أَوْدِيَتِهِمْ قَالُوا هَٰذَا عَارِضٌ مُّمْطِرُنَا ۚ بَلْ هُوَ مَا اسْتَعْجَلْتُم بِهِ ۖ رِيحٌ فِيهَا عَذَابٌ أَلِيمٌ (24)
फिर जब उन्होंने देखा एक बादल आते हुए अपनी वादियों की ओर, तो कहाः ये एक बादल है हमपर बरसने वाला। बल्कि ये वही है, जिसकी तुमने जल्दी मचायी है। ये आँधी है, जिसमें दुःखदायी यातना है।
تُدَمِّرُ كُلَّ شَيْءٍ بِأَمْرِ رَبِّهَا فَأَصْبَحُوا لَا يُرَىٰ إِلَّا مَسَاكِنُهُمْ ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْقَوْمَ الْمُجْرِمِينَ (25)
वह विनाश कर देगी प्रत्येक वस्तु को अपने पालनहार के आदेश से, तो वे हो गये ऐसे कि नहीं दिखाई देता था कुछ, उनके घरों के अतिरिक्त। इसी प्रकार, हम बदला दिया करते हैं अपराधी लोगों को।
وَلَقَدْ مَكَّنَّاهُمْ فِيمَا إِن مَّكَّنَّاكُمْ فِيهِ وَجَعَلْنَا لَهُمْ سَمْعًا وَأَبْصَارًا وَأَفْئِدَةً فَمَا أَغْنَىٰ عَنْهُمْ سَمْعُهُمْ وَلَا أَبْصَارُهُمْ وَلَا أَفْئِدَتُهُم مِّن شَيْءٍ إِذْ كَانُوا يَجْحَدُونَ بِآيَاتِ اللَّهِ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ (26)
तथा हमने उन्हें वह शक्ति दी थी, जो इन्हें[1] नहीं दी है। हमने बनाये थे उनके कान, आँखें और दिल, तो नहीं काम आये उनके कान, उनकी आँखें तथा न उनके दिल कुछ भी। क्योंकि वे इन्कार करते थे अल्लाह की आयतों का तथा घेर लिया उन्हें उसने, जिसका वे उपहास कर रहे थे।
وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا مَا حَوْلَكُم مِّنَ الْقُرَىٰ وَصَرَّفْنَا الْآيَاتِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ (27)
तथा हम ध्वस्त कर चुके हैं तुम्हारे आस-पास की बस्तियों को तथा हमने उन्हें अनेक प्रकार से आयतें सुना दीं, ताकि वे वापस आ जायें।
فَلَوْلَا نَصَرَهُمُ الَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِ اللَّهِ قُرْبَانًا آلِهَةً ۖ بَلْ ضَلُّوا عَنْهُمْ ۚ وَذَٰلِكَ إِفْكُهُمْ وَمَا كَانُوا يَفْتَرُونَ (28)
तो क्यों नहीं सहायता की उनकी, उन्होंने जिन्हें बनाया था अल्लाह के अतिरिक्त (अल्लाह के) सामीप्य के लिए पूज्य (उपास्य)? बल्कि वे खो गये उनस और ये[1] उनका झूठ था तथा जिसे स्वयं वे घड़ रहे थे।
وَإِذْ صَرَفْنَا إِلَيْكَ نَفَرًا مِّنَ الْجِنِّ يَسْتَمِعُونَ الْقُرْآنَ فَلَمَّا حَضَرُوهُ قَالُوا أَنصِتُوا ۖ فَلَمَّا قُضِيَ وَلَّوْا إِلَىٰ قَوْمِهِم مُّنذِرِينَ (29)
तथा याद करें, जब हमने फेर दिया आपकी ओर जिन्नों के एक[1] गिरोह को, ताकि वे क़ुर्आन सुनें। तो जब वे उपस्थित हुए आपके पास, तो उन्होंने कहा कि चुप रहो और जब पढ़ लिया गया, तो वे फिर गये अपनी जाति की ओर सावधान करने वाले होकर।
قَالُوا يَا قَوْمَنَا إِنَّا سَمِعْنَا كِتَابًا أُنزِلَ مِن بَعْدِ مُوسَىٰ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ يَهْدِي إِلَى الْحَقِّ وَإِلَىٰ طَرِيقٍ مُّسْتَقِيمٍ (30)
उन्होंने कहाः हे हमारी जाति! हमने सूनी है एक पुस्तक, जो उतारी गयी है मुसा के पश्चात्। वह अपने से पूर्व की किताबों की पुष्टि करती है और सत्य तथा सीधी राह दिखाती है।
يَا قَوْمَنَا أَجِيبُوا دَاعِيَ اللَّهِ وَآمِنُوا بِهِ يَغْفِرْ لَكُم مِّن ذُنُوبِكُمْ وَيُجِرْكُم مِّنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ (31)
हे हमारी जाति! मान लो अल्लाह की ओर बुलाने वाले की बात तथा ईमान लाओ उसपर, वह क्षमा कर देगा तुम्हारे लिए तुम्हारे पापों को तथा बचा लेगा तुम्हें दुःखदायी यातना से।
