الْحَمْدُ لِلَّهِ فَاطِرِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ جَاعِلِ الْمَلَائِكَةِ رُسُلًا أُولِي أَجْنِحَةٍ مَّثْنَىٰ وَثُلَاثَ وَرُبَاعَ ۚ يَزِيدُ فِي الْخَلْقِ مَا يَشَاءُ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (1) सब प्रशंसा अल्लाह के लिए हैं, जो उत्पन्न करने वाला है आकाशों तथा धरती का, (और) बनाने वाला[1] है संदेशवाहक फ़रिश्तों को दो-दो, तीन-तीन, चार-चार परों वाले। वह अधिक करता है उत्पत्ति में, जो चाहता है, निःसंदेह अल्लाह जो चाहे, कर सकता है। |
مَّا يَفْتَحِ اللَّهُ لِلنَّاسِ مِن رَّحْمَةٍ فَلَا مُمْسِكَ لَهَا ۖ وَمَا يُمْسِكْ فَلَا مُرْسِلَ لَهُ مِن بَعْدِهِ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (2) जो खोल दे अल्लाह लोगों के लिए अपनी दया,[1] तो उसे कोई रोकने वाला नहीं तथा जिसे रोक दे, तो कोई खोलने वाला नहीं उसका, उसके पश्चात् तथा वही प्रभावशाली चतुर है। |
يَا أَيُّهَا النَّاسُ اذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ ۚ هَلْ مِنْ خَالِقٍ غَيْرُ اللَّهِ يَرْزُقُكُم مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۚ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ فَأَنَّىٰ تُؤْفَكُونَ (3) हे मनुष्यो! याद करो अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार को, क्या कोई उत्पत्तिकर्ता है अल्लाह कि सिवा, जो तुम्हें जीविका प्रदान करता हो आकाश तथा धरती से? नहीं है कोई वंदनीय, परन्तु वही। फिर तुम कहाँ फिरे जा रहे हो |
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِّن قَبْلِكَ ۚ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ (4) और यदि वे आपको झुठलाते हैं, तो झुठलाये जा चुके हैं बहुत-से रसूल आपसे पहले और अल्लाह ही की ओर फेरे जायेंगे सब विषय। |
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ ۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا ۖ وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ (5) हे लोगो! निश्चय अल्लाह का वचन सत्य है। अतः, तुम्हें धोखे में न रखे सांसारिक जीवन और न धोखे में रखें अल्लाह से, अति प्रवंचक (शैतान)। |
إِنَّ الشَّيْطَانَ لَكُمْ عَدُوٌّ فَاتَّخِذُوهُ عَدُوًّا ۚ إِنَّمَا يَدْعُو حِزْبَهُ لِيَكُونُوا مِنْ أَصْحَابِ السَّعِيرِ (6) वास्तव में, शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः, तुम उसे अपना शत्रु ही समझो। वह बुलाता है अपने गिरोह को इसीलिए ताकि वे नारकियों में हो जायें। |
الَّذِينَ كَفَرُوا لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ ۖ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ (7) जो काफ़िर हो गये, उन्हीं के लिए कड़ी यातना है तथा जो ईमान लाये और सदाचार किये, तो उनके लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है। |
أَفَمَن زُيِّنَ لَهُ سُوءُ عَمَلِهِ فَرَآهُ حَسَنًا ۖ فَإِنَّ اللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَاءُ وَيَهْدِي مَن يَشَاءُ ۖ فَلَا تَذْهَبْ نَفْسُكَ عَلَيْهِمْ حَسَرَاتٍ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِمَا يَصْنَعُونَ (8) तथा क्या शोभनीय बना दिया गया हो जिसके लिए उसका कुकर्म और वह उसे अच्छा समझता हो? तो अल्लाह ही कुपथ करता है, जिसे चाहे और सुपथ दिखाता है, जिसे चाहे। अतः, न खोयें आप अपना प्राण इनपर संताप के कारण। वास्तव में, अल्लाह जानता है, जो कुछ वे कर रहे हैं। |
