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Surah Al-Kahf in Hindi

Quran Hindi ⮕ Surah Kahf

Translation of the Meanings of Surah Kahf in Hindi - الهندية

The Quran in Hindi - Surah Kahf translated into Hindi, Surah Al-Kahf in Hindi. We provide accurate translation of Surah Kahf in Hindi - الهندية, Verses 110 - Surah Number 18 - Page 293.

بسم الله الرحمن الرحيم

الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَنزَلَ عَلَىٰ عَبْدِهِ الْكِتَابَ وَلَمْ يَجْعَل لَّهُ عِوَجًا ۜ (1)
सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जिसने अपने भक्त पर ये पुस्तक उतारी और उसमें कोई टेढ़ी बात नहीं रखी।
قَيِّمًا لِّيُنذِرَ بَأْسًا شَدِيدًا مِّن لَّدُنْهُ وَيُبَشِّرَ الْمُؤْمِنِينَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ أَجْرًا حَسَنًا (2)
अति सीधी (पुस्तक), ताकि वह अपने पास की कड़ी यातना से सावधान कर दे और ईमान वालों को जो सदाचार करते हों, शुभ सूचना सुना दे कि उन्हीं के लिए अच्छा बदला है।
مَّاكِثِينَ فِيهِ أَبَدًا (3)
जिसमें वे नित्य सदावासी होंगे।
وَيُنذِرَ الَّذِينَ قَالُوا اتَّخَذَ اللَّهُ وَلَدًا (4)
और उन्हें सावधान करे, जिन्होंने कहा कि अल्लाह ने अपने लिए कोई संतान बना ली है।
مَّا لَهُم بِهِ مِنْ عِلْمٍ وَلَا لِآبَائِهِمْ ۚ كَبُرَتْ كَلِمَةً تَخْرُجُ مِنْ أَفْوَاهِهِمْ ۚ إِن يَقُولُونَ إِلَّا كَذِبًا (5)
उन्हें इसका कुछ ज्ञान है और न उनके पूर्वजों को। बहुत बड़ी बात है, जो उनके मुखों से निकल रही है, वे सरासर झूठ ही बोल रहे हैं।
فَلَعَلَّكَ بَاخِعٌ نَّفْسَكَ عَلَىٰ آثَارِهِمْ إِن لَّمْ يُؤْمِنُوا بِهَٰذَا الْحَدِيثِ أَسَفًا (6)
तो संभवतः आप इसके पीछे अपना प्राण खो देंगे, संताप के कारण, यदि वे इस ह़दीस (क़ुर्आन) पर ईमान न लायें।
إِنَّا جَعَلْنَا مَا عَلَى الْأَرْضِ زِينَةً لَّهَا لِنَبْلُوَهُمْ أَيُّهُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا (7)
वास्तव में, जो कुछ धरती के ऊपर है, उसे हमने उसके लिए शोभा बनाया है, ताकि उनकी परीक्षा लें कि उनमें कौन कर्म में सबसे अच्छा है
وَإِنَّا لَجَاعِلُونَ مَا عَلَيْهَا صَعِيدًا جُرُزًا (8)
और निश्चय हम कर देने[1] वाले हैं, जो उस (धरती) के ऊपर है, उसे (बंजर) धूल।
أَمْ حَسِبْتَ أَنَّ أَصْحَابَ الْكَهْفِ وَالرَّقِيمِ كَانُوا مِنْ آيَاتِنَا عَجَبًا (9)
(हे नबी!) क्या आपने समझा है कि गुफा तथा शिला लेख वाले[1], हमारे अद्भुत लक्षणों (निशानियों) में से थे
إِذْ أَوَى الْفِتْيَةُ إِلَى الْكَهْفِ فَقَالُوا رَبَّنَا آتِنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً وَهَيِّئْ لَنَا مِنْ أَمْرِنَا رَشَدًا (10)
जब नवयुवकों ने गुफा की ओर शरण ली[1] और प्रार्थना कीः हे हमारे पालनहार! हमें अपनी विशेष दया प्रदान कर और हमारे लिए प्रबंध कर दे हमारे विषय के सुधार का।
فَضَرَبْنَا عَلَىٰ آذَانِهِمْ فِي الْكَهْفِ سِنِينَ عَدَدًا (11)
तो हमने उन्हें गुफा में सुला दिया कई वर्षों तक।
ثُمَّ بَعَثْنَاهُمْ لِنَعْلَمَ أَيُّ الْحِزْبَيْنِ أَحْصَىٰ لِمَا لَبِثُوا أَمَدًا (12)
फिर हमने उन्हें जगा दिया, ताकि हम ये जान लें कि दो समुदायों में से किसने उनके ठहरे रहने की अवधि को अधिक याद रखा है
نَّحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ نَبَأَهُم بِالْحَقِّ ۚ إِنَّهُمْ فِتْيَةٌ آمَنُوا بِرَبِّهِمْ وَزِدْنَاهُمْ هُدًى (13)
हम आपको उनकी सत्य कथा सुना रहे हैं। वास्तव में, वे कुछ नवयुवक थे, जो अपने पालनहार पर ईमान लाये और हमने उन्हें मार्गदर्शन में अधिक कर दिया।
وَرَبَطْنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ إِذْ قَامُوا فَقَالُوا رَبُّنَا رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ لَن نَّدْعُوَ مِن دُونِهِ إِلَٰهًا ۖ لَّقَدْ قُلْنَا إِذًا شَطَطًا (14)
और हमने उनके दिलों को सुदृढ़ कर दिया, जब वे खड़े हुए, फिर कहाः हमारा पालनहार वही है, जो आकाशों तथा धरती का पालनहार है। हम उसके सिवा कदापि किसी पूज्य को नहीं पुकारेंगे। (यदि हमने ऐसा किया) तो (सत्य से) दूर की बात होगी।
هَٰؤُلَاءِ قَوْمُنَا اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ آلِهَةً ۖ لَّوْلَا يَأْتُونَ عَلَيْهِم بِسُلْطَانٍ بَيِّنٍ ۖ فَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَىٰ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا (15)
ये हमारी जाति है, जिसने अल्लाह के सिवा बहुत-से पूज्य बना लिए। क्यों वे उनपर कोई खुला प्रमाण प्रस्तुत नहीं करते? उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर मिथ्या बात बनाये
وَإِذِ اعْتَزَلْتُمُوهُمْ وَمَا يَعْبُدُونَ إِلَّا اللَّهَ فَأْوُوا إِلَى الْكَهْفِ يَنشُرْ لَكُمْ رَبُّكُم مِّن رَّحْمَتِهِ وَيُهَيِّئْ لَكُم مِّنْ أَمْرِكُم مِّرْفَقًا (16)