وَمَن لَّا يُجِبْ دَاعِيَ اللَّهِ فَلَيْسَ بِمُعْجِزٍ فِي الْأَرْضِ وَلَيْسَ لَهُ مِن دُونِهِ أَوْلِيَاءُ ۚ أُولَٰئِكَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ (32)
तथा जो मानेगा नहीं अल्लाह की ओर बुलाने वाले की बात, तो नहीं है वह विवश करने वाला धरती में और नहीं है उसके लिए अल्लाह के अतिरिक्त कोई सहायक। यही लोग खुले कुपथ में हैं।
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَلَمْ يَعْيَ بِخَلْقِهِنَّ بِقَادِرٍ عَلَىٰ أَن يُحْيِيَ الْمَوْتَىٰ ۚ بَلَىٰ إِنَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (33)
और क्या उन लोगों ने नहीं समझा कि अल्लाह, जिसने उत्पन्न किया है आकाशों तथा धरती को और नहीं थका उनको बनाने से, वह सामर्थ्वान है कि जीवीत कर दे मुर्दों को? क्यों नहीं? वास्तव में, वह जो चाहे, कर सकता है।
وَيَوْمَ يُعْرَضُ الَّذِينَ كَفَرُوا عَلَى النَّارِ أَلَيْسَ هَٰذَا بِالْحَقِّ ۖ قَالُوا بَلَىٰ وَرَبِّنَا ۚ قَالَ فَذُوقُوا الْعَذَابَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ (34)
और जिस दिन सामने लाये जायेंगे, जो काफ़िर हो गये, नरक के, (और उनसे कहा जायेगाः) क्या ये सच नहीं है? वे कहेंगे: क्यों नहीं? हमारे पालनहार की शपथ! वह कहेगाः तब चखो यातना, उस कुफ़्र के बदले, जो तुम कर रहे थे।
فَاصْبِرْ كَمَا صَبَرَ أُولُو الْعَزْمِ مِنَ الرُّسُلِ وَلَا تَسْتَعْجِل لَّهُمْ ۚ كَأَنَّهُمْ يَوْمَ يَرَوْنَ مَا يُوعَدُونَ لَمْ يَلْبَثُوا إِلَّا سَاعَةً مِّن نَّهَارٍ ۚ بَلَاغٌ ۚ فَهَلْ يُهْلَكُ إِلَّا الْقَوْمُ الْفَاسِقُونَ (35)
तो (हे नबी!) आप सहन करें, जैसे साहसी रसूलों ने सहन किया तथा जल्दी न करें उन (की यातना) के लिए। जिस दिन वे देख लेंगे, जिसका उन्हें वचन दिया जा रहा है, तो समझेंगे कि जैसे वे नहीं रहे हैं, परन्तु दिन के कुछ[1] क्षण। बात पूहुँचा दी गयी है, तो अब उन्हीं का विनाश होगा, जो अवज्ञाकारी हैं।
❮ Previous Next ❯

Surahs from Quran :

1- Fatiha2- Baqarah
3- Al Imran4- Nisa
5- Maidah6- Anam
7- Araf8- Anfal
9- Tawbah10- Yunus
11- Hud12- Yusuf
13- Raad14- Ibrahim
15- Hijr16- Nahl
17- Al Isra18- Kahf
19- Maryam20- TaHa
21- Anbiya22- Hajj
23- Muminun24- An Nur
25- Furqan26- Shuara
27- Naml28- Qasas
29- Ankabut30- Rum
31- Luqman32- Sajdah
33- Ahzab34- Saba
35- Fatir36- Yasin
37- Assaaffat38- Sad
39- Zumar40- Ghafir
41- Fussilat42- shura
43- Zukhruf44- Ad Dukhaan
45- Jathiyah46- Ahqaf
47- Muhammad48- Al Fath
49- Hujurat50- Qaf
51- zariyat52- Tur
53- Najm54- Al Qamar
55- Rahman56- Waqiah
57- Hadid58- Mujadilah
59- Al Hashr60- Mumtahina
61- Saff62- Jumuah
63- Munafiqun64- Taghabun
65- Talaq66- Tahrim
67- Mulk68- Qalam
69- Al-Haqqah70- Maarij
71- Nuh72- Jinn
73- Muzammil74- Muddathir
75- Qiyamah76- Insan
77- Mursalat78- An Naba
79- Naziat80- Abasa
81- Takwir82- Infitar
83- Mutaffifin84- Inshiqaq
85- Buruj86- Tariq
87- Al Ala88- Ghashiya
89- Fajr90- Al Balad
91- Shams92- Lail
93- Duha94- Sharh
95- Tin96- Al Alaq
97- Qadr98- Bayyinah
99- Zalzalah100- Adiyat
101- Qariah102- Takathur
103- Al Asr104- Humazah
105- Al Fil106- Quraysh
107- Maun108- Kawthar
109- Kafirun110- Nasr
111- Masad112- Ikhlas
113- Falaq114- An Nas