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Surah An-Naml in Hindi

Quran Hindi ⮕ Surah Naml

Translation of the Meanings of Surah Naml in Hindi - الهندية

The Quran in Hindi - Surah Naml translated into Hindi, Surah An-Naml in Hindi. We provide accurate translation of Surah Naml in Hindi - الهندية, Verses 93 - Surah Number 27 - Page 377.

بسم الله الرحمن الرحيم

طس ۚ تِلْكَ آيَاتُ الْقُرْآنِ وَكِتَابٍ مُّبِينٍ (1)
ता, सीन, मीम। ये क़ुर्आन तथा प्रत्यक्ष पुस्तक की आयतें हैं।
هُدًى وَبُشْرَىٰ لِلْمُؤْمِنِينَ (2)
मार्गदर्शन तथा शुभ सूचना है, उन ईमान वालों के लिए।
الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ (3)
जो नमाज़ की स्थापना करते तथा ज़कात देते हैं और वही हैं, जो अन्तिम दिन (परलोक) पर विश्वास रखते हैं।
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمْ أَعْمَالَهُمْ فَهُمْ يَعْمَهُونَ (4)
वास्तव में, जो विश्वास नहीं करते परलोक पर, हमने शोभनीय बना दिया है उनके कर्मों को, इसलिए वे बहके जा रहे हैं।
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَهُمْ سُوءُ الْعَذَابِ وَهُمْ فِي الْآخِرَةِ هُمُ الْأَخْسَرُونَ (5)
यही हैं, जिनके लिए बुरी यातना है तथा परलोक में यही सर्वाधिक क्षतिग्रस्त रहने वाले हैं।
وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى الْقُرْآنَ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ عَلِيمٍ (6)
और (हे नबी!) वास्तव में, आपको दिया जा रहा है क़ुर्आन एक तत्वज्ञ, सर्वज्ञ की ओर से।
إِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِأَهْلِهِ إِنِّي آنَسْتُ نَارًا سَآتِيكُم مِّنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ آتِيكُم بِشِهَابٍ قَبَسٍ لَّعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ (7)
(याद करो) जब कहा[1] मूसा ने अपने परिजनों सेः मैंने आग देखी है, मैं तुम्हारे पास कोई सूचना लाऊँगा या लाऊँगा आग का कोई अंगार, ताकि तुम तापो।
فَلَمَّا جَاءَهَا نُودِيَ أَن بُورِكَ مَن فِي النَّارِ وَمَنْ حَوْلَهَا وَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ (8)
फिर जब आया वहाँ, तो पुकारा गयाः शुभ है वह, जो अग्नि में है और जो उसके आस-पास है और पवित्र है अल्लाह, सर्वलोक का पालनहार।
يَا مُوسَىٰ إِنَّهُ أَنَا اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (9)
हे मूसा! ये मैं हूँ, अल्लाह, अति प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ।
وَأَلْقِ عَصَاكَ ۚ فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّىٰ مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ ۚ يَا مُوسَىٰ لَا تَخَفْ إِنِّي لَا يَخَافُ لَدَيَّ الْمُرْسَلُونَ (10)
और फेंक दे अपनी लाठी, फिर जब उसे देखा कि रेंग रही है, जैसे वह कोई सर्प हो, तो पीठ फेरकर भागा और पीछे फिरकर देखा भी नहीं। (हमने कहाः) हे मूसा! भय न कर, वास्तव में, नहीं भय करते मेरे पास रसूल।
إِلَّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسْنًا بَعْدَ سُوءٍ فَإِنِّي غَفُورٌ رَّحِيمٌ (11)
उसके सिवा, जिसने अत्याचार किया हो, फिर जिसने बदल लिया अपना कर्म भलाई से बुराई के पश्चात्, तो निश्चय, मैं अति क्षमि, दयावान् हूँ।
وَأَدْخِلْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ ۖ فِي تِسْعِ آيَاتٍ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَقَوْمِهِ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ (12)
और डाल दे अपना हाथ अपनी जेब में, वह निकलेगा उज्ज्वल होकर बिना किसी रोग के; नौ निशानियों में से है, फ़िरऔन तथा उसकी जाति की ओर (ले जाने के लिए) वास्तव में, वे उल्लंघनकारियों में हैं।
فَلَمَّا جَاءَتْهُمْ آيَاتُنَا مُبْصِرَةً قَالُوا هَٰذَا سِحْرٌ مُّبِينٌ (13)