और जब तुम उनसे विलग हो गये तथा अल्लाह के अतिरिक्त उनके पूज्यों से, तो अब अमुक गुफा की ओर शरण लो, अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी दया फैला देगा तथा तुम्हारे लिए तुम्हारे विषय में जीवन के साधनों का प्रबंध करेगा।
۞ وَتَرَى الشَّمْسَ إِذَا طَلَعَت تَّزَاوَرُ عَن كَهْفِهِمْ ذَاتَ الْيَمِينِ وَإِذَا غَرَبَت تَّقْرِضُهُمْ ذَاتَ الشِّمَالِ وَهُمْ فِي فَجْوَةٍ مِّنْهُ ۚ ذَٰلِكَ مِنْ آيَاتِ اللَّهِ ۗ مَن يَهْدِ اللَّهُ فَهُوَ الْمُهْتَدِ ۖ وَمَن يُضْلِلْ فَلَن تَجِدَ لَهُ وَلِيًّا مُّرْشِدًا (17)
और तुम सूर्य को देखोगे कि जब निकलता है, तो उनकी गूफा से दायें झुक जाता है और जब डूबता है, तो उनसे बायें कतरा जाता है और वे उस (गुफा) के एक विस्तृत स्थान में हैं। ये अल्लाह की निशानियों में से है और जिसे अल्लाह मार्ग दिखा दे, वही सुपथ पाने वाला है और जिसे कुपथ कर दे, तो तुम कदापि उसके लिए कोई सहायक मार्गदर्शक नहीं पाओगे।
وَتَحْسَبُهُمْ أَيْقَاظًا وَهُمْ رُقُودٌ ۚ وَنُقَلِّبُهُمْ ذَاتَ الْيَمِينِ وَذَاتَ الشِّمَالِ ۖ وَكَلْبُهُم بَاسِطٌ ذِرَاعَيْهِ بِالْوَصِيدِ ۚ لَوِ اطَّلَعْتَ عَلَيْهِمْ لَوَلَّيْتَ مِنْهُمْ فِرَارًا وَلَمُلِئْتَ مِنْهُمْ رُعْبًا (18)
और तुम[1] उन्हें समझोगे कि जाग रहे हैं, जबकि वे सोये हुए हैं और हम उन्हें दायें तथा बायें पार्शव पर फिराते रहते हैं और उनका कुत्ता गुफा के द्वार पर अपनी दोनों बाहें फैलाये पड़ा है। यदि तुम झाँककर देख लेते, तो पीठ फेरकर भाग जाते और उनसे भयपूर्ण हो जाते।
وَكَذَٰلِكَ بَعَثْنَاهُمْ لِيَتَسَاءَلُوا بَيْنَهُمْ ۚ قَالَ قَائِلٌ مِّنْهُمْ كَمْ لَبِثْتُمْ ۖ قَالُوا لَبِثْنَا يَوْمًا أَوْ بَعْضَ يَوْمٍ ۚ قَالُوا رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَا لَبِثْتُمْ فَابْعَثُوا أَحَدَكُم بِوَرِقِكُمْ هَٰذِهِ إِلَى الْمَدِينَةِ فَلْيَنظُرْ أَيُّهَا أَزْكَىٰ طَعَامًا فَلْيَأْتِكُم بِرِزْقٍ مِّنْهُ وَلْيَتَلَطَّفْ وَلَا يُشْعِرَنَّ بِكُمْ أَحَدًا (19)
और इसी प्रकार, हमने उन्हें जगा दिया, ताकि वे आपस में प्रश्न करें। तो एक ने उनमें से कहाः तुम कितने (समय) रहे हो? सबने कहाः हम एक दिन रहे हैं अथवा एक दिन के कुछ (समय)। (फिर) सबने कहाः अल्लाह अधिक जानता है कि तुम कितने (समय) रहे हो, तुम अपने में से किसी को, अपना ये सिक्का देकर नगर में भेजो, फिर देखे कि किसके पास अधिक स्वच्छ (पवित्र) भोजन है और उसमें से कुछ जीविका (भोजन) लाये और चाहिए कि सावधानी बरते। ऐसा न हो कि तुम्हारा किसी को अनुभव हो जाये।
إِنَّهُمْ إِن يَظْهَرُوا عَلَيْكُمْ يَرْجُمُوكُمْ أَوْ يُعِيدُوكُمْ فِي مِلَّتِهِمْ وَلَن تُفْلِحُوا إِذًا أَبَدًا (20)
क्योंकि यदि वे तुम्हें जान जायेंगे तो तुम्हें पथराव करके मार डालेंगे या तुम्हें अपने धर्म में लौटा लेंगे और तब तुम कदापि सफल नहीं हो सकोगे।
وَكَذَٰلِكَ أَعْثَرْنَا عَلَيْهِمْ لِيَعْلَمُوا أَنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَأَنَّ السَّاعَةَ لَا رَيْبَ فِيهَا إِذْ يَتَنَازَعُونَ بَيْنَهُمْ أَمْرَهُمْ ۖ فَقَالُوا ابْنُوا عَلَيْهِم بُنْيَانًا ۖ رَّبُّهُمْ أَعْلَمُ بِهِمْ ۚ قَالَ الَّذِينَ غَلَبُوا عَلَىٰ أَمْرِهِمْ لَنَتَّخِذَنَّ عَلَيْهِم مَّسْجِدًا (21)
इसी प्रकार, हमने उनसे अवगत करा दिया, ताकि उन (नागरिकों) को ज्ञान हो जाये कि अल्लाह का वचन सत्य है और ये कि प्रलय (होने) में कोई संदेह[1] नहीं। जब वे[2] आपस में विवाद करने लगे, तो कुछ ने कहाः उनपर कोई निर्माण करा दो, अल्लाह ही उनकी दशा को भली-भाँति जानता है। परन्तु उन्होंने कहा जो अपना प्रभुत्व रखते थे, हम अवश्य उन (की गुफा के स्थान) पर एक मस्जिद बनायेंगे।
سَيَقُولُونَ ثَلَاثَةٌ رَّابِعُهُمْ كَلْبُهُمْ وَيَقُولُونَ خَمْسَةٌ سَادِسُهُمْ كَلْبُهُمْ رَجْمًا بِالْغَيْبِ ۖ وَيَقُولُونَ سَبْعَةٌ وَثَامِنُهُمْ كَلْبُهُمْ ۚ قُل رَّبِّي أَعْلَمُ بِعِدَّتِهِم مَّا يَعْلَمُهُمْ إِلَّا قَلِيلٌ ۗ فَلَا تُمَارِ فِيهِمْ إِلَّا مِرَاءً ظَاهِرًا وَلَا تَسْتَفْتِ فِيهِم مِّنْهُمْ أَحَدًا (22)
कुछ[1] कहेंगे कि वे तीन हैं और चौथा उनका कुत्ता है और कुछ कहेंगे कि पाँच हैं और छठा उनका कुत्ता है। ये अंधेरे में तीर चलाते हैं और कहेंगे कि सात हैं और आठवाँ उनका कुत्ता है। (हे नबी!) आप कह दें कि मेरा पालनहार ही उनकी संख्या भली-भाँति जानता है, जिसे कुछ लोगों के सिवा कोई नहीं जानता[2]। अतः आप उनके संबन्ध में कोई विवाद न करें, सिवाय सरसरी बात के और न उनके विषय में किसी से कुछ पूछें[3]।
وَلَا تَقُولَنَّ لِشَيْءٍ إِنِّي فَاعِلٌ ذَٰلِكَ غَدًا (23)
और कदापि किसी विषय में न कहें कि मैं इसे कल करने वाला हूँ।
إِلَّا أَن يَشَاءَ اللَّهُ ۚ وَاذْكُر رَّبَّكَ إِذَا نَسِيتَ وَقُلْ عَسَىٰ أَن يَهْدِيَنِ رَبِّي لِأَقْرَبَ مِنْ هَٰذَا رَشَدًا (24)
परन्तु ये कि अल्लाह[1] चाहे तथा अपने पालनहार को याद करें, जब भूल जायेँ और कहें: संभव है, मेरा पालनहार मुझे इससे समीप सुधार का मार्ग दर्शा दे।
وَلَبِثُوا فِي كَهْفِهِمْ ثَلَاثَ مِائَةٍ سِنِينَ وَازْدَادُوا تِسْعًا (25)