وَاللَّهُ الَّذِي أَرْسَلَ الرِّيَاحَ فَتُثِيرُ سَحَابًا فَسُقْنَاهُ إِلَىٰ بَلَدٍ مَّيِّتٍ فَأَحْيَيْنَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ كَذَٰلِكَ النُّشُورُ (9) तथा अल्लाह वही है, जो वायु को भेजता है, जो बादलों को उठाती है, फिर हम हाँक देते हैं उन्हें, निर्जीव नगर की ओर। फिर जीवित कर देते हैं उनके द्वारा धरती को, उसके मरण के पश्चात्। इसी प्रकार, फिर जीना (भी)[1] होगा। |
مَن كَانَ يُرِيدُ الْعِزَّةَ فَلِلَّهِ الْعِزَّةُ جَمِيعًا ۚ إِلَيْهِ يَصْعَدُ الْكَلِمُ الطَّيِّبُ وَالْعَمَلُ الصَّالِحُ يَرْفَعُهُ ۚ وَالَّذِينَ يَمْكُرُونَ السَّيِّئَاتِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ ۖ وَمَكْرُ أُولَٰئِكَ هُوَ يَبُورُ (10) जो सम्मान चाहता हो, तो अल्लाह ही के लिए है सब सम्मान और उसी की ओर चढ़ते हैं पवित्र वाक्य[1] तथा सत्कर्म ही उनको ऊपर ले जाता[2] है तथा जो दाव-घात में लगे रहते हैं बुराईयों की, तो उन्हीं के लिए कड़ी यातना है और उन्हीं के षड्यंत्र नाश हो जायेंगे। |
وَاللَّهُ خَلَقَكُم مِّن تُرَابٍ ثُمَّ مِن نُّطْفَةٍ ثُمَّ جَعَلَكُمْ أَزْوَاجًا ۚ وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ ۚ وَمَا يُعَمَّرُ مِن مُّعَمَّرٍ وَلَا يُنقَصُ مِنْ عُمُرِهِ إِلَّا فِي كِتَابٍ ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ (11) अल्लाह ने उत्पन्न किया तुम्हें मिट्टी से, फिर वीर्य से, फिर बनाये तुम्हें जोड़े और नहीं गर्भ धारण करती कोई नारी और न जन्म देती है, परन्तु उसके ज्ञान से और नहीं आयु दिया जाता कोई अधिक और न कम की जाती है उसकी आयु, परन्तु वह एक लेख में[1] है। वास्तव में, ये अल्लाह पर अति सरल है। |
وَمَا يَسْتَوِي الْبَحْرَانِ هَٰذَا عَذْبٌ فُرَاتٌ سَائِغٌ شَرَابُهُ وَهَٰذَا مِلْحٌ أُجَاجٌ ۖ وَمِن كُلٍّ تَأْكُلُونَ لَحْمًا طَرِيًّا وَتَسْتَخْرِجُونَ حِلْيَةً تَلْبَسُونَهَا ۖ وَتَرَى الْفُلْكَ فِيهِ مَوَاخِرَ لِتَبْتَغُوا مِن فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ (12) तथा बराबर नहीं होते दो सागर, ये मधुर प्यास बुझाने वाला है, रुचिकर है इसका पीना और वो (दूसरा) खारी कड़वा है तथा प्रत्येक में से तुम खाते हो ताज़ा माँस तथा निकालते हो आभूषण, जिसे पहनते हो और तुम देखते हो नाव को उसमें पानी फाड़ती हुई, ताकि तुम खोज करो अल्लाह के अनुग्रह की और ताकि तुम कृतज्ञ बनो। |
يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُّسَمًّى ۚ ذَٰلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ ۚ وَالَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِهِ مَا يَمْلِكُونَ مِن قِطْمِيرٍ (13) वह प्रवेश करता है रात को दिन में तथा प्रवेश करता है दिन को रात्रि में तथा वश में कर रखा है सूर्य तथा चन्द्रा को, प्रत्येक चलते रहेंगे एक निश्चित समय तक। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। उसी का राज्य है तथा जिन्हें तुम पुकारते हो, उसके सिवा, वे स्वामी नहीं हैं एक तिन्के के भी। |