फिर जब आयीं उनके पास हमारी निशानियाँ, आँख खोलने वाली, तो कह दिया कि ये तो खुला जादू है।
وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا ۚ فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِينَ (14)
तथा उन्होंने नकार दिया उन्हें, अत्याचार तथा अभिमान के कारण, जबकि उनके दिलों ने उनका विश्वास कर लिया, तो देखो कि कैसा रहा उपद्रवियों का परिणाम
وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ عِلْمًا ۖ وَقَالَا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي فَضَّلَنَا عَلَىٰ كَثِيرٍ مِّنْ عِبَادِهِ الْمُؤْمِنِينَ (15)
और हमने प्रदान किया दावूद तथा सुलैमान को ज्ञान[1] और दोनों ने कहाः प्रशंसा है, उस अल्लाह के लिए, जिसने हमें प्रधानता दी अपने बहुत-से ईमान वाले भक्तों पर।
وَوَرِثَ سُلَيْمَانُ دَاوُودَ ۖ وَقَالَ يَا أَيُّهَا النَّاسُ عُلِّمْنَا مَنطِقَ الطَّيْرِ وَأُوتِينَا مِن كُلِّ شَيْءٍ ۖ إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ الْفَضْلُ الْمُبِينُ (16)
और उत्तराधिकारी हुआ सुलैमान दावूद का तथा उसने कहाः हे लोगो! हमें सिखाई गयी है पक्षियों की बोली तथा हमें प्रदान की गयी है, सब चीज़ से कुछ। वास्तव में, ये प्रत्यक्ष अनुग्रह है।
وَحُشِرَ لِسُلَيْمَانَ جُنُودُهُ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ وَالطَّيْرِ فَهُمْ يُوزَعُونَ (17)
तथा एकत्र कर दी गयी सुलैमान के लिए उसकी सेनायें; जिन्नों तथा मानवों और पक्षी की और वे व्यवस्थित रखे जाते थे।
حَتَّىٰ إِذَا أَتَوْا عَلَىٰ وَادِ النَّمْلِ قَالَتْ نَمْلَةٌ يَا أَيُّهَا النَّمْلُ ادْخُلُوا مَسَاكِنَكُمْ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمَانُ وَجُنُودُهُ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ (18)
यहाँ तक कि वे (एक बार) जब पहुँचे च्युंटियों की घाटी पर, तो एक च्युंटी ने कहाः हे च्युटियो! प्रवेश कर जाओ अपने घरों में, ऐसा न हो कि तुम्हें कुचल दे सुलैमान तथा उसकी सेनायें और उन्हें ज्ञान न हो।
فَتَبَسَّمَ ضَاحِكًا مِّن قَوْلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَدْخِلْنِي بِرَحْمَتِكَ فِي عِبَادِكَ الصَّالِحِينَ (19)
तो वह (सुलैमान) मुस्कुराकर हँस पड़ा उसकी बात पर और कहाः हे मेरे पालनहार! मुझे क्षमता प्रदानकर कि मैं कृतज्ञ रहूँ तेरे उस पुरस्कार का, जो पुरस्कार तूने मुझपर तथा मेरे माता-पिता पर किया है तथा ये कि मैं सदाचार करता रहूँ, जिससे तू प्रसन्न रहे और मुझे प्रवेश दे अपनी दया से, अपने सदाचारी भक्तों में।
وَتَفَقَّدَ الطَّيْرَ فَقَالَ مَا لِيَ لَا أَرَى الْهُدْهُدَ أَمْ كَانَ مِنَ الْغَائِبِينَ (20)
और उसने निरीक्षण किया पक्षियों का, तो कहाः क्या बात है कि मैं नहीं देख रहा हूँ हुदहुद को या वह अनुपस्थितों में है
لَأُعَذِّبَنَّهُ عَذَابًا شَدِيدًا أَوْ لَأَذْبَحَنَّهُ أَوْ لَيَأْتِيَنِّي بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ (21)
मैं उसे कड़ी यातना दूँगा या उसे वध कर दूँगा या मेरे पास कोई खुला प्रमाण लाये।
فَمَكَثَ غَيْرَ بَعِيدٍ فَقَالَ أَحَطتُ بِمَا لَمْ تُحِطْ بِهِ وَجِئْتُكَ مِن سَبَإٍ بِنَبَإٍ يَقِينٍ (22)
तो कुछ अधिक समय नहीं बीता कि उसने (आकर) कहाः मैंने ऐसी बात का ज्ञान प्राप्त किया है, जो आपके ज्ञान में नहीं आयी है और मैं लाया हूँ, आपके पास "सबा"[1] से एक विश्वसनीय सूचना।
إِنِّي وَجَدتُّ امْرَأَةً تَمْلِكُهُمْ وَأُوتِيَتْ مِن كُلِّ شَيْءٍ وَلَهَا عَرْشٌ عَظِيمٌ (23)
मैंने एक स्त्री को पाया, जो उनपर राज्य कर रही है और उसे प्रदान किया गया है कुछ न कुछ प्रत्येक वस्तु से तथा उसके पास एक बड़ा भव्य सिंहासन है।
وَجَدتُّهَا وَقَوْمَهَا يَسْجُدُونَ لِلشَّمْسِ مِن دُونِ اللَّهِ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيلِ فَهُمْ لَا يَهْتَدُونَ (24)