और वे गुफा में तीन सौ वर्ष रहे और नौ वर्ष अधिक[1] और।
قُلِ اللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا لَبِثُوا ۖ لَهُ غَيْبُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ أَبْصِرْ بِهِ وَأَسْمِعْ ۚ مَا لَهُم مِّن دُونِهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا يُشْرِكُ فِي حُكْمِهِ أَحَدًا (26)
आप कह दें कि अल्लाह उनके रहने की अवधि से सर्वाधिक अवगत है। आकाशों तथा धरती का परोक्ष वही जानता है। क्या ही ख़ूब है वह देखने वाला और सुनने वाला। नहीं है उनका उसके सिवा कोई सहायक और न वह अपने शासन में किसी को साझी बनाता है।
وَاتْلُ مَا أُوحِيَ إِلَيْكَ مِن كِتَابِ رَبِّكَ ۖ لَا مُبَدِّلَ لِكَلِمَاتِهِ وَلَن تَجِدَ مِن دُونِهِ مُلْتَحَدًا (27)
और आप उसे सुना दें, जो आपकी ओर वह़्यी (प्रकाशना) की गयी है, आपके पालनहार की पुस्तक में से, उसकी बातों को कोई बदलने वाला नहीं है और आप कदापि नहीं पायेंगे उसके सिवा कोई शरण स्थान।
وَاصْبِرْ نَفْسَكَ مَعَ الَّذِينَ يَدْعُونَ رَبَّهُم بِالْغَدَاةِ وَالْعَشِيِّ يُرِيدُونَ وَجْهَهُ ۖ وَلَا تَعْدُ عَيْنَاكَ عَنْهُمْ تُرِيدُ زِينَةَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَلَا تُطِعْ مَنْ أَغْفَلْنَا قَلْبَهُ عَن ذِكْرِنَا وَاتَّبَعَ هَوَاهُ وَكَانَ أَمْرُهُ فُرُطًا (28)
और आप उनके साथ रहें, जो अपने पालनहार की प्रातः-संध्या बंदगी करते हैं। वे उसकी प्रसन्नता चाहते हैं और आपकी आँखें सांसारिक जीवन की शोभा के लिए[1] उनसे न फिरने पायें और उसकी बात न मानें, जिसके दिल को हमने अपनी याद से निश्चेत कर दिया और उसने मनमानी की और जिसका काम ही उल्लंघन (अवज्ञा करना) है।
وَقُلِ الْحَقُّ مِن رَّبِّكُمْ ۖ فَمَن شَاءَ فَلْيُؤْمِن وَمَن شَاءَ فَلْيَكْفُرْ ۚ إِنَّا أَعْتَدْنَا لِلظَّالِمِينَ نَارًا أَحَاطَ بِهِمْ سُرَادِقُهَا ۚ وَإِن يَسْتَغِيثُوا يُغَاثُوا بِمَاءٍ كَالْمُهْلِ يَشْوِي الْوُجُوهَ ۚ بِئْسَ الشَّرَابُ وَسَاءَتْ مُرْتَفَقًا (29)
आप कह दें कि ये सत्य है, तुम्हारे पालनहार की ओर से, तो जो चाहे, ईमान लाये और जो चाहे कुफ़्र करे, निश्चय हमने अत्याचारियों के लिए ऐसी अग्नि तैयार कर रखी है, जिसकी प्राचीर[1] ने उन्हें घेर लिया है और यदि वे जल के लिए गुहार करेंगे, तो उन्हें तेल की तलछट के समान जल दिया जायेगा, जो मुखों को भून देगा, वह क्या ही बुरा पेय है और वह क्या ही बुरा विश्राम स्थान है
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ إِنَّا لَا نُضِيعُ أَجْرَ مَنْ أَحْسَنَ عَمَلًا (30)
निश्चय जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, तो हम उनका प्रतिफल व्यर्थ नहीं करेंगे, जो सदाचारी हैं।
أُولَٰئِكَ لَهُمْ جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهِمُ الْأَنْهَارُ يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٍ وَيَلْبَسُونَ ثِيَابًا خُضْرًا مِّن سُندُسٍ وَإِسْتَبْرَقٍ مُّتَّكِئِينَ فِيهَا عَلَى الْأَرَائِكِ ۚ نِعْمَ الثَّوَابُ وَحَسُنَتْ مُرْتَفَقًا (31)
यही हैं, जिनके लिए स्थायी स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं, उसमें उन्हें सोने के कंगन पहनाये जायेंगे।[1] तथा (वे) महीन और गाढ़े रेशम के हरे वस्त्र पहनेंगे, उसमें सिंहासनों के ऊपर आसीन होंगे। ये क्या ही अच्छा प्रतिफल और क्या ही अच्छा विश्राम स्थान है।
۞ وَاضْرِبْ لَهُم مَّثَلًا رَّجُلَيْنِ جَعَلْنَا لِأَحَدِهِمَا جَنَّتَيْنِ مِنْ أَعْنَابٍ وَحَفَفْنَاهُمَا بِنَخْلٍ وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمَا زَرْعًا (32)
और (हे नबी!) आप उन्हें एक उदाहरण दो वयक्तियों का दें; हमने जिनमें से एक को दो बाग़ दिये अंगूरों के और घेर दिया दोनों को खजूरों से और दोनों के बीच खेती बना दी।
كِلْتَا الْجَنَّتَيْنِ آتَتْ أُكُلَهَا وَلَمْ تَظْلِم مِّنْهُ شَيْئًا ۚ وَفَجَّرْنَا خِلَالَهُمَا نَهَرًا (33)
दोनों बाग़ों ने अपने पूरे फल दिये और उसमें कुछ कमी नहीं की और हमने जारी कर दी दोनों के बीच एक नहर।
وَكَانَ لَهُ ثَمَرٌ فَقَالَ لِصَاحِبِهِ وَهُوَ يُحَاوِرُهُ أَنَا أَكْثَرُ مِنكَ مَالًا وَأَعَزُّ نَفَرًا (34)
और उसे लाभ प्राप्त हुआ, तो एक दिन उसने अपने साथी से कहा जबकि वह उससे बात कर रहा थाः मैं तुझसे अधिक धनी हूँ तथा स्वजनों में भी अधिक[1] हूँ।
وَدَخَلَ جَنَّتَهُ وَهُوَ ظَالِمٌ لِّنَفْسِهِ قَالَ مَا أَظُنُّ أَن تَبِيدَ هَٰذِهِ أَبَدًا (35)
और उसने अपने बाग़ में प्रवेश किया, अपने ऊपर अत्याचार करते हुए, उसने कहाः मैं नहीं समझता कि इसका विनाश हो जायेगा कभी।
وَمَا أَظُنُّ السَّاعَةَ قَائِمَةً وَلَئِن رُّدِدتُّ إِلَىٰ رَبِّي لَأَجِدَنَّ خَيْرًا مِّنْهَا مُنقَلَبًا (36)
और न ये समझता हूँ कि प्रलय होगी और यदि मुझे अपने पालनहार की ओर पुनः ले जाया गया, तो मैं अवश्य ही इससे उत्तम स्थान पाऊँगा।
قَالَ لَهُ صَاحِبُهُ وَهُوَ يُحَاوِرُهُ أَكَفَرْتَ بِالَّذِي خَلَقَكَ مِن تُرَابٍ ثُمَّ مِن نُّطْفَةٍ ثُمَّ سَوَّاكَ رَجُلًا (37)