إِن تَدْعُوهُمْ لَا يَسْمَعُوا دُعَاءَكُمْ وَلَوْ سَمِعُوا مَا اسْتَجَابُوا لَكُمْ ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكْفُرُونَ بِشِرْكِكُمْ ۚ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيرٍ (14) यदि तुम उन्हें पुकारते हो, तो वे नहीं सुनते तुम्हारी पुकार को और यदि सुन भी लें, तो नहीं उत्तर दे सकते तुम्हें और प्रलय के दिन वे नकार देंगे तुम्हारे शिर्क (साझी बनाने) को और आपको कोई सूचना नहीं देगा सर्वसूचित जैसी। |
۞ يَا أَيُّهَا النَّاسُ أَنتُمُ الْفُقَرَاءُ إِلَى اللَّهِ ۖ وَاللَّهُ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ (15) हे मनुष्यो! तुम सभी भिक्षु हो अल्लाह के तथा अल्लाह ही निःस्वार्थ, प्रशंसित है। |
إِن يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ وَيَأْتِ بِخَلْقٍ جَدِيدٍ (16) यदि वह चाहे, तो तुम्हें ध्वस्त कर दे और नई[1] उतपत्ति ले आये। |
وَمَا ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ بِعَزِيزٍ (17) और ये नहीं है अल्लाह पर कुछ कठिन। |
وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ ۚ وَإِن تَدْعُ مُثْقَلَةٌ إِلَىٰ حِمْلِهَا لَا يُحْمَلْ مِنْهُ شَيْءٌ وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَىٰ ۗ إِنَّمَا تُنذِرُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُم بِالْغَيْبِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ ۚ وَمَن تَزَكَّىٰ فَإِنَّمَا يَتَزَكَّىٰ لِنَفْسِهِ ۚ وَإِلَى اللَّهِ الْمَصِيرُ (18) तथा नहीं लादेगा कोई लादने वाला, दूसरे का बोझ, अपने ऊपर[1] और यदि पुकारेगा कोई बोझल, उसे लादने के लिए, तो वह नहीं लादेगा उसमें से कुछ, चाहे वह उसका समीपवर्ती ही क्यों न हो। आप तो बस उन्हीं को सचेत कर रहे हैं, जो डरते हों अपने पालनहार से बिन देखे तथा जो स्थापना करते हैं नमाज़ की तथा जो पवित्र हुआ, तो वह पवित्र होगा अपने ही लाभ के लिए और अल्लाह ही की ओर (सबको) जाना है। |
وَمَا يَسْتَوِي الْأَعْمَىٰ وَالْبَصِيرُ (19) तथा समान नहीं हो सकता अंधा तथा आँख वाला। |
وَلَا الظُّلُمَاتُ وَلَا النُّورُ (20) और न अंधकार तथा प्रकाश। |
وَلَا الظِّلُّ وَلَا الْحَرُورُ (21) और न छाया तथा न धूप। |
وَمَا يَسْتَوِي الْأَحْيَاءُ وَلَا الْأَمْوَاتُ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُسْمِعُ مَن يَشَاءُ ۖ وَمَا أَنتَ بِمُسْمِعٍ مَّن فِي الْقُبُورِ (22) तथा समान नहीं हो सकते जीवित तथा निर्जीव।[1] वास्तव में, अल्लाह ही सुनाता है जिसे चाहता है और आप नहीं सुना सकते उन्हें, जो क़ब्रों में हों। |
إِنْ أَنتَ إِلَّا نَذِيرٌ (23) आप तो बस सचेतकर्ता हैं। |
إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ بِالْحَقِّ بَشِيرًا وَنَذِيرًا ۚ وَإِن مِّنْ أُمَّةٍ إِلَّا خَلَا فِيهَا نَذِيرٌ (24) वास्तव में, हमने आपको सत्य के साथ शुभ सूचक तथा सचेतकर्ता बनाकर भेजा है और कोई ऐसा समुदाय नहीं, जिसमें कोई सचेतकर्ता न आया हो। |