मैंने उसे तथा उसकी जाति को पाया कि सज्दा करते हैं सूर्य को अल्लाह के सिवा और शोभनीय बना दिया है, उनके लिए शैतान ने उनके कर्मों को और उन्हें रोक दिया है सुपथ से, अतः, वे सुपथ पर नहीं आते।
أَلَّا يَسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي يُخْرِجُ الْخَبْءَ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُخْفُونَ وَمَا تُعْلِنُونَ (25)
(शैतान ने शोभनीय बना दिया है उनके लिए) कि उस अल्लाह को सज्दा न करें, जो निकालता है गुप्त वस्तु को[1] आकाशों तथा धरती में तथा जानता है वह सब कुछ, जिसे तुम छुपाते हो तथा जिसे व्यक्त करते हो।
اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ ۩ (26)
अल्लाह जिसके अतिरिक्त कोई वंदनीय नहीं, जो महा सिंहासन का स्वामी है।
۞ قَالَ سَنَنظُرُ أَصَدَقْتَ أَمْ كُنتَ مِنَ الْكَاذِبِينَ (27)
(सुलैमान ने) कहाः हम देखेंगे कि तू सत्यवादी है अथवा मिथ्यावादियों में से है।
اذْهَب بِّكِتَابِي هَٰذَا فَأَلْقِهْ إِلَيْهِمْ ثُمَّ تَوَلَّ عَنْهُمْ فَانظُرْ مَاذَا يَرْجِعُونَ (28)
जाओ, ये मेरा पत्र लेकर और इसे डाल दो उनकी ओर, फिर वापस आ जाओ उनके पास से, फिर देखो कि वे क्या उत्तर देते हैं
قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ إِنِّي أُلْقِيَ إِلَيَّ كِتَابٌ كَرِيمٌ (29)
उसने कहाः हे प्रमुखो! मेरी ओर एक महत्वपूरण पत्र डाला गया है।
إِنَّهُ مِن سُلَيْمَانَ وَإِنَّهُ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ (30)
वह सुलैमान की ओर से है और वह अत्यंत कृपाशील दयावान् के नाम से (आरंभ) है।
أَلَّا تَعْلُوا عَلَيَّ وَأْتُونِي مُسْلِمِينَ (31)
(उसमें लिखा है) कि तुम मुझपर अभिमान न करो तथा आ जाओ मेरे पास, आज्ञाकारी होकर।
قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَفْتُونِي فِي أَمْرِي مَا كُنتُ قَاطِعَةً أَمْرًا حَتَّىٰ تَشْهَدُونِ (32)
उसने कहाः हे प्रमुखो! मुझे प्रामर्श दो मेरे विषय में, मैं कोई निर्णय करने वाला नहीं हूँ, जब तक तुम उपस्थित न रहो।
قَالُوا نَحْنُ أُولُو قُوَّةٍ وَأُولُو بَأْسٍ شَدِيدٍ وَالْأَمْرُ إِلَيْكِ فَانظُرِي مَاذَا تَأْمُرِينَ (33)
सबने उत्तर दिया कि हम शक्तिशाली तथा बड़े याध्दा हैं, आप स्वयं देख लें कि आपको क्या आदेश देना है।
قَالَتْ إِنَّ الْمُلُوكَ إِذَا دَخَلُوا قَرْيَةً أَفْسَدُوهَا وَجَعَلُوا أَعِزَّةَ أَهْلِهَا أَذِلَّةً ۖ وَكَذَٰلِكَ يَفْعَلُونَ (34)
उसने कहाः राजा जब प्रवेश करते हैं, किसी बस्ती में, तो उसे उजाड़ देते हैं और उसके आदरणीय वासियों को अपमानित बना देते हैं और वे ऐसा ही करेंगे।
وَإِنِّي مُرْسِلَةٌ إِلَيْهِم بِهَدِيَّةٍ فَنَاظِرَةٌ بِمَ يَرْجِعُ الْمُرْسَلُونَ (35)
और मैं भेजने वाली हूँ उनकी ओर एक उपहार, फिर देखती हूँ कि क्या लेकर आते हैं दूत
فَلَمَّا جَاءَ سُلَيْمَانَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٍ فَمَا آتَانِيَ اللَّهُ خَيْرٌ مِّمَّا آتَاكُم بَلْ أَنتُم بِهَدِيَّتِكُمْ تَفْرَحُونَ (36)
तो जब वह (दूत) आया सुलैमान के पास, तो कहाः क्या तुम मेरी सहायता धन से करते हो? मुझे अल्लाह ने जो दिया है, उससे उत्तम है, जो तुम्हें दिया है, बल्कि तुम्हीं अपने उपहार से प्रसन्न हो रहे हो।
ارْجِعْ إِلَيْهِمْ فَلَنَأْتِيَنَّهُم بِجُنُودٍ لَّا قِبَلَ لَهُم بِهَا وَلَنُخْرِجَنَّهُم مِّنْهَا أَذِلَّةً وَهُمْ صَاغِرُونَ (37)
वापस हो जाओ उनकी ओर, हम लायेंगे उनके पास ऐसी सेनाएँ, जिनका वे सामना नहीं कर सकेंगे और हम अवश्य उन्हें उस (बस्ती) से निकाल देंगे, अपमानित करके और वे तुच्छ (हीन) होकर रहेंगे।
قَالَ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَيُّكُمْ يَأْتِينِي بِعَرْشِهَا قَبْلَ أَن يَأْتُونِي مُسْلِمِينَ (38)
सुलैमान ने कहाः हे प्रमुखो! तुममें से कौन लायेगा[1] उसका सिंहासन, इससे पहले कि वह आ जाये, आज्ञाकारा होकर।