उससे, उसके साथी ने कहा और वह उससे बात कर रहा थाः क्या तूने उसके साथ कुफ़्र कर दिया, जिसने तुझे मिट्टी से उत्पन्न किया, फिर वीर्य से, फिर तुझे बना दिया एक पूरा पुरुष
لَّٰكِنَّا هُوَ اللَّهُ رَبِّي وَلَا أُشْرِكُ بِرَبِّي أَحَدًا (38)
रहा मैं, तो वही अल्लाह मेरा पालनहार है और मैं साझी नहीं बनाऊँगा अपने पालनहार का किसी को।
وَلَوْلَا إِذْ دَخَلْتَ جَنَّتَكَ قُلْتَ مَا شَاءَ اللَّهُ لَا قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ ۚ إِن تَرَنِ أَنَا أَقَلَّ مِنكَ مَالًا وَوَلَدًا (39)
और क्यों नहीं जब तुमने अपने बाग़ में प्रवेश किया, तो कहा कि "जो अल्लाह चाहे, अल्लाह की शक्ति के बिना कुछ नहीं हो सकता।" यदि तू मुझे देखता है कि मैं तुझसे कम हूँ धन तथा संतान में
فَعَسَىٰ رَبِّي أَن يُؤْتِيَنِ خَيْرًا مِّن جَنَّتِكَ وَيُرْسِلَ عَلَيْهَا حُسْبَانًا مِّنَ السَّمَاءِ فَتُصْبِحَ صَعِيدًا زَلَقًا (40)
तो आशा है कि मेरा पालनहार मुझे प्रदान कर दे, तेरे बाग़ से अच्छा और इस बाग़ पर आकाश से कोई आपदा भेज दे और वह चिकनी भूमि बन जाये।
أَوْ يُصْبِحَ مَاؤُهَا غَوْرًا فَلَن تَسْتَطِيعَ لَهُ طَلَبًا (41)
अथवा उसका जल भीतर उतर जाये, फिर तू उसे पा न सके।
وَأُحِيطَ بِثَمَرِهِ فَأَصْبَحَ يُقَلِّبُ كَفَّيْهِ عَلَىٰ مَا أَنفَقَ فِيهَا وَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا وَيَقُولُ يَا لَيْتَنِي لَمْ أُشْرِكْ بِرَبِّي أَحَدًا (42)
(अन्ततः) उसके फलों को घेर[1] लिया गया, फिर वह अपने दोनों हाथ मलता रह गया उसपर, जो उसमें खर्च किया था और वह अपने छप्परों सहित गिरा हुआ था और कहने लगाः क्या ही अच्छा होता कि मैं किसी को अपने पालनहार का साझी न बनाता।
وَلَمْ تَكُن لَّهُ فِئَةٌ يَنصُرُونَهُ مِن دُونِ اللَّهِ وَمَا كَانَ مُنتَصِرًا (43)
और नहीं रह गया उसके लिए कोई जत्था, जो उसकी सहायता करता और न स्वयं अपनी सहायता कर सका।
هُنَالِكَ الْوَلَايَةُ لِلَّهِ الْحَقِّ ۚ هُوَ خَيْرٌ ثَوَابًا وَخَيْرٌ عُقْبًا (44)
यहीं सिध्द हो गया कि सब अधिकार सत्य अल्लाह को है, वही अच्छा है प्रतिफल प्रदान करने में तथा अच्छा है परिणाम लाने में।
وَاضْرِبْ لَهُم مَّثَلَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا كَمَاءٍ أَنزَلْنَاهُ مِنَ السَّمَاءِ فَاخْتَلَطَ بِهِ نَبَاتُ الْأَرْضِ فَأَصْبَحَ هَشِيمًا تَذْرُوهُ الرِّيَاحُ ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ مُّقْتَدِرًا (45)
और (हे नबी!) आप उन्हें सांसारिक जीवन का उदाहरण दें, उस जल से, जिसे हमने आकाश से बरसाया। फिर उसके कारण मिल गई धरती की उपज, फिर चूर हो गई, जिसे वायु उड़ाये फिरती[1] है और अल्लाह प्रत्येक चीज़ पर सामर्थ्य रखने वाला है।
الْمَالُ وَالْبَنُونَ زِينَةُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَالْبَاقِيَاتُ الصَّالِحَاتُ خَيْرٌ عِندَ رَبِّكَ ثَوَابًا وَخَيْرٌ أَمَلًا (46)
धन और पुत्र सांसारिक जीवन की शोभा हैं और शेष रह जाने वाले सत्कर्म ही अच्छे हैं, आपके पालनहार के यहाँ प्रतिफल में तथा अच्छे हैं, आशा रखने के लिए।
وَيَوْمَ نُسَيِّرُ الْجِبَالَ وَتَرَى الْأَرْضَ بَارِزَةً وَحَشَرْنَاهُمْ فَلَمْ نُغَادِرْ مِنْهُمْ أَحَدًا (47)
तथा जिस दिन हम पर्वतों को चलायेंगे तथा तुम धरती को खुला चटेल[1] देखोगे और हम उन्हें एकत्र कर देंगे, फिर उनमें से किसी को नहीं छोड़ेंगे।
وَعُرِضُوا عَلَىٰ رَبِّكَ صَفًّا لَّقَدْ جِئْتُمُونَا كَمَا خَلَقْنَاكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ ۚ بَلْ زَعَمْتُمْ أَلَّن نَّجْعَلَ لَكُم مَّوْعِدًا (48)
और सभी आपके पालनहार के समक्ष पंक्तियों में प्रस्तुत किये जायेंगे, तुम हमारे पास आ गये, जैसे हमने तुम्हारी उत्पत्ति प्रथम बार की थी, बल्कि तुमने समझा था कि हम तुम्हारे लिए कोई वचन का समय निर्धारित ही नहीं करेंगे।
وَوُضِعَ الْكِتَابُ فَتَرَى الْمُجْرِمِينَ مُشْفِقِينَ مِمَّا فِيهِ وَيَقُولُونَ يَا وَيْلَتَنَا مَالِ هَٰذَا الْكِتَابِ لَا يُغَادِرُ صَغِيرَةً وَلَا كَبِيرَةً إِلَّا أَحْصَاهَا ۚ وَوَجَدُوا مَا عَمِلُوا حَاضِرًا ۗ وَلَا يَظْلِمُ رَبُّكَ أَحَدًا (49)
और कर्म लेख[1] (सामने) रख दिये जायेंगे, तो आप अपराधियों को देखेंगे कि उससे डर रहे हैं, जो कुछ उसमें (अंकित) है तथा कहेंगे कि हाय हमारा विनाश! ये कैसी पुस्तक है, जिसने किसी छोटे और बड़े कर्म को नहीं छोड़ा है, परन्तु उसे अंकित कर रखा है? और जो कर्म उन्होंने किये हैं, उन्हें वह सामने पायेंगे और आपका पालनहार किसी पर अत्याचार नहीं करेगा।
وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ كَانَ مِنَ الْجِنِّ فَفَسَقَ عَنْ أَمْرِ رَبِّهِ ۗ أَفَتَتَّخِذُونَهُ وَذُرِّيَّتَهُ أَوْلِيَاءَ مِن دُونِي وَهُمْ لَكُمْ عَدُوٌّ ۚ بِئْسَ لِلظَّالِمِينَ بَدَلًا (50)