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كَذَّبَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ وَبِالزُّبُرِ وَبِالْكِتَابِ الْمُنِيرِ (25) और यदि ये आपको झुठलायें, तो इनसे पूर्व के लोगों ने भी झुठलाया है, जिनके पास हमारे रसूल खुले प्रमाण तथा ग्रंथ और प्रकाशित पुस्तकें लाये। |
ثُمَّ أَخَذْتُ الَّذِينَ كَفَرُوا ۖ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ (26) फिर मैंने पकड़ लिया उन्हें, जो काफ़िर हो गये। तो कैसा रहा मेरा इन्कार। |
أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجْنَا بِهِ ثَمَرَاتٍ مُّخْتَلِفًا أَلْوَانُهَا ۚ وَمِنَ الْجِبَالِ جُدَدٌ بِيضٌ وَحُمْرٌ مُّخْتَلِفٌ أَلْوَانُهَا وَغَرَابِيبُ سُودٌ (27) क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह ने उतारा आकाश से जल, फिर हमने निकाल दिये उसके द्वारा बहुत-से फल विभिन्न रंगों के तथा पर्वतों के विभिन्न भाग हैं; स्वेत तथा लाल, विभिन्न रंगों के तथा गहरे काले। |
وَمِنَ النَّاسِ وَالدَّوَابِّ وَالْأَنْعَامِ مُخْتَلِفٌ أَلْوَانُهُ كَذَٰلِكَ ۗ إِنَّمَا يَخْشَى اللَّهَ مِنْ عِبَادِهِ الْعُلَمَاءُ ۗ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ غَفُورٌ (28) तथा मनुष्य, जीवों तथा पशुओं में भी विभिन्न रंगों के हैं, इसी प्रकार। वास्तव में, डरते हैं अल्लाह से उसके भक्तों में से वही जो ज्ञानी[1] हों। निःसंदेह अल्लाह अति प्रभुत्वशाली, क्षमी है। |
إِنَّ الَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَابَ اللَّهِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَأَنفَقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلَانِيَةً يَرْجُونَ تِجَارَةً لَّن تَبُورَ (29) वास्तव में, जो पढ़ते हैं अल्लाह की पुस्तक (क़ुर्आन), उन्होंने स्थापना की नमाज़ की एवं दान किया उसमें से, जो हमने उन्हें प्रदान किया है, खुले तथा छुपे, तो वही आशा रखते हैं ऐसे व्यापार की, जो कदापि हानिकर नहीं होगा। |
لِيُوَفِّيَهُمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدَهُم مِّن فَضْلِهِ ۚ إِنَّهُ غَفُورٌ شَكُورٌ (30) ताकि अल्लाह प्रदान करे उन्हें भरपूर उनका प्रतिफल तथा उन्हें अधिक दे अपने अनुग्रह से। वास्तव में, वह अति क्षमी, आदर करने वाला है। |
وَالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ مِنَ الْكِتَابِ هُوَ الْحَقُّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ بِعِبَادِهِ لَخَبِيرٌ بَصِيرٌ (31) तथा जो हमने प्रकाशना की है आपकी ओर ये पुस्तक, वही सर्वथा सच है और सच बताती है अपने पूर्व की पुस्तकों को। वास्तव में, अल्लाह अपने भक्तों से सूचित, भली-भाँति देखने वाला है। |
ثُمَّ أَوْرَثْنَا الْكِتَابَ الَّذِينَ اصْطَفَيْنَا مِنْ عِبَادِنَا ۖ فَمِنْهُمْ ظَالِمٌ لِّنَفْسِهِ وَمِنْهُم مُّقْتَصِدٌ وَمِنْهُمْ سَابِقٌ بِالْخَيْرَاتِ بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الْكَبِيرُ (32) फिर हमने उत्तराधिकारी बनाया इस पुस्तक का उन्हें जिन्हें हमने चुन लिया अपने भक्तों में[1] से। तो उनमें कुछ अत्याचारी हैं अपने ही लिए, उनमें से कुछ मध्यवर्ती हैं और कुछ अग्रसर हैं भलाई में अल्लाह की अनुमति से तथा यही महान अनुग्रह है। |