قَالَ عِفْرِيتٌ مِّنَ الْجِنِّ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن تَقُومَ مِن مَّقَامِكَ ۖ وَإِنِّي عَلَيْهِ لَقَوِيٌّ أَمِينٌ (39)
कहा एक अतिकाय ने, जिन्नों में सेः मैं ला दूँगा, आपके पास उसे, इससे पूर्व कि आप खड़े हों अपने स्थान से और इसपर मुझे शक्ति है, मैं विश्वसनीय हूँ।
قَالَ الَّذِي عِندَهُ عِلْمٌ مِّنَ الْكِتَابِ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن يَرْتَدَّ إِلَيْكَ طَرْفُكَ ۚ فَلَمَّا رَآهُ مُسْتَقِرًّا عِندَهُ قَالَ هَٰذَا مِن فَضْلِ رَبِّي لِيَبْلُوَنِي أَأَشْكُرُ أَمْ أَكْفُرُ ۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ ۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيٌّ كَرِيمٌ (40)
कहा उसने, जिसके पास पुस्तक का ज्ञान थाः मैं ले आऊँगा उसे, आपके पास इससे पहले कि आपकी पलक झपके और जब देखा उसने उसे, अपने पास रखा हुआ, तो कहाः ये मेरे पालनहार का अनुग्रह है, ताकि मेरी परीक्षा ले कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूँ या कृतघ्नता और जो कृतज्ञ होता है, वह अपने लाभ के लिए होता है तथा जो कृतघ्न हो, तो निश्चय मेरा पालनहार निस्पृह, महान है।
قَالَ نَكِّرُوا لَهَا عَرْشَهَا نَنظُرْ أَتَهْتَدِي أَمْ تَكُونُ مِنَ الَّذِينَ لَا يَهْتَدُونَ (41)
कहाः परिवर्तन कर दो उसके लिए उसके सिंहासन में, हम देखेंगे कि वह उसे पहचान जाती है या उनमें से हो जाती है, जो पहचानते न हों।
فَلَمَّا جَاءَتْ قِيلَ أَهَٰكَذَا عَرْشُكِ ۖ قَالَتْ كَأَنَّهُ هُوَ ۚ وَأُوتِينَا الْعِلْمَ مِن قَبْلِهَا وَكُنَّا مُسْلِمِينَ (42)
तो जब वह आई, तो कहा गयाः क्या ऐसा ही तेरा सिंहासन है? उसने कहाः वह तो मानो वही है और हम तो जान गये थे इससे पहले ही और आज्ञाकारी हो गये थे।
وَصَدَّهَا مَا كَانَت تَّعْبُدُ مِن دُونِ اللَّهِ ۖ إِنَّهَا كَانَتْ مِن قَوْمٍ كَافِرِينَ (43)
और रोक रखा था उसे (ईमान से) उन (पूज्यों) ने जिनकी वह इबादत ( वंदना) कर रही थी अल्लाह के सिवा। निश्चय वह काफ़िरों की जाति में से थी।
قِيلَ لَهَا ادْخُلِي الصَّرْحَ ۖ فَلَمَّا رَأَتْهُ حَسِبَتْهُ لُجَّةً وَكَشَفَتْ عَن سَاقَيْهَا ۚ قَالَ إِنَّهُ صَرْحٌ مُّمَرَّدٌ مِّن قَوَارِيرَ ۗ قَالَتْ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي وَأَسْلَمْتُ مَعَ سُلَيْمَانَ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ (44)
उससे कहा गया कि भवन में प्रवेश कर। तो जब उसे देखा, तो उसे कोई जलाशय (हौद) समझी और खोल दीं[1] अपनी दोनों पिंडलियाँ, (सुलैमान ने) कहाः ये शीशे से निर्मित भवन है। उसने कहाः मेरे पालनहार! मैंने अत्याचार किया अपने प्राण[2] पर और (अब) मैं इस्लाम लाई सुलैमान के साथ अल्लाह सर्वलोक के पालनहार के लिए।
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ (45)
और हमने भेजा समूद की ओर उनके भाई सालेह़ को कि तुम सब इबादत (वंदना) करो अल्लाह की, तो अकस्मात् वे दो गिरोह होकर लड़ने लगे।
قَالَ يَا قَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ ۖ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ (46)
उसने कहाः हे मेरी जाति! क्यों तुम शीघ्र चाहते हो बुराई को[1] भलाई से पहले? क्यों तुम क्षमा नहीं माँगते अल्लाह से, ताकि तुमपर दया की जाये
قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَن مَّعَكَ ۚ قَالَ طَائِرُكُمْ عِندَ اللَّهِ ۖ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُونَ (47)
उन्होंने कहाः हमने अपशकुन लिया है तुमसे तथा उनसे, जो तेरे साथ हैं। (सालेह़ ने) कहाः तुम्हारा अपशकुन अल्लाह के पास[1] है, बल्कि तुम लोगों की परीक्षा हो रही है।
وَكَانَ فِي الْمَدِينَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ (48)
और उस नगर में नौ व्यक्तियों का एक गिरोह था, जो उपद्रव करते थे धरती में और सुधार नहीं करते थे।