तथा (याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहाः आदम को सज्दा करो, तो सबने सज्दा किया, इब्लीस के सिवा। वह जिन्नों में से था, अतः उसने उल्लंघन किया अपने पालनहार की आज्ञा का, तो क्या तुम उसे और उसकी संतति को सहायक मित्र बनाते हो, मुझे छोड़कर जबकि वे तुम्हारे शत्रु हैं? अत्याचारियों के लिए बुरा बदला है।
۞ مَّا أَشْهَدتُّهُمْ خَلْقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَلَا خَلْقَ أَنفُسِهِمْ وَمَا كُنتُ مُتَّخِذَ الْمُضِلِّينَ عَضُدًا (51)
मैंने उन्हें उपस्थित नहीं किया, आकाशों तथा धरती की उतपत्ति के समय और न स्वयं उनकी उत्पत्ति के समय और न मैं कुपथों को सहायक[1] बनाने वाला हूँ।
وَيَوْمَ يَقُولُ نَادُوا شُرَكَائِيَ الَّذِينَ زَعَمْتُمْ فَدَعَوْهُمْ فَلَمْ يَسْتَجِيبُوا لَهُمْ وَجَعَلْنَا بَيْنَهُم مَّوْبِقًا (52)
जिस दिन वह (अल्लाह) कहेगा कि मेरे साझियों को पुकारो, जिन्हें (तुम मेरे साझी) समझ रहे थे। वह उन्हें पुकारेंगे, तो वे उनका कोई उत्तर नहीं देंगे और हम बना देंगे उनके बीच एक विनाशकारी खाई।
وَرَأَى الْمُجْرِمُونَ النَّارَ فَظَنُّوا أَنَّهُم مُّوَاقِعُوهَا وَلَمْ يَجِدُوا عَنْهَا مَصْرِفًا (53)
और अपराधी नरक को देखेंगे, तो उन्हें विश्वास जो जायेगा कि वे उसमें गिरने वाले हैं और उससे फिरने का कोई स्थान नहीं पायेंगे।
وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِي هَٰذَا الْقُرْآنِ لِلنَّاسِ مِن كُلِّ مَثَلٍ ۚ وَكَانَ الْإِنسَانُ أَكْثَرَ شَيْءٍ جَدَلًا (54)
और हमने इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण से लोगों को समझाया है। और मनुष्य बड़ा ही झगड़ालू है।
وَمَا مَنَعَ النَّاسَ أَن يُؤْمِنُوا إِذْ جَاءَهُمُ الْهُدَىٰ وَيَسْتَغْفِرُوا رَبَّهُمْ إِلَّا أَن تَأْتِيَهُمْ سُنَّةُ الْأَوَّلِينَ أَوْ يَأْتِيَهُمُ الْعَذَابُ قُبُلًا (55)
और नहीं रोका लोगों को कि ईमान लायें, जब उनके पास मार्गदर्शन आ गया और अपने पालनहार से क्षमा याचना करें, किन्तु इसीने कि पिछली जातियों की दशा उनकी भी हो जाये अथवा उनके समक्ष यातना आ जाये।
وَمَا نُرْسِلُ الْمُرْسَلِينَ إِلَّا مُبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ ۚ وَيُجَادِلُ الَّذِينَ كَفَرُوا بِالْبَاطِلِ لِيُدْحِضُوا بِهِ الْحَقَّ ۖ وَاتَّخَذُوا آيَاتِي وَمَا أُنذِرُوا هُزُوًا (56)
तथा हम रसूलों को नहीं भेजते, परन्तु शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले बनाकर और जो काफ़िर हैं, असत्य (अनृत) के सहारे विवाद करते हैं, ताकि उसके द्वारा वे सत्य को नीचा[1] दिखायें और उन्होंने बनाया हमारी आयतों को तथा जिस बात की उन्हें चेतावनी दी गई, परिहास।
وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِآيَاتِ رَبِّهِ فَأَعْرَضَ عَنْهَا وَنَسِيَ مَا قَدَّمَتْ يَدَاهُ ۚ إِنَّا جَعَلْنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَن يَفْقَهُوهُ وَفِي آذَانِهِمْ وَقْرًا ۖ وَإِن تَدْعُهُمْ إِلَى الْهُدَىٰ فَلَن يَهْتَدُوا إِذًا أَبَدًا (57)
और उससे बड़ा अत्याचारी कौन है, जिसे उसके पालनहार की आयतें सुनाई जायेँ, फिर (भी) उनसे मुँह फेर ले और अपने पहले किये हुए करतूत भूल जाये? वास्तव में, हमने उनके दिलों पर ऐसे आवरण (पर्दे) बना दिये हैं कि उसे[1] समझ न पायें और उनके कानों में बोझ। और यदि आप उन्हें सीधी राह की ओर बुलायें, तब (भी) कभी सीधी राह नहीं पा सकेंग।
وَرَبُّكَ الْغَفُورُ ذُو الرَّحْمَةِ ۖ لَوْ يُؤَاخِذُهُم بِمَا كَسَبُوا لَعَجَّلَ لَهُمُ الْعَذَابَ ۚ بَل لَّهُم مَّوْعِدٌ لَّن يَجِدُوا مِن دُونِهِ مَوْئِلًا (58)
और आपका पालनहार अति क्षमी दयावान् है। यदि वह उन्हें उनके करतूतों पर पकड़ता, तो तुरन्त यातना दे देता। बल्कि उनके लिए एक निश्चित समय का वचन है और वे उसके सिवा कोई बचाव का स्थान नहीं पायेंगे।
وَتِلْكَ الْقُرَىٰ أَهْلَكْنَاهُمْ لَمَّا ظَلَمُوا وَجَعَلْنَا لِمَهْلِكِهِم مَّوْعِدًا (59)
तथा ये बस्तियाँ हैं। हमने उन (के निवासियों) का विनाश कर दिया, जब उन्होंने अत्याचार किया और हमने उनके विनाश के लिए एक निर्धारित समय बना दिया था।
وَإِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِفَتَاهُ لَا أَبْرَحُ حَتَّىٰ أَبْلُغَ مَجْمَعَ الْبَحْرَيْنِ أَوْ أَمْضِيَ حُقُبًا (60)
तथा (याद करो) जब मूसा ने अपने सेवक से कहाः मैं बराबर चलता रहूँगा, यहाँ तक कि दोनों सागरों के संगम पर पहुँच जाऊँ अथवा वर्षों चलता[1] रहूँ।
فَلَمَّا بَلَغَا مَجْمَعَ بَيْنِهِمَا نَسِيَا حُوتَهُمَا فَاتَّخَذَ سَبِيلَهُ فِي الْبَحْرِ سَرَبًا (61)
तो जब दोनों उनके संगम पर पहुँचे, तो दोनों अपनी मछली भूल गये और उसने सागर में अपनी राह बना ली, सुरंग के समान।
فَلَمَّا جَاوَزَا قَالَ لِفَتَاهُ آتِنَا غَدَاءَنَا لَقَدْ لَقِينَا مِن سَفَرِنَا هَٰذَا نَصَبًا (62)
फिर, जब दोनों आगे चले गये, तो उस (मूसा) ने अपने सेवक से कहा कि हमारा दिन का भोजन लाओ। हम अपनी इस यात्रा से थक गये हैं।
قَالَ أَرَأَيْتَ إِذْ أَوَيْنَا إِلَى الصَّخْرَةِ فَإِنِّي نَسِيتُ الْحُوتَ وَمَا أَنسَانِيهُ إِلَّا الشَّيْطَانُ أَنْ أَذْكُرَهُ ۚ وَاتَّخَذَ سَبِيلَهُ فِي الْبَحْرِ عَجَبًا (63)