جَنَّاتُ عَدْنٍ يَدْخُلُونَهَا يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٍ وَلُؤْلُؤًا ۖ وَلِبَاسُهُمْ فِيهَا حَرِيرٌ (33) सदावास के स्वर्ग हैं, वे प्रवेश करेंगे उनमें और पहनाये जायेंगे उनमें सोने के कंगन तथा मोती और उनके वस्त्र उनमें रेशम के होंगे। |
وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَذْهَبَ عَنَّا الْحَزَنَ ۖ إِنَّ رَبَّنَا لَغَفُورٌ شَكُورٌ (34) तथा वे कहेंगेः सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए हैं, जिसने दूर कर दिया हमसे शोक। वास्तव में, हमारा पालनहार अति क्षमी, गुणग्राही है। |
الَّذِي أَحَلَّنَا دَارَ الْمُقَامَةِ مِن فَضْلِهِ لَا يَمَسُّنَا فِيهَا نَصَبٌ وَلَا يَمَسُّنَا فِيهَا لُغُوبٌ (35) जिसने हमें उतार दिया स्थायी घर में अपने अनुग्रह से। नहीं छूएगी उसमें हमें कोई आपदा और न छूएगी उसमें कोई थकान। |
وَالَّذِينَ كَفَرُوا لَهُمْ نَارُ جَهَنَّمَ لَا يُقْضَىٰ عَلَيْهِمْ فَيَمُوتُوا وَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُم مِّنْ عَذَابِهَا ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي كُلَّ كَفُورٍ (36) तथा जो काफ़िर हैं, उन्हीं के लिए नरक की अग्नि है। न तो उनकी मौत ही आयेगी, न वे मर जायें और न हल्की की जायेगी उनसे उसकी कुछ यातना। इसी प्रकार, हम बदला देते हैं प्रत्येक नाशुक्रे को। |
وَهُمْ يَصْطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَا أَخْرِجْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا غَيْرَ الَّذِي كُنَّا نَعْمَلُ ۚ أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُم مَّا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَن تَذَكَّرَ وَجَاءَكُمُ النَّذِيرُ ۖ فَذُوقُوا فَمَا لِلظَّالِمِينَ مِن نَّصِيرٍ (37) और वे उसमें चिल्लायेंगेः हे हमारे पालनहार! हमें निकाल दे, हम सदाचार करेंगे उसके अतिरिक्त, जो कर रहे थे। क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी, जिसमें शिक्षा ग्रहण कर ले, जो शिक्षा ग्रहण करे तथा आया तुम्हारे पास सचेतकर्ता (नबी)? अतः, तुम चखो, अत्याचारियों का कोई सहायक नहीं है। |
إِنَّ اللَّهَ عَالِمُ غَيْبِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ (38) वास्तव में, अल्लाह ही ज्ञानी है आकाशों तथा धरती के भेद का। वास्तव में, वही भली-भाँति जानने वाला है सीनों की बातों का। |
هُوَ الَّذِي جَعَلَكُمْ خَلَائِفَ فِي الْأَرْضِ ۚ فَمَن كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهُ ۖ وَلَا يَزِيدُ الْكَافِرِينَ كُفْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ إِلَّا مَقْتًا ۖ وَلَا يَزِيدُ الْكَافِرِينَ كُفْرُهُمْ إِلَّا خَسَارًا (39) वही है, जिसने तुम्हें एक-दूसरे के पश्चात् बसाया है धरती में, तो जो कुफ़्र करेगा, तो उसके लिए है उसका कुफ़्र और नहीं बढ़ायेगा काफ़िरों के लिए उनका कुफ़् उनके पालनहार के यहाँ, परन्तु क्रोध ही और नहीं बढ़ायेगा काफ़िरों के लिए उनका क़फ़्र, परन्तु क्षति ही। |