قَالُوا تَقَاسَمُوا بِاللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُ وَأَهْلَهُ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ أَهْلِهِ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ (49)
उन्होंने कहाः आपस में शपथ लो अल्लाह की कि हम अवश्य रात्रि में छापा मार देंगे सालेह़ तथा उसके परिवार पर, फिर कहेंगे उस (सालेह़) के उत्तराधिकारी से, हम उपस्थित नहीं थे, उसके परिवार के विनाश के समय और निःसंदेह, हम सत्यवादी ( सच्चे) हैं।
وَمَكَرُوا مَكْرًا وَمَكَرْنَا مَكْرًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ (50)
और उन्होंने एक षड्यंत्र रचा और हमने भी एक उपाय किया और वे समझ नहीं रहे थे।
فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ مَكْرِهِمْ أَنَّا دَمَّرْنَاهُمْ وَقَوْمَهُمْ أَجْمَعِينَ (51)
तो देखो कैसा रहा उनके षड्यंत्र का परिणाम? हमने विनाश कर दिया उनका तथा उनकी पूरी जाति का।
فَتِلْكَ بُيُوتُهُمْ خَاوِيَةً بِمَا ظَلَمُوا ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِّقَوْمٍ يَعْلَمُونَ (52)
तो ये उनके घर हैं, उजाड़ पड़े हुए, उनके अत्याचार के कारण, निश्चय इसमें एक बड़ी निशानी है, उन लोगों के लिए, जो ज्ञान रखते हैं।
وَأَنجَيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ (53)
तथा हमने बचा लिया उन्हे, जो ईमान लाये और (अल्लाह) से डर रहे थे।
وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ وَأَنتُمْ تُبْصِرُونَ (54)
तथा लूत को (भेजा), जब उसने अपनी जाति से कहाः क्या तुम कुकर्म कर रहे हो, जबकि तुम[1] आँखें रखते हो
أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِّن دُونِ النِّسَاءِ ۚ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُونَ (55)
क्या तुम पुरुषों के पास जाते हो, काम वासना की पूर्ति के लिए? तुम लोग बड़े नासमझ हो।
۞ فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَن قَالُوا أَخْرِجُوا آلَ لُوطٍ مِّن قَرْيَتِكُمْ ۖ إِنَّهُمْ أُنَاسٌ يَتَطَهَّرُونَ (56)
तो उसकी जाति का उत्तर बस ये था कि उन्होंने कहाः लूत के परिजनों को निकाल दो अपने नगर से, वास्तव में, ये लोग बड़े पवित्र बन रहे हैं।
فَأَنجَيْنَاهُ وَأَهْلَهُ إِلَّا امْرَأَتَهُ قَدَّرْنَاهَا مِنَ الْغَابِرِينَ (57)
तो हमने बचा लिया उसे तथा उसके परिवार को, उसकी पत्नी के सिवा, जिसे हमने नियत कर दिया पीछे रह जाने वालों में।
وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِم مَّطَرًا ۖ فَسَاءَ مَطَرُ الْمُنذَرِينَ (58)
और हमने उनपर बहुत अधिक वर्षा कर दी। तो बुरी हो गयी सावधान किये हुए लोगों की वर्षा।
قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَسَلَامٌ عَلَىٰ عِبَادِهِ الَّذِينَ اصْطَفَىٰ ۗ آللَّهُ خَيْرٌ أَمَّا يُشْرِكُونَ (59)
आप कह दें: सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है और सलाम है उसके उन भक्तों पर, जिन्हें उसने चुन लिया। क्या अल्लाह उत्तम है या वह, जिसे वे साझी बनाते हैं
أَمَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَنبَتْنَا بِهِ حَدَائِقَ ذَاتَ بَهْجَةٍ مَّا كَانَ لَكُمْ أَن تُنبِتُوا شَجَرَهَا ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ يَعْدِلُونَ (60)
ये वो है, जिसने उत्पत्ति की है आकाशों तथा धरती की और उतारा है तुम्हारे लिए आकाश से जल, फिर हमने उगा दिया उसके द्वारा भव्य बाग़, तुम्हारे बस में न था कि उगा देते उसके वृक्ष, तो क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? बल्कि यही लोग (सत्य से) कतरा रहे हैं।
أَمَّن جَعَلَ الْأَرْضَ قَرَارًا وَجَعَلَ خِلَالَهَا أَنْهَارًا وَجَعَلَ لَهَا رَوَاسِيَ وَجَعَلَ بَيْنَ الْبَحْرَيْنِ حَاجِزًا ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ (61)