उसने कहाः क्या आपने देखा? जब हमने उस शिला खण्ड के पास शरण ली थी, तो मैं मछली भूल गया और मुझे उसे शैतान ही ने भुला दिया कि मैं उसकी चर्चा करूँ और उसने अपनी राह सागर में अनोखे तरीक़े से बना ली।
قَالَ ذَٰلِكَ مَا كُنَّا نَبْغِ ۚ فَارْتَدَّا عَلَىٰ آثَارِهِمَا قَصَصًا (64)
मूसा ने कहाः वही है, जो हम चाहते थे। फिर दोनों अपने पद्चिन्हों को देखते हुए वापिस हुए।
فَوَجَدَا عَبْدًا مِّنْ عِبَادِنَا آتَيْنَاهُ رَحْمَةً مِّنْ عِندِنَا وَعَلَّمْنَاهُ مِن لَّدُنَّا عِلْمًا (65)
और दोनों ने पाया हमारे भक्तों में से एक भक्त[1] को, जिसे हमने अपनी विशेष दया प्रदान की थी और उसे अपने पास से कुछ विशेष ज्ञान दिया था।
قَالَ لَهُ مُوسَىٰ هَلْ أَتَّبِعُكَ عَلَىٰ أَن تُعَلِّمَنِ مِمَّا عُلِّمْتَ رُشْدًا (66)
मूसा ने उससे कहाः क्या मैं आपका अनुसरण करूँ, ताकि मुझे भी उस भलाई में से कुछ सिखा दें, जो आपको सिखाई गई है
قَالَ إِنَّكَ لَن تَسْتَطِيعَ مَعِيَ صَبْرًا (67)
उसने कहाः तुम मेरे साथ धैर्य नहीं कर सकोगे।
وَكَيْفَ تَصْبِرُ عَلَىٰ مَا لَمْ تُحِطْ بِهِ خُبْرًا (68)
और कैसे धैर्य करोगे उस बात पर, जिसका तुम्हें पूरा ज्ञान नहीं
قَالَ سَتَجِدُنِي إِن شَاءَ اللَّهُ صَابِرًا وَلَا أَعْصِي لَكَ أَمْرًا (69)
उसने कहाः यदि अल्लाह ने चाहा, तो आप मुझे सहनशील पायेंगे और मैं आपकी किसी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूँगा।
قَالَ فَإِنِ اتَّبَعْتَنِي فَلَا تَسْأَلْنِي عَن شَيْءٍ حَتَّىٰ أُحْدِثَ لَكَ مِنْهُ ذِكْرًا (70)
उसने कहाः यदि तुम्हें मेरा अनुसरण करना है, तो मुझसे किसी चीज़ के बारे में प्रश्न न करना, जब तक मैं स्वयं तुमसे उसकी चर्चा न करूँ।
فَانطَلَقَا حَتَّىٰ إِذَا رَكِبَا فِي السَّفِينَةِ خَرَقَهَا ۖ قَالَ أَخَرَقْتَهَا لِتُغْرِقَ أَهْلَهَا لَقَدْ جِئْتَ شَيْئًا إِمْرًا (71)
फिर दोनों चले, यहाँ तक कि जब दोनों नौका में सवार हुए, तो उस (ख़िज़्र) ने उसमें छेद कर दिया। मूसा ने कहाः क्या आपने इसमें छेदकर दिया, ताकि उसके सवारों को डुबो दें, आपने अनुचित काम कर दिया।
قَالَ أَلَمْ أَقُلْ إِنَّكَ لَن تَسْتَطِيعَ مَعِيَ صَبْرًا (72)
उसने कहाः क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम मेरे साथ सहन नहीं कर सकोगे
قَالَ لَا تُؤَاخِذْنِي بِمَا نَسِيتُ وَلَا تُرْهِقْنِي مِنْ أَمْرِي عُسْرًا (73)
कहाः मुझे आप मेरी भूल पर न पकड़े और मेरी बात के कारण मुझे असुविधा में न डालें।
فَانطَلَقَا حَتَّىٰ إِذَا لَقِيَا غُلَامًا فَقَتَلَهُ قَالَ أَقَتَلْتَ نَفْسًا زَكِيَّةً بِغَيْرِ نَفْسٍ لَّقَدْ جِئْتَ شَيْئًا نُّكْرًا (74)
फिर दोनों चले, यहाँ तक कि एक बालक से मिले, तो उस (ख़िज़्र) ने उसे वध कर दिया। मूसा ने कहाः क्या आपने एक निर्दोष प्राण ले लिया, वह भी किसी प्राण के बदले[1] नहीं? आपने बहुत ही बुरा काम किया।
۞ قَالَ أَلَمْ أَقُل لَّكَ إِنَّكَ لَن تَسْتَطِيعَ مَعِيَ صَبْرًا (75)
उसने कहाः क्या मैंने तुमसे नहीं कहा कि वास्तव में, तुम मेरे साथ धैर्य नहीं कर सकोगे
قَالَ إِن سَأَلْتُكَ عَن شَيْءٍ بَعْدَهَا فَلَا تُصَاحِبْنِي ۖ قَدْ بَلَغْتَ مِن لَّدُنِّي عُذْرًا (76)
मूसा ने कहाः यदि मैं आपसे प्रश्न करूँ, किसी विषय में इसके पश्चात्, तो मुझे अपने साथ न रखें। निश्चय आप मेरी ओर से याचना को पहुँच[1] चुके।
فَانطَلَقَا حَتَّىٰ إِذَا أَتَيَا أَهْلَ قَرْيَةٍ اسْتَطْعَمَا أَهْلَهَا فَأَبَوْا أَن يُضَيِّفُوهُمَا فَوَجَدَا فِيهَا جِدَارًا يُرِيدُ أَن يَنقَضَّ فَأَقَامَهُ ۖ قَالَ لَوْ شِئْتَ لَتَّخَذْتَ عَلَيْهِ أَجْرًا (77)
फिर दोनो चले, यहाँ तक कि जब एक गाँव के वासियों के पास आये, तो उनसे भोजन माँगा। उन्होंने उनका अतिथि सत्कार करने से इन्कार कर दिया। वहाँ उन्होंने एक दीवार पायी, जो गिरा चाहती थी। उसने उसे सीधा कर दिया। कहाः यदि आप चाहते, तो इसपर पारिश्रमिक ले लेते।
قَالَ هَٰذَا فِرَاقُ بَيْنِي وَبَيْنِكَ ۚ سَأُنَبِّئُكَ بِتَأْوِيلِ مَا لَمْ تَسْتَطِع عَّلَيْهِ صَبْرًا (78)
उसने कहाः ये मेरे तथा तुम्हारे बीच वियोग है। मैं तुम्हें उसकी वास्तविक्ता बताऊँगा, जिसे तुम सहन नहीं कर सके।
أَمَّا السَّفِينَةُ فَكَانَتْ لِمَسَاكِينَ يَعْمَلُونَ فِي الْبَحْرِ فَأَرَدتُّ أَنْ أَعِيبَهَا وَكَانَ وَرَاءَهُم مَّلِكٌ يَأْخُذُ كُلَّ سَفِينَةٍ غَصْبًا (79)
रही नाव, तो वह कुछ निर्धनों की थी, जो सागर में काम करते थे। तो मैंने चाहा कि उसे छिद्रित[1] कर दूँ और उनके आगे एक राजा था, जो प्रत्येक (अच्छी) नाव का अपहरण कर लेता था।
وَأَمَّا الْغُلَامُ فَكَانَ أَبَوَاهُ مُؤْمِنَيْنِ فَخَشِينَا أَن يُرْهِقَهُمَا طُغْيَانًا وَكُفْرًا (80)
और रहा बालक, तो उसके माता-पिता ईमान वाले थे, अतः हम डरे कि उन्हें अपनी अवज्ञा और अधर्म से दुःख न पहुँचाये।
فَأَرَدْنَا أَن يُبْدِلَهُمَا رَبُّهُمَا خَيْرًا مِّنْهُ زَكَاةً وَأَقْرَبَ رُحْمًا (81)