قُلْ أَرَأَيْتُمْ شُرَكَاءَكُمُ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُوا مِنَ الْأَرْضِ أَمْ لَهُمْ شِرْكٌ فِي السَّمَاوَاتِ أَمْ آتَيْنَاهُمْ كِتَابًا فَهُمْ عَلَىٰ بَيِّنَتٍ مِّنْهُ ۚ بَلْ إِن يَعِدُ الظَّالِمُونَ بَعْضُهُم بَعْضًا إِلَّا غُرُورًا (40) (हे नबी!)[1] उनसे कहोः क्या तुमने देखा है अपने साझियों को, जिन्हें तुम पुकारते हो अल्लाह के अतिरिक्त? मुझे भी दिखाओ कि उन्होंने कितना भाग बनाया है धरती में से? या उनका आकाशों में कुछ साझा है? या हमने प्रदान की है उन्हें कोई पुस्तक, तो ये उसके खुले प्रमाणों पर हैं? बल्कि (बात ये है कि) अत्याचारी एक-दूसरे को केवल धोखे का वचन दे रहे हैं। |
۞ إِنَّ اللَّهَ يُمْسِكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ أَن تَزُولَا ۚ وَلَئِن زَالَتَا إِنْ أَمْسَكَهُمَا مِنْ أَحَدٍ مِّن بَعْدِهِ ۚ إِنَّهُ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًا (41) अल्लाह ही रोकता[1] है आकाशो तथा धरती को खिसक जाने से और यदि खिसक जायें वे दोनों, तो नहीं रोक सकेगा उन्हें कोई उस (अल्लाह) के पश्चात्। वास्तव में, वह अत्यंत सहनशील, क्षमाशील है। |
وَأَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِن جَاءَهُمْ نَذِيرٌ لَّيَكُونُنَّ أَهْدَىٰ مِنْ إِحْدَى الْأُمَمِ ۖ فَلَمَّا جَاءَهُمْ نَذِيرٌ مَّا زَادَهُمْ إِلَّا نُفُورًا (42) और उनकाफ़िरों ने शपथ ली थी अल्लाह की पक्की शपथ कि यदि आ गया, उनके पास कोई सचेतकर्ता (नबी), तो वे अवश्य हो जायेंगे सर्वाधिक संमार्ग पर समुदायों में से किसी एक से। फिर जब आ गये उनके पास एक रसूल,[1] तो उनकी दूरी ही अधिक हुई। |
اسْتِكْبَارًا فِي الْأَرْضِ وَمَكْرَ السَّيِّئِ ۚ وَلَا يَحِيقُ الْمَكْرُ السَّيِّئُ إِلَّا بِأَهْلِهِ ۚ فَهَلْ يَنظُرُونَ إِلَّا سُنَّتَ الْأَوَّلِينَ ۚ فَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ اللَّهِ تَبْدِيلًا ۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ اللَّهِ تَحْوِيلًا (43) अभिमान के कारण धरती में तथा बुरे षड्यंत्र के कारण और नहीं घेरता है बुरा षड्यंत्र, परन्तु अपने करने वाले ही को। तो क्या वे प्रतीक्षा कर रहे हैं पूर्व के लोगों की नीति की?[1] तो नहीं पायेंगे आप अल्लाह के नियम में कोई अन्तर। |
أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَكَانُوا أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً ۚ وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُعْجِزَهُ مِن شَيْءٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ ۚ إِنَّهُ كَانَ عَلِيمًا قَدِيرًا (44) और क्या वे नहीं चले-फिरे धरती में, तो देख लेते कि कैसा रहा उनका दुष्परिणाम, जो इनसे पूर्व रहे, जबकि वह इनसे कड़े थे बल में? तथा अल्लाह ऐसा नहीं, वास्तव में, वह सर्वज्ञ, अति सामर्थ्यवान है। |
وَلَوْ يُؤَاخِذُ اللَّهُ النَّاسَ بِمَا كَسَبُوا مَا تَرَكَ عَلَىٰ ظَهْرِهَا مِن دَابَّةٍ وَلَٰكِن يُؤَخِّرُهُمْ إِلَىٰ أَجَلٍ مُّسَمًّى ۖ فَإِذَا جَاءَ أَجَلُهُمْ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِعِبَادِهِ بَصِيرًا (45) और यदि पकड़ने लगता अल्लाह लोगों को उनके कर्मों के कारण, तो नहीं छोड़ता धरती के ऊपर कोई जीव। किन्तु, अवसर दे रहा है उन्हें एक निश्चित अवधि तक, फिर जब आ जायेगा उनका निश्चित समय, तो निश्चय अल्लाह अपने भक्तों को देख रहा[1] है। |