या वो है, जिसने धरती को रहने योगय्य बनाया तथा उसके बीच नहरें बनायीं और उसके लिए पर्वत बनाये और बना दी, दो सागरों के बीच एक रोक। तो क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? बल्कि उनमें से अधिक्तर ज्ञान नहीं रखते।
أَمَّن يُجِيبُ الْمُضْطَرَّ إِذَا دَعَاهُ وَيَكْشِفُ السُّوءَ وَيَجْعَلُكُمْ خُلَفَاءَ الْأَرْضِ ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ قَلِيلًا مَّا تَذَكَّرُونَ (62)
या वो है, जो व्याकुल की प्रार्थना सुनता है, जब उसे पुकारे और दूर करता है दुःख तथा तुम्हें बनाता है धरती का अधिकारी, क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? तुम बहुत कम ही शिक्षा ग्रहण करते हो।
أَمَّن يَهْدِيكُمْ فِي ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَن يُرْسِلُ الرِّيَاحَ بُشْرًا بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهِ ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ تَعَالَى اللَّهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ (63)
या वो है, जो तुम्हें राह दिखाता है सूखे तथा सागर के अंधेरों में तथा भेजता है वायुओं को शुभ सूचना देने के लिए अपनी दया (वर्षा) से पहले, क्या कोई और पूज्य है अल्लाह के साथ? उच्च है अल्लाह उस शिर्क से, जो वे कर रहे हैं।
أَمَّن يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ وَمَن يَرْزُقُكُم مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ (64)
या वो है, जो आरंभ करता है उत्पत्ति का, फिर उसे दुहरायेगा तथा जो तुम्हें जीविका देता है आकाश तथा धरती से, क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? आप कह दें कि अपना प्रमाण लाओ, यदि तुम सच्चे[1] हो।
قُل لَّا يَعْلَمُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ الْغَيْبَ إِلَّا اللَّهُ ۚ وَمَا يَشْعُرُونَ أَيَّانَ يُبْعَثُونَ (65)
आप कह दें कि नहीं जानता है, जो आकाशों तथा धरती में है, परोक्ष को अल्लाह के सिवा और वे नहीं जानते कि कब फिर जीवित किये जायेंगे।
بَلِ ادَّارَكَ عِلْمُهُمْ فِي الْآخِرَةِ ۚ بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِّنْهَا ۖ بَلْ هُم مِّنْهَا عَمُونَ (66)
बल्कि समाप्त हो गया है उनका ज्ञान आख़िरत (परलोक) के विषय में, बल्कि वे द्विधा में हैं, बल्कि वे उससे अंधे हैं।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَإِذَا كُنَّا تُرَابًا وَآبَاؤُنَا أَئِنَّا لَمُخْرَجُونَ (67)
और कहा काफ़िरों नेः क्या जब हम हो जायेंगे मिट्टी तथा हमारे पूर्वज, तो क्या हम अवश्य निकाले[1] जायेंगे
لَقَدْ وُعِدْنَا هَٰذَا نَحْنُ وَآبَاؤُنَا مِن قَبْلُ إِنْ هَٰذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ (68)
हमें इसका वचन दिया जा चुका है तथा हमारे पूर्वजों को इससे पहले, ये तो बस अगलों की बनायी हुई कथाएँ हैं।
قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُجْرِمِينَ (69)
(हे नबी!) आप कह दें कि चलो-फिरो धरती में, फिर देखो कि कैसा हुआ अपराधियों का परिणाम
وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَلَا تَكُن فِي ضَيْقٍ مِّمَّا يَمْكُرُونَ (70)
और आप शोक न करें उनपर और न किसी संकीर्णता में रहें उससे, जो चालें वे चल रहे हैं।
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ (71)
तथा वे कहते हैं: कब ये धमकी पूरी होगी, यदि तुम सच्चे हो
قُلْ عَسَىٰ أَن يَكُونَ رَدِفَ لَكُم بَعْضُ الَّذِي تَسْتَعْجِلُونَ (72)
आप कह दें: संभव है कि तुम्हारे समीप हो उसमें से कुछ, जिसे तुम शीघ्र चाहते हो।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَشْكُرُونَ (73)
तथा निःसंदेह, आपका पालनहार बड़ा दयालु है लोगों[1] पर। परन्तु, उनमें से अधिक्तर कृतज्ञ नहीं होते।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ (74)
और वास्तव में, आपका पालनहार जानता है उसे, जो छुपाते हैं उनके दिल तथा जो व्यक्त करते हैं।