इसलिए हमने चाहा कि उन दोनों को उनका पालनहार, इसके बदले उससे अधिक पवित्र और अधिक प्रेमी प्रदान करे।
وَأَمَّا الْجِدَارُ فَكَانَ لِغُلَامَيْنِ يَتِيمَيْنِ فِي الْمَدِينَةِ وَكَانَ تَحْتَهُ كَنزٌ لَّهُمَا وَكَانَ أَبُوهُمَا صَالِحًا فَأَرَادَ رَبُّكَ أَن يَبْلُغَا أَشُدَّهُمَا وَيَسْتَخْرِجَا كَنزَهُمَا رَحْمَةً مِّن رَّبِّكَ ۚ وَمَا فَعَلْتُهُ عَنْ أَمْرِي ۚ ذَٰلِكَ تَأْوِيلُ مَا لَمْ تَسْطِع عَّلَيْهِ صَبْرًا (82)
और रही दीवार, तो वह दो अनाथ बालकों की थी और उसके भीतर उनका कोष था और उनके माता-पिता पुनीत थे, तो तेरे पालनहार ने चाहा कि वे दोनों अपनी युवा अवस्था को पहुँचें और अपना कोष निकालें, तेरे पालनहार की दया से और मैंने ये अपने विचार तथा अधिकार से नहीं किया[1]। ये उसकी वास्तविक्ता है, जिसे तुम सहन नहीं कर सके।
وَيَسْأَلُونَكَ عَن ذِي الْقَرْنَيْنِ ۖ قُلْ سَأَتْلُو عَلَيْكُم مِّنْهُ ذِكْرًا (83)
और (हे नबी!) वे आपसे ज़ुलक़रनैन[1] के विषय में प्रश्न करते हैं। आप कह दें कि मैं उनकी कुछ दशा तुम्हें पढ़कर सुना देता हूँ।
إِنَّا مَكَّنَّا لَهُ فِي الْأَرْضِ وَآتَيْنَاهُ مِن كُلِّ شَيْءٍ سَبَبًا (84)
हमने उसे धरती में प्रभुत्व प्रदान किया तथा उसे प्रत्येक प्रकार का साधन दिया।
فَأَتْبَعَ سَبَبًا (85)
तो वह एक राह के पीछे लगा।
حَتَّىٰ إِذَا بَلَغَ مَغْرِبَ الشَّمْسِ وَجَدَهَا تَغْرُبُ فِي عَيْنٍ حَمِئَةٍ وَوَجَدَ عِندَهَا قَوْمًا ۗ قُلْنَا يَا ذَا الْقَرْنَيْنِ إِمَّا أَن تُعَذِّبَ وَإِمَّا أَن تَتَّخِذَ فِيهِمْ حُسْنًا (86)
यहाँ तक कि जब सूर्यास्त के स्थान तक[1] पहुँचा, तो उसने पाया कि वह एक काली कीचड़ के स्रोत में डूब रहा है और वहाँ एक जाति को पाया। हमने कहाः हे ज़ुलक़रनैन! तू उन्हें यातना दे अथवा उनमें अच्छा व्यवहार बना।
قَالَ أَمَّا مَن ظَلَمَ فَسَوْفَ نُعَذِّبُهُ ثُمَّ يُرَدُّ إِلَىٰ رَبِّهِ فَيُعَذِّبُهُ عَذَابًا نُّكْرًا (87)
उसने कहाः जो अत्याचार करेगा, हम उसे दण्ड देंगे। फिर वह अपने पालनहार की ओर फेरा[1] जायेगा, तो वह उसे कड़ी यातना देगा।
وَأَمَّا مَنْ آمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَهُ جَزَاءً الْحُسْنَىٰ ۖ وَسَنَقُولُ لَهُ مِنْ أَمْرِنَا يُسْرًا (88)
परन्तु जो ईमान लाये तथा सदाचार करे, तो उसी के लिए अच्छा प्रतिफल (बदला) है और हम उसे अपना सरल आदेश देंगे।
ثُمَّ أَتْبَعَ سَبَبًا (89)
फिर वह एक (अन्य) राह की ओर लगा।
حَتَّىٰ إِذَا بَلَغَ مَطْلِعَ الشَّمْسِ وَجَدَهَا تَطْلُعُ عَلَىٰ قَوْمٍ لَّمْ نَجْعَل لَّهُم مِّن دُونِهَا سِتْرًا (90)
यहाँ तक कि सूर्य़ोदय के स्थान तक पहुँचा। तो उसे पाया कि ऐसी जाति पर उदय हो रहा है, जिससे हमने उनके लिए कोई आड़ नहीं बनायी है।
كَذَٰلِكَ وَقَدْ أَحَطْنَا بِمَا لَدَيْهِ خُبْرًا (91)
उनकी दशा ऐसी ही थी और उस (ज़ुलक़रनैन) के पास जो कुछ था, हम उससे पूर्णतः सूचित हैं।
ثُمَّ أَتْبَعَ سَبَبًا (92)
फिर वह एक दूसरी राह की ओर लगा।
حَتَّىٰ إِذَا بَلَغَ بَيْنَ السَّدَّيْنِ وَجَدَ مِن دُونِهِمَا قَوْمًا لَّا يَكَادُونَ يَفْقَهُونَ قَوْلًا (93)
यहाँ तक कि जब दो पर्वतों के बीच पहुँचा, तो उन दोनों की उस ओर एक जाति को पाया, जो नहीं समीप थी कि किसी बात को समझे[1]।
قَالُوا يَا ذَا الْقَرْنَيْنِ إِنَّ يَأْجُوجَ وَمَأْجُوجَ مُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ فَهَلْ نَجْعَلُ لَكَ خَرْجًا عَلَىٰ أَن تَجْعَلَ بَيْنَنَا وَبَيْنَهُمْ سَدًّا (94)
उन्होंने कहाः हे ज़ुलक़रनैन! वास्तव में, याजूज तथा माजूज उपद्रवी हैं, इस देश में। तो क्या हम निर्धारित कर दें आपके लिए कुछ धन। इसलिए कि आप हमारे और उनके बीच कोई रोक (बन्ध) बना दें
قَالَ مَا مَكَّنِّي فِيهِ رَبِّي خَيْرٌ فَأَعِينُونِي بِقُوَّةٍ أَجْعَلْ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُمْ رَدْمًا (95)
उसने कहाः जो कुछ मुझे मेरे पालनहार ने प्रदान किया है, वह उत्तम है। तो तुम मेरी सहायता बल और शक्ति से करो, मैं बना दूँगा तुम्हारे और उनके मध्य एक दृढ़ भीत।
آتُونِي زُبَرَ الْحَدِيدِ ۖ حَتَّىٰ إِذَا سَاوَىٰ بَيْنَ الصَّدَفَيْنِ قَالَ انفُخُوا ۖ حَتَّىٰ إِذَا جَعَلَهُ نَارًا قَالَ آتُونِي أُفْرِغْ عَلَيْهِ قِطْرًا (96)
मुझे लोहे की चादरें ला दो और जब दोनों पर्वतों के बीच दीवार तैयार कर दी, तो कहा कि आग दहकाओ, यहाँतक कि जब उस दीवार को आग (के समान लाल) कर दिया, तो कहाः मेरे पास लाओ, इसपर पिघला हुआ ताँबा उंडेल दूँ।
فَمَا اسْطَاعُوا أَن يَظْهَرُوهُ وَمَا اسْتَطَاعُوا لَهُ نَقْبًا (97)
फिर वह उसपर चढ़ नहीं सकते थे और न उसमें कोई सेंध लगा सकते थे।
قَالَ هَٰذَا رَحْمَةٌ مِّن رَّبِّي ۖ فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ رَبِّي جَعَلَهُ دَكَّاءَ ۖ وَكَانَ وَعْدُ رَبِّي حَقًّا (98)
उस (ज़ुलक़रनैन) ने कहाः ये मेरे पालनहार की दया है। फिर जब मेरे पालनहार का वचन[1] आयेगा, तो वह इसे खण्ड-खण्ड कर देगा और मेरे पालनहार का वचन सत्य है।