وَمَا مِنْ غَائِبَةٍ فِي السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُّبِينٍ (75)
और कोई छुपी चीज़ नहीं है आकाश तथा धरती में, परन्तु वह खुली पुस्तक में[1] है।
إِنَّ هَٰذَا الْقُرْآنَ يَقُصُّ عَلَىٰ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَكْثَرَ الَّذِي هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ (76)
निःसंदेह, ये क़ुर्आन वर्णन कर रहा है इस्राईल की संतान के समक्ष, उन अधिक्तर बातों को जिनमें वे विभेद कर रहे हैं।
وَإِنَّهُ لَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ (77)
और वास्तव में, वह मार्गदर्शन तथा दया है, ईमान वालों के लिए।
إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِي بَيْنَهُم بِحُكْمِهِ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْعَلِيمُ (78)
निःसंदेह, आपका पालनहार[1] निर्णय कर देगा उनके बीच अपने आदेश से तथा वही प्रबल, सबकुछ जानने वाला है।
فَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ ۖ إِنَّكَ عَلَى الْحَقِّ الْمُبِينِ (79)
अतः, आप भरोसा करें अल्लाह पर, वस्तुतः, आप खुले सत्य पर हैं।
إِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتَىٰ وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاءَ إِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِينَ (80)
वास्तव में, आप नहीं सुना सकेंगे मुर्दौं को और न सुना सकेंगे बहरों को अपनी पुकार, जब वे भागे जा रहे हों पीठ फेर[1] कर।
وَمَا أَنتَ بِهَادِي الْعُمْيِ عَن ضَلَالَتِهِمْ ۖ إِن تُسْمِعُ إِلَّا مَن يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا فَهُم مُّسْلِمُونَ (81)
तथा आप अंधे को मार्गदर्शन नहीं दे सकते उनके कुपथ से, आप तो बस उसी को सुना सकते हैं, जो ईमान रखता हो हमारी आयतों पर, फिर वह आज्ञाकारी हो।
۞ وَإِذَا وَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِمْ أَخْرَجْنَا لَهُمْ دَابَّةً مِّنَ الْأَرْضِ تُكَلِّمُهُمْ أَنَّ النَّاسَ كَانُوا بِآيَاتِنَا لَا يُوقِنُونَ (82)
और जब आ जायेगा बात पूरी होने का समय उनके ऊपर[1], तो हम निकालेंगे उनके लिए एक पशु धरती से, जो बात करेगा उनसे[2] कि लोग हमारी आयतों पर विश्वास नहीं करते थे।
وَيَوْمَ نَحْشُرُ مِن كُلِّ أُمَّةٍ فَوْجًا مِّمَّن يُكَذِّبُ بِآيَاتِنَا فَهُمْ يُوزَعُونَ (83)
तथा जिस दिन हम घेर लायेंग प्रत्येक समुदाय से एक गिरोह, उनका, जो झुठलाते रहे हमारी आयतों को, फिर वे सब (एकत्र किये जाने के लिए) रोक दिये जायेंगे।
حَتَّىٰ إِذَا جَاءُوا قَالَ أَكَذَّبْتُم بِآيَاتِي وَلَمْ تُحِيطُوا بِهَا عِلْمًا أَمَّاذَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ (84)
यहाँतक कि जब सब आ जायेंगे, तो अल्लाह उनसे कहेगाः क्या तुमने मेरी आयतों को झुठला दिया, जबकि तुमने उनका पूरा ज्ञान नहीं किया, अन्यथा तुम और क्या कर रहे थे
وَوَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِم بِمَا ظَلَمُوا فَهُمْ لَا يَنطِقُونَ (85)
और सिध्द हो जायेगा यातना का वचन, उनके ऊपर, उनके अत्याचार के कारण। तब वे बात नहीं कर सकेंगे।
أَلَمْ يَرَوْا أَنَّا جَعَلْنَا اللَّيْلَ لِيَسْكُنُوا فِيهِ وَالنَّهَارَ مُبْصِرًا ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ (86)
क्या उन्होंने नहीं दखा कि हमने रात बनाई, ताकि वे शान्त रहें उसमें तथा दिन को दिखाने वाला[1]। वास्तव में, इसमें बड़ी निशानियाँ (लक्षण) हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते हैं।
وَيَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّورِ فَفَزِعَ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَمَن فِي الْأَرْضِ إِلَّا مَن شَاءَ اللَّهُ ۚ وَكُلٌّ أَتَوْهُ دَاخِرِينَ (87)
और जिस दिन फूँका जायेगा[1] सूर (नरसिंघा) में, तो घबरा जायेंगे वे, जो आकाशों तथा धरती में हैं। परन्तु वह, जिसे अल्लाह चाहे तथा सब उस (अल्लाह) के समक्ष आ जायेंगे, विवश होकर।
وَتَرَى الْجِبَالَ تَحْسَبُهَا جَامِدَةً وَهِيَ تَمُرُّ مَرَّ السَّحَابِ ۚ صُنْعَ اللَّهِ الَّذِي أَتْقَنَ كُلَّ شَيْءٍ ۚ إِنَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَفْعَلُونَ (88)
और तुम देखते हो पर्वतों को, तो उन्हें समझते हो स्थिर (अचल) हैं, जबकि वे उस दिन उड़ेंगे बादल के समान, ये अल्लाह की रचना है, जिसने सुदृढ़ किया है प्रत्येक चीज़ को, निश्चय वह भली-भाँति सूचित है उससे, जो तुम कर रहे हो।
مَن جَاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ خَيْرٌ مِّنْهَا وَهُم مِّن فَزَعٍ يَوْمَئِذٍ آمِنُونَ (89)
जो भलाई[1] लायेगा, तो उसके लिए उससे उत्तम (प्रतिफल) है और वह उस दिन की व्यग्रता से निर्भय रहने वाले होंगे।
وَمَن جَاءَ بِالسَّيِّئَةِ فَكُبَّتْ وُجُوهُهُمْ فِي النَّارِ هَلْ تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ (90)
और जो बुराई लायेगा, तो वही झोंक दिये जायेंगे औंधे मुँह नरक में, (तथा कहा जायेगाः) तुम्हें वही बदला दिया जा रहा है, जो तुम करते रहे हो।
إِنَّمَا أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ رَبَّ هَٰذِهِ الْبَلْدَةِ الَّذِي حَرَّمَهَا وَلَهُ كُلُّ شَيْءٍ ۖ وَأُمِرْتُ أَنْ أَكُونَ مِنَ الْمُسْلِمِينَ (91)
मुझे तो बस यही आदेश दिया गया है कि इस नगर (मक्का) के पालनहार की इबादत (वंदना) करूँ, जिसने इसे आदरणीय बनाया है तथा उसी के अधिकार में है प्रत्येक चीज़ और मुझे आदेश दिया गया है कि आज्ञाकारियों में रहूँ।
وَأَنْ أَتْلُوَ الْقُرْآنَ ۖ فَمَنِ اهْتَدَىٰ فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ ۖ وَمَن ضَلَّ فَقُلْ إِنَّمَا أَنَا مِنَ الْمُنذِرِينَ (92)
तथा क़ुर्आन पढ़ता रहूँ, तो जिसने सुपथ अपनाया, तो वह अपने ही लाभ के लिए सुपथ अपनायेगा और जो कुपथ हो जाये, तो आप कह दें कि वास्तव में, मैं तो बस सावधान करने वालों में से हूँ।
وَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ سَيُرِيكُمْ آيَاتِهِ فَتَعْرِفُونَهَا ۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ (93)
तथा आप कह दें कि सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, वह शीघ्र तुम्हें दिखा देगा अपनी निशानियाँ, जिन्हें तुम पहचान[1] लोगे और तुम्हारा पालनहार उससे अचेत नहीं है, जो कुछ तुम कर रहे हो।
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Surahs from Quran :

1- Fatiha2- Baqarah
3- Al Imran4- Nisa
5- Maidah6- Anam
7- Araf8- Anfal
9- Tawbah10- Yunus
11- Hud12- Yusuf
13- Raad14- Ibrahim
15- Hijr16- Nahl
17- Al Isra18- Kahf
19- Maryam20- TaHa
21- Anbiya22- Hajj
23- Muminun24- An Nur
25- Furqan26- Shuara
27- Naml28- Qasas
29- Ankabut30- Rum
31- Luqman32- Sajdah
33- Ahzab34- Saba
35- Fatir36- Yasin
37- Assaaffat38- Sad
39- Zumar40- Ghafir
41- Fussilat42- shura
43- Zukhruf44- Ad Dukhaan
45- Jathiyah46- Ahqaf
47- Muhammad48- Al Fath
49- Hujurat50- Qaf
51- zariyat52- Tur
53- Najm54- Al Qamar
55- Rahman56- Waqiah
57- Hadid58- Mujadilah
59- Al Hashr60- Mumtahina
61- Saff62- Jumuah
63- Munafiqun64- Taghabun
65- Talaq66- Tahrim
67- Mulk68- Qalam
69- Al-Haqqah70- Maarij
71- Nuh72- Jinn
73- Muzammil74- Muddathir
75- Qiyamah76- Insan
77- Mursalat78- An Naba
79- Naziat80- Abasa
81- Takwir82- Infitar
83- Mutaffifin84- Inshiqaq
85- Buruj86- Tariq
87- Al Ala88- Ghashiya
89- Fajr90- Al Balad
91- Shams92- Lail
93- Duha94- Sharh
95- Tin96- Al Alaq
97- Qadr98- Bayyinah
99- Zalzalah100- Adiyat
101- Qariah102- Takathur
103- Al Asr104- Humazah
105- Al Fil106- Quraysh
107- Maun108- Kawthar
109- Kafirun110- Nasr
111- Masad112- Ikhlas
113- Falaq114- An Nas