۞ وَتَرَكْنَا بَعْضَهُمْ يَوْمَئِذٍ يَمُوجُ فِي بَعْضٍ ۖ وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَجَمَعْنَاهُمْ جَمْعًا (99)
और हम छोड़ देंगे उस[1] दिन लोगों को एक-दूसरे में लहरें लेते हुए तथा निरसिंघा में फूंक दिया जायेगा और हम सबको एकत्र कर देंगे।
وَعَرَضْنَا جَهَنَّمَ يَوْمَئِذٍ لِّلْكَافِرِينَ عَرْضًا (100)
और हम सामने कर देंगे उस दिन नरक को काफ़िरों के समक्ष।
الَّذِينَ كَانَتْ أَعْيُنُهُمْ فِي غِطَاءٍ عَن ذِكْرِي وَكَانُوا لَا يَسْتَطِيعُونَ سَمْعًا (101)
जिनकी आँखें मेरी याद से पर्दे में थीं और कोई बात सुन नहीं सकते थे।
أَفَحَسِبَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَن يَتَّخِذُوا عِبَادِي مِن دُونِي أَوْلِيَاءَ ۚ إِنَّا أَعْتَدْنَا جَهَنَّمَ لِلْكَافِرِينَ نُزُلًا (102)
तो क्या उन्होंने सोचा है जो काफ़िर हो गये कि वे बना लेंगे मेरे दासों को मेरे सिवा सहायक? वास्तव में, हमने काफ़िरों के आतिथ्य के लिए नरक तैयार कर दी है।
قُلْ هَلْ نُنَبِّئُكُم بِالْأَخْسَرِينَ أَعْمَالًا (103)
आप कह दें कि क्या हम तुम्हें बता दें कि कौन अपने कर्मों में सबसे अधिक क्षतिग्रस्त हैं
الَّذِينَ ضَلَّ سَعْيُهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَهُمْ يَحْسَبُونَ أَنَّهُمْ يُحْسِنُونَ صُنْعًا (104)
वह हैं, जिनके सांसारिक जीवन के सभी प्रयास व्यर्थ हो गये तथा वे समझते रहे कि वे अच्छे कर्म कर रहे हैं।
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِ رَبِّهِمْ وَلِقَائِهِ فَحَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فَلَا نُقِيمُ لَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَزْنًا (105)
यही वे लोग हैं, जिन्होंने नहीं माना अपने पालनहार की आयतों तथा उससे मिलने को, अतः हम प्रलय के दिन उनका कोई भार निर्धारित नहीं करेंगे[1]।
ذَٰلِكَ جَزَاؤُهُمْ جَهَنَّمُ بِمَا كَفَرُوا وَاتَّخَذُوا آيَاتِي وَرُسُلِي هُزُوًا (106)
उन्हीं का बदला नरक है, इस कारण कि उन्होंने कुफ़्र किया और मेरी आयतों और मेरे रसूलों का उपहास किया।
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ كَانَتْ لَهُمْ جَنَّاتُ الْفِرْدَوْسِ نُزُلًا (107)
निश्चय जो ईमान लाये और सदाचार किये, उन्हीं के आतिथ्य के लिए फ़िरदौस[1] के बाग़ होंगे।
خَالِدِينَ فِيهَا لَا يَبْغُونَ عَنْهَا حِوَلًا (108)
उसमें वे सदावासी होंगे, उसे छोड़कर जाना नहीं चाहेंगे।
قُل لَّوْ كَانَ الْبَحْرُ مِدَادًا لِّكَلِمَاتِ رَبِّي لَنَفِدَ الْبَحْرُ قَبْلَ أَن تَنفَدَ كَلِمَاتُ رَبِّي وَلَوْ جِئْنَا بِمِثْلِهِ مَدَدًا (109)
(हे नबी!) आप कह दें कि यदि सागर मेरे पालनहार की बातें लिखने के लिए स्याही बन जायेँ, तो सागर समाप्त हो जायें इससे पहले कि मेरे पालनहार की बातें समाप्त हों, यद्यपि उतनी ही स्याही और ले आयें।
قُلْ إِنَّمَا أَنَا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يُوحَىٰ إِلَيَّ أَنَّمَا إِلَٰهُكُمْ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ ۖ فَمَن كَانَ يَرْجُو لِقَاءَ رَبِّهِ فَلْيَعْمَلْ عَمَلًا صَالِحًا وَلَا يُشْرِكْ بِعِبَادَةِ رَبِّهِ أَحَدًا (110)
आप कह देः मैंतो तुम जैसा एक मनुष्य पुरुष हूँ, मेरी ओर प्रकाशना (वह़्यी) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य बस एक ही पूज्य है। अतः, जो अपने पालनहार से मिलने की आशा रखता हो, उसे चाहिए कि सदाचार करे और साझी न बनाये अपने पालनहार की इबादत (वंदना) में किसी को।
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Surahs from Quran :

1- Fatiha2- Baqarah
3- Al Imran4- Nisa
5- Maidah6- Anam
7- Araf8- Anfal
9- Tawbah10- Yunus
11- Hud12- Yusuf
13- Raad14- Ibrahim
15- Hijr16- Nahl
17- Al Isra18- Kahf
19- Maryam20- TaHa
21- Anbiya22- Hajj
23- Muminun24- An Nur
25- Furqan26- Shuara
27- Naml28- Qasas
29- Ankabut30- Rum
31- Luqman32- Sajdah
33- Ahzab34- Saba
35- Fatir36- Yasin
37- Assaaffat38- Sad
39- Zumar40- Ghafir
41- Fussilat42- shura
43- Zukhruf44- Ad Dukhaan
45- Jathiyah46- Ahqaf
47- Muhammad48- Al Fath
49- Hujurat50- Qaf
51- zariyat52- Tur
53- Najm54- Al Qamar
55- Rahman56- Waqiah
57- Hadid58- Mujadilah
59- Al Hashr60- Mumtahina
61- Saff62- Jumuah
63- Munafiqun64- Taghabun
65- Talaq66- Tahrim
67- Mulk68- Qalam
69- Al-Haqqah70- Maarij
71- Nuh72- Jinn
73- Muzammil74- Muddathir
75- Qiyamah76- Insan
77- Mursalat78- An Naba
79- Naziat80- Abasa
81- Takwir82- Infitar
83- Mutaffifin84- Inshiqaq
85- Buruj86- Tariq
87- Al Ala88- Ghashiya
89- Fajr90- Al Balad
91- Shams92- Lail
93- Duha94- Sharh
95- Tin96- Al Alaq
97- Qadr98- Bayyinah
99- Zalzalah100- Adiyat
101- Qariah102- Takathur
103- Al Asr104- Humazah
105- Al Fil106- Quraysh
107- Maun108- Kawthar
109- Kafirun110- Nasr
111- Masad112- Ikhlas
113- Falaq114- An Nas